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चौहान राजवंश (साम्राज्य) का इतिहास एवं महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची

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चौहान वंश का इतिहास एवं महत्वपूर्ण तथ्य- Chauhan Dynasty History in Hindi

चौहान राजवंश का इतिहास एवं महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची: (Chauhan Dynasty History and Important Facts in Hindi)

चौहान वंश राजपूतों के प्रसिद्ध वशों में से एक है। चौहान वंश का संस्थापक वासुदेव चौहान था। ‘चव्हाण’ या ‘चौहान’ उत्तर भारत की आर्य जाति का एक वंश है। चौहान गोत्र राजपूतों में आता है। कई विद्वानों का कहना है कि चौहान सांभर झील, पुष्कर, आमेर और वर्तमान जयपुर (राजस्थान) में होते थे, जो अब सारे उत्तर भारत में फैले चुके हैं। इसके अतिरिक्त मैनपुरी (उत्तर प्रदेश) एवं अलवर ज़िले में भी इनकी अच्छी-ख़ासी संख्या है।

चौहान वंश के प्रसिद्ध शासक:
चौहान वंश की अनेक शाखाओं में ‘शाकंभरी चौहान’ (सांभर-अजमेर के आस-पास का क्षेत्र) की स्थापना लगभग 7वीं शताब्दी में वासुदेव ने की। वासुदेव के बाद पूर्णतल्ल, जयराज, विग्रहराज प्रथम, चन्द्रराज, गोपराज जैसे अनेक सामंतों ने शासन किया। शासक अजयदेव ने ‘अजमेर’ नगर की स्थापना की और साथ ही यहाँ पर सुन्दर महल एवं मन्दिर का निर्माण करवाया। ‘चौहान वंश’ के मुख्य शासक इस प्रकार थे-

चौहान राजवंश के शासकों की सूची:

  • वासुदेव चौहान  (551 ई. के लगभग)
  • विग्रहराज द्वितीय (956 ई. के लगभग)
  • अजयदेव चौहान (1113 ई. के लगभग)
  • अर्णोराज (लगभग 1133 से 1153 ई.)
  • विग्रहराज चतुर्थ बीसलदेव (लगभग 1153 से 1163 ई.)
  • पृथ्वीराज तृतीय (1178-1192 ई.)

1. वासुदेव चौहान: चौहानों का मूल स्थान जांगल देश में सांभर के आसपास सपादलक्ष को माना जाता हैं इनकी प्रांरभिक राजधानी अहिछत्रपुर (नागौर) थी। बिजोलिया शिलालेख के अनुसार सपादलक्ष के चौहान वंश का संस्थापक वासुदेव चौहान नामक व्यक्ति था, जिसने 551 ई के आसपास इस वंश का प्रारंभ किया। बिजोलिया शिलालेख के अनुसार सांभर झील का निर्माण भी इसी ने करवाया था। इसी के वंशज अजपाल ने 7वीं सांभर कस्बा बसाया तथा अजयमेरू दुर्ग की स्थापना की थी।

2. विग्रहराज द्वितीय: चौहान वंश के प्रारंभिक शासकों में सबसे प्रतापी राजा सिंहराज का पुत्र विग्रहराज-द्वितीय हुआ, जो लगभग 956 ई के आसपास सपालक्ष का शासक बना। इन्होने अन्हिलपाटन के चालुक्य शासक मूलराज प्रथम को हराकर कर देने को विवश किया तथा भड़ौच में अपनी कुलदेवी आशापुरा माता का मंदिर बनवाया। विग्रहराज के काल का विस्तृत वर्णन 973 ई. के हर्षनाथ के अभिलेख से प्राप्त होता है।

3. अजयराज: चौहान वंश का दूसरा प्रसिद्ध शासक अजयराज हुआ, जिसने (पृथ्वीराज विजय के अनुसार) 1113 ई. के लगभग अजयमेरू (अजमेर) बसाकर उसे अपने राज्य की राजधानी बनाया। उन्होंने अन्हिलापाटन के चालुक्य शासक मूलराज प्रथम को हराया। उन्होनें श्री अजयदेव नाम से चादी के सिक्के चलाये। उनकी रानी सोमलेखा ने भी उने नाम के सिक्के जारी किये।

4. अर्णोराज: अजयराज के बाद अर्णोंराज ने 1133 ई. के लगभग अजमेर का शासन संभाला। अर्णोराज ने तुर्क आक्रमणकारियों को बुरी तरह हराकर अजमेर में आनासागर झील का निर्माण करवाया। चालुक्य शासक कुमारपाल ने आबू के निकट युद्ध में इसे हराया। इस युद्ध का वर्णन प्रबन्ध कोश में मिलता है। अर्णोराज स्वयं शैव होते हुए भी अन्य धर्मो के प्रति सहिष्णु था। उनके पुष्कर में वराह-मंदिर का निर्माण करवाया।

5. विग्रहराज चतुर्थ: विग्रहराज-चतुर्थ (बीसलदेव) 1153 ई. में लगभग अजमेर की गद्दी पर आसीन हुए। इन्होंने अपने राज्य की सीमा का अत्यधिक विस्थार किया। उन्होंने गजनी के शासक अमीर खुशरूशाह (हम्मीर) को हराया तथा दिल्ली के तोमर शासक को पराजित किया एवं दिल्ली को अपने राज्य में मिलाया। एक अच्छा योद्धा एवं सेनानायक शासक होते हुए व विद्वानों के आश्रयदाता भी थे। उनके दरबार मे सोमदेव जैसे प्रकाण्ड विद्वान कवि थे। जिसने ‘ललित विग्रहराज‘ नाटक को रचना की। विग्रहराज विद्वानों के आश्रयदाता होने के कारण ‘कवि बान्धव‘ के नाम से जाने जाते थे। स्वयं विग्रहराज ने ‘हरिकेलि‘ नाटक लिखा। इनके काल को चोहन शासन का ‘स्वर्णयुग‘ भी कहा जाता है।

6. पृथ्वीराज-तृतीय: चौहान वंश के अंतिम प्रतापी सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय का जन्म 1166 ई. (वि.सं. 1223) में अजमेर के चौहान शासन सोमेश्वर की रानी कर्पूरीदेवी (दिल्ली के शासक अनंगपाल तोमर की पुत्री ) को कोख से अन्हिलपाटन (गुजरात) में हुआ। अपने पिता का असमय देहावसान हो जाने के कारण मात्र 11 वर्ष की अल्पायु में पृथ्वीराज तृतीय अजमेर की गद्दी के स्वामी बने। परन्तु बहुत कम समय में ही पृथ्वीराज-तुतीय ने अपनी योग्यता एवं वीरता से समस्त शासन प्रबन्ध अपने हाथ में ले लिया। उसके बाद उसने अपने चारों ओर के शत्रुओं का एक-एक कर शनै-शनै खात्मा किया एव दलपंगुल (विश्व विजेता) की उपाधि धारण की। वीर सेनानायक सम्राट पृथ्वीराज किन्ही कारणों से मुस्लिम आक्रांता मुहम्मद गौरी से तराइन के द्वितीय युद्ध में हार गया और देश में मुस्लिम शासन की नींव पड़ गई।

पृथ्वीराज-तृतीय के प्रमुख सैनिक अभियान व विजयें:

  1. नागार्जुन एवं भण्डानकों का दमन: पृथ्वीराज के राजकाल संभालने के कुछ समय बाद उसके चचेरे भाई नागार्जुन ने विद्रोह कर दिया। वह अजमेर का शासन प्राप्त करने का प्रयास कर रहा था अतः पृथ्वीराज ने सर्वप्रथम अपने मंत्री कैमास की सहायता से सैन्य बल के साथ उसे पराजित कर गडापुरा (गुड़गाॅव) एवं आसपास का क्षेत्र अपने अधिकार में कर लिये। इसके बाद 1182 ई. में पृथ्वीराज ने भरतपुर-मथुरा क्षेत्र में भण्डानकों के विद्रोहों का अंत किया।
  2. महोबा के चंदेलों पर विजय: पृथ्वीराज ने 1182 ई. मे ही महोबा के चंदेल शासक परमाल (परमार्दी) देव को हराकर उसे संधि के लिए विवश किया एवं उसके कई गांव अपने अधिकार में ले लिए।
  3. चालुक्यों पर विजय: सन् 1184 के लगभग गुजरात के चालुक्य शासक भीमदेव-द्वितीय के प्रधानमंत्री जगदेश प्रतिहार एवं पृथ्वीराज की सेना के मध्य नागौर का युद्ध हआ जिसके बाद दोनों में संधि हो गई एवं चौहानों की चालुक्यों से लम्बी शत्रुता का अंत हुआ।
  4. कन्नौज से संबंध: पृथ्वीराज के समय कत्रौज पर गहड़वाल शासक जयचन्द का शासन था। जयचंद एवं पृथ्वीराज दोनों की राज्य विस्तार की महात्वाकांक्षाओं ने उनमें आपसी वैमनस्य उत्पत्र कर दिया था। उसके बाद उसकी पुत्री संयोंगिता को पृथ्वीराज द्वारा स्वयंवर से उठा ले जाने के कारण दोनों की शत्रुता और बढ़ गई थी इसी वजह से तराइन युद्ध में जयचंद ने पृथ्वीराज की सहायता न कर मुहम्मद गौरी की सहायता की।

चौहान वंश की प्रमुख शाखाएँ:

वंश का नाम शाखा की संख्या
चौहान राजपूत 14 शाखा
राठौर राजपूत 12 शाखा
परमार या पंवार राजपूत 16 शाखा
सोलंकी राजपूत 6 शाखा
परिहार राजपूत 6 शाखा
गहलोत राजपूत 12 शाखा
चन्द्रवंशी राजपूत 4 शाखा
सेनवंशी या पाल राजपूत 1 शाखा
मकवान या झाला राजपूत 3 शाखा
भाटी या यदुवंशी राजपूत 5 शाखा
कछवाहा या कुशवाहा राजपूत 1 शाखा
तंवर या तोमर राजपूत 1 शाखा
र्भूंयार या कौशिक राजपूत 1 शाखा

राजस्थान के चौहान वंश:

राजस्थान में चौहानों के कई वंश हुए, जिन्होंने समय-समय पर यहाँ शासन किया और यहाँ की मिट्टी को गौरवांवित किया। ‘चौहान’ व ‘गुहिल’ शासक विद्वानों के प्रश्रयदाता बने रहे, जिससे जनता में शिक्षा एवं साहित्यिक प्रगति बिना किसी अवरोध के होती रही। इसी तरह निरन्तर संघर्ष के वातावरण में वास्तुशिल्प पनपता रहा। इस समूचे काल की सौन्दर्य तथा आध्यात्मिक चेतना ने कलात्मक योजनाओं को जीवित रखा। चित्तौड़, बाड़ौली तथा आबू के मन्दिर इस कथन के प्रमाण हैं। चौहान वंश की शाखाओं में निम्न शाखाएँ मुख्य थीं-

  • सांभर के चौहान
  • रणथम्भौर के चौहान
  • जालौर के चौहान
  • चौहान वंशीय हाड़ा राजपूत

रणथम्भौर के चौहान: तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज की पराजय के बाद उसके पुत्र गोविंदराज ने कुछ समय बाद रणथम्भौर में चौहान वंश का शासन किया। उनके उत्तराधिकारी वल्हण को दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिश ने पराजित कर दुर्ग पर अधिकार कर लिया था। इसी वंश के शासक वाग्भट्ट ने पुनः दुर्ग पर अधिकार कर चौहान वंश का शासन पुनः स्थापित किया। रणथम्भौर के सर्वाधिक प्रतापी एवं अंतिम शासक हम्मीर देव विद्रोही सेनिक नेता मुहम्मदशाह को शरण दे दी अतः दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया। 1301 ई. में हुए अंतिम युद्ध में हम्मीर चौहान की पराजय हुई और दुर्ग में रानियों ने जौहर किया तथा सभी राजपूत योद्धा मारे गये। 11 जुलाई, 1301 को दुर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी का कब्जा हो गया। इस युद्ध में अमीर खुसरो अलाउद्दीन की सेना के साथ ही था।

जालौर के चौहान: जालोर दिल्ली से गुजरात व मालवा, जाने के मार्ग पर पड़ता था। वहाॅ 13 वी सदी मे सोनगरा चौहानों का शासन था, जिसकी स्थापना नाडोल शाखा के कीर्तिपाल चौहान द्वारा की गई थी। जालौर का प्राचीन नाम जाबालीपुर था तथा यहाॅ के किले को ‘सुवर्णगिरी‘ कहते है। सन् 1305 में यहाॅ के शासक कान्हड़दे चौहान बने। अलाउद्दीन खिलजी ने जालोर पर अपना अधिकार करने हेतु योजना बनाई। जालौर के मार्ग में सिवाना का दूर्ग पड़ता हैं अतः पहले अलाउद्दीन खिलजी ने 1308 ई. मे सिवाना दुर्ग पर आक्रमण कर उसे जीता और उसका नाम ‘खैराबाद‘ रख कमालुद्दीन गुर्ग को वहा का दुर्ग रक्षक नियुक्त कर दिया। वीर सातल और सोम वीर गति को प्राप्त हुए सन् 1311ई. में अलाउद्दीन ने जालौर दुर्ग पर आक्रमण किया ओर कई दिनों के घेर के बाद अंतिम युद्ध मे अलाउद्दीन की विजय हुई और सभी राजपुत शहीद हुए। वीर कान्हड़देव सोनगरा और उसके पुत्र वीरमदेव युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। अलाउद्दीन ने इस जीत के बाद जालौर में एक मस्जिद का निर्माण करवाया। इस युद्ध की जानकारी पद्मनाभ के ग्रन्थ कान्हड़दे तथा वीरमदेव सोनगरा की बात में मिलती है।

नाडोल के चौहान: चौहानो की इस शाखा का संस्थापक शाकम्भरी नरेश वाकपति का पुत्र लक्ष्मण चौहान था, जिसने 960 ई. के लगभग चावड़ा राजपूतों के अधिपत्य से अपने आपको स्वतंत्र कर चौहान वंश का शासन स्थापित किया। नाडोल शाखा के कीर्तिपाल चौहान ने 1177ई. के लगभग मेवाड़ शासक सामन्तंसिंह को पराजित कर मेवाड़ को अपने अधीन कर लिया था। 1205 ई. के लगभग नाडोल के चौहान जालौर की चौहान शाखा में मिल गये।

सिरोही के चौहान: सिरोही में चौहानों की देवड़ा शाखा का शासन था, जिसकी स्थापना 1311 ई. के आसपास लुम्बा द्वारा की गई थी। इनकी राजधानी चन्द्रवती थी। बाद में बार-बार मुस्लिम आक्रमणों के कारण इस वंश के सहासमल ने 1425 ई. में सिरोही नगर की स्थापना कर अपनी राजधानी बनाया। इसी के काल में महारणा कुंभा ने सिरोही को अपने अधीन कर लिया। 1823 ई. में यहा के शासक शिवसिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि कर राज्य की सुरक्षा का जिम्मा सोपा। स्वतंत्रता के बाद सिरोही राज्य राजस्थान में जनवरी, 1950 में मिला दिया गया।

हाड़ौती के चौहान: हाड़ौती में वर्तमान बूंदी, कोटा, झालावाड एवं बांरा के क्षेत्र आते है। इस क्षेत्र में महाभारत के समय से मत्स्य (मीणा) जाति निवास करती थी। मध्यकाल में यहा मीणा जाति का ही राज्य स्थापित हो गया था। पूर्व में यह सम्पूर्ण क्षेत्र केवल बूंदी में ही आता था। 1342 ई. में यहा हाड़ा चौहान देवा ने मीणों को पराजित कर यहा चौहान वंश का शासन स्थापित किया। देवा नाडोल के चौहानों को ही वंशज था। बूंदी का यह नाम वहा के शासक बूंदा मीणा के पर पड़ा मेवाड़ नरेश क्षेत्रसिंह ने आक्रमण कर बूंदी को अपने अधीन कर लिया। तब से बूंदी का शासन मेवाड़ के अधीन ही चल रहा था। 1569 ई. में यहा के शासक सुरजन सिंह ने अकबर से संधि कर मुगल आधीनता स्वीकार कर ली और तब से बूंदी मेवाड़ से मुक्त हो गया। मुगल बादशाह फर्रूखशियार के समय बूंदी नरेश् बुद्धसिंह के जयपुर नरेश जयसिंह के खिलाफ अभियान पर न जाने के करण बूंदी राज्य का नाम फर्रूखाबाद रख उसे कोटा नेरश को दे दिया परंतु कुछ समय बाद बुद्धसिंह को बूंदी का राज्य वापस मिल गया। बाद में बूंदी के उत्तराधिकार के संबंध में बार-बार युद्ध होते रहे, जिनमें में मराठै, जयपुर नरेश सवाई जयसिंह एवं कोटा की दखलंदाजी रही। राजस्थान में मराठो का सर्वप्रथम प्रवेश बूंदी में हुआ, जब 1734ई. में यहा बुद्धसिंह की कछवाही रानी आनन्द (अमर) कुवरी ने अपने पुत्र उम्मेदसिंह के पक्ष में मराठा सरदार होल्कर व राणोजी को आमंत्रित किया।

1818ई. में बूंदी के शासक विष्णुसिंह ने मराठों से सुरक्षा हेतु ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि कर ली और बूंदी की सुरक्षा का भार अंग्रेजी सेना पर हो गया। देश की स्वाधीनता के बाद बूंदी का राजस्थान संघ मे विलय हो गया।

इन्हें भी पढे: प्राचीन भारत के प्रमुख राजवंश और संस्थापक

और जानिये : चौहान राजवंश (साम्राज्य) का इतिहास एवं महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची


छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों के नाम, कार्यकाल एवं उनकी राजनीतिक पार्टी (वर्ष 2000 से 2017)

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छत्तीसगढ़ के सभी मुख्यमंत्रियों की सूची (2000-2017) | छत्तीसगढ़ सामान्य ज्ञान

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों की सूची (2000-2017): (Chief Ministers of Chhattisgarh in Hindi)

छत्तीसगढ़:

छत्तीसगढ़ भारत का एक राज्य है। इस राज्य की राजधानी रायपुर है और इसका उच्च न्यायालय बिलासपुर में है। यह भारत का 26वां राज्य है। छत्तीसगढ़ के उत्तर में उत्तर प्रदेश और उत्तर-पश्चिम में मध्यप्रदेश का शहडोल संभाग, उत्तर-पूर्व में ओडिशा और झारखंड, दक्षिण में तेलंगाना और पश्चिम में महाराष्ट्र राज्य स्थित हैं। छत्तीसगढ़ में कुल 27 जिले हैं। छत्तीसगढ़ की विधान सभा में 90 सदस्य हैं। इस राज्य से 11 सदस्य लोक सभा और पांच सदस्य राज्य सभा में जाते हैं।

छत्तीसगढ़ का इतिहास:

मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ 01 नवंबर 2000 को भारत का एक नया राज्य बना। छत्तीसगढ़ का कुल क्षेत्र 135,191 वर्ग किमी है जो कि मध्य प्रदेश का सिर्फ 30 प्रतिशत है।  छत्तीसगढ़ प्राचीनकाल के दक्षिण कोशल का एक हिस्सा है और इसका इतिहास पौराणिक काल तक पीछे की ओर चला जाता है। पौराणिक काल का ‘कोशल’ प्रदेश, कालान्तर में ‘उत्तर कोशल’ और ‘दक्षिण कोशल’ नाम से दो भागों में विभक्त हो गया था इसी का ‘दक्षिण कोशल’ वर्तमान छत्तीसगढ़ कहलाता है। इस क्षेत्र के महानदी (जिसका नाम उस काल में ‘चित्रोत्पला’ था) का मत्स्य पुराण, महाभारत के भीष्म पर्व तथा ब्रह्म पुराण के भारतवर्ष वर्णन प्रकरण में उल्लेख है। वाल्मीकि रामायण में भी छत्तीसगढ़ के बीहड़ वनों तथा महानदी का स्पष्ट विवरण है। स्थित सिहावा पर्वत के आश्रम में निवास करने वाले श्रृंगी ऋषि ने ही अयोध्या में राजा दशरथ के यहाँ पुत्र्येष्टि यज्ञ करवाया था जिससे कि तीनों भाइयों सहित भगवान श्री राम का पृथ्वी पर अवतार हुआ। राम के काल में यहाँ के वनों में ऋषि-मुनि-तपस्वी आश्रम बना कर निवास करते थे और अपने वनवास की अवधि में राम यहाँ आये थे। इतिहास में इसके प्राचीनतम उल्लेख सन 639 ई० में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्मवेनसांग के यात्रा विवरण में मिलते हैं।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री:

वर्तमान में छत्तीसगढ़ की मुख्यमंत्री रमन सिंह हैं। रमन सिंह ने 07 दिसम्बर 2003 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी थे।

छत्तीसगढ़ के सभी मुख्यमंत्रियों की सूची वर्ष 2000 से अबतक:

मुख्यमंत्री का नाम पदमुक्ति पदमुक्ति दल/राजनीतिक पार्टी
अजीत जोगी 01 नवम्बर 2000 07 दिसम्बर 2003 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
रमन सिंह 07 दिसम्बर 2003 पदस्थ भारतीय जनता पार्टी

इन्हें भी पढ़े: भारतीय राज्यों के वर्तमान मुख्यमंत्री एवं उनकी राजनीतिक पार्टी

और जानिये : छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों के नाम, कार्यकाल एवं उनकी राजनीतिक पार्टी (वर्ष 2000 से 2017)

भारतीय नौसेना के प्रशिक्षण संस्थानों के नाम और उनके स्थान की सूची

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भारतीय नौसेना के प्रशिक्षण संस्थानों की सूची- Indian Navy Training Institutions in Hindi

भारतीय नौसेना के प्रशिक्षण संस्थान: (Indian Navy Training Institutions and their Venues in Hindi)

भारतीय सेना का सामुद्रिक अंग, भारतीय नौसेना 5600 वर्षों के अपने गौरवशाली इतिहास के साथ भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की रक्षक है। 55,000 नौसेनिको से लैस यह विश्व की पाँचवी सबसे बड़ी नौसेना भारतीय सीमा की सुरक्षा को प्रमुखता से निभाते हुए विश्व के अन्य प्रमुख मित्र राष्ट्रों के साथ सैन्य अभ्यास में भी सम्मिलित होती है। पिछले कुछ वर्षों से लागातार आधुनिकीकरण के अपने प्रयास से यह विश्व की एक प्रमुख शक्ति बनने की भारत की महत्त्वाकांक्षा को सफल बनाने की दिशा में है।

भारतीय नौसेना सन् 1613 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी की युद्धकारिणी सेना के रूप में इंडियन मेरीन संगठित की गई। 1685 ई. में इसका नामकरण “बंबई मेरीन” हुआ, जो 1830 ई. तक चला। 08 सितंबर 1934 ई. को भारतीय विधानपरिषद् ने भारतीय नौसेना अनुशासन अधिनियम पारित किया और रॉयल इंडियन नेवी का प्रादुर्भाव हुआ।

वर्तमान में एडमिरल सुनील लांबा भारत के नौसेनाध्यक्ष हैं। वाईस एडमिरल सुनील लाम्बा ने 31 मई 2016 को भारतीय नौसेना के अध्यक्ष के रूप में पदभार ग्रहण किया था।
भारतीय नौसेना के प्रशिक्षण संस्थानों की सूची:

प्रशिक्षण संस्थान का नाम स्थान
जल सेना अकादमी गोवा
आई एन एस चिलका उड़ीसा
आई एन एस शिवाजी लोनावाला
आई एन एस वलसूरा जाम नगर
आई एन एस सतवाहन विशाखापट्टनम
आई एन एस हमला मुंबई
आई एन एस कुजली मुंबई
आई एन एस अश्विनी मुंबई
आई एन एस अग्रणी कोयम्बटूर
जल सेना सशस्त्र कॉलेज मुंबई
आई एन एस गरुड़ कोचीन
आई एन एस हंस गोवा
जल सेना जहाज निर्माण स्कूल विशाखापट्टनम

इन्हें भी पढ़े: भारतीय नौसेना के अध्‍यक्षों की सूची

और जानिये : भारतीय नौसेना के प्रशिक्षण संस्थानों के नाम और उनके स्थान की सूची

विश्व के इतिहास में हुई प्रथम महत्वपूर्ण घटनाओं की सूची

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विश्व में प्रथम महत्वपूर्ण घटनाओं की सूची | First in World Major Events in Hindi

विश्व में प्रथम महत्वपूर्ण घटनाओं की सूची: (First in World Major Events in History in Hindi)

यहां पर विश्व इतिहास में हुई प्रथम महत्वपूर्ण घटनाओं की सूची दी गयी है, जिन्होंने विश्व में सबसे पहले अपना प्रभुत्व स्थापित किया है। विश्व के पुरुषों ने इतिहास के विभिन्न क्षेत्रों में जैसे:- इतिहास, समाजशास्त्र, साहित्य, खेल, राजनीति, पुरस्कार और सम्मान, मनोरंजन, क्षेत्रों में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। विश्व में महत्वपूर्ण घटनाओं के आधार पर हर परीक्षा में कुछ प्रश्न अवश्य पूछे जाते है, इसलिए यह आपकी सभी प्रकार की परीक्षा की तैयारी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। आइये जाने विश्व में प्रथम 22 महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में:-

विश्व में प्रथम महत्वपूर्ण घटनाएँ: ( विभिन्न वर्गों में):

विश्व में प्रथम महत्वपूर्ण घटनाएँ देश और तथ्य का नाम
आधुनिक ओलम्पिक खेलो का आयोजन करने वाला प्रथम देश यूनान
एफएम रेडियो बंद करने वाला विश्व का पहला देश नार्वे
कागजी मुद्रा जारी करने वाला प्रथम देश चीन
कृत्रिम उपग्रह को अन्तरिक्ष में प्रक्षेपण करने वाला प्रथम देश रूस
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के प्रथम सम्मलेन का आयोजन स्थल बेलग्रेड
चंद्रमा पर मानव भेजने वाला प्रथम देश संयुक्त राज्य अमेरिका
धातु के खनन पर प्रतिबंध लगाने वाला दुनिया का पहला देश बना एल साल्वाडोर (अप्रैल 2017)
धूम्रपान पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश भूटान
नक्शा बनाने वाला विश्व का पहला देश सुमेरिया
प्रथम नगर जिस पर परमाणु बम गिराया गया हिरोशिमा
प्रथम फुटबाल विश्व कप जीतने वाला देश उरुग्वे
बैंक नोट जारीकर्ता प्रथम देश स्वीडन
ब्रिटेन का प्रथम प्रधानमंत्री रॉबर्ट वालपोल
भूमिगत मेट्रो रेलवे प्रारंभकर्ता प्रथम देश ब्रिटेन
मंगल ग्रह पर उतरने वाला प्रथम अन्तरिक्ष यान वाइकिंग-1
राष्ट्रगान प्रारंभ करने वाला पहला देश जापान
विश्व का प्रथम धर्म सनातन (वैदिक) धर्म
विश्व का प्रथम रेडियो उपग्रह प्रक्षेपित करने वाला देश जापान
विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय तक्षशिला विश्वविद्यालय (भारत)
संविधान निर्माण करने वाला प्रथम देश संयुक्त राज्य अमेरिका
सर्वाधिक पशुओ वाला देश भारत
सिविल सेवा प्रारंभ करने वाला पहला देश चीन

और जानिये : विश्व के इतिहास में हुई प्रथम महत्वपूर्ण घटनाओं की सूची

भारत के इतिहास में हुई प्रथम महत्वपूर्ण घटनाओं की सूची

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विश्व में प्रथम पुरुष/घटनाएँ- First Male/Event in World in Hindi

भारत में प्रथम महत्वपूर्ण घटनाओं की सूची: (First in India Major Events in History in Hindi)

यहां पर भारत इतिहास में हुई प्रथम महत्वपूर्ण घटनाओं की सूची दी गयी है, जिन्होंने भारत में सबसे पहले अपना प्रभुत्व स्थापित किया है। विश्व के पुरुषों ने इतिहास के विभिन्न क्षेत्रों में जैसे:- इतिहास, समाजशास्त्र, साहित्य, खेल, राजनीति, पुरस्कार और सम्मान, मनोरंजन, क्षेत्रों में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। भारत में प्रथम महत्वपूर्ण घटनाओं के आधार पर हर परीक्षा में कुछ प्रश्न अवश्य पूछे जाते है, इसलिए यह आपकी सभी प्रकार की परीक्षा की तैयारी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। आइये जाने भारत में प्रथम 22 महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में:-

भारत में प्रथम महत्वपूर्ण घटनाएँ: (विभिन्न वर्गों में):

भारत में प्रथम महत्वपूर्ण घटनाएँ कब और कहाँ
अंटार्कटिक अभियान 1982 में डा. एस. जेड. कासिम के नेतृत्व में
अन्तराष्ट्रीय दूर संचार सेवा बम्बई से लन्दन (1851)
आणविक भूमिगत परीक्षण पोखरण (18 मई, 1974)
उपग्रह आर्यभट्ट (19 अप्रैल,1975)
जनगणना वर्ष 1872 में
जल विद्युत परियोजना शिव समुद्रम, 1902 में
तार लाइन डायमंड हार्बर से कलकत्ता (1853)
दूरदर्शन केंद्र नई दिल्ली (1959)
दूरदर्शन से रंगीन कार्यक्रम 15 अगस्त, 1982
नियमित दशकीय जनगणना वर्ष 1881 से
परखनली शिशु 198६ में जन्मी बेबी हर्षा
फुटबाल क्लब मोहन बागान, 1889 में
बोलती फिल्म आलमआरा
भाषाई दैनिक समाचार दर्पण
मूक फिल्म राजा हरिश्चंद
विमान वाहक युद्धपोत आई. एन.एस. विक्रांत
समाचार पत्र बंगाल गजट (जेम्स हिक्की)
स्वदेश निर्मित उपग्रह इनसेट 2 ए (1992)
स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी आई.एन.एस.चक्र
स्वदेशी प्रक्षेपास्त्र पृथ्वी (1988)
हिंदी समाचार पत्र उदंत मार्तंड

और जानिये : भारत के इतिहास में हुई प्रथम महत्वपूर्ण घटनाओं की सूची

मेघालय के मुख्यमंत्रियों के नाम, कार्यकाल एवं उनकी राजनीतिक पार्टी (वर्ष 1972 से 2017)

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मेघालय के सभी मुख्यमंत्रियों की सूची (2000-2017) | Chief Ministers of Meghalaya in Hindi

मेघालय के मुख्यमंत्रियों की सूची (1972-2017): (Chief Ministers of Meghalaya Since 1972 to till date in Hindi)

मेघालय:

मेघालय भारत के उत्तर पूर्व में स्थित एक राज्य है। मेघालय की राजधानी शिलांग है। मेघालय का क्षेत्रफल लगभग 22,429 वर्ग किलोमीटर है। मेघालय के उत्तर में असम, जो कि ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा विभाजित होता है और दक्षिण में बांग्लादेश स्थित है। मेघालय, पहले असम राज्य का हिस्सा था, जिसे 21 जनवरी 1972 को विभाजित कर नया राज्य बनाया गया। इसकी उत्तरी और पूर्वी सीमाएं असम से और दक्षिणी तथा पश्चिमी सीमाएं बांग्लादेश से मिलती हैं। यहाँ खासी, जैंतिया और गारों आदिवासी समुदाय के लोग मुख्यत: रहते हैं। मेघालय के मध्‍य और पूर्वी भाग में खासी और जैंतिया पहाड़ियाँ और एक विशाल पठारी क्षेत्र है। पहाड की तलहटी पर समतल भूमि की संकरी पट्टी बांग्लादेश की अंतरराष्‍ट्रीय सीमा के साथ लगी है।

मेघालय शब्द का अर्थ:

संस्कृत और अन्य भारतीय बोलियों में मेघालय शब्द का अर्थ ‘बादलों का घर’ है। इस राज्य में कई पर्वत श्रृंखलाएं होने के कारण यह नाम सबसे उपयुक्त है।

मेघालय का इतिहास:

असम के दो जिलों को अलग कर मेघालय राज्य का गठन किया गया था। 21 जनवरी 1972 को जयंतिया हिल्स और यूनाइटेड खासी हिल्स को मिला कर मेघालय राज्य बनाया गया था। पूर्ण राज्य का दर्जा पाने के पहले मेघालय को सन् 1970 में अर्ध-स्वायत्त राज्य का दर्जा दिया गया था। सन् 1971 में उत्तर-पूर्व अधिनियम क्षेत्र की मंजूरी के बाद मेघालय को राज्य के रुप में मान्यता मिली। इसके बाद राज्य को अपनी विधान सभा भी मिली।

मेघालय के मुख्यमंत्री:

वर्तमान में मेघालय के मुख्यमंत्री मुकुल संगमा हैं। मुकुल संगमा ने 05 मार्च 2013 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मेघालय के प्रथम मुख्यमंत्री विलियमसन ए. संगमा थे।

मेघालय के सभी मुख्यमंत्रियों की सूची वर्ष 1972 से अबतक:

मुख्यमंत्री का नाम पदमुक्ति पदमुक्ति दल/राजनीतिक पार्टी
विलियमसन ए. संगमा 02 अप्रैल 1970 21 जनवरी 1972 ऑल पार्टी हिल लीडर्स कांफ्रेंस
21 जनवरी 1972 18 मार्च 1972
18 मार्च 1972 21 नवम्बर 1976
22 नवम्बर 1976 03 मार्च 1978 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
डार्विन डीएंगडो पुघ 10 मार्च 1978 21 फरवरी 1979 ऑल पार्टी हिल लीडर्स कांफ्रेंस
21 फरवरी 1979 06 मई 1979
बी. बी. लिंगदोह 07 मई 1979 07 मई 1981
विलियमसन ए. संगमा 07 मई 1981 24 फरवरी 1983 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
बी. बी. लिंगदोह 02 मार्च 1983 31 मार्च 1983 ऑल पार्टी हिल लीडर्स कांफ्रेंस
विलियमसन ए संगमा 02 अप्रैल 1983 05 फरवरी 1988 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
पी. ए. संगमा 06 फरवरी 1988 25 मार्च 1990
बी. बी. लिंगदोह 26 मार्च 1990 10 अक्टूबर 1991 हिल पीपल यूनियन (एचपीयू)
 राष्ट्रपति शासन (11 अक्टूबर 1991 से 05 फरवरी 1992 तक)
डी.डी. लपंग 05 फरवरी 1992 19 फरवरी 1993 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
एस. सी. मारक 19 फरवरी 1993 27 फरवरी 1998
27 फरवरी 1998 10 मार्च 1998
बी. बी. लिंगदोह 10 मार्च 1998 08 मार्च 2000 यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी
ए. के. मॉवलोंग 08 मार्च 2000 08 दिसम्बर 2001
फ़्लिंडर एंडरसन खोंगलम 08 दिसम्बर 2001 04 मार्च 2003 स्वतंत्र
डी.डी. लपंग 04 मार्च 2003 15 जून 2006 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
जे.डी. रीम्बई 15 जून 2006 10 मार्च 2007
डी.डी. लपंग 10 मार्च 2007 04 मार्च 2008
04 मार्च 2008 19 मार्च 2008
डोंकुपर रॉय 19 मार्च 2008 18 मार्च 2009 यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी
 राष्ट्रपति शासन (18 मार्च 2009 से 12 मई 2009 तक)
डी.डी. लपंग 13 मई 2009 19 अप्रैल 2010 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
मुकुल संगमा 20 अप्रैल 2010 05 मार्च 2013
05 मार्च 2013 वर्तमान

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भारतीय वायुसेना के प्रशिक्षण संस्थानों के नाम और उनके स्थान की सूची

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भारतीय वायुसेना के प्रशिक्षण संस्थानों की सूची- Indian Air Force Training Institutions in Hindi

भारतीय वायुसेना के प्रशिक्षण संस्थान: (Indian Air Force Training Institutes and their Venues in Hindi)

भारतीय वायुसेना का इतिहास:

भारतीय वायुसेना (इंडियन एयरफोर्स) भारतीय सशस्त्र सेना का एक अंग है जो वायु युद्ध, वायु सुरक्षा, एवं वायु चौकसी का महत्वपूर्ण काम देश के लिए करती है। भारतीय वायुसेना का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। इसकी स्थापना 08 अक्टूबर 1932 को की गयी थी। आजादी (1950 में पूर्ण गणतंत्र घोषित होने) से पूर्व इसे रॉयल इंडियन एयरफोर्स के नाम से जाना जाता था और 1945 के द्वितीय विश्वयुद्ध में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आजादी (1950 में पूर्ण गणतंत्र घोषित होने) के पश्च्यात इसमें से “रॉयल” शब्द हटाकर सिर्फ “इंडियन एयरफोर्स” कर दिया गया।

भारत के राष्ट्रपति भारतीय वायु सेना के कमांडर इन चीफ के रूप में कार्य करते है। वायु सेनाध्यक्ष, एयर चीफ मार्शल, एक चार सितारा कमांडर है और वायु सेना का नेतृत्व करते है। भारतीय वायु सेना में किसी भी समय एक से अधिक एयर चीफ मार्शल सेवा में कभी नहीं होते। वर्तमान में लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत भारतीय वायुसेना के अध्यक्ष है।

भारतीय वायुसेना के प्रशिक्षण संस्थानों की सूची:

प्रशिक्षण संस्थान का नाम स्थान
वायुसेना का प्रशासनिक कॉलेज कोयम्बटूर
वायुसेना अकादमी हैदराबाद
वायुसेना का तकनीकी कॉलेज जलाहली
वायुसेना स्कूल साम्ब्रा (बेलगाँव)
विमान अनुदेशक स्कूल ताबरम
वायुसेना स्टेशन बीदर
वायुसेना स्टेशन हकीमपेट
वायुसेना स्टेशन येलहनका
हैलीकॉप्टर प्रशिक्षण स्कूल आवडी
भूतल प्रशिक्षण स्कूल आवडी
भूतल प्रशिक्षण संस्थान वड़ोदरा और बैरकपुर
विमान चलन चिकित्सा संस्थान बंगलुरु
छतरी सैनिक प्रशिक्षण स्कूल आगरा
नौचालन और संकेत स्कूल हैदराबाद
वायु युद्धकला कॉलेज सिकंदराबाद

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विज्ञान के प्रमुख क्षेत्र एवं उनके जनको (खोजकर्ता) के बारे में महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान

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विज्ञान के प्रमुख क्षेत्र एवं उनके जनको की सूची | Science GK in Hindi

विज्ञान के प्रमुख क्षेत्र एवं उनके जनको (खोजकर्ता) की सूची: (Major areas of science and their parents in Hindi)

यहां पर विज्ञान के प्रमुख क्षेत्र एवं उनके जनको (खोजकर्ता) के बारे में महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान जानकारी दी गयी है। सामान्यतः इस सूची से सम्बंधित प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते है। यदि आप विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे: आईएएस, शिक्षक, यूपीएससी, पीसीएस, एसएससी, बैंक, एमबीए एवं अन्य सरकारी नौकरियों के लिए तैयारी कर रहे हैं, तो आपको विज्ञान के प्रमुख क्षेत्र एवं उनके जनको (खोजकर्ता) के बारे में अवश्य पता होना चाहिए।

विज्ञान के प्रमुख क्षेत्र एवं उनके जनको (खोजकर्ता) की सूची:

विज्ञान के प्रमुख क्षेत्र जनक (खोजकर्ता) का नाम
वनस्पतिशास्त्र थियोफ्रेस्टस
गजल मिर्जा गालिब
जीव विज्ञान अरस्तू
आयुर्वेद चिकित्सा चरक
भारतीय पुनर्जागरण राजा राममोहन राय
इतिहास हेरोडोटस
पार्लियामेंट ब्रिटेन
अर्थशास्त्र एडम स्मिथ
संस्कृत व्याकरण पाणिनी
तुलनात्मक राजनीति अरस्तू
आधुनिक भूगोल हम्बोल्ट
रुसी क्रांति लेनिन
यूनानी चिकित्सा विज्ञान हिप्पोक्रेटस
भारत में नागरिक सेवा लॉर्ड कार्नवालिस
भारत में आधुनिक शिक्षा श्री चालर्स ग्राण्ट
भूगोल इरेटोस्थनीज
भारतीय परमाणु ऊर्जा डॉ० होमी जहाँगीर भाभा
श्वेत क्रांति डॉ० वर्गीज कुरियन
आधुनिक गणतंत्र की जननी संयुक्त राज्य अमेरिका
भारत में आधुनिक चित्रकला नंदलाल बोस
आधुनिक उदारवाद जॉन लॉक
आधुनिक ओलम्पिक खेल पीयरे दि कुबार्टिन
रसायन विज्ञान लेवोजियर
आधुनिक वर्गीकरण कैरोलस लीनियस
भौतिक विज्ञान न्यूटन


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सोलंकी राजवंश (साम्राज्य) का इतिहास एवं महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची

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सोलंकी वंश का इतिहास एवं महत्वपूर्ण तथ्य- Solanki Dynasty History in Hindi

सोलंकी राजवंश का इतिहास एवं महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची: (Solanki Dynasty History and Important Facts in Hindi)

सोलंकी वंश:

सोलंकी वंश मध्यकालीन भारत का एक राजपूत राजवंश था।  गुजरात के सोलंकी वंश का संस्थापक मूलराज प्रथम था। उसने अन्हिलवाड़ को अपनी राजधानी बनाया था। सोलंकी गोत्र राजपूतों में आता है। सोलंकी राजपूतों का अधिकार गुर्जर देश और कठियावाड राज्यों तक था। ये 9वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी तक शासन करते रहे। इन्हे गुर्जर देश का चालुक्य भी कहा जाता था। यह लोग मूलत: सूर्यवंशी व्रात्य क्षत्रिय हैं और दक्षिणापथ के हैं परंतु जैन मुनियों के प्रभाव से यह लोग जैन संप्रदाय में जुड गए। उसके पश्चात भारत सम्राट अशोकवर्धन मौर्य के समय में कान्य कुब्ज के ब्राह्मणो ने ईन्हे पून: वैदिकों में सम्मिलित किया।

मूलराज ने 942 से 995 ई. तक शासन किया। 995 से 1008 ई. तक मूलराज का पुत्र चामुण्डाराय अन्हिलवाड़ का शासक रहा। उसके पुत्र दुर्लभराज ने 1008 से 1022 ई. तक शासन किया। दुर्लभराज का भतीजा भीम प्रथम अपने वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था।

सोलंकी वंश वीर योद्धाओ का इतिहास:

  • दद्दा चालुक्य: दद्दा चालुक्य पहले राजपूत योद्धा थे जिन्होंने गजनवी को सोमनाथ मंदिर लूटने से रोका था।
  • भीमदेव द्वित्य: भीमदेव द्वित्य ने मोहम्मद गोरी की सेना को 2 बार बुरी तरह से हराया और मोहम्मद गोरी को दो साल तक गुजरात के कैद खाने में रखा और बाद में छोड़ दिया जिसकी वजह से मोहम्मद गोरी ने तीसरी बार गुजरात की तरफ आँख उठाना तो दूर जुबान पर नाम तक नहीं लिया।
  • सोलंकी सिद्धराज जयसिंह: जयसिंह के बारे में तो जितना कहे कम है। जयसिंह ने 56 वर्ष तक गुजरात पर राज किया सिंधदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान का कुछ भाग, सोराष्ट्र, तक इनका राज्य था। सबसे बड़ी बात तो यह है की यह किसी अफगान, और मुग़ल से युद्ध भूमि में हारे नहीं। बल्कि उनको धुल चटा देते थे। सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल ने व्यापार के नए-नए तरीके खोजे जिससे गुजरात और राजस्थान की आर्थिक स्थितिया सुधर गयी गरीबो को काम मिलने लगा और सब को काम की वजह से उनके घर की स्थितियां सुधर गयी।
  • पुलकेशी: पुलकेशी महाराष्ट्र, कर्नाटक, आँध्रप्रदेश तक इनका राज्य था। इनके समय भारत में ना तो मुग़ल आये थे और ना अफगान थे उस समय राजपूत राजा आपस में लड़ाई करते थे अपना राज्य बढ़ाने के लिए।
  • किल्हनदेव सोलंकी (टोडा-टोंक): किल्हनदेव सोलंकी ने दिल्ली पर हमला कर बादशाह की सारी बेगमो को उठाकर टोंक के नीच जाति के लोगो में बाट दिया। क्यूंकि दिल्ली का सुलतान बेगुनाह हिन्दुओ को मारकर उनकी बीवी, बेटियों, बहुओ को उठाकर ले जाता था। इनका राज्य टोंक, धर्मराज, दही, इंदौर, मालवा तक फैला हुआ था।
  • बल्लू दादा: मांडलगढ़ के बल्लू दादा ने अकेले ही अकबर के दो खास ख्वाजा अब्दुलमाजिद और असरफ खान की सेना का डट कर मुकाबला किया और मौत के घाट उतार दिया। हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप के साथ युद्ध में काम आये। बल्लू दादा के बाद उनके पुत्र नंदराय ने मांडलगढ़–मेवाड की कमान अपने हाथों में ली इन्होने मांडलगढ़ की बहुत अच्छी तरह देखभाल की लेकिन इनके समय महाराणा प्रताप जंगलो में भटकने लगे थे और अकबर ने मान सिंह के साथ मिलकर मांडलगढ़ पर हमला कर दिया और सभी सोलंकियों ने उनका मुकाबला किया और लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की।
  • वच्छराज सोलंकी: वच्छराज सोलंकी ने गौ हथ्यारो को अकेले ही बिना सैन्य बल के लड़ते हुए धड काटने के बाद भी 32 किलोमीटर तक लड़ते हुए गए अपने घोड़े पर और गाय चोरो को एक भी गाय नहीं ले जने दी और सब को मौत के घात उतार कर अंत में वीरगति को प्राप्त हो गए जिसकी वजह से आज भी गुजरात की जनता इनकी पूजती है और राधनपुर-पालनपुर में इनका एक मंदिर भी बनाया हुआ है।
  • भीमदेव प्रथम: भीमदेव प्रथम जब 10-11 वर्ष के थे तब इन्होने अपने तीरे अंदाज का नमूना महमूद गजनवी को कम उमर में ही दिखा दिया था महमूद गजनवी को कोई घायल नहीं कर पाया लेकिन इन्होने दद्दा चालुक्य की भतीजी शोभना चालुक्य (शोभा) के साथ मिलकर महमूद गजनवी को घायल कर दिया और वापस गजनी-अफगानिस्तान जाने पर विवश कर दिया जिसके कारण गजनवी को सोमनाथ मंदिर लूटने का विचार बदलकर वापस अफगानिस्तान जाना पड़ा।

  • कुमारपाल: कुमारपाल ने जैन धर्म की स्थापना की और जैनों का साथ दिया। गुजरात और राजस्थान के व्यापारियों को इन्होने व्यापार करने के नए–नए तरीके बताये और वो तरीके राजस्थान के राजाओ को भी बेहद पसंद आये और इससे दोनों राज्यों की शक्ति और मनोबल और बढ़ गया। गुजरात, राजस्थान की जनता को काम मिलने लगे जिससे उनके घरो का गुजारा होने लगा।
  • राव सुरतान: राव सुरतान के समय मांडू सुल्तान ने टोडा पर अधिकार कर लिया तब बदनोर–मेवाड की जागीर मिली राणा रायमल उस समय मेवाड के उतराधिकारी थे। राव सुरतान की बेटी ने शर्त रखी ‘ मैं उसी राजपूत से शादी करुँगी जो मुझे मेरी जनम भूमि टोडा दिलाएगा। तब राणा रायमल के बेटे राणा पृथ्वीराज ने उनका साथ दिया पृथ्वीराज बहुत बहादूर था और जोशीला बहुत ज्यादा था। चित्तोड़ के राणा पृथ्वीराज, राव सुरतान सिंह और राजकुमारी तारा बाई ने टोडा-टोंक पर हमला किया और मांडू सुलतान को तारा बाई ने मौत के घाट उतार दिया और टोडा पर फिर से सोलंकियों का राज्य कायम किया। तारा बाई बहुत बहादूर थी। उसने अपने वचन के मुताबिक राणा पृथ्वीराज से विवाह किया। ऐसी सोलंकिनी राजकुमारी को सत सत नमन। यहाँ पर मान सिंह और अकबर खुद आया था। युद्ध करने और पुरे टोडा को 1 लाख मुगलों ने चारो और से गैर लिया। सोलंकी सैनिको ने भी अकबर की सेना का सामना किया और अकबर के बहुत से सैनिको को मार गिराया और अंत में सबने लड़ते हुए वीरगति पाई।

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और जानिये : सोलंकी राजवंश (साम्राज्य) का इतिहास एवं महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची

कलचुरी राजवंश (साम्राज्य) का इतिहास एवं महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची

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कलचुरी राजवंश का इतिहास: यहाँ पर कलचुरी राजवंश का इतिहास, शासकों के नाम एवं कलचुरी साम्राज्य से सम्बंधित महत्‍वपूर्ण सामान्य ज्ञान तथ्यों की जानकारी दी गयी है। Kalchuri Dynasty History in Hindi

कलचुरी राजवंश का इतिहास एवं महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची: (Kalchuri Dynasty History and Important Facts in Hindi)

कलचुरि प्राचीन भारत का विख्यात राजवंश था। कलचुरी वंश की स्थापना कोकल्ल प्रथम ने लगभग 845 ई. में की थी। उसने त्रिपुरी को अपनी राजधानी बनाया था। कलचुरी सम्भवतः चन्द्रवंशी क्षत्रिय थे। कोकल्ल ने प्रतिहार शासक भोज एवं उसके सामन्तों को युद्ध में हराया था। उसने तुरुष्क, वंग एवं कोंकण पर भी अधिकार कर लिया था। कोकल्ल के 18 पुत्रों में से उसका बड़ा पुत्र शंकरगण अगला कलचुरी शासक बना था। कर्णदेव ने 1060 ई. के लगभग मालवा के राजा भोज को पराजित कर दिया, परंतु बाद में कीर्तिवर्मा चंदेल ने उसे हरा दिया। इससे कलचुरियों की शक्ति क्षीण हो गई और 1181 तक अज्ञात कारणों से इस वंश का पतन हो गया। कलचुरी शासक ‘त्रैकूटक संवत’ का प्रयोग करते थे, जो 248-249 ई. में प्रचलित हुआ था।

कलचुरि राजवंश के शासक:

कोक्कल-प्रथम (875-925): कोक्कल-प्रथम कलचुरि वंश का संस्थापक तथा प्रथम ऐतिहासिक शासक था जिसने राष्ट्रकूटों और चन्देलों के साथ विवाह-सम्बन्ध स्थापित किये। प्रतिहारों के साथ कोक्कल-प्रथम का मैत्री-सम्बन्ध था। इस प्रकार उसने अपने समय के शक्तिशाली राज्यों के साथ मित्रता और विवाह द्वारा अपनी शक्ति भी सुदृढ़ की। कोक्कल-प्रथम अपने समय के प्रसिद्ध योद्धाओं और विजेताओं में से एक था।

गांगेयदेव: गांगेयदेव लगभग 1019 ई. में त्रिपुरी के राजसिंहासन पर बैठा। गांगेयदेव को अपने सैन्य-प्रयत्नों में विफलता भी प्राप्त हुई किन्तु उसने कई विजयें प्राप्त की और अपने राज्य का विस्तार करने में काफी अंश तक सफलता प्राप्त की। उसके अभिलेखों के अतिरंजनापूर्ण विवरणों को न स्वीकार करने पर भी, यह माना गया है कि गांगेयदेव ने कीर देश अथवा कांगड़ा घाटी तक उत्तर भारत में आक्रमण किये और पूर्व में बनारस तथा प्रयाग तक अपने राज्य की सीमा को बढ़ाया। प्रयाग और वाराणसी से और आगे वह पूर्व में बढ़ा। अपनी सेना लेकर वह सफलतापूर्वक पूर्वी समुद्र तट तक पहुँच गया और उड़ीसा को विजित किया। अपनी इन विजयों के कारण उसने विक्रमादित्य का विरुद धारण किया। उसने पालों के बल की अवहेलना करते हुए अंग पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में उसे सफलता प्राप्त हुई। यह सम्भव है कि गांगेयदेव ने कुछ समय तक मिथिला या उत्तरी बिहार पर भी अपना अधिकार जमाये रखा था।

लक्ष्मीकर्ण: गांगेयदेव के उपरान्त उसका प्रतापी पुत्र लक्ष्मीकर्ण अथवा कर्णराज सिंहासन पर बैठा। वह अपने पिता की भांति एक वीर सैनिक और सहस्रों युद्धों का विजेता था। उसने काफी विस्तृत और महत्त्वपूर्ण विजयों द्वारा कलचुरि शक्ति का विकास किया। कल्याणी और अन्हिलवाड के शासकों से सहायता प्राप्त कर कर्ण ने परमार राजा भोज को परास्त कर दिया। उसने चन्देलों और पालों पर विजय प्राप्त की। उसके अभिलेख बंगाल और उत्तर प्रदेश में पाये गये हैं, जिनसे यह सिद्ध होता है कि इन भागों पर उसका अधिकार था। कर्ण का राज्य गुजरात से लेकर बंगाल और गंगा से महानदी तक फैला हुआ था। उसने कलिंगापति की उपाधि ली।

यशकर्ण: यश कर्ण सन सन 1703 के लगभग त्रिपुरी के सिंहासन पर बैठा। उसने वेंगी राज्य और उत्तरी बिहार तक धावे बोले। उसके पिता के अंतिम दिनों में उसके राज्य की स्थिति काफी डावांडोल हो गयी थी और इसी डावांडोल स्थिति में उसने राज्सिनासन पर पैर धारा था। परन्तु अपने राज्य की इस गड़बड़ स्थिति का विचार न करते हुए यशकर्ण ने अपने पिता और पितामह की भांति सैन्य-विजय क्रम जारी रखा। पहले तो उसे कुछ सफलता मिली, लेकिन शीघ्र ही उसका राज्य स्वयं अनेक आक्रमणों का केंद्र बिंदु बन गया। उसके पिता और पितामह की आक्रमणात्मक साम्राज्यवादी नीति से जिन राज्यों को क्षति पहुंची थी, वे सब प्रतिकार लेने का विचार करने लगे। दक्कन के चालुक्यों ने उसके राज्य पर हमला बोल दिया और अपने हमले में वे सफल भी रहे। गहड़वालों के उदय ने गंगा के मैदान में उसकी स्थिति पर विपरीत प्रभाव डाला। चंदेलों ने भी उसकी शक्ति को सफलतापूर्वक खुली चुनौती डी। परमारों ने यश कर्ण की राजधानी को खूब लूटा-खसोटा। इन सब पराजयों ने उसकी शक्ति को झकझोर दिया। उसके हाथों से प्रयाग और वाराणसी के नगर निकल गए और उसके वंश का गौरव श्रीहत हो गया।

यशःकर्ण के उत्तराधिकारी और कलचुरी वंश का पतन: यशः कर्ण के उपरांत उसका पुत्र गया कर्ण सिंहासनारूढ़ हुआ किन्तु वह अपने पिता के शासन काल में प्रारंभ होने वाली अपने वंश की राजनैतिक अवनति को वह रोक न सका। उसके शासन-काल में रत्नपुरी की कलचुरि शाखा दक्षिण कौशल में स्वतन्त्र हो गई। गयाकर्ण ने मालवा-नरेश उदयादित्य की पौत्री से विवाह किया था। इसका नाम अल्हनादेवी था। गयाकर्ण की मृत्यु के बाद, अल्हनादेवी ने भेरघाट में वैद्यनाथ के मन्दिर और मठ का पुनर्निर्माण कराया। गयाकर्ण का अद्वितीय पुत्र जयसिंह कुछ प्रतापी था। उसने कुछ अंश तक अपने वंश के गौरव को पुनः प्रतिष्ठापित करने में सफलता प्राप्त की। उसने सोलंकी नरेश कुमारपाल को पराजित किया। जयसिंह की मृत्यु 1175 और 1180 के मध्य किसी समय हुई। उसका पुत्र विजयसिंह कोक्कल-प्रथम के वंश का अन्तिम नरेश था जिसने त्रिपुरी पर राज्य किया। विजयसिंह को 1196 और 1200 के बीच में जैतुगि-प्रथम ने, जो देवगिरि के यादववंश का नरेश था, मार डाला और त्रिपुरी के कलचुरि वंश का उन्मूलन कर दिया।

कलचुरि राजवंश के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य:

  • कलचुरियों की वंशावली किस नरेश से आरम्भ होती है, उसके बारे में अनुमान किया जाता है कि कोकल्लदेव से आरम्भ होती। कोकल्लदेव के वंशज कलचुरी कहलाये।
  • कलचुरि हैदयों की एक शाखा है। हैदयवंश ने रतनपुर और रायपुर में दसवीं शताब्दी से अठारहवीं शताब्दी तक शासन किया।
  • कोकल्ल महाप्रतापी राजा थे, पर उनके वंशजों में जाजल्लदेव (प्रथम), रत्नदेव (द्वितीय) और पृथ्वीदेव (द्वितीय) के बारे में कहा जाता है कि वे न सिर्फ महापराक्रमी राजा थे, बल्कि छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक उन्नति के लिए भी चेष्टा की थीं।
  • जाजल्लदेव (प्रथम) ने अपना प्रभुत्व आज के विदर्भ, बंगाल, ओडिशा आन्ध्र प्रदेश तक स्थापित कर लिया था। युद्धभूमि में यद्यपि उनका बहुत समय व्यतीत हुआ, परन्तु निर्माण कार्य भी करवाये थे । तालाब खुदवाया, मन्दिरों का निर्माण करवाया। उसके शासनकाल में सोने के सिक्के चलते थे – उसके नाम के सिक्के। ऐसा माना जाता है कि जाजल्लदेव विद्या और कला के प्रेमी थे, वे आध्यात्मिक थे। जाजल्लदेव के गुरु थे गोरखनाथ। गोरखनाथ के शिष्य परम्परा में भर्तृहरि और गोपीचन्द थे – जिनकी कथा आज भी छत्तीसगढ़ में गाई जाती है।
  • रतनदेव के बारे में ये कहा जाता है कि वे एक नवीन राजधानी की स्थापना की जिसका नाम रतनपुर रखा गया और जो बाद में के नाम से जाना गया। रतनदेव भी बहुत ही हिंसात्मक युद्धों में समय नष्ट की, पर विद्या और कला के प्रेमी थे। इसलिए विद्वानों की कदर थी। रतनदेव ने अनेक मन्दिरों का निर्माण करवाया और तालाब खुदवाया।
  • पृथ्वीदेव द्वितीय भी बड़े योद्धा थे। कला प्रेमी थे। उसके समय सोने और ताँबे के सिक्के जारी किये गये थे।
  • कलचुरियों विद्वानों को प्रोत्साहन देकर उनका उत्साह बढ़ाया करते थे। राजशेखर जैसे विख्यात कवि उस समय थे। राजशेखर जी कि काव्य मीमांसा और कर्पूरमंजरी नाटक बहुत प्रसिद्ध हैं। कलचुरियों के समय में विद्वान कवियों को राजाश्रय प्राप्त था। इसीलिये शायद वे दिल खोलकर कुछ नहीं लिख सकते थे। राजा जो चाहते थे, वही लिखा जाता था।
  • कलचुरि शासको शैव धर्म को मानते थे। उनका कुल शिव-उपासक होने के कारण उनका ताम्रपत्र हमेशा “ओम नम: शिवाय” से आरम्भ होता है। ऐसा कहा जाता है कलचुरियों ने दूसरों के धर्म में कभी बाधा नहीं डाली, कभी हस्तक्षेप नहीं किया। बौद्ध धर्म का प्रसार उनके शासनकाल में हुआ था।
  • कलचुरियों ने अनेक मंदिरों धर्मशालाओं का निर्माण करवाया।
  • वैष्णव धर्म का प्रचार, रामानन्द ने भारतवर्ष में किया जिसका प्रसार छत्तीसगढ़ में हुआ। बैरागी दल का गठन रामानन्द ने किया जिसका नारा था:-  “जात-पात पूछे नहीं कोई, हरि को भजै सो हरि का होई”।
  • हैदय-वंश के अन्तिम काल के शासक में योग्यता और इच्छा-शक्ति न होने का कारण हैदय-शासन की दशा धीरे-धीरे बिगड़ती चली गयी और अन्त में सन् 1741 ई. में भोंसला सेनापति भास्कर पंत ने छत्तीसगढ़ पर आक्रमण कर हैदय शासक की शक्ति प्रतिष्ठा को नष्ट कर दिया।

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मात्रकों का एक पध्दति से दूसरे पध्दति में मान के बारे में महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान

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मात्रकों का एक पध्दति से दूसरे पध्दति में मान | List of Value system from a system of Matrkon

मात्रकों का एक पध्दति से दूसरे पध्दति में मान की सूची: (List of Value system from a system of Matrkon)

मात्रक किसे कहते है?

किसी भौतिक राशि को व्यक्त करने के लिए उसी प्रकार की राशि के मात्रक की आवश्यकता होती है। प्रत्येक राशि की माप के लिए उसी राशि को कोई मानक मान चुन लिया जाता है। इस मानक को मात्रक कहते हैं। किसी राशि की माप को प्रकट करने के लिए दो बातों का बताना आवश्यक है:-

  • राशि का मात्रक: भौतिक राशि जिसमें मापी जाती है।
  • आंकिक मान: जिसमें राशि के परिमाण को व्यक्त किया जाता है। इससे यह बताना सम्भव होता है कि उस राशि में उसका मात्रक कितनी बार प्रयोग किया गया है। उदाहरण स्वरूप यदि तार की लम्बाई ‘3 मीटर’ है , तो इसका अर्थ यह है कि लम्बाई मापने का मात्रक ‘मीटर’ है और तार की लम्बाई चुने गये मात्रक ‘मीटर’ की तीन गुनी है।

मात्रक के प्रकार:

मात्रक दो प्रकार के होते हैं। (i) मूल मात्रक (ii) व्युत्पन्न मात्रक:

  1. मूल मात्रक: मूल मात्रक वे मात्रक हैं, जो अन्य मात्रकों से स्वतंत्र होते हैं, अर्थात् उनको एक–दूसरे से अथवा आपस में बदला नहीं जा सकता है। उदाहरण के लिए लम्बाई, समय और द्रव्यमान के लिए मीटर, सेकेण्ड और किलोग्राम का प्रयोग किया जाता है।
  2. व्युत्पन्न मात्रक: एक अथवा एक से अधिक मूल मात्रकों पर उपयुक्त घातें लगाकर प्राप्त किए गए मात्रकों को व्युत्पन्न मात्रक कहते हैं।

मापने की अन्तर्राष्ट्रीय मान पद्धति या SI पद्धति:

भौतिक में अनेक राशियों को मापना पड़ता है और यदि प्रत्येक भौतिक राशि के लिए अलग मात्रक माना जाए तो मात्रकों की संख्या इतनी अधिक हो जाएगी कि उनको याद रख सकना असम्भव हो जाएगा। इसीलिए सभी भौतिक राशियों को व्यक्त करने के लिए एक पद्धति अपनायी गयी है, जिसे मूल मात्रकों की अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति अथवा इसे SI पद्धति कहते हैं। इस पद्धति के अनुसार यांत्रिकी में आने वाली सभी राशियों को लम्बाई, द्रव्यमान, व समय के मात्रकों में व्यक्त कर सकते हैं। ऊष्मा गति की, विद्युत तथा चुम्बकत्व एवं प्रकाशिकी में काम आने वाली राशियों को ताप, विद्युत धारा व ज्योति तीव्रता के मानकों में व्यक्त करते हैं। 1971 में माप और तौल की अन्तर्राष्ट्रीय समिति के द्वारा पदार्थ की मात्रा को मूल राशि मानते हुए मोल को इसका मूल मात्रक निर्धारित किया गया है।

मात्रकों का एक पध्दति से दूसरे पध्दति में मान:

एक मील 1.6 किमी०
एक लीटर 1000 घन सेन्टीलीटर
एक एकड़ 104 वर्ग मीटर
एक एंगस्ट्रम 10 -10 मीटर
एक नॉटिकल मील 1. 85 किमी०
एक इंच 2. 54 सेंटीमीटर
एक चेन 20. 11 मीटर
एक फुट 30 सेंटीमीटर
एक फैदम 1. 8 मीटर
एक गज 91 सेंटीमीटर
एक औंस 28. 35 किलोग्राम
एक पाउण्ड 4. 536 ग्राम
एक गज 3 फीट
37० सेंटीग्रेड 98. 6० फारेनहाइट

द्रव्यमान के मात्रक:

मात्रक द्रव्यमान
1 टेराग्राम 109 किग्रा
1 जीगाग्राम 106 किग्रा
1 मेगाग्राम 103 किग्रा
1 टन 103 किग्रा
1 क्विटंल 102 किग्रा
1 पिकोग्राम 10-15 किग्रा
1 मिलीग्राम 10-6 किग्रा
1 डेसीग्राम 10-4 किग्रा
1 स्लग 10.57 किग्रा
1 मीट्रिक टन 1000 किग्रा
1 आउन्स 28.35 ग्राम
1 पाउंड 16 आउन्स (453.52 ग्राम)
1 किग्रा 2.205 पाउंड
1 कैरेट 205.3 मिलीग्राम
1 मेगाग्राम 1 टन
1 ग्राम 10-3 किग्रा

समय के मात्रक:

मात्रक समय
1 पिकोसेकेण्ड 10-12 सेकेण्ड
1 नैनोसेकेण्ड 10-9 सेकेण्ड
1 माइक्रोसेकेण्ड 10-6 सेकेण्ड
1 माइक्रोसेकेण्ड 1-3 सेकेण्ड

लम्बाई के प्रमुख मात्रक:

मात्रक लम्बाई (मीटर में)
1 टेरामीटर (T) 1012
1 गीगामीटर (G) 109
1 मेगामीटर (M) 106
1 मिरियामीटर 104
1 किलोमीटर (K) 103
1 हेक्टोमीटर 102
1 डेकामीटर 10
1 डेसीमीटर (d) 1-Oct
1 सेंटीमीटर (c) 2-Oct
1 मिलीमीटर (m) 3-Oct
1 माइक्रोन μ 6-Oct
1 मिली माइक्रोन mμ 9-Oct
1 एंग्ट्राम (Å) 10-Oct
1 पिकोमीटर (p) 12-Oct
1 X–मात्रक 13-Oct
1 फर्मीमीटर (f) 15-Oct
1 आटोमीटर 18-Oct

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भारत की तीनो सेनाओं के कमाण्ड और उनके मुख्यालयों की सूची

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भारतीय सेनाओ के कमाण्ड और मुख्यालय: Command and Headquarters of Indian Forces in Hindi

भारतीय सेनाओ के कमाण्ड और उनके मुख्यालयों की सूची: (Command and Headquarters of Indian Forces in Hindi)

भारतीय थल सेना:

सेना को अधिकतर थल सेना ही समझा जाता है, यह ठीक भी है क्योंकि रक्षा-पक्ति में थल सेना का ही प्रथम तथा प्रधान स्थान है। इस समय लगभग 13 लाख सैनिक-असैनिक थल सेना में भिन्न-भिन्न पदों पर कार्यरत हैं, जबकि 1948 में सेना में लगभग 2,00,000 सैनिक थे। थल सेना का मुख्यालय नई दिल्ली में है। भारतीय थल सेना के प्रशासनिक एवं सामरिक कार्य संचालन का नियंत्रण थल सेनाध्यक्ष करता है।

थल सेनाध्यक्ष की सहायता के लिए थलसेना के वाइस चीफ, तथा चीफ स्टाफ अफ़सर होते हैं। इनमें डिप्टी चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ, एडजुटेंट-जनरल, क्वार्टर मास्टर-जनरल, मास्टर-जनरल ऑफ़ आर्डनेन्स और सेना सचिव तथा इंजीनियर-इन-चीफ सम्मिलित हैं।

भारतीय थल सेना के कमाण्ड और उनके मुख्यालयों की सूची:

कमाण्ड मुख्यालय
पूर्वी कमाण्ड कोलकाता
पश्चिमी कमाण्ड शिमला
उत्तरी कमाण्ड उधमपुर
दक्षिणी कमाण्ड पुणे
मध्य कमाण्ड लखनऊ
दक्षिण-पश्चिम कमाण्ड जयपुर

भारतीय वायुसेना:

भारतीय वायु सेना की स्‍थापना 8 अक्टूबर 1932 को की गई और 1 अप्रैल 1954 को एयर मार्शल सुब्रोतो मुखर्जी, भारतीय नौ सेना के एक संस्‍थापक सदस्‍य ने प्रथम भारतीय वायु सेना प्रमुख का कार्यभार संभाला। समय बितने के साथ भारतीय वायु सेना ने अपने हवाई जहाजों और उपकरणों में अत्‍यधिक उन्‍नयन किए हैं और इस प्रक्रिया के भाग के रूप में इसमें 20 नए प्रकार के हवाई जहाज़ शामिल किए हैं। 20वीं शताब्‍दी के अंतिम दशक में भारतीय वायु सेना में महिलाओं को शामिल करने की पहल के लिए संरचना में असाधारण बदलाव किए गए, जिन्‍हें अल्‍प सेवा कालीन कमीशन हेतु लिया गया।

भारतीय वायुसेना के कमाण्ड और उनके मुख्यालयों की सूची:

कमाण्ड मुख्यालय
पूर्वी कमाण्ड शिलांग
पश्चिमी कमाण्ड नई दिल्ली
दक्षिणी कमाण्ड तिरुवनंतपुरम्
केन्द्रीय कमाण्ड इलाहबाद
ट्रेनिंग कमाण्ड बंगलौर
मेन्टेनेन्स कमाण्ड नागपुर
दक्षिण – पश्चिम कमाण्ड जोधपुर

भारतीय नौसेना (जल सेना):

आधुनिक भारतीय नौसेना की नींव 17वीं शताब्‍दी में रखी गई थी, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक समुद्री सेना के रूप में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्‍थापना की और इस प्रकार 1934 में रॉयल इंडियन नेवी की स्‍थापना हुई। भारतीय नौ सेना का मुख्‍यालय नई दिल्ली में स्थित है और यह मुख्‍य नौ सेना अधिकारी – एक एड‍मिरल के नियंत्रण में होता है। भारतीय नौ सेना 3 क्षेत्रों की कमांडों के तहत तैनात की गई है, जिसमें से प्रत्‍येक का नियंत्रण एक फ्लैग अधिकारी द्वारा किया जाता है।

  • पश्चिमी नौ सेना कमांड का मुख्‍यालय अरब सागर में मुम्बई में स्थित है।
  • दक्षिणी नौ सेना कमांड केरल के कोच्चि (कोचीन) में है तथा यह भी अरब सागर में स्थित है।
  • पूर्वी नौ सेना कमांड बंगाल की खाड़ी में आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में है।

भारतीय जलसेना के कमाण्ड और उनके मुख्यालयों की सूची:

कमाण्ड मुख्यालय
पूर्वी कमाण्ड विशाखापत्तनम
पश्चिमी कमाण्ड मुम्बई
दक्षिणी कमाण्ड कोच्चि

इन्हें भी पढे: भारतीय वायुसेना के अध्‍यक्षों की सूची

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त्रिपुरा के मुख्यमंत्रियों के नाम, कार्यकाल एवं उनकी राजनीतिक पार्टी (वर्ष 1963 से 2017)

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त्रिपुरा के सभी मुख्यमंत्रियों की सूची (1963-2017) | Chief Ministers of Tripura in Hindi

त्रिपुरा के मुख्यमंत्रियों की सूची (1963-2017): (Chief Ministers of Tripura Since 1963 to till date in Hindi)

त्रिपुरा: 

त्रिपुरा भारत का एक राज्य है। त्रिपुरा दक्षिण एशिया के पूर्वोत्तर भाग में स्थित है। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला है। त्रिपुरा उत्तर, पश्चिम व दक्षिण में बांग्लादेश, पूर्व में मिज़ोरम और पूर्वोत्तर में असम राज्य से घिरा है। त्रिपुरा का क्षेत्रफल सिर्फ़ 10,486 वर्ग किमी है और यह गोवा तथा सिक्किम के बाद भारत का तीसरा सबसे छोटा राज्य है। बंगाली और त्रिपुरी भाषा (कोक बोरोक) यहाँ की मुख्य भाषाये हैराष्ट्रीय राजमार्ग 44 एकमात्र राजमार्ग है जो इस राज्य को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है।

त्रिपुरा का इतिहास एवं महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान:

संस्कृत में त्रिपुरा का मतलब है ‘तीन शहर’। त्रिपुरा का बडा पुराना और लंबा इतिहास है। त्रिपुरा का उल्लेख सभी भारतीय महाकाव्यों जैसे महाभारत, पुराणों और अशोक के शिलालेखों में मिलता है। त्रिपुरा का पुराना नाम कीरत देश था। इसकी अपनी अनोखी जनजातीय संस्‍कृति तथा दिलचस्‍प लोकगाथाएं है। 14वीं शताब्‍दी में बंगाल के शासकों द्वारा त्रिपुरा नरेश की मदद किए जाने का भी उल्‍लेख मिलता है। त्रिपुरा के शासकों को मुगलों के बार-बार आक्रमण का भी सामना करना पडा जिसमें आक्रमणकारियों को कमोबेश सफलता मिलती रहती थी। कई लड़ाइयों में त्रिपुरा के शासकों ने बंगाल के सुल्‍तानों कों हराया।

19वीं शताब्‍दी में महाराजा वीरचंद्र किशोर माणिक्‍य बहादुर के शासनकाल में त्रिपुरा में नए युग का सूत्रपात हुआ। उन्‍होने अपने प्रशासनिक ढांचे को ब्रिटिश भारत के नमूने पर बनाया और कई सुधार लागू किए। उनके उत्‍तराधिकारों ने 15 अक्‍तूबर, 1949 तक त्रिपुरा पर शासन किया। इसके बाद त्रिपुरा भारत संघ में शामिल हो गया। शुरू में यह भाग-सी के अंतर्गत आने वाला राज्‍य था और 1956 में राज्‍यों के पुनर्गठन के बाद यह केंद्रशासित प्रदेश बना। त्रिपुरा ने 1972 में पूर्ण राज्‍य का दर्जा प्राप्‍त किया।

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री:

वर्तमान में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार हैं। माणिक सरकार ने 11 मार्च 1998 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। त्रिपुरा के प्रथम मुख्यमंत्री सचिन्द्र लाल सिंह थे।

त्रिपुरा के सभी मुख्यमंत्रियों की सूची वर्ष 1972 से अबतक:

मुख्यमंत्री का नाम पदमुक्ति पदमुक्ति दल/राजनीतिक पार्टी
सचिन्द्र लाल सिंह 01 जुलाई 1963 01 नवम्बर 1971 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
 राष्ट्रपति शासन (01 नवम्बर 1971 से 20 मार्च 1972 तक)
सुखमय सेन गुप्ता 20 मार्च 1972 31 मार्च 1977 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
प्रफुल्ल कुमार दास 01 अप्रैल 1977 25 जुलाई 1977 कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी
राधिका रंजन गुप्ता 26 जुलाई 1977 04 नवम्बर 1977 जनता पार्टी
 राष्ट्रपति शासन (05 नवम्बर 1977 से 05 जनवरी 1978 तक)
नृपेन चक्रबर्ती 05 जनवरी 1978 05 फ़रवरी 1988 मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी
सुधीर रंजन मजूमदार 05 फ़रवरी 1988 19 फ़रवरी 1992 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
समीर रंजन बर्मन 19 फ़रवरी 1992 10 मार्च 1993
 राष्ट्रपति शासन (11 मार्च 1993 से 10 अप्रैल 1993 तक)
दसरथ देब 10 अप्रैल 1993 11 मार्च 1998 मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी
माणिक सरकार 11 मार्च 1998 वर्तमान

इन्हें भी पढ़े: भारतीय राज्यों के वर्तमान मुख्यमंत्री एवं उनकी राजनीतिक पार्टी

और जानिये : त्रिपुरा के मुख्यमंत्रियों के नाम, कार्यकाल एवं उनकी राजनीतिक पार्टी (वर्ष 1963 से 2017)

भारतीय तेल शोधनशालाएँ और उनसे सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी

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भारत की प्रमुख तेल शोधनशालाएँ और स्थापना वर्ष | Major Oil Refineries of India in Hindi

भारत की प्रमुख तेल शोधनशालाएँ और स्थापना वर्ष: (Major Oil Refineries of India with establishment year in Hindi)

शिलारस (पेट्रोलियम) किसे कहते है?

शिलारस (पेट्रोलियम) एक अत्यधिक उपयोगी पदार्थ हैं, जिसका उपयोग देनिक जीवन में बहुत अधिक होता हैं। शिलारस वास्तव में उदप्रांगारों का मिश्रण होता है। इसका निर्माण भी कोयले की तरह वनस्पतियों के पृथ्वी के नीचे दबने तथा कालांतर में उनके उपर उच्च दाब तथा ताप के आपतन के कारण हुआ। प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले शिलारस को अपरिष्कृत तेल (Crude Oil) कहते हैं जो काले रंग का गाढ़ा द्रव होता है। इसके प्रभाजी आसवन (फ्रैक्शनल डिस्टिलेशन) से केरोसिन, पेट्रोल, डीज़ल, प्राकृतिक गैस, वेसलीन, ल्यूब्रिकेंट तेल इत्यादि प्राप्त होते हैं।

दरअसल जब तेल के भंडार पृथ्वी पर कहीं ढूंढे जाते हैं, तब यह गाढ़े काले रंग का होता है। जिसे क्रूड ऑयल कहा जाता है और इसमें उदप्रांगारों की बहुलता होती है। उदप्रांगारों की खासियत यह होती है कि इनमें मौजूद हाइड्रोजन और प्रांगार के अणु एक दूसरे से विभिन्न श्रृंखलाओं में बंधे होते हैं। ये श्रृंखलाएं तरह-तरह की होती हैं। यही श्रृंखलाएं विभिन्न प्रकार के तेल उत्पादों का स्रोत होती हैं। इनकी सबसे छोटी श्रृंखला मिथेन नामक प्रोडक्ट का आधार बनती है। इनमें लंबी श्रृंखलाओं वाले उदप्रांगारों ठोस जैसे कि मोम या टार नामक उत्पाद का निर्माण करते हैं।

भारत में खनिज तेल प्राप्ति के प्रमुख स्थान:

भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के समय तक मात्र असम में ही खनिज तेल निकाला जाता था, लेकिन उसके बाद गुजरात तथा बाम्बे हाई में खनिज तेल का उत्खनन प्रारम्भ किया गया। तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग द्वारा देश के स्थलीय एवं सागरीय भागो में 26 ऐसे बेसिनों का पता लगाया गया है, जहाँ से तेल-प्राप्ति की पर्याप्त संभावनाएं है। भारत में सम्भावित तेल क्षेत्र 14.1 लाख वर्ग किमी. पर विस्तृत हैं, जिसका 85 प्रतिशत भाग स्थल पर है एवं 15 प्रतिशत भाग अपतटीय क्षेत्र में। भारत का खनिज तेल का ज्ञात भण्डार एवं उत्पादन दोनो ही कम है, अतः अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए विदेशों से तेल का आयात किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय भू-गर्मिक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में खनिज तेल का भंडार 620 करोड़ टन है। तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग ने भारत का कुल खनिज तेल भंडार 1750 लाख टन बताया है। भारत के तीन प्रमुख क्षेत्र ऐसे हैं- जहाँ से खनिज तेल प्राप्त किया जा रहा है। इनमें सबसे महत्तवपूर्ण तेल क्षेत्र उत्तरी-पूर्वी राज्यों असम तथा मेघालय में फैला है, जबकि दूसरा महत्तवपूर्ण क्षेत्र है- गुजरात में खम्भात की खाड़ी का समीपवर्ती क्षेत्र। मुम्बई तट से लगभग 176 किमी दूर अरब सागर में स्थित बाम्बे हाई नामक स्थान भी तेल उत्खनन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हो गया है।

भारतीय तेल शोधनशालाएँ और स्थापना वर्ष की सूची:

भारत की प्रमुख तेल शोधनशालाएँ  स्थापना वर्ष
डिग्बोई (असम) 1901
मुम्बई (एच.पी.सी.एल.) 1954
मुम्बई (बी.पी.सी.एल.) 1955
विशाखापटनम 1957
गुवाहाटी (असम) 1962
बरौनी (बिहार) 1964
कोयली (गुजरात) 1965
कोचीन 1966
चेन्नई 1969
हल्दिया (पश्चिम बंगाल) 1975
बोगाईगाँव (असम) 1979
मथुरा (उत्तर प्रदेश) 1982
करनाल (हरियाणा) 1987
जामनगर (गुजरात) 1999

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और जानिये : भारतीय तेल शोधनशालाएँ और उनसे सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी

भारतीय अर्थव्यवस्था से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची

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भारतीय अर्थव्यवस्था सामान्य ज्ञान एवं महत्वपूर्ण तथ्य: Indian Economy GK in Hindi

भारतीय अर्थव्यवस्था से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची: (Indian Economics Important GK Facts in Hindi)

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था सामान्य ज्ञान:

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था क्रय शक्ति समानता के आधार पर दुनिया में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है। भारत क्षेत्रफल की दृष्टि से वि‍श्‍व में सातवां सबसे बड़ा देश है और जनसंख्‍या की दृष्‍टि‍ से दूसरा सबसे बड़ा देश है। यह विशाल जनशक्ति आधार, विविध प्राकृतिक संसाधनों और सशक्‍त वृहत अर्थव्‍यवस्‍था के मूलभूत तत्‍वों के कारण व्‍यवसाय और निवेश के अवसरों के सबसे अधिक आकर्षक गंतव्‍यों में से एक है। वर्ष 1991 में आरंभ की गई आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया से सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में फैले नीतिगत ढाँचे के उदारीकरण के माध्‍यम से एक निवेशक अनुकूल परिवेश मिलता रहा है। भारत को आज़ाद हुए 70 साल हो चुके हैं और इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा में ज़बरदस्त बदलाव आया है। औद्योगिक विकास ने अर्थव्यवस्था का रूप बदल दिया है। आज भारत की गिनती दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में होती है। विश्व की अर्थव्यवस्था को चलाने में भारत की भूमिका बढ़ती जा रही है। आईटी सॅक्टर में पूरी दुनिया भारत का लोहा मानती है।

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था का इतिहास:

भारत एक समय मे सोने की चिडिया कहलाता था। आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन के अनुसार पहली सदी से लेकर दसवीं सदी तक भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। पहली सदी में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) विश्व के कुल जीडीपी का 32.9%% था ; सन् 2000 में यह 28.9% था ; और सन् 1700 में 24.4% था। ब्रिटिश काल में भारत की अर्थव्यवस्था का जमकर शोषण व दोहन हुआ, जिसके फलस्वरूप 1947 में आज़ादी के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था अपने सुनहरी इतिहास का एक खंडहर मात्र रह गई।

भारतीय अर्थव्यवस्था महत्वपूर्ण आर्थिक शब्दाबली:

मौद्रिक नीति किसे कहते है?

जिस नीति के अनुसार किसी देश का मुद्रा प्राधिकारी मुद्रा की आपूर्ति का नियमन करता है उसे मौद्रिक नीति (Monetary policy) कहते हैं। इसका उद्देश्य राज्य का आर्थिक विकास एवं आर्थिक स्थायित्व सुनिश्चित करना होता है। मौद्रिक नीति के रूप में या तो एक विस्तारवादी नीति और अधिक तेजी से सामान्य से अर्थव्यवस्था में पैसे की कुल आपूर्ति बढ़ जाती है

मौद्रिक दरें:

  • सी.आर.आर.(नकद आरक्षण अनुपात): सी.आर.आर. वह धन है जो बैंकों को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास गारंटी के रूप में रखना होता है।
  • बैंक दर: जिस दर पर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को उधार देता है बैंक दर कहलाती है।
  • वैधानिक तरलता अनुपात (एस.एल.आर): किसी आपात देनदारी को पूरा करने के लिए वाणिज्यिक बैंक अपने प्रतिदिन कारोबार नकद सोना और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के रूप में एक खास रकम रिजर्व बैंक के पास जमा कराते है जिस एस.एल.आर कहते है।
  • रेपो रेट: रेपो दर वह है जिस दर पर बैंकों को कम अवधि के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज मिलता है। रेपो रेट कम करने से बैंको को कर्ज मिलना आसान हो जाता है।
  • रिवर्स रेपो रेट: बैंकों को रिजर्व बैंक के पास अपना धन जमा करने के उपरांत जिस दर से ब्याज मिलता है वह रिवर्स रेपो रेट है।

भारतीय अर्थव्यवस्था से जुडी अन्य महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान जानकारी:

  • लीड बैंक योजना: जिलों कि अर्थव्यवस्था को सुधारने के उद्देश्य से इस योजना का प्रारंभ 1969 में किया गया। जिसके तहत प्रत्येक जिले में एक लीड बैंक होगा जो कि अन्य बैंकों कि सहायता के साथ साथ कार्यक्रमों के माध्यम से वित्तीय संस्थाओ के बीच समन्वय स्थापित करेगा।
  • निष्पादन बजट: कार्यों के परिणामों या निष्पादन को आधार बनाकर निर्मित होने वाला बजट निष्पादन बजट है, इसे कार्यपूर्ति बजट भी कहते है।
  • जीरोबेस बजट: इस बजट में किसी विभाग या संगठन कि प्रस्तावित व्यय मांग के प्रत्येक मद को शुन्य मानते हुए पुनर्मूल्यांकन किया जाता है। भारत में इसे सर्वप्रथम “काउन्सिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CISR)” में लागू किया गया और 1987-88 से सभी विभागों व मंत्रालयों में लागू हो गया।
  • आउटकम बजट: इसके तहत प्रत्येक विभाग/मंत्रालय के भौतिक लक्ष्यों को अल्प अवधि में निरीक्षण एवं मूल्यांकन के लिए रखा जाता है।
  • जेंडर बजट: इस बजट के माध्यम से सरकार महिलाओं के कल्याण एवं सशक्तिकरण के लिए चलाये जा रहे कार्यक्रमों और योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु प्रतिवर्ष एक निश्चित राशि का प्रावधान बजट में करती है।
  • प्रत्यक्ष कर: वह कर जिसमे कर स्थापितकर्ता (सरकार) और करदाता के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। अर्थात जिसके ऊपर कर लगाया जा रहा है सीधे वही व्यक्ति भरता है।
  • अप्रत्यक्ष कर: वह कर जिसमे कर स्थापितकर्ता (सरकार) और भुगतानकर्ता के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है अर्थात जिस व्यक्ति/संस्था पर कर लगाया जाता है उसे किसी अन्य तरीके से प्राप्त किया जाता है।
  • राजस्व घाटा: सरकार को प्राप्त कुल राजस्व एवं सरकार द्वारा व्यय किये गए कुल राजस्व का अंतर ही राजस्व घाटा है।
  • राजकोषीय घाटा: सरकार के लिए कुल प्राप्त राजस्व, अनुदान और गैर-पूंजीगत प्राप्तियों कि तुलना होने वाले कुल व्यय का अतिरेक है अर्थात आय (प्राप्तियों) के सन्दर्भ में व्यय कितना अधिक है।
  • बॉण्ड अथवा डिबेंचर: ऐसे ऋण पत्र होते है जिन्हें केंद्र सरकार, राज्य सरकार, अथवा कोई संसथान जारी करता है इन ऋण पत्रों पर एक निश्चित अवधि पर निश्चित दर से ब्याज प्राप्त होता है।
  • प्रतिभूति: वित्तीय परिसंपत्तियों जैसे शेयर, डिबेंचर, व अन्य ऋण पत्रों के लिए संयुन्क्त रूप से प्रतिभूति शब्द का प्रयोग किया जाता है। बैंकिग में भी ऋणों कि जमानत के सन्दर्भ में प्रतिभूति शब्द का प्रयोग होता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची:

अल्पविकसित देशों को विश्व की अर्थव्यवस्था की ‘गन्दी बस्तियाँ’ कहा है प्रो० केयर्नक्रॉस ने
भारत में सर्वाधिक नगरीकरण वाला राज्य है महाराष्ट्र
सकल घरेलू उत्पाद की दृष्टि से भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व में स्थान है 12वाँ
क्रय शक्ति के आधार पर भारत की अर्थव्यवस्था का विश्व में स्थान है चौथा
उपभोक्ता की बचत का सिद्धांत दिया है अल्फ्रेड मार्शल ने
‘बिग पुश सिद्धांत’ दिया है रॉडन ने
सहकारिता आंदोलन से संबंधित है मिर्धा समिति
भारत में निवेश करने वाले प्रमुख देश हैं सं० रा० अमेरिका एवं ब्रिटेन
कर ( Tax ) सुधार हेतु सुझाव देने के लिए 1991 ई० में गठित समिति है चेलैया समिति
‘राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान’ की स्थापना 1977 ई० में की गई थी हैदराबाद में
भारतीय अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्र में आता है कृषि
भारतीय अर्थव्यवस्था के द्धितीयक क्षेत्र में आता है उधोग, बिजली एवं निर्माण कार्य
भारतीय अर्थव्यवस्था के तृतीयक क्षेत्र में आता है व्यापार, परिवहन, संचार तथा सेवा
मिश्रित अर्थव्यवस्था कहलाता है निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों का सह – अस्तित्व

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गरीबी एवं बेरोजगारी उन्मूलन योजनाओं से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी

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गरीबी एवं बेरोजगारी उन्मूलन योजनाएं | Unemployment Alleviation Indian Schemes in Hindi

गरीबी एवं बेरोजगारी उन्मूलन योजनाएं – महत्त्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक कार्यक्रम/योजनाएं: List of Poverty and Unemployment Alleviation Programmes of India in Hindi)

बेरोजगारी उन्मूलन अभियान किसे कहते है?

बेरोजगारी उन्मूलन अभियान (Unemployment Abolition Campaign/UAC) का उद्देश्य लोगो को उनकी क्षमता के अनुशार रोजगार उपलब्ध करना है और यदि किसी के अंदर क्षमताओं की कमी है तो उसकी क्षमताओं को निःशुल्क विकसित किया जाएगा।

गरीबी एवं बेरोजगारी उन्मूलन योजनाएं एवं स्थापना वर्ष:

कार्यक्रम/योजना वर्ष
अंत्योदय अन्न योजना 2000 ईसवी
अंत्योदय योजना कार्यक्रम 1977-1978 ईसवी
अन्नपूर्णा योजना 2000 ईसवी
आश्रय बीमा योजना 2000-2002 ईसवी
इन्दिरा आवास योजना 1985-1986 ईसवी
एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम 1980 ईसवी
काम के बदले अनाज कार्यक्रम 1977-1978 ईसवी
जनश्री बीमा योजना 2000-2001 ईसवी
जवाहर ग्राम समृद्धि योजना 1999 ईसवी
जवाहर रोजगार योजना 1989 ईसवी
जे पी रोजगार गारंटी योजना 2003-2004
ट्रायसेम 1979 ईसवी
ड्वाकरा योजना 1982 ईसवी
दस लाख कुआँ योजना 1988-1989 ईसवी
नेहरू रोजगार योजना 1989 ईसवी
प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना 2000-2001 ईसवी
प्रधानमंत्री रोजगार योजना 1993 ईसवी
भारत निर्माण कार्यक्रम 2005-2006 ईसवी
मरूभूमि विकास कार्यक्रम 1977-1978 ईसवी
महिला सवयं सिद्धि योजना 2001 ईसवी
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना 2005-2006 ईसवी
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन 2005-2006 ईसवी
रोजगार आश्वासन योजना 1993 ईसवी
स्वजलधारा कार्यक्रम 2002 ईसवी
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना 1999 ईसवी
स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना 1997 ईसवी

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भारतीय इतिहास के प्रमुख व्यक्तियों के नाम और उनसे सम्बंधित स्थान की सूची

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भारतीय इतिहास के प्रमुख व्यक्ति और सम्बंधित स्थान | Famous Peoples of India in Hindi

भारतीय इतिहास के प्रमुख व्यक्ति और सम्बंधित स्थान: (Famous Peoples of Indian History and their Location in Hindi)

यहां पर भारतीय इतिहास के प्रमुख व्यक्ति और सम्बंधित स्थान के बारे में महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान जानकारी दी गयी है। सामान्यतः इस सूची से सम्बंधित प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते है। यदि आप विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे: आईएएस, शिक्षक, यूपीएससी, पीसीएस, एसएससी, बैंक, एमबीए एवं अन्य सरकारी नौकरियों के लिए तैयारी कर रहे हैं, तो आपको भारतीय इतिहास के प्रमुख व्यक्ति और सम्बंधित स्थान के बारे में अवश्य पता होना चाहिए।

भारतीय इतिहास के प्रमुख व्यक्ति और उनके स्थान की सूची:

भारतीय इतिहास के प्रमुख व्यक्तियों के नाम स्थान
अरविन्द घोष पांडिचेरी
ईसा मसीह जेरुसलम
गुरु नानक तलवंडी
जनरल डायर जलियावाला बाग
जयप्रकाश नारायण सिताब दियारा
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद सदाकत आश्रम, जीरादेई
नेपोलियन कोर्सिका, सेंट हेलेना, वाटरलू
नेल्सन मंडेला ट्रेफलगर
पं० जवाहरलाल नेहरू त्रिमूर्ति भवन, आनंद भवन
महात्मा गाँधी साबरमती, सेवाग्राम, पोरबंदर
महात्मा बुद्ध बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर
महाराणा प्रताप चित्तौड़, हल्दीघाटी
महावीर स्वामी वैशाली, पावापुरी
मुहम्मद साहब मक्का, मदीना
सरदार बल्ल्भभाई पटेल बारदोली
सिकंदर महान मैसिडोनिया
सुभाषचंद्र बोस कटक
स्वामी रामकृष्ण परमहंस बेलूर
स्वामी विवेकानन्द कोलकाता

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भारतीय इतिहास के प्रमुख व्यक्ति तथा उनकी पत्नियों के नाम की सूची

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भारतीय इतिहास के प्रमुख व्यक्ति तथा उनकी पत्नियों की सूची

भारतीय इतिहास के प्रमुख व्यक्ति तथा उनकी पत्नियों के नाम: (Wives of  Famous Peoples of Indian History in Hindi)

यहां पर भारतीय इतिहास में जन्मे भिन्न-भिन्न कालों के प्रमुख व्यक्तियों तथा उनकी पत्नियों के बारे में महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान जानकारी दी गयी है। सामान्यतः इस सूची से सम्बंधित प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते है। यदि आप विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे: आईएएस, शिक्षक, यूपीएससी, पीसीएस, एसएससी, बैंक, एमबीए एवं अन्य सरकारी नौकरियों के लिए तैयारी कर रहे हैं, तो आपको भारतीय इतिहास के प्रमुख व्यक्ति तथा उनकी पत्नियों के बारे में अवश्य पता होना चाहिए।

भारतीय इतिहास के प्रमुख व्यक्ति तथा उनकी पत्नियों की सूची:

भारतीय इतिहास के प्रमुख व्यक्तियों के नाम पत्नियों के नाम
अकबर मरीयम-उज़्-ज़मानी (हरकाबाई)
अशोक करुवाकी, श्रीदेवी
औरंगजेब रबिया दुर्रानी
कबीर लोई
कालिदास विद्योत्तमा
ग़ालिब उमराव बेगम
गुरु नानक सुलक्खनी
चंद्रशेखर वेंकट रामन त्रिलोकसुंदरी
जयप्रकाश नारायण प्रभावती
जवाहर लाल नेहरू कमला नेहरू
जहाँगीर नूरजहाँ, मानभवती,मानमती
तुलसीदास रत्नावली
नरेंद्र मोदी जशोदाबेन चिमनलाल
प्रेमचंद शिवरानी देवी
बाबर ‘माहम बेगम
भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, मित्रविंदा, भद्रा, सत्या, लक्ष्मणा, कालिंदी
महात्मा गांधी कस्तूरवा गांधी
महात्मा बुद्ध यशोधरा
महावीर स्वामी यशोदा
मीरा बाई के पति का नाम भोगराज
रविन्द्र नाथ टैगोर मृणालिनीदेवी
राजा राम मोहन राय उमा देवी
शिवाजी साइबाईं निम्बालकर
सुभाष चंद बोस ऐमिली शिंकल
हुमांयू हमीदा बानू बेगम, बेगाबेगम, बिगेह बेगम, चाँद बीबी, हाज़ीबेगम, माह-चूचक, मिवेह-जान, शहज़ादीख़ानम

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भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नरों के नाम और उनके कार्यकाल की सूची 1935 से अब तक

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भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नरों की सूची (1935-2017): RBI Governors list in Hindi

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नरों की सूची (1935-2017): (Governors of Reserve Bank of India in Hindi)

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भारत का केन्द्रीय बैंक है। यह भारत के सभी के बैंकों संचालक के रूप में कार्य करता है। रिजर्व बैक भारत की अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करता है। वर्तमान में उर्जित पटेल भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर है। उर्जित पटेल ने 04 सितम्बर 2016 से भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में कार्यभार ग्रहण किया है। इससे पहले रघुराम राजन आरबीआई के गवर्नर पद पर कार्यरत थे।

भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 के प्रावधानों के अनुसार 01 अप्रैल 1935 को हुई थी। रिज़र्व बैंक का केन्द्रीय कार्यालय प्रारम्भ में कलकत्ता में स्थापित किया गया था जिसे 1937 में स्थायी रूप से बम्बई में स्थानान्तरित कर दिया गया। केन्द्रीय कार्यालय वह कार्यालय है जहाँ गवर्नर बैठते हैं और नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक ब्रिटिश राज के दौरान प्रारम्भ में निजी स्वामित्व वाला बैंक हुआ करता था परन्तु स्वतन्त्र भारत में 01 जनवरी 1949 में इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। उसके बाद से इस पर भारत सरकार का पूर्ण स्वामित्व है।

इन्हें भी पढे: प्रमुख भारतीय संस्थान एवं उनके मुख्यालय

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किये जाने वाले प्रमुख कार्य:

भारतीय रिज़र्व बैंक की प्रस्तावना में बैंक के मूल कार्य इस प्रकार वर्णित किये गये हैं:

  • “बैंक नोटों के निर्गम को नियन्त्रित करना, भारत में मौद्रिक स्थायित्व प्राप्त करने की दृष्टि से प्रारक्षित निधि रखना और सामान्यत: देश के हित में मुद्रा व ऋण प्रणाली परिचालित करना।”
  • मौद्रिक नीति तैयार करना, उसका कार्यान्वयन और निगरानी करना।
  • वित्तीय प्रणाली का विनियमन और पर्यवेक्षण करना।
  • विदेशी मुद्रा का प्रबन्धन करना।
  • मुद्रा जारी करना, उसका विनिमय करना और परिचालन योग्य न रहने पर उन्हें नष्ट करना।
  • सरकार का बैंकर और बैंकों का बैंकर के रूप में काम करना।
  • साख नियन्त्रित करना।
  • मुद्रा के लेन देन को नियंत्रित करना।

आइये जाने कब-कब कौन रहा आरबीआई‬ गवर्नर के पद पर:-

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नरों की सूची:

आरबीआई गवर्नरों के नाम कब से कब तक
सर ओसबोर्न 01 अप्रैल 1935 30 जून 1937
सर जेम्स ब्रेड टेलर 01 जुलाई 1937 17 फरवरी 1943
सर सी॰ डी॰ देशमुख 11 अगस्त 1943 30 जून 1949
सर बेनेगल रामा राव 01 जुलाई 1949 14 जनवरी 1957
के॰ जी॰ अम्बेगाओंकर 14 जनवरी 1957 28 फरवरी 1957
एच॰ वी॰ आर॰ आयंगर 01 मार्च 1957 28 फरवरी 1962
पी॰ सी॰ भट्टाचार्य 01 मार्च 1962 30 जून 1967
एल॰ के॰ झा 01 जुलाई 1967 03 मई 1970
बी॰ एन॰ आदरकार 04 मई 1970 15 जून 1970
एस॰ जगन्नाथन 16 जून 1970 19 मई 1975
एन॰ सी॰ सेनगुप्ता 19 मई 1975 19 अगस्त 1975
के॰ आर॰ पुरी 20 अगस्त 1975 02 मई 1977
एम॰ नरसिम्हन 03 मई 1977 30 नवम्बर 1977
डॉ॰ आई॰ जी॰ पटेल 01 दिसम्बर 1977 15 सितम्बर 1982
डॉ॰ मनमोहन सिंह 16 सितम्बर 1982 14 जनवरी 1985
ऐ॰ घोष 15 जनवरी 1985 04 फरवरी 1985
आर॰ एन॰ मल्होत्रा 04 फरवरी 1985 22 दिसम्बर 1990
एस॰ वेंकटरमनन 22 दिसम्बर 1990 21 दिसम्बर 1992
सी॰ रंगराजन 22 दिसम्बर 1992 21 नवम्बर 1997
डॉ॰ बिमल जालान 22 नवम्बर 1997 06 सितम्बर 2003
डॉ॰ वॉय॰ वी॰ रेड्डी 06 सितम्बर 2003 05 सितम्बर 2008
डी॰ सुब्बाराव 05 सितम्बर 2008 04 सितम्बर 2013
रघुराम राजन 05 सितम्बर 2013 04 सितम्बर 2016
उर्जित पटेल 04 सितम्बर 2016 वर्तमान में

अंतिम संशोधन: 07 अप्रैल 2017

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तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों के नाम, कार्यकाल एवं उनकी राजनीतिक पार्टी (वर्ष 1950 से 2017)

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तमिलनाडु के सभी मुख्यमंत्रियों की सूची (1950-2017) | Chief Ministers of Tamil Nadu in Hindi

तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों की सूची (1950-2017): (Chief Ministers of Tamil Nadu in Hindi)

तमिलनाडु:

तमिलनाडु भारत का एक दक्षिणी राज्य है। तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई है। तमिलनाडु के अन्य महत्त्वपूर्ण नगर मदुरै, त्रिचि, कोयम्बतूर, सलेम, तिरूनेलवेली हैं। इसके पड़ोसी राज्य आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल हैं। तमिलनाडु में बोली जाने वाली प्रमुख भाषा तमिल है।

तमिलनाडु का इतिहास:

तमिलनाडु का इतिहास बहुत प्राचीन है। यह उन गिने चुने क्षेत्रों में से एक है जो प्रागैतिहासिक काल से अब तक लगातार बसे हुए है। अत्यारम्भ से यह तीन प्रसिद्ध राजवंशों की कर्मभूमि रही है – चेर, चोल तथा पांड्य। मूल रुप से ‘तमिलहम’ के नाम से जाने जाने वाले तमिलनाडु का प्राचीन इतिहास लगभग 6,000 साल पुराना है और इसे द्रविड़ों की उत्पत्ति का स्थान माना जाता है। इतिहासकार तमिलनाडु के इतिहास को तीन विशेष भागों में बांटते हैं- प्राचीन, मध्य और आधुनिक। सबसे पुरानी सभ्यता होने के नाते कुछ लोग कहते हैं कि द्रविड़ों को उत्तर में आर्यों के कारण दक्षिण की ओर आना पड़ा। इस राज्य में चोल, पल्लव और पांडवों से लेकर कई राजवंशों ने शासन किया है। इसका गौरवशाली इतिहास प्राचीन और मध्य युग में बंटा है।

भूगोल:

तमिलनाडु के उत्तर दिशा में कर्नाटक और आंध्र प्रदेश तथा पश्चिम में केरल से घिरा होने के कारण यह राज्य जमीन से घिरा है। इसके दक्षिण में हिंद महासागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी है। तमिलनाडु का क्षेत्रफल 1,30,058 किमी2 है। यहाँ की सबसे प्रमुख नदी कावेरी है।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री:

तमिलनाडु के वर्तमान मुख्यमंत्री एडाप्पडी पलानिस्वामी राज्यपाल विद्यासागर राव हैं। एडाप्पडी पलानिस्वामी ने 16 फरवरी 2017 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। तमिलनाडु के प्रथम मुख्यमंत्री पी. एस. कुमारस्वामी राजा थे।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों की सूची 1950 से अब तक:

मुख्यमंत्री का नाम पदमुक्ति पदमुक्ति दल/राजनीतिक पार्टी
एडाप्पडी पलानिस्वामी 16 फरवरी 2017 वर्तमान में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
ओ॰ पन्नीरसेल्वम 06 दिसम्बर 2016 16 फरवरी 2017 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
जयललिता जयराम 19 मई 2016 05 दिसम्बर 2016 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
जयललिता जयराम 23 मई 2015 19 मई 2016 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
ओ॰ पन्नीरसेल्वम 29 सितम्बर 2014 23 मई 2015 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
जयललिता जयराम 16 मई 2011 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
मुत्तुवेल करुणानिधि 13 मई 2006 15 मई 2011 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
जयललिता जयराम 2 मार्च 2002 12 मई 2006 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
ओ॰ पन्नीरसेल्वम 21 सितम्बर 2001 01 मार्च 2002 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
जयललिता जयराम 14 मई 2001 21 सितम्बर 2001 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
मुत्तुवेल करुणानिधि 13 मई 1996 13 मई 2001 द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम (डीएमके)
जयललिता जयराम 24 जून 1991 12 मई 1996 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
राष्ट्रपति शासन (30 जनवरी 1991 से 24 जून 1991 तक)
मुत्तुवेल करुणानिधि 27 जनवरी 1989 30 जनवरी 1991 द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम (डीएमके)
राष्ट्रपति शासन (30 जनवरी 1988 से 27 जनवरी 1989 तक)
जानकी रामचंद्रन 07 जनवरी 1988 30 जनवरी 1988 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
वी. आर. नेदुनचेझियान (कार्यकारी) 24 दिसम्बर 1987 7 जनवरी 1988 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
मारुदुर गोपालन रामचन्द्रन 10 फरवरी 1985 24 दिसम्बर 1987 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
मारुदुर गोपालन रामचन्द्रन 09 जून 1980 15 नवम्बर 1984 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
राष्ट्रपति शासन (17 फरवरी 1980 से 09 जून 1980 तक)
मारुदुर गोपालन रामचन्द्रन 30 जून 1977 17 फरवरी 1980 ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम
राष्ट्रपति शासन (31 जनवरी 1976 से 30 जून 1977 तक)
मुत्तुवेल करुणानिधि 15 मार्च 1971 31 जनवरी 1976 द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम (डीएमके)
मुत्तुवेल करुणानिधि 10 फरवरी 1969 04 जनवरी 1971 द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम (डीएमके)
वी. आर. नेदुनचेझियान (कार्यकारी) 03 फरवरी 1969 10 फरवरी 1969 द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम (डीएमके)
कांजीवरम्‌ नटराजन्‌ अन्नादुरै 14 जनवरी 1969 03 फरवरी 1969 द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम (डीएमके)
कांजीवरम्‌ नटराजन्‌ अन्नादुरै 06 मार्च 1967 14 जनवरी 1969 द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम (डीएमके)
एम. भक्तवत्सलम 02 अक्टूबर 1963 06 मार्च 1967 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
कुमारास्वामी कामराज 15 मार्च 1962 02 अक्टूबर 1963 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
कुमारास्वामी कामराज 13 अप्रैल 1957 01 मार्च 1962 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
कुमारास्वामी कामराज 13 अप्रैल 1954 31 मार्च 1957 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
सी. राजगोपालाचारी 10 अप्रैल 1952 13 अप्रैल 54 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
पी. एस. कुमारस्वामी राजा 26 जनवरी 1950 09 अप्रैल 1952 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

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