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विश्व के प्रमुख देश और उनके पुराने नाम

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विश्व के प्रमुख देश और उनके प्राचीन नाम | Old Names of Famous Countries in Hindi

विश्व के प्रमुख देश और उनके प्राचीन नाम: (Old Names of Famous Countries of the World in Hindi)

यहां पर विश्व के प्रमुख देशों के वर्तमान और उनके प्राचीन नाम के बारे में महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान जानकारी दी गयी है। सामान्यतः इस सूची से सम्बंधित प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते है। यदि आप विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे: आईएएस, शिक्षक, यूपीएससी, पीसीएस, एसएससी, बैंक, एमबीए एवं अन्य सरकारी नौकरियों के लिए तैयारी कर रहे हैं, तो आपको विश्व के प्रमुख देशों के सभी देशों के पुराने नाम के बारे में अवश्य पता होना चाहिए।

विश्व के सभी देशों के पुराने नाम की सूची (List of ancient (Old) names of all the countries of the world): 

विश्व के प्रमुख देशों के वर्तमान नाम विश्व के प्रमुख देशों के प्राचीन नाम
अंकारा, तुर्की अंगोरा, तुर्की
अल्जीरिया निमीडिया
आशवल (आशापल्ली) अहमदाबाद
इंसतांबुल, तुर्की कांस्टेंटिनोपल, तुर्की
इथियोपिया एबिसिनिया
इराक मेसोपोटामिया
ईरान फारस
एबिसिनिया इथियोपिया
एलिस द्वीप समूह तुवालु
कंबोडिया काम्पुचेआ
कांगो ज़ैरे
कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य ज़ैरे
काम्पुचेआ कंबोडिया
कालीकट कोझीकोड
केंद्रीय प्रांत मध्य प्रदेश
केप कनवेरल केप केनेडी
कॉन्स्टेंटिनोपल इस्तांबुल
कोचीन कोच्चि
कोरिया (उत्तर और दक्षिण) चोसन
गिल्बर्ट आइलैंड किरीबाती
घाना घाना
चीन (उत्तर) कैथी
चीन (दक्षिण) मांगी
चेक गणराज्य और स्लोवाकिया बोहेमिया, मोराविया, चेकोस्लोवाकिया
जाम्बिया उत्तरी रोड्सिया
जिम्बाब्वे दक्षिणी रोडेशनिया
टोक्यो, जापान ईदो
डच ईस्ट इंडीज इंडोनेशिया
डच गुयाना सुरिनाम
तंजानिया तांगान्यिका और ज़ांज़ीबार, जर्मन पूर्वी अफ्रीका
ताइवान फॉर्मोसा
थाईलैंड सियाम
नामीबिया दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका
पूर्व पाकिस्तान बांग्लादेश
पूर्वी तिमोर तिमोर लेस्टल
फॉर्मोसा ताइवान
फ़्रांस गॉल
फ्रेंच सूडान माली
फ्रेंच सोमालीलैंड जिबूती
बर्मा म्यांमार
बसुथोलैंड लेसोथो
बाटविया जकार्ता (इंडोनेशिया की राजधानी)
बीजिंग, चीन पेकिंग, चीन
बुर्किना फासो अपर वोल्टा
बेचुआनालैंड बोत्सवाना
ब्रिटिश गिनी गुयाना
ब्रिटिश होंडुरास बेलिज
भारत आर्यावर्त
मध्य अफ्रीकी गणराज्य, चाड फ्रेंच इक्वेटोरियल अफ्रीका
माली सूडानी गणराज्य
मोल्दोवा मोल्दाविया
म्यांमार बर्मा
रवांडा और बुरुंडी जर्मन पूर्वी अफ्रीका
लीबिया त्रिपोलिटनिया और साइरेनिका
लैन झांग लाओस
वियतनाम कोचीन-चीन (दक्षिण), अननाम (केंद्रीय), टोनकिन (उत्तर)
श्री लंका सीलोन
सेंट पीटर्सबर्ग, रूस पेट्रोगैड और लेनिनग्राद, रूस
हाथीदांत का किनारा कोट डी’वॉयर
हॉलैंड नीदरलैंड्स
हो चि मिंच सिटी, वियतनाम सैगोन, दक्षिण वियतनाम

इन्हें भी पढ़े: विश्व के प्रमुख देशों के नाम और उनके स्‍वतंत्रता दिवस की तिथियाँ

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विश्व की प्रमुख नहरें

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विश्व की प्रमुख नहरों के नाम, स्थिति और सम्बंधित देश का नाम ( List of Major Canals in the World in Hindi)

नहर जल परिवहन तथा स्थानान्तरण का मानव-निर्मित संरचना है। नहर शब्द से ऐसे जलमार्ग का बोध होता है, जो प्राकृतिक न होकर, मानवनिर्मित होता है। मुख्यत: इसका प्रयोग खेती के लिये जल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने में किया जाता है। नहरें नदियो के जल को सिंचाई हेतु विभिन्न क्षेत्रो तक पहुंचाती हैं। ऐसे जलमार्ग प्राचीन समय से बनते रहे हैं। आइये जाने विश्व की कुछ प्रमुख नहरों के बारे जो कि जोड़ती हैं दो झीलों को, दो देशो को, दो सागरों को या फिर को राज्यों को।

विश्व की प्रमुख नहर की सूची (List of world’s major canals):

नहर निर्माण वर्ष किस – किसको जोड़ती है
ईरी नहर (सं. रा. अमरीका) 1825 ई. सुपीरियर झील को होरज झील से
सू नहर (सं. रा. अमरीका) 1855 ई. ईरी झील और मिशीगन झील को
गोटा नहर (स्वीडन) 1810 से 1832 ई. के मध्य स्टॉकहोम और गुटेनवर्ग को
कील नहर (जर्मनी) 1887 से 1895 ई. के मध्य उत्तरी सागर और बाल्टिक सागर को
उत्तरी सागर नहर (जर्मनी) 1865 से 1876 ई. के मध्य उत्तरी सागर व् एम्स्टरडम को
मैनचेस्टर नहर (ग्रेट ब्रिटेन) 1887 ई. मैनचेस्टर और लिवरपुल को
न्यू वाटर वे (जर्मनी) 1863 से 1872 ई. के मध्य उत्तरी सागर और राटरडम को
वोल्गा डान नहर (रूस) 1948 से 1952 ई. के मध्य रोस्टोव और स्टालिनग्राद को
बेलैंड नहर (सं. रा. अमरीका) ईरी और ओण्टोरियो को
के. सी. नहर (भारत) 1863 से 1870 ई. के मध्य आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु को
स्वेज नहर (मिस्र) 1869 ई. लाल सागर और भूमध्यसागर को
पनामा नहर (पनामा) 1903 से 1914 ई. के मध्य कैरिबियन सागर और प्रशांत महासागर को
अल्बर्ट नहर (पश्चिमी यूरोप) 1930 से 1934 ई. के मध्य एंटवर्प लीग तथा वेनेलक्स को

विश्व के प्रमुख नहर से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. नहरें अनिवार्य रूप से मानव निर्मित नदियाँ होती हैं जिनका उपयोग ज्यादातर जहाजों के माध्यम से माल परिवहन के लिए किया जाता है।
  2. कम लागत के कारण थोक उत्पाद परिवहन के लिए वाणिज्य उद्योग में नहरें महत्वपूर्ण हैं।
  3. नहरें प्राचीन मेसोपोटामिया से लगभग 2400 ईसा पूर्व की हैं। टाइग्रिस और यूफ्रेट्स ने निपटान और कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी प्रदान की। इसलिए, पीने और फसलों दोनों के लिए पानी उपलब्ध कराने के लिए नहरवन नहर का निर्माण किया गया था। अब एक अलग उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जाता है, इस प्राचीन नहर ने आज जिसे हम नहर कहते हैं उसके लिए मार्ग प्रशस्त किया।
  4. सबसे पहले, केवल समोच्च नहरों का निर्माण किया गया था। इसका मतलब यह था कि नहर गहरी खाइयों से गुजरने के बजाय मार्ग के प्राकृतिक परिदृश्य का अनुसरण करती थी। कंटूर की हुई नहरें कुशल थीं, लेकिन निर्माण और यात्रा में अधिक समय लगा। इसलिए, दुनिया भर के इंजीनियरों को काम मिला। एक सफल नहर की कुंजी विभिन्न वातावरणों में बहुमुखी थी।
  5. एक नहर की यह महत्वपूर्ण विशेषता एक नाव को पानी के विभिन्न ऊंचाई से ले जाने की अनुमति देती है। अब नहर के ताले के साथ, किसी भी इलाके के माध्यम से एक नहर का निर्माण किया जा सकता है।
  6. नहरें दो मुख्य तरीकों से काम करती हैं: एक्वाडक्ट्स और जलमार्ग। मिस्र में नहरवन नहर की तरह एक्वाडक्ट नहरें बहुत अधिक हैं। इस प्रकार की नहर कृषि, उपयोगिता या मानव उपभोग के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान तक पानी पहुँचाती है।
  7. जलमार्ग नहरें आज अधिक प्रमुख हैं। ये नहरें पानी या शहरों के दो निकायों को जोड़कर जहाजों को नेविगेट करती हैं। दोनों तरीकों ने पिछली कुछ शताब्दियों में अर्थव्यवस्थाओं को बदल दिया है।
  8. पनामा नहर को वैश्विक शिपिंग व्यापार मार्गों के विस्तार के लिए व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है। आज, नहर ने अटलांटिक महासागर से प्रशांत महासागर तक जाने वाले लाखों यात्रियों की सहायता की है।
  9. पूरी प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए नहर निर्माण पर शोध किया जा रहा है। यूएस आर्मी कोर ऑफ इंजीनियर्स सर्वश्रेष्ठ नहर फाटकों और तालों को स्थापित करने के लिए स्केल मॉडल का परीक्षण करता है।

इन्हें भी पढे: विश्व के प्रमुख सागर

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मानव शरीर के अंगों से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

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मानव शरीर से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची: (Important Facts related to Human Body in Hindi)

मानव शरीर:

मानव शरीर एक मानव जीव की संपूर्ण संरचना है, जिसमें एक सिर, गर्दन, धड़, दो हाथ और दो पैर होते हैं। किसी मानव के वयस्क होने तक उसका शरीर लगभग 50 ट्रिलियन कोशिकाओं, जो कि जीवन की आधारभूत इकाई हैं, से मिल कर बना होता है। इन कोशिकाओं के जीववैज्ञानिक संगठन से अंतत: पूरे शरीर की रचना होती है।

रासायनिक स्तर:

रासायनिक स्तर पर मानव शरीर विभिन्न जैव-रसायनों का संगठनात्मक तथा क्रियात्मक रूप होता है जिसमें विभिन्न तत्वों के परमाणु यौगिकों के रूप में संगठित होकर जैविक क्रियाओं को संचालित करते हैं। इन तत्वों में कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं सल्फर मुख्य होते हैं।

जब दो या दो से अधिक परमाणु परस्पर मिलते हैं, तो वे एक अणु की संरचना करते हैं, उदाहरणार्थ जब ऑक्सीजन के दो परमाणु परस्पर मिलते हैं, तो वे एक ऑक्सीजन का अणु बनाते हैं, जिसे O2 लिखा जाता है। एक अणु में एक से अधिक परमाणु हो तो उसे यौगिक कहते हैं। जल (H2O) एवं कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की तरह ही कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन्स एवं लिपिड (वास) भी ऐसे यौगिक हैं जो कि मानव शरीर के लिए महत्त्वपूर्ण है।

मानव शरीर एवं कंकाल के बारे में जानकारी –

मानव कंकाल में कुल 206 हड्डियां होती हैं, जिनका वर्गीकरण नीचे दिया है। 

  • कपाल की 8 अस्थियाँ  – 1 आक्सीपिटल, 1 फ्रॉन्टल, 1 एथमाइड, 1 स्फीनॉएड, 2 पैराइटल, 2 टेम्पोरल
  • चेहरे की 14 अस्थियाँ – 1 वोमर, 1 मैंडिबल, 2 नेजल, 2 पैलेटाइन, 2 मैक्जिला, 2 जाइगोमैटिक, 2 टरबाईनल, 2 लैक्राइमल
  • कान की 6 अस्थियाँ – 2 मैलियस, 2 स्टेप्स, 2 इन्कस
  • हाइड भाग की 1 अस्थि  – 1 हाइड
  • कशेरुक दण्ड की 26 अस्थियाँ – 1 काडल कशेरुका, 1 सैक्रल कशेरुका, 5 लम्बर कशेरुका, 7 सरवाइकल कशेरुका, 12 थोरैसिक कशेरुका
  • वक्ष की 29 अस्थियाँ – 1 स्टर्नम, 24 पसलियाँ, 2 स्कैपुला, 2 क्लैविकल
  • कूल्हे की 2 अस्थियाँ – 2 आस-इन्नामिनेट्स
  • हाथों (अग्रपाद) की 60 अस्थियाँ – 2 ह्यूमरस, 2 रेडियो, 2 अलना, 10 मेटाकार्पल्स, 16 कार्पल्स, 28 फ़ैलेन्जेज
  • पैरों (पश्च पाद) की 60 अस्थियाँ – 2 फीमर, 2 पटेला, 4 टिबिया फिबुला, 10 मेटा टार्सल्स, 14 टार्सल, 28 फ़ैलेन्जेज

मानव शरीर के अंगो के नाम, संख्या और महत्वपूर्ण तथ्य:

अस्थियों की कुल संख्या 206
सबसे छोटी अस्थि स्टेपिज़ (मध्य  कर्ण  में)
सबसे बड़ी अस्थि फिमर  (जंघा  में)
कशेरुकाओं की कुल संख्या 33
पेशियों की कुल संख्या 639
सबसे लम्बी पेशी सर्टोरियास
बड़ी आंत्र की लम्बाई 1.5 मीटर
छोटी आंत्र की लम्बाई 6.25  मीटर
यकृत का भार(पुरुष में) 1.4 -1.8  कि.ग्रा.
यकृत का भार(महिला में) 1.2 -1.4 कि.ग्रा.
सबसे बड़ी ग्रंथि यकृत
सर्वाधिक पुनरुदभवन की क्षमता यकृत में
सबसे कम पुनरुदभवन की क्षमता मस्तिष्क में
शरीर का सबसे कठोर भाग दांत  का इनेमल
सबसे बड़ी लार ग्रंथि पैरोटिड ग्रंथि
शरीर का सामान्य तापमान 98 .4*F (37*C)
शरीर में रुधिर की मात्रा 5.5 लीटर
हीमोग्लोबिन की औसत मात्रा:
पुरुष में 13-16 g/dl
महिला में 11.5-14 g /dl
WBCs की संख्या 5000-10000/cu mm.
सबसे छोटी WBC लिम्फोसाइट
सबसे बड़ी WBC मोनोसाइट
RBCs  का जीवन काल 120 दिन
रुधिर का थक्का बनाने का समय 2-5 मिनट
सर्वग्राही रुधिर वर्ग AB
सर्वदाता रुधिर वर्ग O
सामान्य रुधिर दाब 120/80 Hg
सामान्य नब्ज़ गति
जन्म के समय 140 बार -मिनट
1 वर्ष की आयु में 120 बार -मिनट
10 वर्ष की आयु में 90 बार -मिनट
व्यस्क में 70 बार -मिनट
हृदय गति 72 बार -मिनट
सबसे बड़ी शिरा एन्फिरियर
सबसे बड़ी धमनी 42-45 से.मी
वृक्क का भार 42-45 से.मी
मस्तिष्क का भार 42-45 से.मी
मेरु दंड की लम्बाई 42-45 से.मी

हम अपने शरीर के बारे में आवश्यक बातें तो जानते हैं, लेकिन मानव शरीर से ही संबंधित कुछ वैज्ञानिक सच ऐसे हैं, जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं। मानव शरीर से जुड़े ये तथ्य हमें हैरान कर देंगे, आइये जानते है, ऐसे ही महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में जिनसे से एक आम इंसान अनजान रहता हैं।

मानव शरीर से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों से सम्बंधित सामान्य ज्ञान:

  • हमारी 1 आंख में 12,00,000 फाइबर होते हैं। अगर आप जिंदगी भर पलक झपकने का वक्त जोड़ेंगे, तो 1.2 साल का अंधेरा मिलेगा।हमारे घरों में मौजूद धूल के ज्यादातर कण हमारी डेड स्किन के होते हैं।
  • आंतों में इतने बैक्टीरिया मौजूद होते हैं कि उनको निकालकर एक कॉफी मग भरा जा सकता है।
  • आंख अकेला ऐसा मल्टीफोकस लेंस है, जो सिर्फ 2 मिली सेकेंड में एडजस्ट हो जाता है।
  • त्वचा में कुल 72 किलोमीटर नर्व होती है।
  • 75 फीसदी लिवर, 80 फीसदी आंत और एक किडनी बगैर भी इंसान जिंदा रह सकता है।
  • अगर आप जिंदगी भर पलक झपकने का वक्त जोड़ेंगे, तो 1.2 साल का अंधेरा मिलेगा।हमारे घरों में मौजूद धूल के ज्यादातर कण हमारी डेड स्किन के होते हैं।
  • व्यक्ति खाना खाए बिना कई हफ्ते गुजार सकता है, लेकिन सोए बिना केवल 11 दिन रह सकता है।
  • हाथ की 1 वर्ग इंच त्वचा में 72 फीट नर्व फाइबर होता है।
  • इंसान के कान 20,000 हर्ट्ज तक की फ्रीक्वेंसी सुन सकते हैं।
  • शरीर में दर्द350 फीट प्रति सेकेंड की रफ्तार से आगे बढ़ता है।
  • वयस्कों के बालों को उनकी लंबाई से 25 फीसदी ज्यादा तक खींचा जा सकता है।
  • जिस हाथ से आप लिखते हैं, उसकी उंगलियों के नाखून ज्यादा तेजी से बढ़ते हैं।
  • मानव शरीर में 3-4 दिन में नई स्टमक (पेट) लाइनिंग बनने लगती है।
  • नवजात शिशु एक मिनट में 60 बार सांस लेता है। किशोर 20 बार और युवा केवल सोलह बार।
  • जब कोई मनुष्य छींकता है तो बाहर निकलने वाली हवा का वेग 160 किलोमीटर प्रति घंटा होता है मतलब एक्प्रेस गा़डी़ से भी अधिक स्पीड़।
  • किसी भी दुर्घटना होने पर हड्डियाँ ही सबसे अधिक टूटती हैं, पर जबड़े की हड्डी बड़ी मजबूत होती है। वह लगभग 280 किलो वजन भी सहन कर सकती है|
  • एक स्वस्थ युवा शरीर का मस्तिष्क 20 वाट विद्युत पैदा कर सकता है|
  • जब एक नवजात शिशु रोता है तो उसके आंसू नहीं आते क्यों कि तब तक उसकी अश्रुग्रंथियाँ विकसित नहीं होती है।
  • हमें हँसाने के लिए 17 स्नायुं का प्रयोग करना पड़ता है जबकि रोने के लिए 43 स्नायु काम में लेने पड़ते हैं।
  • हमारे शरीर में लोहा भी होता है इतना कि एक शरीर से प्राप्त लोहे से एक इंच की कील भी तैयार की जा सकती है।
  • शरीर में एपेंडिक्स कशेरुका की बेकार हुई पूंछ कानों में कुलबुलाने वाली मांसपेशियां आदि किसी काम नहीं आते हैं।
  • खाना खाते समय जो अतिरिक्त हवा पेट में चली जाती है वह डकार बन कर वह आवाज करती है। कई लोग जम्हाई बड़ी आवाज़ के साथ लेते हैं।जब शरीर को पूरी आक्सीजन नहीं मिलती है तो जम्हाई ले कर शरीर में वह आक्सीजन की कमी पूरी की जाती है।हमारे पेट में हवा, पानी होते हैं जो गुड गुड आवाज करते रहते हैं इन्हें स्टोमेक ग्राउल कहा जाता है।
  • हिचकी भी एक बाडी नाईस है। डायफाम में यानी मध्य पट में तनाव की वजह से हिचकी आती है या एक मसल होती है जो फेफडों की हवा को बाहर भीतर भेजती है जब किसी कारण यह प्रोसेस रुक जाता है तो भीतर की हवा बाहर आने के लिए धक्का देती है तो ठिक्क की आवाज आती है।
  • एक वयस्क व्यक्ति के शरीर में 206 हड्डियाँ होती हैं जबकि बच्चे के शरीर में 300 हड्डियाँ होती हैं (क्योंकि उनमें से कुछ गल जाती हैं और कुछ आपस में मिल जाती हैं)।
  • मनुष्य के शरीर में सबसे छोटी हड्डी स्टेप्स या स्टिरुप होती है जो कि कान के बीच में होती है तथा जिसकी लंबाई लगभग 11 इंच (.28 से.मी.) होती है।
  • मनुष्य के शरीर में मोटोर न्यूरोन्स सबसे लंबी सेल होती है जो कि रीढ़ की हड्डी से शुरू होकर पैर के टखने तक जाती है और जिसकी लंबाई 4.5 फुट (1.37 मीटर) तक हो सकती है।
  • मनुष्य की जाँघों की हड्डियाँ कंक्रीट से भी अधिक मजबूत होती हैं।
  • मनुष्य की आँखों का आकार जन्म से लेकर मृत्यु तक एक ही रहता है जबकि नाक और कान के आकार हमेशा बढ़ते रहते हैं।
  • आदमी एक साल में औसतन 62,05,000 बार पलकें झपकाता है।
  • खाए गए भोजन को पचने में लगभग 12 घण्टे लगते हैं।
  • मनुष्य के जबड़ों की पेशियाँ दाढ़ों में 200 पौंड (90.8 कि.ग्रा.) के बराबर शक्ति उत्पन्न करती हैं।
  • अभी तक प्राप्त आँकड़ों के अनुसार सबसे भारी मानव मस्तिष्क का वजन 5 पौंड 1.1 औंस. (2.3 कि.ग्रा..) पाया गया है।
  • एक सामान्य मनुष्य अपने पूरे जीवनकाल में भूमध्य रेखा के पाँच बार चक्कर लगाने जितना चलता है।
  • मनुष्य की मृत्यु हो जाने के बाद भी बाल और नाखून बढ़ते ही रहते हैं।
  • मनुष्य की चमड़ी के भीतर लगभग45 मील (72 कि.मी.) लंबी तंत्रिकाएँ (नसें) होती हैं।

इन्हें भी पढे: मानव शरीर के अंग तंत्रो के नाम, कार्य एवं महत्‍वपूर्ण तथ्यों की सूची

नोट: प्रिय पाठकगण यदि आपको इस पोस्ट में कंही भी कोई त्रुटि (गलती) दिखाई दे, तो कृपया कमेंट के माध्यम से उस गलती से हमे अवगत कराएं, हम उसको तुरंत सही कर देंगे।

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क्रिप्टोकरेंसी – Cryptocurrency

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क्रिप्टोकरेंसी क्या है?-  What is Cryptocurrency

एक क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) या क्रिप्टो (Crypto), एक आभासी मुद्रा है जो क्रिप्टोग्राफी द्वारा सुरक्षित है। इसे विनिमय के एक माध्यम के रूप में काम करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जहाँ व्यक्तिगत स्वामित्व के रिकॉर्ड को कम्प्यूटरीकृत डेटाबेस में संग्रहीत किया जाता है।

एक क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) का निर्णायक गुण यह है कि वे किसी भी देश की सरकारी एजेंसी द्वारा जारी नहीं किए जाते हैं और उन्हें किसी भी हस्तक्षेप और हेरफेर के खिलाफ प्रतिरक्षा बनाते हैं।

क्रिप्टोकरेंसी की परिभाषा – Definition of Cryptocurrency

सरल शब्दों में, Cryptocurrency एक साझा नेटवर्क में कई कंप्यूटरों के माध्यम से फैला एक डिजीटल संपत्ति है। इस नेटवर्क की विकेंद्रीकृत प्रकृति उन्हें सरकारी नियामक निकायों के किसी भी नियंत्रण से बचाती है। शब्द “क्रिप्टोकरेंसीअपने आप में नेटवर्क को सुरक्षित करने के लिए उपयोग की जाने वाली एन्क्रिप्शन तकनीकों से लिया गया है।

कंप्यूटर विशेषज्ञों के अनुसार, क्रिप्टोकरेंसी की श्रेणी में आने वाली कोई भी प्रणाली निम्नलिखित आवश्यकताओं को पूरा करती है।

  • किसी भी केंद्रीकृत प्राधिकरण की अनुपस्थिति और वितरित नेटवर्क के माध्यम से बनाए रखा जाता है।
  • सिस्टम क्रिप्टोकरेंसी इकाइयों के रिकॉर्ड रखता है और जो उनके मालिक हैं।
  • यह प्रणाली तय करती है कि नई इकाइयों को विज्ञापन के मामले में बनाया जा सकता है या नहीं, मूल और स्वामित्व की शर्तों का फैसला किया।
  • क्रिप्टोकरेंसी इकाइयों का स्वामित्व विशेष रूप से क्रिप्टोग्राफिक रूप से साबित किया जा सकता है।
  • सिस्टम लेनदेन करने की अनुमति देता है जिसमें क्रिप्टोग्राफिक इकाइयों के स्वामित्व को बदल दिया जाता है।

क्रिप्टोकरेंसी के प्रकार – Types of Cryptocurrency

क्रिप्टो मुद्रा का पहला प्रकार बिटकॉइन था, जो आज तक सबसे अधिक उपयोग किया जाता है, मूल्यवान और लोकप्रिय है। बिटकॉइन के साथ, कार्यों और विनिर्देशों के अलग-अलग डिग्री के साथ अन्य वैकल्पिक क्रिप्टोकरेंसी बनाई गई हैं। कुछ बिटकॉइन के पुनरावृत्तियों हैं, जबकि अन्य जमीन से बनाए गए हैं

बिटकॉइन को 2009 में छद्म नाम “सतोशी नाकामोटो” के एक व्यक्ति या समूह द्वारा लॉन्च किया गया था। मार्च 2021 तक, लगभग 927 बिलियन डॉलर की कुल मार्केट कैप के साथ 18.6 मिलियन से अधिक बिटकॉइन प्रचलन में थे।

बिटकॉइन की सफलता के परिणामस्वरूप बनाई गई प्रतिस्पर्धात्मक क्रिप्टोकरेंसी को altcoins के रूप में जाना जाता है। कुछ प्रसिद्ध altcoins क्रिप्टो करेंसी के नाम इस प्रकार हैं:

  1. लिटिकोइन (Litecoin)
  2. पीरकोइन (Peercoin)
  3. नेमकोइन (Namecoin)
  4. एथेरुम (Ethereum)
  5. कार्डाना (Cardana)

आज, अस्तित्व में सभी क्रिप्टोकरेंसी का कुल मूल्य लगभग $ 1.5 ट्रिलियन है – वर्तमान में बिटकॉइन कुल मूल्य का 60% से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है

क्रिप्टोकरेंसी के फायदे और नुकसान – Advantages and disadvantages of Cryptocurrency

क्रिप्टोकरेंसी के निम्नलिखित फायदे हैं-

  • थर्ड पार्टी जैसे क्रेडिट / डेबिट कार्ड या बैंकों की आवश्यकता के बिना दो पार्टियों के बीच फंड ट्रांसफर आसान होगा।
  • यह अन्य ऑनलाइन लेनदेन की तुलना में एक सस्ता विकल्प है।
  • भुगतान सुरक्षित और सुरक्षित हैं और गुमनामी का एक अभूतपूर्व स्तर प्रदान करते हैं।
  • आधुनिक क्रिप्टोकरेंसी सिस्टम एक उपयोगकर्ता “वॉलेट” या खाता पता के साथ आते हैं जो केवल एक सार्वजनिक कुंजी और समुद्री डाकू कुंजी द्वारा सुलभ है। निजी कुंजी केवल बटुए के मालिक को पता है।
  • फंड ट्रांसफर न्यूनतम प्रोसेसिंग फीस के साथ पूरा किया जाता है।

क्रिप्टोकरेंसी के निम्नलिखित नुकसान हैं।

  • क्रिप्टोकरेंसी लेन-देन की लगभग छिपी हुई प्रकृति उन्हें अवैध गतिविधियों जैसे कि धन शोधन, कर-चोरी और संभवतः आतंक-वित्तपोषण का ध्यान केंद्रित करना आसान बनाती है।
  • भुगतान अपरिवर्तनीय नहीं हैं।
  • क्रिप्टोकरेंसी को हर जगह स्वीकार नहीं किया जाता है और इसका मूल्य स्थिर नहीं होता है
  • चिंता है कि बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी किसी भी भौतिक वस्तुओं में निहित नहीं हैं। हालाँकि, कुछ शोधों ने यह पहचान लिया है कि एक बिटकॉइन के उत्पादन की लागत, जिसके लिए बड़ी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, का सीधा संबंध इसके बाजार मूल्य से है।

क्रिप्टोकरेंसी का इतिहास History of Cryptocurrency

1983 में, अमेरिकी क्रिप्टोग्राफर डेविड चाउम ने एक गुमनाम क्रिप्टोग्राफिक इलेक्ट्रॉनिक पैसे की कल्पना की, जिसे Ecash कहा जाता है। बाद में, 1995 में, उन्होंने डिजिकैश (Digicash) के माध्यम से इसे लागू किया, क्रिप्टोग्राफ़िक इलेक्ट्रॉनिक भुगतानों का एक प्रारंभिक रूप जिसे एक बैंक से नोट्स वापस लेने और प्राप्तकर्ता को भेजे जाने से पहले विशिष्ट एन्क्रिप्टेड कुंजियों को निर्दिष्ट करने के लिए उपयोगकर्ता सॉफ़्टवेयर की आवश्यकता होती है। इसने जारीकर्ता बैंक, सरकार या किसी तीसरे पक्ष द्वारा डिजिटल मुद्रा को अप्राप्य होने की अनुमति दी।

1996 में, नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी ने हाउ टू मेक टु मिंट: एनक्रिप्टेड इलेक्ट्रॉनिक कैश की क्रिप्टोग्राफी, एक क्रिप्टोक्यूरेंसी प्रणाली का वर्णन करते हुए पहली बार एक MIT मेलिंग सूची में प्रकाशित करने के लिए एक पत्र प्रकाशित किया।

पहली विकेन्द्रीकृत क्रिप्टोकरेंसी, बिटकॉइन, 2009 में संभवतः छद्म नाम के डेवलपर Satoshi Nakamoto द्वारा बनाया गया था। इसने अपने प्रमाण-कार्य योजना में SHA-256, एक क्रिप्टोग्राफ़िक हैश फ़ंक्शन का उपयोग किया था।

क्रिप्टोकरेंसी कैसे काम करती है? – How does a Cryptocurrency work?

एक क्रिप्टोकरेंसी (या “क्रिप्टो”) एक डिजिटल मुद्रा है जिसका उपयोग वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने के लिए किया जा सकता है, लेकिन ऑनलाइन लेनदेन को सुरक्षित करने के लिए मजबूत क्रिप्टोग्राफी के साथ एक ऑनलाइन लेज़र का उपयोग करता है। इन अनियमित मुद्राओं में अधिकांश ब्याज लाभ के लिए व्यापार करना है, सट्टेबाजों के साथ कई बार कीमतें आसमान छूती हैं।

क्रिप्टोकरेंसी से पैसा कैसे बनाया जाता है? – How is money made from cryptocurrency?

क्रिप्टोकरेंसी से पैसा कमाने का सबसे आम तरीका बिटकॉइन, लिटॉइन, एथेरम, रिपल जैसे सिक्के खरीद रहा है, और अधिक और तब तक इंतजार करता है जब तक उनका मूल्य बढ़ जाता है। एक बार जब उनके बाजार मूल्य बढ़ जाते हैं, तो वे लाभ पर बेचते हैं।

क्रिप्टो करेंसी तकनीक की मुख्य अपील क्या है? – What is the main appeal of a cryptocurrency technology?

बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसी की अपील और कार्यक्षमता के लिए सेंट्रल ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी है, जिसका उपयोग उन सभी लेन-देन का एक ऑनलाइन बहीखाता रखने के लिए किया जाता है, जो इस प्रकार इस बहीखाता के लिए एक डेटा संरचना प्रदान करता है जो काफी सुरक्षित है और साझा और सहमत है अलग-अलग नोड के पूरे नेटवर्क द्वारा, या कंप्यूटर एक बही की प्रतिलिपि बनाए रखता है।

 

 

 

 

 

 

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भारत में सरकारी योजनाएँ 2021

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भारत में सरकारी योजनाएँ

योजना लॉन्च की तारीख सरकारी मंत्रालय
प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) 28, अगस्त 2014 वित्त मंत्रालय
प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY) 22 जनवरी 2015 स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) 8 अप्रैल 2015 वित्त मंत्रालय
प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY) 9 मई 2015 वित्त मंत्रालय
प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY) 9 मई 2015 वित्त मंत्रालय
अटल पेंशन योजना (APY) 9 मई 2015 वित्त मंत्रालय
किसान विकास पत्र (KVP) 2014 वित्त मंत्रालय
स्वर्ण मुद्रीकरण योजना (GMS) 4 नवंबर 2015 वित्त मंत्रालय
प्रधानमंत्री आवास बीमा योजना (PMFBY) 18 फरवरी, 2016 कृषि मंत्रालय
प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना (PMGKY) 1 जुलाई 2015 कृषि मंत्रालय
दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY) 25 जुलाई 2015 बिजली मंत्रालय
राष्ट्रीय गोकुल मिशन (RGM) 16 दिसंबर 2014 कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय
डिजिटल इंडिया (DI) 1 जुलाई 2015 इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय
कौशल भारत (SI) 15 जुलाई 2015 कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) 2015 कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय

भारत में रोजगार और गरीबी उन्मूलन से संबंधित महत्वपूर्ण योजनाएँ

योजना लॉन्च की तारीख सरकारी मंत्रालय
मेक इन इंडिया (MI) 25 सितंबर 2014 वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय
स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया (Startup India) 16 जनवरी 2016 भारत सरकार
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKY) 16 दिसंबर 2016 वित्त मंत्रालय

स्वास्थ्य और स्वच्छता से संबंधित भारत में महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू की गईं

योजना लॉन्च की तारीख सरकारी मंत्रालय
स्वच्छ भारत अभियान (SBA) 02 अक्टूबर 2014 आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय
नमामि गंगे (NG) जून, 2014 जल संसाधन मंत्रालय
राष्ट्रीय बाल स्वछता (NBS) 14 नवंबर 2014 महिला और बाल विकास मंत्रालय
प्रधानमंत्री भारतीय जनधन योजना (PMBJP) (PMJAY) सितम्बर 15 रसायन और उर्वरक मंत्रालय
राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM) 15 अगस्त, 2020 स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय

भारत सरकार द्वारा शुरू की गई अन्य सरकारी योजनाएं।

योजना लॉन्च की तारीख सरकारी मंत्रालय
बेटी बचाओ, बेटी पढाओ योजना (BBBPY) 22 जनवरी 2015 महिला और बाल विकास मंत्रालय
पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते योजना (PDUSJY) 16 अक्टूबर 2014 श्रम और रोजगार मंत्रालय
राष्ट्रीय खेल प्रतिभा खोज योजना (NSTSS) 20 फरवरी, 2015 युवा मामले और खेल मंत्रालय
प्रधान मंत्री स्ट्रीट वेंडर की आत्मानिबर निधि (PM SVANidhi) 1 जून, 2020 आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय
सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम योजना का प्रधानमंत्री औपचारिकरण (PM FME) 29 जून, 2020 खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय
प्रधान मंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (PMMSY) 10 सितंबर, 2020 मत्स्य विभाग
ग्रामीण क्षेत्रों में सुधार प्रौद्योगिकी के साथ गांवों और मानचित्रण का सर्वेक्षण (SWAMITVA) 24 अप्रैल, 2020 पंचायती राज मंत्रालय
प्रधान मंत्र उरजा सुरक्षा उत्थान महाभियान (PM-KUSUM) 19 फरवरी, 2019 (स्वीकृति तिथि) नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय

सरकारी योजनाओं के बारे में

सभी सरकारी योजनाओं को जानना एक बात है, लेकिन उम्मीदवारों को अपने उद्देश्य को भी जानना चाहिए। उम्मीदवार नीचे दिए गए प्रत्येक स्कीम के उद्देश्य से जाने और जाने पर उच्च अंक प्राप्त करने का बेहतर मौका देते हैं।

  • प्रधान मंत्री जन धन योजना: प्रधान मंत्री जन धन योजना वित्तीय समावेशन पर एक राष्ट्रीय मिशन है जो एक मजबूत वित्तीय समावेशन लाने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण प्रदान करता है और अंततः देश के सभी घरों में बैंकिंग सेवाएं प्रदान करता है।
  • मेक इन इंडिया: पीएम नरेंद्र मोदी ने मेक इन इंडिया ’अभियान की शुरुआत की जो निवेश को बढ़ावा देगा, नवाचार को बढ़ावा देगा, बौद्धिक संपदा के लिए बढ़ाया संरक्षण और विनिर्माण बुनियादी ढांचे में सर्वश्रेष्ठ निर्माण करेगा। ‘मेक इन इंडिया’ ने विनिर्माण, बुनियादी ढांचे और सेवा गतिविधियों में 25 क्षेत्रों की पहचान की है और विस्तृत जानकारी इंटरैक्टिव वेब-पोर्टल और पेशेवर रूप से विकसित ब्रोशर के माध्यम से साझा की जा रही है।
  • स्वच्छ भारत मिशन: स्वच्छ भारत मिशन को राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में पूरे देश में शुरू किया गया था। इस अभियान का उद्देश्य 2 अक्टूबर 2019 तक ‘स्वच्छ भारत’ की दृष्टि को प्राप्त करना है। स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार द्वारा स्वच्छता के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण अभियान है
  • बेटी बचाओ बेटी पढाओ: इस योजना का लक्ष्य लड़कियों को शिक्षा के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना है।
  • अटल पेंशन योजना: अटल पेंशन योजना मुख्य रूप से उन लोगों के लिए एक सार्वभौमिक पेंशन योजना प्रदान करने के उद्देश्य से है, जो असंगठित क्षेत्र जैसे नौकरानियों, माली, डिलीवरी बॉय, आदि का एक हिस्सा हैं। टी लोगों द्वारा अच्छी तरह से प्राप्त किया।
  • डिजिटल इंडिया मिशन: डिजिटल इंडिया कार्यक्रम भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है जिसमें भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलने की दृष्टि है।
  • प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-दान: यह एक स्वैच्छिक और अंशदायी पेंशन योजना है, जिसके तहत ग्राहक को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होंगे:-(i) न्यूनतम बीमित पेंशन: पीएम-एसवाईएम के तहत प्रत्येक ग्राहक को 60 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद न्यूनतम रु। 3000 / – प्रतिमाह पेंशन प्राप्त होगी।

    (ii) पारिवारिक पेंशन: पेंशन की प्राप्ति के दौरान, यदि ग्राहक की मृत्यु हो जाती है, तो लाभार्थी का जीवनसाथी लाभार्थी द्वारा प्राप्त पेंशन का 50% पारिवारिक पेंशन के रूप में प्राप्त करने का हकदार होगा। पारिवारिक पेंशन जीवनसाथी पर ही लागू होती है।

    (iii) यदि किसी लाभार्थी ने नियमित योगदान दिया है और किसी कारण से मृत्यु हुई है (६० वर्ष की आयु से पहले), तो उसका / उसके पति को नियमित योगदान के भुगतान के बाद योजना में शामिल होने और जारी रखने या इस योजना से बाहर निकलने का हकदार होगा। निकासी और निकासी के प्रावधान।

  • गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम: गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम भारत सरकार द्वारा 2015 में शुरू की गई थी, इस स्कीम के तहत कोई भी व्यक्ति सोने की कीमत बढ़ाने के लिए जीएमएस खाते में किसी भी रूप में अपना सोना जमा कर सकता है।
  • प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किया गया एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट है। यह राष्ट्रीय ट्रस्ट, आगे आने वाले समय में COVID-19 जैसी संकटग्रस्त और भयानक स्थिति को पूरा करने के उद्देश्य से बनाया गया है। पीएम केआरईएस की शुरुआत 28 मार्च, 2020 को गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री के साथ पदेन ट्रस्टी के रूप में भारतीय प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में हुई थी।
  • आरोग्य सेतु: भारत सरकार ने कोरोनावायरस महामारी से लड़ने के लिए पहल की। इसने आरोग्य सेतु नामक ऐप के माध्यम से भारत के नागरिकों में COVID_19 के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन लॉन्च किया। आरोग्य सेतु मोबाइल ऐप को राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) द्वारा विकसित किया गया है जो इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत आता है। विस्तृत जानकारी के लिए, ऊपर दिए गए आरोग्य सेतु के लिंक पर जाएँ।
  • आयुष्मान भारत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2018 में शुरू की गई आयुष्मान भारत एक स्वास्थ्य योजना है। यह 50 करोड़ से अधिक लाभार्थियों के साथ दुनिया में सरकार द्वारा वित्त पोषित सबसे बड़ा स्वास्थ्य कार्यक्रम है। आयुष्मान भारत कार्यक्रम के दो उप-मिशन पीएम-जेएवाई और एचडब्ल्यूसी हैं।
    • प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जेएवाई), जिसे पहले राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना (एनएचपीएस) के रूप में जाना जाता था, माध्यमिक और तृतीयक स्तरों पर स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाने के लिए वित्तीय सुरक्षा को कवर करेगी।
    • स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (एचडब्ल्यूसी) का उद्देश्य प्राथमिक स्तर पर सस्ती और गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में सुधार करना है। ऊपर दिए गए लिंक में आयुष्मान भारत के बारे में विस्तार से पढ़ें।
  • UMANG – यूनिफ़ाइड मोबाइल एप्लिकेशन फॉर न्यू-एज गवर्नेंस, एक मंच पर कई सरकारी सेवाओं तक नागरिकों को सुरक्षित पहुँच प्रदान करने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किया गया एक मोबाइल एप्लीकेशन है। UMANG सरकार के डिजिटल इंडिया पहल का एक प्रमुख घटक है जो सभी पारंपरिक ऑफ़लाइन सरकारी सेवाओं को एकल एकीकृत ऐप के माध्यम से 24 * 7 ऑनलाइन उपलब्ध कराने का इरादा रखता है।
  • PRASAD योजना – तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिकता संवर्धन ड्राइव। यह योजना वर्ष 2015 में पर्यटन मंत्रालय के तहत शुरू की गई है। PRASAD योजना का उद्देश्य पूर्ण धार्मिक पर्यटन अनुभव प्रदान करने के लिए प्राथमिकता, योजनाबद्ध और टिकाऊ तरीके से तीर्थ स्थलों का एकीकृत विकास है। तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिकता संवर्धन ड्राइव- PRASAD का ध्यान चिह्नित तीर्थ स्थलों के विकास और सौंदर्यीकरण पर है। PRASAD योजना पर आगे का विवरण लेख में ऊपर दिए गए संबंधित पृष्ठ लिंक में दिया गया है।
  • आत्मानिर्भर भारत अभियान – यह योजना (मतलब आत्मनिर्भर भारत योजना) एक नाम है जिसे केंद्र सरकार द्वारा घोषित पूर्ण आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज के लिए दिया गया है। यह लोगों को आत्म-निर्भर बनाने और कोरोनावायरस महामारी के कारण होने वाली कठिनाइयों को दूर करने के उद्देश्य से शुरू किया गया है।
  • राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन – 15 अगस्त, 2020 को लॉन्च किया गया, इस मिशन का उद्देश्य एक एकीकृत स्वास्थ्य सेवा प्रणाली बनाना है जो रोगियों को डिजिटल रूप से वास्तविक समय के स्वास्थ्य रिकॉर्ड तक पहुंच प्रदान करके डिजिटल रूप से जोड़ने का काम करती है।
  • PM Atmanirbhar Swasth Bharat Bharat योजना – यह योजना प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों की क्षमताओं को विकसित करने, मौजूदा राष्ट्रीय संस्थानों को मजबूत करने और नए संस्थानों का निर्माण करने और नई और उभरती बीमारियों का पता लगाने के लिए शुरू की गई है।
  • राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन परियोजना – यह एक सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचा परियोजना है जिसे 2019 में सभी नागरिकों के जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार के लिए शुरू किया गया था। एनआईपी उन सभी महत्वपूर्ण कारकों को पूरा करेगा जो वित्त वर्ष 2025 तक भारत को $ 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनने में अपना लक्ष्य हासिल करने में मदद करेंगे।

    सरकार और बैंक परीक्षा में सफलता का मार्ग कठिनाइयों से भरा है, लेकिन इस पर चलना कोई असंभव रास्ता नहीं है। मॉक टेस्ट के साथ अभ्यास करना और अध्ययन सामग्री पर रोजाना ब्रश करने से सफलता मिलेगी।

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राष्ट्रीय फिल्म (सिनेमा) पुरस्कार विजेता की सूची

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राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2019 के विजेताओं की सूची | National Film Awards 2019

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2020: (List of National Film Awards 2020 Winners in Hindi)

22 मार्च 2021 को 67वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा हो गई है। इस साल राष्ट्रीय पुरस्कार की लिस्ट में कुल 461 फिल्मों का चयन किया गया है। नेशनल मीडिया सेंटर में होने वाली इन पुरस्कारों की घोषणा की जानकारी पीआईबी (PIB) ने अपने ऑफिशियल ट्विटर अकाउंट पर एक ट्वीट के जरिए दी है। आपको बता दें 2019 के पुरस्कारों की घोषणा इस बार 2021 में की जा रही है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा की। इनमें से कुछ नाम यहां सूचीबद्ध हैं।

सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री – कंगना रनौत
अभिनेत्री कंगना रनौत इस बार भी सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला है। उन्हें 25 जनवरी 2019 में रिलीज हुई  मणिकर्णिका और 24 जनवरी 2020 में आई पंगा के लिए 67वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री से सम्मानित किया गया है। इसके पहले उन्हें फैशन, क्वीन और तनु वेड्स मनु के लिए भी नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

सर्वश्रेष्ठ अभिनेता – मनोज वाजपेयी
मनोज वाजपेयी को उनकी फिल्म ‘भोंसले‘ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का अवॉर्ड दिया गया है। देवाशीष मखीजा द्वारा लिखित और निर्देशित ड्रामा फिल्म में मनोज वाजपेयी की भूमिका को लेकर उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया है। इससे पहले भी उन्हें दो बार नेशनल अवार्ड मिल चुका है।

सर्वश्रेष्ठ अभिनेता – धनुष
दक्षिण फिल्मों के सुपरस्टार कहे जाने वाले धनुष को उनकी फिल्म ‘असुरन‘ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया है। निर्देशक वेत्रिमारन द्वारा निर्देशित ये फिल्म 4 अक्टूबर 2019 में रिलीज हुई थी।

बेस्ट बॉयोग्राफिकल फिल्म – ‘एलिफेंट डू रिमेम्बर’
स्वाती पांडे द्वारा निर्देशित ‘एलिफेंट डू रिमेम्बर’ ने बेस्ट बॉयोग्राफिकल फिल्म के लिए पुरस्कार जीता है।

बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर – विजय सेतुपति
साउथ अभिनेता विजय सेतुपति को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के तौर पर राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया है। उन्हें तमिल फिल्म ‘सुपर डीलक्स’ के लिए सम्मानित किया गया, जो 29 मार्च 2019 में रिलीज हुई थी। त्यागराजन कुमार राजा ने फिल्म को निर्देशित किया था।

बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस- पल्लवी जोशी
द ताशकंद फाइल्स’ में प्रभावशाली किरदार निभाने के लिए दक्षिण अभिनेत्री पल्लवी जोशी को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा गया है। विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित यह फिल्म 12 अप्रैल 2019 में रिलीज हुई थी। 4 करोड़ के बजट वाली इस फिल्म ने 20 करोड़ से ज्यादा का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन किया था।

अन्य पुरस्कार की सूची इस प्रकार है-

  • सर्वश्रेष्ठ फिल्म फ्रेंडली स्टेट – सिक्किम
  • सिनेमा पर बेस्ट किताब – संजय सूरी द्वारा रचित ‘अ गांधियन अफेयर: इंडियाज क्यूरियस पोरट्रायल ऑफ लव इन सिनेमा’
  • सर्वश्रेष्ठ फिल्म समीक्षक – सोहिनी चट्टोपाध्याय
    फीचर फिल्म्स
  • स्पेशल मेंशन – बिरयानी (मलयालम), जोनाकी पोरुआ (असमिया), लता भगवान कारे (मराठी), पिकासो (मराठी)
  • बेस्ट तुलु फिल्म – पिंजारा
  • बेस्ट पनिया फिल्म – केंजीरा
  • बेस्ट मिशिंग फिल्म – अनु रुवाद
  • बेस्ट खासी फिल्म – लेवदह
  • बेस्ट हरियाणवी फिल्म – छोरियां छोरों से कम नहीं होती
  • बेस्ट छत्तीसगढ़ी फिल्म – भुलान थे माजे
  • बेस्ट तेलुगु फिल्म – जर्सी
  • बेस्ट तमिल फिल्म – असुरन
  • बेस्ट हिंदी फिल्म – छिछोरे
  • बेस्ट मराठी फिल्म – बार्दो
  • बेस्ट बंगाली फिल्म – गुमनामी

नॉन फीचर फिल्म केटेगरी

  • बेस्ट नरेशन – वाइल्ड कर्नाटक, सर डेविड अटेन्बर्ग
  • बेस्ट एडिटिंग – शट अप सोना, अर्जुन गौरीसराई
  • बेस्ट ऑटोबायोग्राफी – राधा, ऑल्विन रेगो और संजय मौर्या
  • बेस्ट ऑन-लोकेशन साउंड रिकॉर्डिस्ट – रहस, सप्तर्षि सरकार
  • बेस्ट सिनेमेटोग्राफी – सोनसी, सविता सिंह
  • बेस्ट डायरेक्शन – नॉक नॉक नॉक, सुधांशु सरिया
  • फैमिली वैल्यूज – ओरू पाथिरा स्वपनम पोले (मलयालम)
  • वबेस्ट शार्ट फिक्शन फिल्म – कस्टडी
  • स्पेशल जूरी अवॉर्ड – स्मॉल स्केल सोसायटीज
  • बेस्ट एनीमेशन फिल्म – राधा
  • बेस्ट इनवेस्टिगेटिव फिल्म – जक्कल
  • बेस्ट एक्सप्लोरेशन फिल्म – वाइल्ड कर्णाटक
  • बेस्ट एजुकेशन फिल्म – एपल्स एंड ओरांजेस
  • बेस्ट फिल्म ऑन सकल इश्यूज – होली राइट्स, लाडली

    बेस्ट एक्शन डायरेक्शन अवॉर्ड
  • स्टंट – अवाने श्रीमन्नारायण (कन्नड़)
  • बेस्ट कोरियोग्राफी – महर्षि (तेलुगू)
  • बेस्ट स्पेशल इफेक्ट्स – मरक्कर
  • स्पेशल जूरी अवॉर्ड – ओत्था सेरुप्पू साइज- 7 (तमिल)
  • बेस्ट लिरिक्स – कोलम्बी (मलयालम)

    बेस्ट स्क्रीनप्ले
  • ओरिजिनल स्क्रीनप्ले – ज्येष्ठोपुत्री
  • एडाप्टेड स्क्रीनप्ले – गुमनामी
  • डायलॉग राइटर – द ताशकंत फाइल्स
  • बेस्ट सिनेमेटोग्राफी – जल्लीकट्टू
  • बेस्ट फीमेल प्लेबैक सिंगर – बार्दो
  • बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर – बी प्राक, केसरी, तेरी मिट्टी
  • बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस – पल्लवी जोशी,  द ताशकंत फाइल्स
  • बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर – विजय सेतुपति, सुपर डीलक्स
  • बेस्ट एक्ट्रेस – कंगना रनौत
  • बेस्ट एक्टर – मनोज बाजपेयी (धनुष)
  • बेस्ट डायरेक्शन – बहत्तर हूरें
  • बेस्ट चिल्ड्रन फिल्म – कस्तूरी

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2019: (List of National Film Awards 2019 Winners in Hindi)

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ एक्ट्रेस का पुरस्कार कीर्ति सुरेश को मिला है यह एक तमिल फिल्म की एक्ट्रेस हैं। हिन्दी सिनेमा जगत के मशहूर अभिनेता विनोद खन्ना को वर्ष 2017 के ‘दादा साहेब फाल्के पुरस्कार‘ के लिए चुना गया था। विनोद खन्ना को फिल्म जगत में उत्कृष्ट योगदान के लिए मरणोपरांत दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया था। आयुष्मान खुराना की फ‍िल्‍म अंधाधुन को सर्वश्रेष्ठ ह‍िंदी फ‍िल्‍म का अवॉर्ड द‍िया गया है, वहीं इस फ‍िल्‍म में उत्‍कृष्‍ट अभ‍िनय के ल‍िए मराठी फिल्म- मोरक्या, उड़िया फिल्म- हलो आर्सी और मलयालम फिल्म- टेक ऑफ को स्‍पेशल मेंशन अवार्ड से नवाजा गया। वहीं दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह की फिल्म पद्मावत ने भी अपने नाम तीन अवॉर्ड किए हैं।

66वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2019 के विजेताओं की सूची:-
  • सर्वश्रेष्ठ एक्टर: आयुष्मान खुराना (अंधाधुन) और विक्की कौशल (उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक)
  • सर्वश्रेष्ठ एक्ट्रेस: कीर्ति सुरेश (तेलुगु)
  • सर्वश्रेष्ठ मेल प्लेबैक सिंगर: अरिजीत सिंह (पद्मावत)
  • सर्वश्रेष्ठ पॉपुलर फिल्म: ‘बधाई हो’
  • सामाजिक मुद्दे पर बेस्ट फिल्म: पैडमैन
  • सर्वश्रेष्ठ सपोर्टिंग एक्टर: शिवानंद किरकिरे (चुंबक)
  • सर्वश्रेष्ठ साउंड डिजाइन: बिश्वदीप दीपक (उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक)
  • सर्वश्रेष्ठ सपोर्टिंग एक्ट्रेस: सुरेखा सीकरी (बधाई हो)
  • सर्वश्रेष्ठ म्यूजिक डायरेक्टर: संजय लीला भंसाली (पद्मावत)
  • सर्वश्रेष्ठ स्पेशल इफेक्ट्स: (KGF’ और Awe)
  • सर्वश्रेष्ठ कोरियोग्राफर: क्रूति महेश मिद्या ‘पद्मावत’ (घूमर गाना)
  • मोस्ट फिल्म फ्रेंडली स्टेट: उत्तराखंड
  • सर्वश्रेष्ठ फिल्म क्रिटिक: ब्ले जानी और अनंत विजय
  • सर्वश्रेष्ठ फीमेल प्लेबैक सिंगर: बिंदू मालिनी
  • सर्वश्रेष्ठ कन्नड़ फिल्म: नितिचारमी (Nithicharami)
  • स्पेशल मेंशन अवॉर्ड: महान हुतात्मा- सागर पुराणिक
  • ग्लो वॉर्म इन ए जंगल: रमण दुंपाल, लड्डू- समीर साधवानी और किशोर साधवानी
  • सर्वश्रेष्ठ नरेशनमधुबनी: द स्टेशन ऑफ कलर
  • सर्वश्रेष्ठ म्यूजिकफिल्म: ज्योति- डायरेक्टर केदार दिवेकर
  • सर्वश्रेष्ठ ऑडियोग्रफीचिल्ड्रेन ऑफ द सॉइल: बिश्वदीप चटर्जी
  • सर्वश्रेष्ठ लोकेशन साउंडद सिक्रेट लाइफ ऑफ फ्रॉग्स: अजय बेदी
  • सर्वश्रेष्ठ सिनमैटॉग्रफी: द सिक्रेट लाइफ ऑफ फ्रॉग्स- अजय बेदी और विजय बेदी
  • सर्वश्रेष्ठ बीट डायरेक्शन: अई शपथ- गौतम वजे
  • सर्वश्रेष्ठ फिल्म ऑन फैमिली वैल्यु: चलो जीते हैं- मंगेश हडावले
  • सर्वश्रेष्ठ शॉट फिक्शन फिल्म: कासव- आदित्य सुभाष जंभाले
  • सोशल जस्टिस फिल्म: व्हाइ मी- हरीश शाह
  • सोशल जस्टिस फिल्म: एकांत- नीरज सिंह
  • सर्वश्रेष्ठ इन्वेस्टिगेटिव फिल्म: अमोली- जैसमिन कौर और अविनाश रॉय
  • सर्वश्रेष्ठ स्पोर्ट्स फिल्म: स्विमिंग थ्रू द डार्कनेस- सुप्रियो सेन
  • सर्वश्रेष्ठ एजुकेशनल फिल्म: सरला विरला- एरेगोड़ा
  • सर्वश्रेष्ठ फिल्म ऑन सोशल इशू: ताला ते कूंजी- शिल्पी गुलाटी
  • सर्वश्रेष्ठ एनवायरन्मेंटल फिल्म: द वर्ल्ड्स मोस्ट फेमस टाइगर- सुबिया नालामुथु
  • सर्वश्रेष्ठ प्रमोशनल फिल्म: रीडिस्कवरिंग जाजम- अविशान मौर्य और कृति गुप्ता
  • सर्वश्रेष्ठ प्रमोशनल फिल्म: रीडिस्कवरिंग जाजम: अविशान मौर्य और कृति गुप्ता
  • सर्वश्रेष्ठ आर्ट्स ऐंड कल्चरल फिल्म: बुनकर- द लास्ट ऑफ द वाराणसी वीवर्स: सत्यप्रकाश उपाध्याय
  • सर्वश्रेष्ठ डेब्यू नॉन:फीचर फिल्म ऑफ ए डायरेक्टर: फलूदा: साग्निक चटर्जी
  • सर्वश्रेष्ठ नॉन फीचर फिल्म (शेयर्ड): सन राइज- विभा बख्शी
  • बेस्ट मेकअप: रंजीत

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2018: (List of National Film Awards 2018 Winners in Hindi)

नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा 13 अप्रैल 2018 को नई दिल्ली के शास्त्री भवन में 65वें राष्ट्रीय पुरस्कार विजेताओं की घोषणा की गई। 65वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में बंगाली अभिनेता रिद्धि सेन को फिल्म ‘नगरकीर्तन’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला है। द‍िवगंत अभिनेत्री श्रीदेवी को फिल्म मॉम के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार के लिए चुना गया है। श्रीदेवी का इस साल फरवरी में दुबई के एक होटल में निधन हो गया था।

हिन्दी सिनेमा जगत के मशहूर अभिनेता विनोद खन्ना को वर्ष 2017 के ‘दादा साहेब फाल्के पुरस्कार‘ के लिए चुना गया है। विनोद खन्ना को फिल्म जगत में उत्कृष्ट योगदान के लिए मरणोपरांत दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। राजकुमार राव की फ‍िल्‍म न्‍यूटन को सर्वश्रेष्ठ ह‍िंदी फ‍िल्‍म का अवॉर्ड द‍िया गया है, वहीं इस फ‍िल्‍म में उत्‍कृष्‍ट अभ‍िनय के ल‍िए अभ‍िनेता पंकज त्र‍िपाठी को स्‍पेशल मेंशन अवार्ड से नवाजा जाएगा। 65वें नेशनल फिल्म अवॉर्ड में ज्यूरी की अध्यक्षता जाने-माने फिल्म निर्माता शेखर कपूर ने की। भारतीय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा सभी विजेताओं को 03 मई को 65वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों से सम्मानित किया जाएगा।

65वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2018 के विजेताओं की सूची:-
  • सर्वश्रेष्ठ फिल्म: विलेज रॉकस्टार्स (असमिया फिल्‍म)
  • सर्वश्रेष्ठ पॉपुलर फिल्म: बाहुबली 2
  • सर्वश्रेष्ठ एक्ट्रेस: श्रीदेवी (मॉम)
  • सर्वश्रेष्ठ अभिनेता: रिद्धि सेन (नगरकीर्तन)
  • सर्वश्रेष्ठ निर्देशक: जयराज (भयानकम)
  • स्पेशल मेंशन अवार्ड: पंकज त्रिपाठी (न्यूटन), पार्वती (टेक ऑफ)
  • सर्वश्रेष्ठ क्षेत्रीय फिल्म (हिंदी): न्यूटन
  • सर्वश्रेष्ठ सर्पोटिंग अभिनेत्री: दिव्या दत्ता (इरादा)
  • सर्वश्रेष्ठ म्यूजिक डाइरेक्टर: ए आर रहमान
  • सर्वश्रेष्ठ एक्शन, स्पेशल इफैक्ट्स: बाहुबली 2
  • सर्वश्रेष्ठ बैकग्राउंड स्कोर: ए आर रहमान, मॉम
  • सर्वश्रेष्ठ कोरियोग्राफी: गणेश आचर्या (टॉयलेट एक प्रेम कथा: गोरी तू लठ्ठ मार)
  • सर्वश्रेष्ठ गायक (पुरुष): येसुदास
  • सर्वश्रेष्ठ गायक (महिला): तिरूपति
  • दादासाहेब फाल्के अवार्ड: विनोद खन्ना (मरणोपरांत)
  • नर्गिस दत्त अवॉर्ड: राष्टीय मुद्दों के लिए सर्वश्रेष्ठ फिल्म मराठी भाषा की ‘धाप्पा’
  • सर्वश्रेष्ठ आसामी फिल्म: ईशु
  • सर्वश्रेष्ठ तेलगू फिल्म: द गाजी अटैक
  • सर्वश्रेष्ठ मराठी फिल्म: कच्चा लिंबु
  • सर्वश्रेष्ठ शॉर्ट फिल्म: मराठी फिल्म मय्यत
  • स्‍पेशल जूरी अवॉर्ड: नगर कीर्तन (बंगाली फिल्‍म)
  • सर्वश्रेष्ठ संवाद: सम्बिट मोहंती (हैलो अर्सी)
  • सर्वश्रेष्ठ सिनेकला: भयानकम
  • सर्वश्रेष्ठ कैमरामैन: निखिल एस प्रवीण
  • सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक: कातारु वेलिइदई के लिए शाषा तिरुपति

64वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2017 के विजेताओं की सूची (List of 64th National Film Awards Winners in Hindi)

नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा 07 अप्रैल 2017 को नई दिल्ली में 64वें राष्ट्रीय पुरस्कार विजेताओं की घोषणा की गई। 64वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में अभिनेता अक्षय कुमार को फिल्‍म ‘रुस्‍तम’ के लिए सर्वश्रेष्‍ठ अभिनेता का अवार्ड मिला है। वहीं सोनम कपूर अभिनीत फिल्‍म ‘नीरजा’ को सर्वश्रेष्‍ठ हिंदी फीचर फिल्‍म का अवार्ड दिया गया है। अक्षय कुनार का ये पहला राष्ट्रीय पुरस्कार है।

इसके अलावा अजय देवगन की फिल्‍म ‘शिवाय’ को बेस्‍ट स्‍पेशल इफेक्‍ट का अवार्ड मिला है। सामाजिक मुद्दों पर बनी फिल्म पिंक को सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए चुना गया। सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार सुरभि को मीनामिनुंगु के लिए मिला। साल 2017 में रिलीज हुई फिल्‍म ‘दंगल’ के लिए अभिनेत्री जायरा वसीम को बेस्ट सपोर्टिंग फीमेल एक्ट्रेस का अवॉर्ड दिया गया है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश राज्य को फिल्म फ्रेंडली स्टेट का अवॉर्ड दिया गया। झारखंड राज्‍य को स्पेशल मेंशन अवार्ड दिया गया है। 64वें नेशनल फिल्म अवॉर्ड में ज्यूरी की अध्यक्षता प्रियदर्शन ने की। प्रियदर्शन के लिए यह पहला मौका था जब वह ज्यूरी मेंबर में शामिल हुए।

64वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2017 के विजेताओं की पूरी सूची इस प्रकार है:-

स्‍वर्णकमल:

  • सर्वश्रेष्‍ठ फीचर फिल्‍म: कासव (मराठी)
  • निर्देशक के रूप में सर्वश्रेष्‍ठ पहली फिल्‍म: खलीफा (बंगाली)
  • सर्वाधिक लोकप्रिय फिल्‍म: साथमनम भवति ( तेलगु)
  • सर्वश्रेष्‍ठ बाल फिल्‍म: धनक (हिंदी)
  • सर्वश्रेष्ठ निर्देशक: राजेश मापुसकर (मराठी फिल्म ‘वेंटीलेटर’ के लिए)

रजत कमल:

  • सर्वश्रेष्ठ अभिनेता: अक्षय कुमार (फिल्म ‘रुस्तम’ के लिए)
  • सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री: सुरभि लक्ष्मी (मलयालम फिल्म ‘मिन्नामिनुंगे’ के लिए)
  • सर्वश्रेष्‍ठ सह अभिनेता: मनोज जोशी
  • सर्वश्रेष्‍ठ सह अभिनेत्री: जायरा वसीम
  • सर्वश्रेष्‍ठ बाल कलाकार: मनोहारा
  • बेस्‍ट प्‍लेबैक सिंगर (मेल): सुंदर अय्यैर
  • बेस्‍ट प्‍लेबैक सिंगर (फीमेल): ईमान चक्रवर्ती
  • सर्वश्रेष्‍ठ सिनेमेटोग्राफी: तिरु
  • सर्वश्रेष्‍ठ पटकथा (मूल): श्‍याम पुष्‍पकरन
  • सर्वश्रेष्‍ठ पटकथा (प्रेरित): संजय कृष्‍णा जी पटेल
  • सामाजिक विषय पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्म: ‘पिंक’
  • बेस्‍ट फिल्‍म ऑन एनवायरन्‍मेंट: द टाइगर हू क्रॉस्‍ड द लाइन
  • सर्वश्रेष्‍ठ संपादन: रामेश्‍वर एस भगत
  • सर्वश्रेष्ठ कला निर्देशन: 24
  • बेस्‍ट कॉस्‍ट्यूम डिजाइन: सचिन
  • सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन: बापू पद्मनाभ
  • सर्वश्रेष्ठ गीतकार: वैरामुथु
  • सर्वश्रेष्ठ स्पेशल इफेक्ट: निर्माता-निर्देशक तथा अभिनेता अजय देवगन की फिल्म ‘शिवाय’

क्षेत्रीय पुरस्‍कार:

  • सर्वश्रेष्ठ बंगाली फिल्‍म: बिसर्जन
  • सर्वश्रेष्ठ गुजराती फिल्‍म: रॉंग साइड राजू
  • सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फीचर फिल्म: ‘नीरजा’
  • सर्वश्रेष्ठ कन्‍नड़ फिल्‍म: रिजर्वेशन
  • सर्वश्रेष्ठ मलयालम फिल्‍म: महेशिंते पराथिकारम
  • सर्वश्रेष्ठ तमिल फिल्‍म: जोकर
  • सर्वश्रेष्ठ मराठी फिल्‍म: दशक्रिया
  • सर्वश्रेष्ठ तेलगु फिल्‍म: पेल्‍ली चोपुलु

63वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2016 के विजेताओं की सूची (2016 National Film Awards Winners List in Hindi)

28 मार्च 2016 को 63वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार की घोषणा की गई। फिल्मकार रमेश सिप्पी की अध्यक्षता वाली 11 सदस्यीय ज्यूरी ने एसएस राजामौली की। यह घोषणा तीनों ज्‍यूरी- फीचर फिल्‍मों, गैर फीचर फिल्‍में और सिनेमा पर सर्वश्रेष्‍ठ लेखन वाली ज्‍यूरी  के अध्‍यक्षों द्वारा की गयी।  फीचर फिल्‍म के केंद्रीय पैनल की अध्‍यक्षता हिंदी सिन जगत के लोकप्रिय निर्देशक एवं निर्माता श्री रमेश सिप्‍पी ने की। केंद्रीय पैनल में अध्‍यक्ष सहित 11 सदस्‍य शामिल थे। गैर फीचर ज्‍यूरी की अध्‍यक्षत श्री विनोद गनात्रा ने की और इसमें अध्‍यक्ष सहित 7 सदस्‍य शामिल थे। सिनेमा पर सर्वश्रेष्‍ठ लेखन से संबंधित ज्‍यूरी की अध्‍यक्षता सुश्री अद्वेता काला ने की और इसमें अध्‍यक्ष सहित 3 सदस्‍य शामिल थे।

ब्लॉकबस्टर ‘बाहुबली’ को सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म घोषित किया। बजरंगी भाईजान सर्वश्रेष्‍ठ लोकप्रिय फिल्‍म घोषित किया। अमिताभ बच्चन को फिल्म ‘पीकू’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और कंगना रनौत को ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया जाएगा। संजय लीला भंसाली को फिल्‍म बाजीराव मस्‍तानी के लिए सर्वश्रेष्‍ठ निर्देशन का पुरस्‍कार दिया जाएगा।

63वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के विजेताओं की सूची इस प्रकार है:-
  • सर्वश्रेष्ठ अभिनेता : अमिताभ बच्चन (पीकू)
  • सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री : कंगना (तनु वेड्स मनु रिटर्न्स)
  • सर्वश्रेष्ठ फिल्म : बाहुबली द बिगि‍निंग
  • सर्वश्रेष्ठ निर्देशक : संजय लीला भंसाली (बाजीराव मस्तानी)
  • सर्वश्रेष्ठ पटकथा व संवाद : जूही चतुर्वेदी (पीकू), हिमांशु शर्मा (तनु वेड्स मनु रिटर्न्स)
  • सर्वश्रेष्ठ कोरियोग्राफर : रेमो डिसूजा (बाजीराव मस्तानी)
  • सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्म : दम लगा के हइशा
  • सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री : तनवी आजमी (बाजीराव मस्तानी)
  • सर्वश्रेष्ठ नवोदित निर्देशक : नीरज घायवन
  • राष्ट्रीय एकता का संदेश देने वाली सर्वश्रेष्ठ फिल्म : नानक शाह फकीर
  • सामाजिक मुद्दों पर सर्वश्रेष्ठ  फिल्म : निर्णायकम
  • सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता : समुर्थिकणी (विसारणी)
  • सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार : गौरव मेनन (बेन)
  • सर्वश्रेष्ठ गायिका (महिला) : मोनाली ठाकुर (दम लगा के हइशा)
  • सर्वश्रेष्ठ गीतकार : वरुण ग्रोवर (मोह मोह के धागे..)
  • सर्वश्रेष्ठ मनोरंजक फिल्म : बजरंगी भाईजान
  • स्पेशल जूरी अवॉर्ड : कल्कि कोचलीन (मार्गेरीटा विद अ स्ट्रॉ)
  • सर्वश्रेष्ठ कॉस्ट्यूम डिजाइन : पायल सलूजा (नानक शाह फकीर)
  • सर्वश्रेष्ठ प्रोडक्शन डिजाइन : बाजीराव मस्तानी
  • सर्वश्रेष्ठ स्क्रीनप्ले (एडैप्टेड) : विशाल भारद्वाज (तलवार)
  • सर्वश्रेष्ठ म्यूजिक डायरेक्शन (बैकग्राउंड स्कोर) : इलैयाराजा
  • सर्वश्रेष्ठ बांग्ला फिल्म: शंकचिल
  • सर्वश्रेष्ठ मराठी फिल्म : रिंगन
  • सर्वश्रेष्ठ मलयालम फिल्म : पाथेमरी
  • सर्वश्रेष्ठ तमिल फिल्म : विसारनई
  • सर्वश्रेष्ठ तेलुगु फिल्म : कंचे
  • सर्वश्रेष्ठ संस्कृत फिल्म : प्रियमनसम
  • सर्वश्रेष्ठ कन्नड़ फिल्म : तिथि
  • सर्वश्रेष्ठ पंजाबी फिल्म : चौथी कूट
  • सर्वश्रेष्ठ कोंकणी फिल्म : एनिमी
  • सर्वश्रेष्ठ असमिया फिल्म : कोठनोडी
  • सर्वश्रेष्ठ हरियाणवी फिल्म : सतरंगी
  • सर्वश्रेष्ठ मणिपुरी फिल्म : इबुसु याओहन्बिय
  • सर्वश्रेष्ठ मिजोरमी फिल्म : लोड बियॉन्ड द क्लास
  • सर्वश्रेष्ठ उड़िया फिल्म : पहाड़ रा लुहा
  • सर्वश्रेष्ठ वांचो फिल्म : द हेड हंटर
  • सर्वश्रेष्ठ खासी फिल्म : उनाता

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व्यास सम्मान से सम्मानित व्यक्ति की सूची (वर्ष 1991 से अब तक)

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व्यास सम्मान किसे कहते है?

व्यास सम्मान भारतीय साहित्य में किये गये योगदान के लिए दिया जाने वाला ज्ञानपीठ पुरस्कार के बाद दूसरा सबसे बड़ा साहित्य सम्मान है। इस पुरस्कार को 1991 में के. के. बिड़ला फाउंडेशन ने प्रारंभ किया था। पहला व्यास सम्मान वर्ष 1991 में रामविलास शर्मा की कृति ‘भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी’ के लिए दिया गया था।

व्यास सम्मान का संक्षिप्त विवरण

पुरस्कार का वर्ग साहित्य
स्थापना वर्ष 1991
पुरस्कार राशि 3.50 लाख रुपये नकद, एक प्रशस्ति पत्र और स्मृति चिन्ह
प्रथम विजेता रामविलास शर्मा (1991)
आखिरी विजेता प्रो. शरद पगारे (2020)
विवरण ज्ञानपीठ पुरस्कार के बाद भारत में दिया जाने वाला दूसरा सबसे बड़ा साहित्य सम्मान

व्यास सम्मान 2021

जाने-माने हिंदी लेखक, प्रो. शरद पगारे (Prof. Sharad Pagare) को प्रतिष्ठित व्यास सम्मान (Vyas Samman) – 2020 से सम्मानित किया जाएगा। ​उन्हें उनके उपन्यास “पाटलिपुत्र की सम्राज्ञी (Patliputra Ki Samragi)” के लिए 31 वें व्यास सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। 1991 में शुरू किया गया व्यास सम्मान, केके बिड़ला फाउंडेशन द्वारा पिछले 10 वर्षों के दौरान प्रकाशित किसी भारतीय नागरिक द्वारा लिखित हिंदी में उत्कृष्ट साहित्यिक कार्य के लिए दिया जाता है। इसमें एक प्रशस्ति पत्र और पट्टिका के साथ चार लाख रुपये का पुरस्कार प्रदान किया जाता है।

व्यास सम्मान की विशेषताएं और महत्वपूर्ण तथ्य:

  • यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष पिछले 10 वर्षों के भीतर प्रकाशित हिन्दी की कोई भी साहित्यिक कृति को दिया जाता है।
  • समिति की राय में यदि किसी वर्ष कोई भी कृति व्यास सम्मान के लिए अपेक्षित स्तर की न हो तो उस वर्ष पुरस्कार न देने का भी प्रावधान है।
  • व्यास सम्मान के नियमों के अनुसार कृति साहित्य की किसी विधा में हो सकती है। सृजनात्मक साहित्य के अतिरिक्त अन्य विधाओं जैसे- आत्मकथा, ललित निबंध, समीक्षा व आलोचना, साहित्य और भाषा का इतिहास आदि पुस्तकों पर भी विचार किया जाता है।
  • व्यास सम्मान की विशिष्टता यह है कि इसे साहित्यकार को केंद्र में न रखकर साहित्यिक कृति को दिया जाता है।
  • सम्मान मरणोपरांत नहीं दिया जाता, लेकिन चयन समिति में विचार-विमर्श आरम्भ हो जाने के बाद यदि प्रस्तावित कृति के लेखक की मृत्यु होने पर कृति पर विचार किया जा सकता है।
  • भविष्य में सम्मानित लेखक की किसी अन्य कृति पर विचार नहीं किया जाता है।

वर्ष 1991 से अब तक व्यास सम्मान विजेताओं की सूची:

वर्ष साहित्यकार का नाम कृति/उपन्यास/काव्य
2020 प्रो. शरद पगारे उपन्यास “पाटलिपुत्र की सम्राज्ञी” के लिए
2019 नासिरा शर्मा उपन्यास कागज़ की नाव (पेपर बोट) के लिए
2018 लीलाधर जगूड़ी जितने लोग उतने प्रेम (काव्य संग्रह)
2017 ममता कालिया ‘दुक्खम – सुक्खम (उपन्यास)
2016 सुरेंद्र वर्मा काटना शमी का वृक्ष: पद्मपखुरी की धार से (उपन्यास)
2015 डॉ. सुनीता जैन क्षमा (काव्य संग्रह)
2014 कमल किशोर गोयनका प्रेमचंद की कहानियों का काल-क्रमानुसार अध्ययन
2013 विश्वनाथ त्रिपाठी व्योमकेश दरवेश (संस्मरण)
2012 नरेन्द्र कोहली न भूतो न भविष्यति (उपन्यास)
2011 रामदरश मिश्र आम के पत्ते (काव्य संग्रह)
2010 विश्वनाथ प्रसाद तिवारी फिर भी कुछ रह जायेंगे
2009 अमरकांत इन्हीं हथियारों से
2008 मन्नू भंडारी एक कहानी यह भी (आत्मकथा)
2007
2006 परमानंद श्रीवास्तव कविता का अर्थात
2005 चंद्रकांता कथा सतिसार (उपन्यास)
2004 मृदुला गर्ग कठगुलाब (उपन्यास)
2003 चित्रा मुद्गल आवां (उपन्यास)
2002 कैलाश वाजपेयी पृथ्वी का कृष्णपक्ष (प्रबंध काव्य)
2001 रमेश चंद्र शाह आलोचना का पक्ष
2000 गिरिराज किशोर पहला गिरमिटिया (उपन्यास)
1999 श्रीलाल शुक्ल बिसरामपुर का संत (उपन्यास)
1998 गोविन्द मिश्र पाँच आँगनों वाला घर (उपन्यास)
1997 केदारनाथ सिंह उत्तर कबीर तथा अन्य कविताएँ
1996 प्रो. राम स्वरूप चतुर्वेदी हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास
1995 कुँवर नारायण कोई दूसरा नहीं (काव्य संग्रह)
1994 धर्मवीर भारती सपना अभी भी (काव्य संग्रह)
1993 गिरिजाकुमार माथुर मैं वक़्त के हूँ सामने (काव्य संग्रह)
1992 डॉ. शिव प्रसाद सिंह नीला चाँद (उपन्यास)
1991 रामविलास शर्मा भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी

नोट: वर्ष 2007 में किसी कृति को व्यास सम्मान से सम्मानित नहीं किया गया।

इन्हें भी पढे: रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित भारतीय व्यक्तियों की सूची

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गांधी शांति पुरस्कार

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गांधी शांति पुरस्कार एक वार्षिक पुरस्कार है जो भारत सरकार व्यक्ति या एक संगठन / संस्था पर निर्भर करती है जो अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों का उपयोग करके सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन लाती है।
22 मार्च 2021 को, भारत सरकार ने घोषणा की कि इसे बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान (बांग्लादेश में राष्ट्रपिता।) पर वर्ष 2020 के लिए गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। वर्ष 2019 के लिए गांधी शांति पुरस्कार अल कायदा बिन सईद अल सईद को दिया गया था।

गांधी शांति पुरस्कार क्या है?

गांधी शांति पुरस्कार प्रतिवर्ष एक व्यक्ति / संगठन को प्रदान किया जाता है। एक ज्यूरी में भारत के प्रधान मंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा में सिंगल लार्जेस्ट विपक्षी दल के नेता और दो प्रतिष्ठित सदस्य अवार्ड का फैसला करते हैं।

  • गांधी शांति पुरस्कार प्रतिवर्ष एक व्यक्ति / संगठन को प्रदान किया जाता है। एक ज्यूरी में भारत के प्रधान मंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा में सिंगल लार्जेस्ट विपक्षी दल के नेता और दो प्रतिष्ठित सदस्य अवार्ड का फैसला करते हैं।
  • जूरी का कार्यकाल तीन साल है।
  • प्रधानमंत्री जूरी (jury) के प्रमुख हैं। उनकी अनुपस्थिति में, जूरी के शेष सदस्य पीठासीन अधिकारी का फैसला करते हैं।
  • निर्णय लेने के लिए अधिकांश जूरी की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, जूरी के निर्णयों के खिलाफ कोई विरोध नहीं किया जा सकता है।

गांधी शांति पुरस्कार के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य

  • यह पुरस्कार सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन लाने के लिए अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांत को दर्शाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 1995 में हुई थी जिसमें महात्मा गांधीजी की 125 वीं जयंती थी।

गांधी शांति पुरस्कार के निम्नलिखित घटक हैं:

  1. 1 करोड़ रुपये
  2. एक प्रशस्ति पत्र
  3. एक पट्टिका
  4. एक उत्कृष्ट पारंपरिक हस्तकला / हथकरघा वस्तु
  • पुरस्कार को ‘संयुक्त पुरस्कार’ के रूप में भी दिया जा सकता है, जैसा कि जूरी द्वारा तय किया जा सकता है। 2 व्यक्ति और या समान रूप से इस पुरस्कार के हकदार संगठन को गांधी शांति संयुक्त पुरस्कार से सम्मानित किया जा सकता है।
  • 2016 में, अक्षय पात्र फाउंडेशन और सुलभ इंटरनेशनल को संयुक्त रूप से गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • डॉ. नेल्सन मंडेला और बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक को 2000 में एक संयुक्त पुरस्कार दिया गया।

गांधी शांति पुरस्कार निम्नलिखित आधार पर किसी भी भेदभाव के बिना लागू होता है:

  1. रेस
  2. भाषा: हिन्दी
  3. जाति
  4. पंथ
  5. राष्ट्रीयता
  6. लिंग

पात्रता मानदंड को पूरा करने वाले किसी भी संगठन को गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जा सकता है।

  1. राम कृष्ण मिशन को 1998 में गांधी शांति पुरस्कार दिया गया था।
  2. भारतीय विद्या भवन को 2002 में गांधी शांति पुरस्कार दिया गया था।
  3. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन को 2014 में गांधी शांति पुरस्कार दिया गया था।
  4. विवेकानंद केंद्र को गांधी शांति पुरस्कार अवार्ड 2015 के रूप में घोषित किया गया था।
  5. एकलव्य ट्रस्ट को 2017 में गांधी शांति पुरस्कार के साथ प्रस्तुत किया गया था।
  • अवज्ञाकारी नामांकन के मामले में जूरी को वर्ष के लिए पुरस्कार को बनाए रखने का अधिकार है।
  • नामांकन वर्ष से पहले 10 वर्षों में उनके द्वारा किए गए कार्य को देखते हुए व्यक्ति / संगठन / संस्था या एसोसिएशन को यह पुरस्कार प्रदान किया जाता है। हालांकि, जूरी पुराने काम पर विचार करती है यदि इसका महत्व हाल तक तक स्पष्ट नहीं हुआ है।
  • केवल प्रकाशित कार्यों को गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जा सकता है।

गांधी शांति पुरस्कार का प्रस्ताव कौन कर सकता है?

गांधी शांति पुरस्कार के लिए किसी को आमंत्रित करने के लिए जूरी को अधिकार दिया जाता है क्योंकि वह फिट हो सकती है। इसके साथ ही, सदस्यों की निम्न सूची में गांधी शांति पुरस्कार का प्रस्ताव करने की क्षमता है:

  1. जूरी पूर्व सदस्य
  2. गांधी शांति पुरस्कार के पूर्व पुरस्कार विजेता
  3. भारतीय संसद के सदस्य
  4. पिछले पांच वर्षों के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता
  5. संयुक्त राष्ट्र (UN) के महासचिव के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के अन्य नेता। इस तरह के प्रस्तावों का
  6. उद्देश्य शांति, अहिंसा, समाज के कम-विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों की मुक्ति, सहिष्णुता, सामाजिक सद्भाव
  7. और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना है।
  8. विश्वविद्यालयों के कुलपति और कुलपति
  9. भारतीय मिशनों के प्रमुख विदेश
  10. संस्थानों के प्रमुख जो अहिंसा और गांधीवादी सिद्धांतों के अध्ययन और शोध में हैं।
  11. लोकसभा / विधान सभाएं और पीठासीन अधिकारी।
  12. प्रशासन और राज्यपालों के साथ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य मंत्री।
  13. राष्ट्रमंडल महासचिव
  14. राष्ट्रमंडल संसदीय संघ

प्रक्रिया के कोड में हाल के संशोधन के आधार पर, जिसके आधार पर पुरस्कार का निर्णय लिया जाता है, भारत सरकार ने जूरी को अधिकार दिया कि वह कोड के विपरीत कुछ भी करने के लिए सू-मोटू नामांकन को प्रभावी बनाए।

गांधी शांति पुरस्कार अवार्ड 2020

बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर रहमान गांधी शांति पुरस्कार विजेता 2020 हैं।

शेख मुजीबुर रहमान कौन है ?

  • वह बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति थे।
  • वह बांग्लादेश के दूसरे प्रधानमंत्री भी थे।
  • उन्हें बांग्लादेश की स्वतंत्रता का अग्रणी माना जाता है।
  • बांग्लादेश ने उन्हें बंगबंधु कहा।
  • वे 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के केंद्र व्यक्ति थे।
  • वह वर्तमान बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता हैं।
  • वह पाकिस्तान प्रांत के विघटन के पक्ष में अपने छह सूत्रीय आंदोलन के लिए प्रसिद्ध है। छह सूत्री योजना
  • का शीर्षक था Charter हमारे चार्टर ऑफ सर्वाइवल। ’
  • 2020-21 को शेख मुजीबिर की 100 वीं जयंती मनाने के लिए बांग्लादेश द्वारा मुजीब वर्ष के रूप में घोषित किया गया है।

भारत ने शेख मुजीबिर को उनके अपार और अद्वितीय योगदान के लिए पुरस्कार प्रदान किया:

  • बांग्लादेश की मुक्ति की प्रेरणा
  • संघर्ष से पैदा हुए राष्ट्र में स्थिरता लाना
  • भारत और बांग्लादेश के बीच घनिष्ठ और भ्रातृ संबंधों की नींव रखना और
  • भारतीय उपमहाद्वीप में शांति और अहिंसा को बढ़ावा देना

गांधी शांति पुरस्कार की सूची (1995-2020)

गांधी शांति पुरस्कार विजेताओं की सूची नीचे दी गई है:

वर्ष गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित देश
1995 जूलियस न्येरे तंजानिया
जूलियस कंबरेज न्येरे एक तंजानिया के राजनेता थे, जिन्होंने तंजानिया के नेता के रूप में सेवा की, और पहले तंजानिका, 1960 से 1985 तक अपनी सेवानिवृत्ति तक।
1996 ए. टी. एरियारत्ने श्री लंका
सर्वोदय श्रमदान आंदोलन के संस्थापक
1997 गेरहार्ड फिशर जर्मनी
जर्मन राजनयिक, कुष्ठ और पोलियो के खिलाफ अपने काम के लिए पहचाने गए
1998 रामकृष्ण मिशन भारत
स्वामी विवेकानंद द्वारा सामाजिक कल्याण, सहिष्णुता और वंचित समूहों के बीच अहिंसा को बढ़ावा देने के लिए स्थापित
1999 बाबा आमते भारत
सामाजिक कार्यकर्ता, विशेष रूप से कुष्ठ रोग से पीड़ित गरीब लोगों के पुनर्वास और सशक्तिकरण के लिए अपने काम के लिए जाने जाते हैं
2000 नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका
दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति
ग्रामीण बैंक बांग्लादेश
मुहम्मद यूनुस द्वारा स्थापित
2001 जॉन ह्यूम यूनाइटेड किंगडम
उत्तरी आयरलैंड की शांति प्रक्रिया में उत्तरी आयरिश राजनेता और प्रमुख व्यक्ति
2002 भारतीय विद्या भवन भारत
शैक्षिक विश्वास जो भारतीय संस्कृति पर जोर देता है
2003 वैक्लाव हैवेल चेक गणराज्य
चेकोस्लोवाकिया के अंतिम राष्ट्रपति और चेक गणराज्य के पहले राष्ट्रपति
2004 कोरेटा स्कॉट किंग यूनाइटेड किंगडम
कार्यकर्ता और नागरिक अधिकार नेता।
2005 डेसमंड टूटू दक्षिण अफ्रीका
दक्षिण अफ्रीकी धर्मगुरु और कार्यकर्ता। वह दक्षिण अफ्रीकी सामाजिक अधिकार कार्यकर्ता और सेवानिवृत्त एंग्लिकन बिशप थे, जो 1980 के दशक के दौरान रंगभेद के विरोधी के रूप में दुनिया भर में प्रसिद्ध हुए।
2013 चंडी प्रसाद भट्ट भारत
चिपको आंदोलन के पर्यावरणविद्, समाजसेवी और अग्रणी। घायल दशोली ग्राम स्वराज संघ (DGSS)
2014 इसरो (ISRO) भारत
भारतीय सरकार की अंतरिक्ष एजेंसी। उद्देश्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाना और इसके अनुप्रयोगों को वितरित करना है
2015 विवेकानंद केंद्र भारत
स्वामी विवेकानंद के सिद्धांतों पर आधारित एक हिंदू आध्यात्मिक संगठन
2016 अक्षय पात्र फाउंडेशन भारत
भारत में एक गैर-लाभकारी संगठन जो पूरे भारत में स्कूल दोपहर के भोजन का कार्यक्रम चलाता है
सुलभ इंटरनेशनल भारत
एक सामाजिक सेवा संगठन जो शिक्षा के माध्यम से मानव अधिकारों, पर्यावरण स्वच्छता, ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों, अपशिष्ट प्रबंधन और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देने के लिए काम करता है।
2017 एकल अभियान ट्रस्ट भारत
सुदूर क्षेत्रों में ग्रामीण और जनजातीय बच्चों के लिए शिक्षा प्रदान करने में योगदान भारत, ग्रामीण सशक्तिकरण, लिंग और सामाजिक समानता।
2018 याहि ससकावा जापान
भारत और दुनिया भर में कुष्ठ उन्मूलन में उनके योगदान के लिए।
2019 कबूस बिन सईद अल सैद ओमान
अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिए योगदान के लिए।
2020 शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश
अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिए उनके योगदान के लिए

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गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति (संशोधन) विधेयक, 2021

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राज्य सभा ने मार्च 2021 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (संशोधन) विधेयक, 2021 Medical Termination of Pregnancy (MTP)  पारित किया। यह विधेयक 2020 में निचले सदन द्वारा पारित किया गया था। यह एक महत्वपूर्ण विधेयक है जो भारत में महिलाओं के प्रजनन अधिकारों को बढ़ाने का प्रयास करता है। इस लेख में, आप यूपीएससी UPSC परीक्षा के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (संशोधन) विधेयक, 2021 और 1971 में लागू किए गए मूल अधिनियम के बारे में सब पढ़ सकते हैं।

गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति (संशोधन) विधेयक, 2021 प्रावधान – Medical Termination of Pregnancy (Amendment) Bill, 2021 Provisions

विधेयक मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) Medical Termination of Pregnancy (MTP) अधिनियम, 1971 में संशोधन करना चाहता है। यह अधिनियम भारत में गर्भपात को कवर करता है। इसे 1975 और 2002 में संशोधित किया गया था। इस कानून के लागू होने से पहले, भारतीय दंड संहिता की धारा 312 के तहत गर्भपात निषिद्ध था।
इस एमटीपी (MTP) अधिनियम, 1971 के अनुसार, एक पंजीकृत चिकित्सक द्वारा गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त किया जा सकता है:

  1. जहां गर्भावस्था की लंबाई बारह सप्ताह से अधिक नहीं होती है (इसके लिए, एक डॉक्टर की राय की आवश्यकता थी)।
  2. जहां गर्भावस्था की लंबाई बारह सप्ताह से अधिक हो गई है, लेकिन 20 सप्ताह से अधिक नहीं है। इस मामले में, गर्भपात होने के लिए, दो डॉक्टरों की राय होनी चाहिए कि गर्भावस्था की निरंतरता माँ के मानसिक और / या शारीरिक स्वास्थ्य को ख़राब कर देगी, और / या अगर बच्चा पैदा होना था, तो गंभीर शारीरिक या मानसिक असामान्यताओं से पीड़ित होगा, जिससे यह विकलांग हो जाएगा।
  3. कानून में नाबालिग गर्भवती महिलाओं को गर्भपात की अनुमति के लिए अभिभावक से लिखित सहमति लेने की भी आवश्यकता थी।

नए विधेयक की प्रस्तावित विशेषताएं:

  1. विशेष श्रेणी की महिलाओं, जिनके बारे में एमटीपी नियमों में किये जाने वाले संशोधनों में परिभाषित किया जाएगा, के लिए गर्भ काल की ऊपरी सीमा को 20 से बढ़ाकर 24 सप्ताह तक करना और इसके दायरे में बलात्कार से पीड़ित, अनाचार की शिकार और अन्य कमजोर महिलाओं (जैसे दिव्यांग महिलाओं, नाबालिग) आदि को शामिल किया जायेगा।
  2. गर्भधारण के 20 सप्ताह तक के गर्भ की समाप्ति के लिए एक प्रदाता (चिकित्सक) की राय और गर्भधारण के 20-24 सप्ताह तक के गर्भ की समाप्ति के लिए दो प्रदाताओं (चिकित्सकों) की राय की जरूरत होगी।
    मेडिकल बोर्ड द्वारा निदान के क्रम में बताए गए भ्रूण से संबंधित गंभीर असामान्यता के मामलों में गर्भ काल की ऊपरी सीमा लागू नहीं होगी। मेडिकल बोर्ड की संरचना, उसके कार्य और उससे संबंधित अन्य विवरणों का निर्धारण इस अधिनियम के तहत आने वाले नियमों में किया जायेगा।
  3. गर्भ समाप्त कराने वाली महिला का नाम और उससे जुड़े अन्य विवरणों का खुलासा किसी कानून में प्राधिकृत व्यक्ति को छोड़कर अन्य किसी व्यक्ति के समक्ष नहीं किया जाएगा।
  4. गर्भनिरोधक की विफलता के आधार को महिलाओं और उनके साथी के लिए बढ़ा दिया गया है।
  5. गर्भ का चिकित्‍सकीय समापन (संशोधन) विधेयक, 2021 का उद्देश्य चिकित्सीय, सुजनन, मानवीय या सामाजिक आधार पर गर्भपात की सुरक्षित और वैधानिकरूप से मान्य सेवाओं तक महिलाओं कीपहुंच का विस्तार करना है। कुछ खास परिस्थितियों में गर्भ की समाप्ति के लिए गर्भकाल की ऊपरी सीमा को बढ़ाने और सुरक्षित गर्भपात की सेवा और गुणवत्ता से समझौता किए बिना सख्त शर्तों के तहत गर्भपात के दौरान गहन देखभाल की सुविधाओं तक पहुंच को मजबूत करने के उद्देश्य से इन संशोधनों में कुछ खास उप-धाराओं को प्रतिस्थापित और मौजूदा गर्भ का चिकित्‍सकीय समापन अधिनियम, 1971 की कुछ धाराओं के तहत कुछ नई शर्तों को शामिल किया गया है।
  6. यह विधेयक महिलाओं की सुरक्षा एवं कल्याण की दिशा में एक कदम है और इससे कई महिलाएं लाभान्वित होंगी। हाल ही में विभिन्न महिलाओं की ओर से भ्रूण की असामान्यताओं या यौन हिंसा के कारण हुए गर्भधारण के तर्क के आधार पर गर्भ काल की वर्तमान मान्य सीमा से परे जाकर गर्भपात की अनुमति के लिए न्यायालयों में कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं। इन संशोधनों से सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक महिलाओं के दायरे एवं पहुंच में वृद्धि होगी और यह उन महिलाओं के लिए गरिमा, स्वायत्तता, गोपनीयता और न्याय सुनिश्चित करेगा, जिन्हें गर्भ को समाप्त करने की जरूरत है।

एमटीपी (MTP) संशोधन विधेयक की आवश्यकता – MTP Amendment Bill Need

संशोधन को संसद में पेश किया गया था क्योंकि पुराने अधिनियम में कुछ चिंताएं थीं, जिन्हें अब संबोधित किया गया है।

  1. एमटीपी (MTP) अधिनियम में संशोधनों की आवश्यकता थी क्योंकि यह कई पहलुओं में पुराना था और चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में नवीनतम घटनाओं का संज्ञान लेने में विफल रहा था। वर्तमान चिकित्सा तकनीक गर्भावस्था के उन्नत चरणों में गर्भपात की अनुमति देती है।
  2. इसके अलावा, गर्भपात की आवश्यकता वाले नाबालिगों को माता-पिता / अभिभावकों से लिखित सहमति प्राप्त करने का प्रावधान कुछ मामलों में प्रतिगामी था। नए बिल ने इस आवश्यकता को हटा दिया है।
  3. पुराने अधिनियमितियों में लखुअन के कारण कई गर्भपात हुए और अयोग्य लोग अवैध गर्भपात क्लीनिक चलाने लगे जिससे कई महिलाओं का जीवन खतरे में पड़ गया। यह उम्मीद की जाती है कि नए संशोधन इन मुद्दों से निपटने में मदद करेंगे और संगठित डोमेन में अधिक गर्भपात करेंगे, जिसमें योग्य चिकित्सा चिकित्सक निर्णय ले सकते हैं और सुरक्षित गर्भपात कर सकते हैं।

एमटीपी (MTP) अधिनियम, 1971 और एमटीपी (MTP) संशोधन विधेयक, 2021 को दर्शाने वाली तालिका – 

गर्भाधान के बाद से समय गर्भपात के लिए आवश्यकता
एमटीपी (MTP) अधिनियम, 1971 एमटीपी (MTP) (संशोधन) विधेयक, 2021
12 सप्ताह तक एक डॉक्टर की सलाह एक डॉक्टर की सलाह
12 – 20 सप्ताह दो डॉक्टरों की सलाह एक डॉक्टर की सलाह
20 – 24 सप्ताह अनुमति नहीं गर्भवती महिलाओं की कुछ श्रेणियों के लिए दो डॉक्टरों की सलाह
24 सप्ताह से अधिक अनुमति नहीं भ्रूण की असामान्यता के मामले में मेडिकल बोर्ड
गर्भावस्था के दौरान किसी भी समय एक डॉक्टर अगर गर्भवती महिला के जीवन को बचाने के लिए गर्भपात तुरंत आवश्यक है

गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति (संशोधन) विधेयक, 2021 लाभ – Medical Termination of Pregnancy (Amendment) Bill, 2021 Benefits

संशोधनों को पारित करने के इच्छित लाभों पर नीचे चर्चा की गई है।

  • कई भ्रूण की असामान्यताएं गर्भावस्था के बीसवें सप्ताह के बाद ही पता चलती हैं। नए प्रावधान ऐसे मामलों को पूरा करेंगे।
  • संशोधित कानून बलात्कार पीड़ितों, विकलांगों और नाबालिग महिलाओं को अवांछित गर्भधारण को सुरक्षित और कानूनी रूप से गर्भपात करने की अनुमति देगा।
  • यह विधेयक अविवाहित महिलाओं पर भी लागू होता है, इस प्रकार 1971 अधिनियम के एक प्रतिगामी खंड को हटा दिया गया जिसमें कहा गया कि अविवाहित महिलाएं गर्भनिरोधक विफलता का कारण बताते हुए गर्भपात नहीं कर सकती हैं।
  • अविवाहित महिलाओं को कानूनी रूप से अपनी पहचान की रक्षा के लिए एक अवांछित गर्भावस्था को समाप्त करने का अधिकार महिलाओं को प्रजनन अधिकारों को प्रदान करेगा।

एमटीपी (MTP) संशोधन विधेयक चिंताएं – MTP Amendment Bill Concerns

नए संशोधनों के संबंध में कुछ चिंताओं को भी उठाया गया है। उनमें से कुछ हैं:

  1. सामान्य रूप से समाज अभी भी पुरुष बच्चे को पसंद करता है और कई अवैध क्लीनिक हैं जो लिंग निर्धारण की सुविधा प्रदान करते हैं जो प्रतिबंधित है। एक चिंता है कि गर्भपात के लिए एक अधिक उदार कानून कन्या भ्रूण हत्या की समस्या को बढ़ा सकता है।
  2. गर्भावस्था की देर से समाप्ति भ्रूण की व्यवहार्यता के साथ संघर्ष में हो सकती है। व्यवहार्यता वह अवधि है जिससे भ्रूण माता के गर्भ के बाहर रह सकता है। चिकित्सा प्रौद्योगिकी में उन्नयन के साथ व्यवहार्यता में सुधार होता है।
  3. योग्य डॉक्टरों की कमी है और नए कानून के बावजूद, महिलाओं के लिए सुरक्षित गर्भपात की पहुंच अभी भी ख़राब हो सकती है।
  4. विधेयक के साथ एक और चिंता यह है कि गर्भपात पर 20 सप्ताह की टोपी मनमाना है। कई भ्रूण की असामान्यताएं 18 – 22 सप्ताह की खिड़की में पाई जाती हैं, जब भ्रूण के बारे में कहा जाता है कि यह काफी विकसित है।
  5. गर्भपात के मुद्दे पर भी नैतिक दृष्टिकोण है। लोगों का मानना है कि राज्य को अजन्मे भ्रूण के जीवन सहित सभी जीवन की रक्षा करनी है।

दुनिया भर में गर्भपात कानून – Abortion Laws across the World

गर्भपात कानून दुनिया के देशों में काफी भिन्न हैं। देशों को मोटे तौर पर गर्भपात की कानूनी स्थिति के आधार पर पाँच श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है

वर्ग गर्भपात की कानूनी स्थिति (मार्च 2021 तक)
1 पूरी तरह से प्रतिबंधित (इराक, फिलीपींस, जमैका, सूरीनाम, मिस्र, सेनेगल, आदि)
2 महिला के जीवन (मेक्सिको, ब्राजील, युगांडा, सोमालिया, वेनेजुएला, यूएई, ईरान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, आदि) को बचाने की अनुमति दी गई
3 स्वास्थ्य (पाकिस्तान, सऊदी अरब, पोलैंड, अल्जीरिया, घाना, जिम्बाब्वे, कोलंबिया, दक्षिण कोरिया, आदि) को संरक्षित करने की अनुमति दी गई है।
4 व्यापक सामाजिक या आर्थिक आधारों पर आधारित (भारत, जापान, इथियोपिया, ग्रेट ब्रिटेन, फिनलैंड, जाम्बिया और ताइवान)
5 अनुरोध पर – गर्भावधि की सीमाएं भिन्न होती हैं – सबसे आम 12 सप्ताह (रूस, चीन, ऑस्ट्रेलिया, थाईलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, फ्रांस, स्वीडन, जर्मनी, आदि) है।

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स्टार्टअप इंडिया

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स्टार्टअप इंडिया एक अभियान था जिसे पहली बार पीएम नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2015 को लाल किले, नई दिल्ली में संबोधित किया था। यह अभियान भारत सरकार के तहत देश में 75 से अधिक स्टार्टअप सपोर्ट हब विकसित करने की पहल के रूप में शुरू किया गया था। यह विषय, ‘स्टार्टअप इंडिया’ भारतीय जीएसटी की सरकारी योजनाओं (जीएस- II) के अंतर्गत आता है, जो आईएएस (IAS) परीक्षा का प्रशासन पाठ्यक्रम है। अधिक जानकारी के लिए, कोई आधिकारिक वेबसाइट पर जा सकता है – https: /startupindia.gov.in/

स्टार्टअप इंडिया योजना की मुख्य विशेषताएं – Highlights of the Startup India Scheme

लॉन्चिंग की तारीख 16 जनवरी 2016
सरकारी मंत्रालय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय
विभाग उद्योग और आंतरिक व्यापार को बढ़ावा देने के लिए विभाग
द्वारा लॉन्च किया गया अरुण जेटली (भारत के पूर्व वित्त मंत्री)

स्टार्टअप इंडिया योजना क्या है? What is Startup India Scheme?

स्टार्टअप इंडिया योजना एक महत्वपूर्ण सरकारी योजना है जिसे 16 जनवरी 2016 को बैंक वित्त प्रदान करके भारत में स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने और समर्थन देने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। इसका उद्घाटन पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने किया था।

उद्योग और आंतरिक व्यापार को बढ़ावा देने के लिए विभाग द्वारा आयोजित, स्टार्टअप इंडिया का प्रमुख उद्देश्य प्रतिबंधात्मक राज्यों में से कुछ को छोड़ना है।

  1. लाइसेंस राज
  2. भूमि अनुमतियाँ
  3. विदेशी निवेश प्रस्ताव
  4. पर्यावरण संबंधी मंजूरी

स्टार्टअप इंडिया योजना प्रमुख रूप से तीन स्तंभों पर आधारित है जिनका उल्लेख नीचे दिया गया है:

  • देश के विभिन्न स्टार्ट-अप को वित्त पोषण सहायता और प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • उद्योग-अकादमी भागीदारी और ऊष्मायन प्रदान करना।
  • सरलीकरण और हैंडहोल्डिंग।

स्टार्टअप इंडिया के लिए पंजीकरण – Registration for Startup India

एक व्यक्ति को नीचे दिए गए चरणों का पालन करना चाहिए जो स्टार्टअप इंडिया योजना के तहत अपने व्यवसाय के सफल पंजीकरण के लिए महत्वपूर्ण हैं:

  1. एक व्यक्ति को अपने व्यवसाय को पहले या तो एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में या एक सीमित देयता भागीदारी के रूप में या निगमन, पैन और अन्य आवश्यक अनुपालन के प्रमाण पत्र प्राप्त करने के साथ एक साझेदारी फर्म के रूप में शामिल करना चाहिए।
  2. एक व्यक्ति को स्टार्टअप इंडिया की आधिकारिक वेबसाइट पर लॉग इन करना होगा जहां उसे पंजीकरण फॉर्म में व्यवसाय के सभी आवश्यक विवरण भरने होंगे और आवश्यक दस्तावेज अपलोड करने होंगे।
  3. सिफारिश का एक पत्र, निगमन / पंजीकरण प्रमाणपत्र और व्यवसाय का एक संक्षिप्त विवरण पंजीकरण उद्देश्य के लिए आवश्यक कुछ आवश्यक दस्तावेज हैं।
  4. चूंकि स्टार्ट-अप को आयकर लाभ से छूट दी गई है, इसलिए, इन लाभों का लाभ उठाने से पहले उन्हें औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) द्वारा मान्यता प्राप्त होनी चाहिए। साथ ही, उन्हें इंटर-मिनिस्ट्रियल बोर्ड (IMB) द्वारा प्रमाणित किया जाना चाहिए कि वे IPR से संबंधित लाभों के लिए पात्र हों।
  5. दस्तावेजों के सफल पंजीकरण और सत्यापन के बाद, आपको तुरंत मान्यता के प्रमाण पत्र के साथ अपने स्टार्टअप के लिए एक मान्यता संख्या प्रदान की जाएगी।

स्टार्टअप इंडिया योजना के तहत आवेदन करने के लिए कौन पात्र है?

एक इकाई जब आवेदन करने के लिए पात्र है:-

  • इसे भारत में एक निजी लिमिटेड कंपनी या साझेदारी फर्म या सीमित देयता भागीदारी के रूप में शामिल किया गया है.
  • इसका 10 साल से कम का इतिहास है यानी 10 साल से भी कम समय इसके निगमन / पंजीकरण की तारीख से समाप्त हो गया है
  • सभी वित्तीय वर्षों के लिए टर्नओवर, निगमन / पंजीकरण INR 100 करोड़ से कम रहा है

Note: अस्तित्व में पहले से ही एक व्यवसाय के विभाजन या पुनर्निर्माण के द्वारा बनाई गई इकाई को ‘स्टार्टअप’ नहीं माना जाएगा।

स्टार्टअप इंडिया के फायदे – Startup India Benefits

स्टार्टअप इंडिया योजना के लॉन्च के बाद, सरकार द्वारा I-MADE कार्यक्रम नाम से एक नया कार्यक्रम शुरू किया गया था, जिसमें 1 मिलियन मोबाइल ऐप स्टार्ट-अप के निर्माण में भारतीय उद्यमियों की मदद करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था। भारत सरकार ने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना भी शुरू की थी, जिसका उद्देश्य कम ब्याज दर वाले ऋणों के माध्यम से कम सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि के उद्यमियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना था। स्टार्टअप इंडिया के कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:

  1. पेटेंट पंजीकरण शुल्क को कम करने के लिए.
  2. 90 दिनों की निकास खिड़की सुनिश्चित करने वाले दिवालियापन संहिता में सुधार।
  3. ऑपरेशन के पहले 3 वर्षों के लिए रहस्यमय निरीक्षणों और पूंजीगत लाभ कर से मुक्ति प्रदान करना।
  4. अटल इनोवेशन मिशन के तहत इनोवेशन हब बनाने के लिए।
  5. नवाचार से संबंधित कार्यक्रमों में 10 लाख बच्चों की भागीदारी के साथ 5 लाख स्कूलों को लक्षित करना।
  6. नई योजनाओं को विकसित करने के लिए जो स्टार्टअप फर्मों को आईपीआर सुरक्षा प्रदान करेगी।
  7. पूरे देश में उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने के लिए।
  8. दुनिया भर में स्टार्ट-अप हब के रूप में भारत को बढ़ावा देने के लिए

देश में स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सरकारी उपाय

  • “मेक इन इंडिया” पहल के एक हिस्से के रूप में, सरकार सालाना एक स्टार्ट-अप उत्सव को एक मंच पर एक साथ आने के लिए स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र के सभी हितधारकों को सक्षम करने का प्रस्ताव करती है।
  • अटल इनोवेशन मिशन एआईएम का शुभारंभ – स्व-रोजगार और प्रतिभा उपयोग (एसईटीयू) के माध्यम से उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए, जिसमें सफल उद्यमियों बनने के लिए नवाचारियों का समर्थन और सलाह दी जाएगी। यह एक ऐसा मंच भी प्रदान करता है जहाँ नवीन विचार उत्पन्न होते हैं।
  • पीपीपी द्वारा स्थापित इनक्यूबेटर – सरकार द्वारा प्रायोजित या वित्त पोषित इनक्यूबेटरों के पेशेवर प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए, सरकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी में देश भर में इनक्यूबेटरों की स्थापना के लिए एक नीति और रूपरेखा बनाएगी। इनक्यूबेटर को निजी क्षेत्र द्वारा प्रबंधित और संचालित किया जाएगा।
  • मौजूदा संस्थानों में 35 नए इनक्यूबेटर। केंद्र सरकार द्वारा 40% की सहायता, संबंधित राज्य सरकार द्वारा 40% वित्त पोषण और नए इन्क्यूबेटरों की स्थापना के लिए निजी क्षेत्र द्वारा 20% वित्त पोषण प्रदान किया जाएगा।
  • 35 नए निजी क्षेत्र के इनक्यूबेटर। मौजूदा संस्थानों में निजी क्षेत्र द्वारा स्थापित इनक्यूबेटर के लिए केंद्र सरकार द्वारा 50% (अधिकतम INR 10 करोड़ के अधीन) का अनुदान प्रदान किया जाएगा।

स्टार्टअप इंडिया – स्टेट रैंकिंग Startup India – State Rankings

स्टार्टअप इंडिया स्टेट रैंकिंग 2019

रैंक राज्य
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला गुजरात, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह
शीर्ष प्रदर्शक कर्नाटक, केरल
नेता महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, बिहार और चंडीगढ़
आकांक्षी नेता तेलंगाना, उत्तराखंड, हरियाणा, झारखंड, पंजाब, नागालैंड
उभरते हुए राज्य छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश असम, दिल्ली, मिजोरम और सिक्किम

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भारत में प्रागैतिहासिक युग – Prehistoric Age in India

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प्रागैतिहासिक युग उस समय को संदर्भित करता है जब कोई लेखन और विकास नहीं था। इसके पाँच काल होते हैं – पैलियोलिथिक, मेसोलिथिक, नियोलिथिक, चालकोलिथिक और लौह युग। यह IAS परीक्षा के लिए प्राचीन भारतीय इतिहास के अंतर्गत महत्वपूर्ण विषयों में से एक है। यह लेख भारत में प्रागैतिहासिक युग की सभी प्रासंगिक जानकारी देता है।

प्रागैतिहासिक भारत – Prehistoric India

इतिहास
इतिहास (ग्रीक शब्द से – हिस्टोरिया, जिसका अर्थ है “जांच”, जांच द्वारा प्राप्त ज्ञान) अतीत का अध्ययन है। इतिहास एक छत्र शब्द है जो पिछली घटनाओं के साथ-साथ इन घटनाओं के बारे में जानकारी की खोज, संग्रह, संगठन, प्रस्तुति और व्याख्या से संबंधित है।
इसे पूर्व-इतिहास, प्रोटो-इतिहास और इतिहास में विभाजित किया गया है।

  1. पूर्व-इतिहास – लेखन के आविष्कार से पहले हुई घटनाओं को पूर्व-इतिहास माना जाता है। पूर्व इतिहास तीन पत्थर युगों द्वारा दर्शाया गया है।
  2. प्रोटो-इतिहास (Proto-history) – यह पूर्व-इतिहास और इतिहास के बीच की अवधि को संदर्भित करता है, जिसके दौरान एक संस्कृति या संगठन अभी तक विकसित नहीं हुआ है, लेकिन एक समकालीन साक्षर सभ्यता के लिखित रिकॉर्ड में इसका उल्लेख है। उदाहरण के लिए, हड़प्पा सभ्यता की लिपि अनिर्धारित है, हालांकि चूंकि इसका अस्तित्व मेसोपोटामिया के लेखन में है, इसलिए इसे प्रोटो-हिस्ट्री का हिस्सा माना जाता है। इसी तरह, 1500-600 ईसा पूर्व से वैदिक सभ्यता को प्रोटो-हिस्ट्री का भी हिस्सा माना जाता है। पुरातत्वविदों द्वारा नवपाषाण और चाल्कोलिथिक (Neolithic and Chalcolithic) संस्कृतियों को प्रोटो-इतिहास का हिस्सा भी माना जाता है।
  3. इतिहास – लेखन के आविष्कार के बाद अतीत का अध्ययन और लिखित अभिलेखों और पुरातात्विक स्रोतों के आधार पर साक्षर समाजों का अध्ययन इतिहास का गठन करता है।

प्राचीन भारतीय इतिहास का निर्माण – Construction of Ancient Indian History

इतिहास के पुनर्निर्माण में मदद करने वाले स्रोत हैं:

  1. गैर-साहित्यिक स्रोत
  2. साहित्यिक स्रोत – जिसमें धार्मिक साहित्य और धर्मनिरपेक्ष साहित्य शामिल हैं

गैर-साहित्यिक स्रोत – Non-Literary Sources

  1. सिक्के: प्राचीन भारतीय मुद्रा को कागज के रूप में नहीं बल्कि सिक्कों के रूप में जारी किया गया था। भारत में पाए जाने वाले शुरुआती सिक्कों में केवल कुछ प्रतीक थे, चांदी और तांबे से बने पंच-चिन्हित सिक्के, लेकिन बाद के सिक्कों में राजाओं, देवताओं, तिथियों आदि के नामों का उल्लेख था। वे क्षेत्र जहां वे पाए गए थे, उनके प्रसार का क्षेत्र इंगित करता है। इसने कई सत्तारूढ़ राजवंशों के इतिहास को फिर से बनाने में सक्षम किया, विशेष रूप से इंडो-यूनानियों ने, जो उत्तरी अफगानिस्तान से भारत आए और भारत पर 2 और 1 ईसा पूर्व में शासन किया। सिक्के अलग-अलग राजवंशों के आर्थिक इतिहास पर प्रकाश डालते हैं और उस समय की लिपि, कला, धर्म जैसे विभिन्न मापदंडों पर इनपुट भी प्रदान करते हैं। यह धातु विज्ञान और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संदर्भ में हुई प्रगति को समझने में भी मदद करता है। (सिक्कों के अध्ययन को न्यूमिज़माटिक्स कहा जाता है)।
  2. पुरातत्व / सामग्री बनी हुई है: वह विज्ञान जो पुराने टीले की खुदाई को एक व्यवस्थित तरीके से करता है, क्रमिक परतों में और लोगों के भौतिक जीवन का एक विचार बनाने में सक्षम होता है, जिसे पुरातत्व कहा जाता है। खुदाई और अन्वेषण के परिणामस्वरूप सामग्री बरामद की गई है जो विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं के अधीन हैं। उनकी तारीखें रेडियोकार्बन डेटिंग के अनुसार तय की जाती हैं। उदाहरण के लिए, हड़प्पा काल से संबंधित उत्खनन स्थल हमें उस युग में रहने वाले लोगों के जीवन के बारे में जानने में मदद करते हैं। इसी तरह, मेगालिथ (दक्षिण भारत में कब्र) 300 ईसा पूर्व से पहले दक्कन और दक्षिण भारत में रहने वाले लोगों के जीवन पर प्रकाश डालते हैं।
  3. शिलालेख / प्रशस्ति – प्राचीन शिलालेखों के अध्ययन और व्याख्या को एपिग्राफी कहा जाता है। ताम्र जैसे पत्थर और धातु जैसे कठोर सतहों पर उत्कीर्ण लेख जो आमतौर पर कुछ उपलब्धियों, विचारों, शाही आदेशों और निर्णयों को दर्ज करते हैं जो विभिन्न धर्मों और उस युग की प्रशासनिक नीतियों को समझने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिए, अशोक द्वारा जारी की गई राज्य नीति का विवरण और शिलालेख, सातवाहन, दक्कन के राजाओं द्वारा भूमि अनुदान की रिकॉर्डिंग।
  4. विदेशी खाते: स्वदेशी साहित्य को विदेशी खातों द्वारा पूरक किया जा सकता है। भारत में ग्रीक, चीनी और रोमन आगंतुक आए, या तो यात्रियों या धार्मिक धर्मान्तरित, और हमारे ऐतिहासिक अतीत के एक समृद्ध खाते को पीछे छोड़ दिया।

उनमें से कुछ सूचनाएं थीं:

  • ग्रीक राजदूत मेगस्थनीज ने “इंडिका” लिखा और मौर्य समाज और प्रशासन के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान की।
  • यूनानी भाषा में लिखा गया “पैरीपस ऑफ द एरीथ्रियन सी” और “टॉलेमी का भूगोल” दोनों भारत और रोमन साम्राज्य के बीच व्यापार के बंदरगाहों और वस्तुओं के बारे में बहुमूल्य जानकारी देते हैं।
  • बौद्ध यात्रियों के फा-हिएन ने गुप्त काल के एक ज्वलंत खाते को छोड़ दिया।
  • बौद्ध तीर्थयात्री हुस्न-त्सांग ने भारत का दौरा किया और राजा हर्षवर्धन के शासन और नालंदा विश्वविद्यालय के गौरव के तहत भारत का विवरण दिया।

साहित्य के स्त्रोत – Literary Sources

धार्मिक साहित्य: धार्मिक साहित्य प्राचीन भारतीय काल की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थितियों पर प्रकाश डालता है। कुछ स्रोत हैं:

  • चार वेद – वेदों को c.1500 – 500 BCE को सौंपा जा सकता है। ऋग्वेद में मुख्य रूप से प्रार्थनाएँ शामिल हैं, जबकि बाद के वैदिक ग्रंथों (सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद) में न केवल प्रार्थनाएँ, बल्कि अनुष्ठान, जादू और पौराणिक कथाएँ शामिल हैं।
  • उपनिषद – उपनिषद (वेदांत) में “अत्मा” और “परमात्मा” पर दार्शनिक चर्चाएँ हैं।
  • महाभारत और रामायण के महाकाव्य – दो महाकाव्यों में से, महाभारत उम्र में बड़ा है और संभवतः 10 वीं शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईस्वी तक के मामलों को दर्शाता है। मूल रूप से इसमें 8800 छंद थे (जिन्हें जया संहिता कहा जाता है)। अंतिम संकलन में छंद को 1,00,000 तक लाया गया जिसे महाभारत या सतसहाश्री संहिता के रूप में जाना जाता है। इसमें कथा, वर्णनात्मक और उपदेशात्मक सामग्री शामिल है। रामायण में मूल रूप से 12000 छंद शामिल थे जिन्हें बाद में 24000 तक उठाया गया था। इस महाकाव्य में इसके उपदेशात्मक अंश भी हैं जिन्हें बाद में जोड़ा गया था।
  • सूत्र – सूत्र में श्रुतसूत्र (जिसमें बलिदान, शाही राज्याभिषेक शामिल हैं) और गृह्य सूत्र (जिसमें जन्म, नामकरण, विवाह, अंतिम संस्कार आदि) जैसे अनुष्ठान साहित्य शामिल हैं।
  • बौद्ध धार्मिक ग्रंथ – प्रारंभिक बौद्ध ग्रंथ पाली भाषा में लिखे गए थे और इन्हें आमतौर पर त्रिपिटक (तीन टोकरियाँ) के नाम से जाना जाता है – सुत्त पिटक, विनय पिटक और अभिधम्म पिटक। ये ग्रंथ उस युग की सामाजिक और आर्थिक स्थितियों पर अमूल्य प्रकाश डालते हैं। वे बुद्ध के युग में राजनीतिक घटनाओं का संदर्भ भी देते हैं।
  • जैना के धार्मिक ग्रंथ – जैन ग्रंथों को आमतौर पर “अनगास” कहा जाता है, जो प्राकृत भाषा में लिखे गए थे, और इनमें जैनियों की दार्शनिक अवधारणाएँ थीं। उनमें कई ग्रंथ हैं जो महावीर के युग में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के राजनीतिक इतिहास को समेटने में मदद करते हैं। जैन ग्रंथों में बार-बार व्यापार और व्यापारियों का उल्लेख है।

धर्मनिरपेक्ष साहित्य: धर्मनिरपेक्ष साहित्य का एक बड़ा निकाय भी है जैसे:

  • धर्मशास्त्र / कानून की पुस्तकें – ये विभिन्न प्रकार के साथ-साथ राजाओं और उनके अधिकारियों के लिए कर्तव्यों को पूरा करते हैं। वे नियमों को निर्धारित करते हैं जिसके अनुसार संपत्ति को आयोजित, बेचा और विरासत में लिया जाना है। वे चोरी, हत्या आदि के लिए दोषी व्यक्तियों को दंड भी देते हैं।
  • अर्थशास्त्र – कौटिल्य का अर्थशास्त्र मौर्यों के काल में समाज और अर्थव्यवस्था की स्थिति को दर्शाता है।
  • कालिदास का साहित्यिक कार्य – महान कवि कालीदास की कृतियों में काव्य और नाटक शामिल हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है अभिज्ञानशाकुंतलम। रचनात्मक रचना होने के अलावा, वे गुप्त काल में उत्तर और मध्य भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के बारे में जानकारी देते हैं।
  • राजतरंगिणी – यह कल्हण द्वारा लिखी गई प्रसिद्ध पुस्तक है और इसमें 12 वीं शताब्दी ईस्वी कश्मीर के सामाजिक और राजनीतिक जीवन को दर्शाया गया है।
  • चारितास / आत्मकथाएँ – चारितास राजा कवियों द्वारा राजा हर्षवर्धन की प्रशंसा में बाणभट्ट द्वारा लिखित हर्षचरित जैसे शासकों की प्रशंसा में लिखी गई आत्मकथाएँ हैं।
  • संगम साहित्य – यह सबसे पुराना दक्षिण भारतीय साहित्य है, जो एक साथ इकट्ठे हुए लोगों (संगम) द्वारा निर्मित है, और डेल्टा तमिलनाडु में रहने वाले लोगों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है। इस तमिल साहित्य में literature सिलप्पादिकारम ’और kal मणिमेक्लै’ जैसे साहित्यिक रत्न शामिल हैं।

भारत में प्रागैतिहासिक काल – Prehistoric Periods in India

  • पुरापाषाण काल (पुराना पाषाण काल): 500,000 ईसा पूर्व – 10,000 ईसा पूर्व
  • मेसोलिथिक अवधि (लेट स्टोन एज): 10,000 ईसा पूर्व – 6000 ईसा पूर्व
  • नवपाषाण काल (नया पाषाण युग): 6000 ईसा पूर्व – 1000 ईसा पूर्व
  • चालकोलिथिक अवधि (स्टोन कॉपर आयु): 3000 ईसा पूर्व – 500 ईसा पूर्व
  • लौह युग: 1500 ईसा पूर्व – 200 ईसा पूर्व

पाषाण युग

पाषाण युग प्रागैतिहासिक काल है, अर्थात्, स्क्रिप्ट के विकास से पहले की अवधि, इसलिए इस अवधि के लिए जानकारी का मुख्य स्रोत पुरातात्विक खुदाई है। रॉबर्ट ब्रूस फूटे पुरातत्वविद् हैं जिन्होंने भारत में पहला पैलियोलिथिक उपकरण, पल्लवारम हथकड़ी की खोज की थी।
भूवैज्ञानिक युग के आधार पर, पत्थर के औजारों के प्रकार और प्रौद्योगिकी, और निर्वाह आधार के आधार पर, भारतीय पाषाण युग को मुख्य रूप से तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है-

  • पुरापाषाण युग (पुराने पत्थर की आयु): अवधि – 500,000 – 10,000 ई.पू.
  • मेसोलिथिक आयु (देर से पत्थर की उम्र): अवधि – 10,000 – 6000 ईसा पूर्व
  • नवपाषाण युग (नए पत्थर की आयु): अवधि – 6000 – 1000 ई.पू

पुरापाषाण युग (पुराना पाषाण युग) – Palaeolithic Age (Old Stone Age)

‘पुरापाषाण’ ग्रीक शब्द ’पैलियो’ से लिया गया है जिसका अर्थ है पुराना और stone लिथिक ’अर्थ। इसलिए, पुरापाषाण युग शब्द पुराने पत्थर की उम्र को दर्शाता है। भारत की पुरानी पाषाण युग या पुरापाषाण संस्कृति प्लीस्टोसीन काल या हिमयुग में विकसित हुई थी, जो उस युग का एक भूवैज्ञानिक काल है जब पृथ्वी बर्फ और मौसम से ढँकी हुई थी ताकि मानव या पौधे का जीवन बच सके। लेकिन उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में, जहां बर्फ पिघलती है, पुरुषों की शुरुआती प्रजातियां मौजूद हो सकती थीं।

पुरापाषाण युग की मुख्य विशेषताएं –

  1. माना जाता है कि भारतीय लोग ’नेग्रिटो’ जाति के थे, और खुली हवा, नदी की घाटियों, गुफाओं और रॉक शेल्टर में रहते थे।
  2. वे भोजन इकट्ठा करने वाले थे, जंगली फल और सब्जियां खाते थे और शिकार पर रहते थे।
  3. घरों, मिट्टी के बर्तनों, कृषि का ज्ञान नहीं था। यह केवल बाद के चरणों में था जब उन्होंने आग की खोज की।
  4. ऊपरी पुरापाषाण युग में, चित्रों के रूप में कला का प्रमाण है।
  5. मनुष्य अप्रचलित, खुरदरे पत्थरों जैसे हाथ की कुल्हाड़ियों, हेलिकॉप्टरों, ब्लेडों, बर्गर और स्क्रैपर्स का इस्तेमाल करते थे।

पुरापाषाण पुरुषों को भारत में ’क्वार्टजाइट’ के पुरुष भी कहा जाता है क्योंकि पत्थर के औजार एक हार्ड रॉक से बने होते हैं जिसे क्वार्टजाइट कहा जाता है। भारत में पुराने पाषाण युग या पुरापाषाण युग को लोगों द्वारा उपयोग किए जाने वाले पत्थर के औजारों की प्रकृति के अनुसार और जलवायु परिवर्तन की प्रकृति के अनुसार तीन चरणों में विभाजित किया गया है।

  1. निम्न पुरापाषाण युग: 100,000 ईसा पूर्व तक
  2. मध्य पुरापाषाण युग: 100,000 ईसा पूर्व – 40,000 ईसा पूर्व
  3. ऊपरी पुरापाषाण युग: 40,000 ईसा पूर्व – 10,000 ई.पू.

निम्न पुरापाषाण युग (प्रारंभिक पुरापाषाण युग) – Lower Palaeolithic Age (Early Palaeolithic Age)

  1. यह हिम युग के अधिक से अधिक भाग को कवर करता है।
  2. शिकारी और भोजन इकट्ठा करने वाले; प्रयुक्त उपकरण हाथ की कुल्हाड़ी, हेलिकॉप्टर और क्लीवर थे। उपकरण मोटे और भारी थे।
  3. सबसे कम निचले पुरापाषाण स्थलों में से एक महाराष्ट्र में बोरी है।
  4. औजार बनाने के लिए चूना पत्थर का भी इस्तेमाल किया गया था। गुफाओं और रॉक आश्रयों सहित निवास स्थान हैं।
  5. एक महत्वपूर्ण स्थान मध्य प्रदेश में भीमबेटका है।

निम्न पुरापाषाण युग के प्रमुख स्थल-

  • कम पुरापाषाण युग के प्रमुख स्थल
  • सोहन घाटी (वर्तमान पाकिस्तान में)
  • थार रेगिस्तान में साइटें
  • कश्मीर
  • मेवाड़ के मैदान
  • सौराष्ट्र
  • गुजरात
  • मध्य भारत
  • दक्कन का पठार
  • छोटानागपुर पठार
  • कावेरी नदी के उत्तर में
  • यूपी में बेलन घाटी

मध्य पुरापाषाण युग – Middle Palaeolithic age

  1. उपयोग किए गए उपकरण फ्लेक्स, ब्लेड, पॉइंटर्स, स्क्रेपर्स और बोरर्स थे।
  2. उपकरण छोटे, हल्के और पतले थे।
  3. अन्य उपकरणों के संबंध में हाथ की कुल्हाड़ियों के उपयोग में कमी थी।

महत्वपूर्ण मध्य पुरापाषाण युग के स्थल-

  • यूपी में बेलन घाटी
  • लूनी घाटी (राजस्थान)
  • सोन और नर्मदा नदियाँ
  • भीमबेटका
  • तुंगभद्रा नदी की घाटियाँ
  • पोटवार पठार (सिंधु और झेलम के बीच)
  • संघो गुफा (पेशावर, पाकिस्तान के पास)

ऊपरी पुरापाषाण युग – Upper Palaeolithic age

  1. ऊपरी पुरापाषाण युग बर्फ युग के अंतिम चरण के साथ मेल खाता था जब जलवायु तुलनात्मक रूप से गर्म और कम आर्द्र हो गई थी।
  2. होमो सेपियन्स का उद्भव।
  3. अवधि उपकरण और प्रौद्योगिकी में नवाचार द्वारा चिह्नित है। सुई, हार्पून, समानांतर-पक्षीय ब्लेड, मछली पकड़ने के उपकरण और बरिन टूल सहित बहुत सारे हड्डी के उपकरण।

ऊपरी पुरापाषाण युग के प्रमुख स्थल-

  • भीमबेटका (भोपाल का दक्षिण) – हाथ की कुल्हाड़ियाँ और क्लीवर्स, ब्लेड, स्क्रेपर और कुछ ब्यूरो यहाँ पाए गए हैं।
  • बेलन
  • छोटा नागपुर पठार (बिहार)
  • महाराष्ट्र
  • उड़ीसा और आंध्र प्रदेश में पूर्वी घाट
  • अस्थि उपकरण केवल आंध्र प्रदेश में कुर्नूल और मुचचतला चिंतामणि गवि के गुफा स्थलों पर पाए गए हैं।

मेसोलिथिक काल (मध्य पाषाण युग) – Neolithic Period (New Stone Age)

नियोलिथिक (Neolithic) शब्द ग्रीक शब्द Neo ’नियो’ से लिया गया है जिसका अर्थ है नया और lithic लिथिक ’अर्थ पत्थर। इस प्रकार, नवपाषाण युग शब्द ‘न्यू स्टोन एज’ को संदर्भित करता है। इसे ‘नवपाषाण क्रांति’ भी कहा जाता है क्योंकि इसने मनुष्य के सामाजिक और आर्थिक जीवन में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं। नवपाषाण युग ने खाद्य योजक से खाद्य उत्पादक में बदल दिया।

नवपाषाण युग की विशेषता विशेषताएं-

  • उपकरण और हथियार – लोगों ने पॉलिश किए गए पत्थरों से बने उपकरणों के अलावा माइक्रोलिथिक ब्लेड का इस्तेमाल किया। विशेष रूप से जमीन और पॉलिश हाथ की कुल्हाड़ियों के लिए सील्ट का उपयोग महत्वपूर्ण था। उन्होंने हड्डियों से बने उपकरणों और हथियारों का भी इस्तेमाल किया – जैसे सुई, स्क्रेपर्स, बोरर्स, एरोहेड्स इत्यादि। नए पॉलिश किए गए उपकरणों के उपयोग से मनुष्यों के लिए खेती करना, शिकार करना और अन्य गतिविधियों को बेहतर तरीके से करना आसान हो गया।
  • कृषि – नवपाषाण युग के लोगों ने रागी और घोड़े चना (कुलटी) जैसे भूमि और विकसित फल और मकई की खेती की। उन्होंने मवेशी, भेड़ और बकरियों को भी पालतू बनाया।
  • मिट्टी के बर्तन – कृषि के आगमन के साथ, लोगों को खाना पकाने के साथ-साथ खाना बनाने, उत्पाद खाने आदि की आवश्यकता होती थी, इसीलिए कहा जाता है कि इस चरण में बड़े पैमाने पर मिट्टी के बर्तन दिखाई देते थे। इस अवधि के मिट्टी के बर्तनों को ग्रेवेयर, ब्लैक-बर्न वेयर और मैट प्रभावित वेयर के तहत वर्गीकृत किया गया था। नवपाषाण युग के प्रारंभिक चरणों में, हस्तनिर्मित मिट्टी के बर्तनों को बनाया गया था, लेकिन बाद में, बर्तन बनाने के लिए पैर के पहियों का उपयोग किया गया था।
  • आवास और बसे जीवन – नवपाषाण युग के लोग आयताकार या गोलाकार घरों में रहते थे जो मिट्टी और नरकट से बने होते थे। नवपाषाण काल के लोग नाव बनाना जानते थे और सूती, ऊनी और बुने हुए कपड़े पहन सकते थे। नवपाषाण युग के लोगों ने अधिक व्यवस्थित जीवन का नेतृत्व किया और सभ्यता की शुरुआत का मार्ग प्रशस्त किया।

नवविवाहित लोग पहाड़ी इलाकों से ज्यादा दूर नहीं रहते थे। वे मुख्य रूप से पहाड़ी नदी घाटियों, रॉक शेल्टर और पहाड़ियों की ढलानों पर बसे हुए थे, क्योंकि वे पूरी तरह से हथियारों और पत्थर से बने उपकरणों पर निर्भर थे।

महत्वपूर्ण नवपाषाण स्थल-

  1. कोल्डिहवा और महागरा (इलाहाबाद के दक्षिण में स्थित): यह साइट कच्चे हाथ से बने मिट्टी के बर्तनों के साथ-साथ वृत्ताकार झोपड़ियों का प्रमाण प्रदान करती है। चावल के भी प्रमाण हैं, जो चावल के प्राचीनतम प्रमाण हैं, न केवल भारत में बल्कि विश्व में कहीं भी
  2. मेहरगढ़ (बलूचिस्तान, पाकिस्तान) – सबसे पहला नवपाषाण स्थल, जहाँ लोग धूप में सूखने वाली ईंटों से बने घरों में रहते थे और कपास और गेहूं जैसी फसलों की खेती करते थे।
  3. बुर्जहोम (कश्मीर) –घरेलू कुत्तों को उनकी कब्रों में स्वामी के साथ दफनाया गया था; लोग गड्ढों में रहते थे और पॉलिश पत्थरों के साथ-साथ हड्डियों से बने औजारों का इस्तेमाल करते थे।
  4. गुफ़राल (कश्मीर) – यह नवपाषाण स्थल घरों में गड्ढे में रहने, पत्थर के औजार और कब्रिस्तान के लिए प्रसिद्ध है।
  5. चिरांद (बिहार) – नवपाषाण काल के लोग हड्डियों से बने औजार और हथियारों का इस्तेमाल करते थे।
  6. पिकलिहल, ब्रह्मगिरी, मस्की, टकलाकोटा, हल्लूर (कर्नाटक) – लोग पशु चराने वाले थे। उन्होंने भेड़ और बकरियों को पालतू बनाया। राख के टीले मिले हैं।
  7. बेलन घाटी (जो विंध्य के उत्तरी इलाकों में और नर्मदा घाटी के मध्य भाग में स्थित है) – तीनों चरण अर्थात् पुरापाषाण, मेसोलिथिक और नवपाषाण युग क्रम से पाए जाते हैं।

चालकोलिथिक युग (ताम्र पाषाण युग) – Chalcolithic Age (Stone Copper Age)

चाल्कोलिथिक युग ने पत्थर के औजारों के साथ धातु के उपयोग के उद्भव को चिह्नित किया। इस्तेमाल की जाने वाली पहली धातु तांबा थी। चोलकोलिथिक युग काफी हद तक पूर्व-हड़प्पा चरण के लिए लागू होता है, लेकिन देश के कई हिस्सों में, यह कांस्य हड़प्पा संस्कृति के अंत के बाद दिखाई देता है।

चाल्कोलिथिक युग के लक्षण-

कृषि और पशु पालन – पाषाण-ताम्र युग में रहने वाले लोग पालतू पशुओं को पालते थे और खाद्यान्न की खेती करते थे। उन्होंने गायों, भेड़, बकरियों, सुअर और भैंसों का शिकार किया और हिरणों का शिकार किया। यह स्पष्ट नहीं है कि वे घोड़े से परिचित थे या नहीं। लोगों ने गोमांस खाया लेकिन किसी भी बड़े पैमाने पर पोर्क नहीं लिया। चालकोलिथिक चरण के लोगों ने गेहूं और चावल का उत्पादन किया, उन्होंने बाजरे की खेती भी की। उन्होंने कई दालें जैसे मसूर (मसूर), काला चना, हरा चना और घास मटर का उत्पादन किया। दक्कन की काली कपास मिट्टी में कपास का उत्पादन किया गया था और निचले डेक्कन में रागी, बाजरा और कई बाजरा की खेती की गई थी। पूर्वी क्षेत्रों में पत्थर-तांबे के चरण से संबंधित लोग मुख्य रूप से मछली और चावल पर रहते थे, जो अभी भी देश के उस हिस्से में एक लोकप्रिय आहार है।

मिट्टी के बर्तन – पत्थर-तांबे के चरण के लोगों ने विभिन्न प्रकार के मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया, जिनमें से एक को काले और लाल मिट्टी के बर्तन कहा जाता है और ऐसा लगता है कि उस युग में व्यापक रूप से प्रचलित था। गेरू रंग का बर्तन भी लोकप्रिय था। कुम्हार के पहिये का उपयोग किया गया था और सफेद रैखिक डिजाइनों के साथ पेंटिंग भी की गई थी।

ग्रामीण बस्तियाँ – हुए ईंटों से परिचित नहीं थे। वे मिट्टी के ईंटों से बने फूस के घरों में रहते थे। इस युग ने सामाजिक असमानताओं की शुरुआत को भी चिह्नित किया, क्योंकि प्रमुख आयताकार घरों में रहते थे जबकि आम लोग गोल झोपड़ियों में रहते थे। उनके गांवों में विभिन्न आकार, गोलाकार या आयताकार के 35 से अधिक घर शामिल थे। अराजक अर्थव्यवस्था को ग्राम अर्थव्यवस्था माना जाता है।

कला और शिल्प – चालकोलिथिक लोग विशेषज्ञ कॉपस्मिथ थे। वे तांबे को गलाने की कला जानते थे और पत्थर के अच्छे कर्मचारी भी थे। वे कताई और बुनाई जानते थे और विनिर्माण कपड़े की कला से अच्छी तरह परिचित थे। हालाँकि, वे लिखने की कला नहीं जानते थे।

पूजा – चोलकोलिथिक साइटों से पृथ्वी देवी की छोटी मिट्टी की छवियां मिली हैं। इस प्रकार यह कहना संभव है कि उन्होंने देवी माँ की वंदना की। मालवा और राजस्थान में, बैल की छतों पर बने शैलचित्रों से पता चलता है कि बैल एक धार्मिक पंथ के रूप में कार्य करते थे।

शिशु मृत्यु दर – चोलकोलिथिक लोगों में शिशु मृत्यु दर अधिक थी, जैसा कि पश्चिम महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में बच्चों के दफनाने से स्पष्ट है। खाद्य-उत्पादक अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, शिशु मृत्यु दर बहुत अधिक थी। हम कह सकते हैं कि चालकोलिथिक सामाजिक और आर्थिक प्रतिमान दीर्घायु को बढ़ावा नहीं देते थे।

आभूषण – चालकोलिथिक लोग आभूषण और सजावट के शौकीन थे। महिलाओं ने खोल और हड्डी के गहने पहने और अपने बालों में बारीक कंघी का काम किया। उन्होंने कारेलियन, स्टीटाइट और क्वार्ट्ज क्रिस्टल जैसे अर्ध-कीमती पत्थरों के मोतियों का निर्माण किया।

महत्वपूर्ण चालकोलिथिक (ताम्र पाषाण युग) स्थान – 

  • अहार (बनास घाटी, दक्षिण पूर्वी राजस्थान) – इस क्षेत्र के लोगों ने गलाने और धातु विज्ञान का अभ्यास किया, अन्य समकालीन समुदायों को तांबे के उपकरण की आपूर्ति की। यहां चावल की खेती होती
  • गिलुंड (बनास घाटी, राजस्थान) – स्टोन ब्लेड उद्योग की खोज यहाँ की गई।
  • दायमाबाद (अहमदनगर, गुजरात) – गोदावरी घाटी में सबसे बड़ा जोर्वे संस्कृति स्थल है। यह कांस्य के सामान की वसूली के लिए प्रसिद्ध है जैसे कि कांस्य का गैंडा, हाथी, सवार के साथ दो पहिया रथ और भैंस।
  • मालवा (मध्य प्रदेश) – मालवा संस्कृति की बस्तियाँ ज्यादातर नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर स्थित हैं। यह सबसे अमीर शैलोथिक सिरेमिक का प्रमाण प्रदान करता है।
  • कायथा (मद्य प्रदेश) – कायथा संस्कृति का निपटान ज्यादातर चंबल नदी और उसकी सहायक नदियों पर स्थित था। घरों में मिट्टी से बने फर्श थे, मिट्टी के बर्तनों में पूर्व-हड़प्पा तत्व के साथ-साथ तेज धार वाले तांबे के सामान पाए गए थे।
  • चिरांद, सेनुर, सोनपुर (बिहार), महिषदल (पश्चिम बंगाल) – ये इन राज्यों में प्रमुख कालकोठरी स्थल हैं।
  • संगमोन, इनामगाँव और नासिक (महाराष्ट्र) – यहाँ ओवन और गोलाकार गड्ढे वाले बड़े मिट्टी के घरों की खोज की गई है।
  • नवदटोली (नर्मदा पर) – यह देश की सबसे बड़ी चॉकोलिथिक बस्तियों में से एक थी। यह 10 हेक्टेयर में फैला था और लगभग सभी खाद्यान्नों की खेती करता था।
  • नेवासा (जोरवे, महाराष्ट्र) और एरन (मध्य प्रदेश) – ये स्थल अपनी गैर-हड़प्पा संस्कृति के लिए जाने जाते हैं।

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वेद – Vedas

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इतिहास विषय के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए, IAS परीक्षा के लिए ‘वेद‘ विषय महत्वपूर्ण है। प्रीलिम्स या मेन्स स्टेज में किसी भी प्रकार के वेदों से प्रश्न पूछे जा सकते हैं। इसलिए, यह लेख सिविल सेवा परीक्षा के लिए चार वेदों के बारे में प्रासंगिक तथ्यों का उल्लेख करेगा।

वेद क्या है? -What is Vedas?

वेद प्राचीन भारत में उत्पन्न धार्मिक ग्रंथों का एक बड़ा जोड़ है। वैदिक संस्कृत में रचित, ग्रंथ संस्कृत साहित्य की सबसे पुरानी परत और हिंदू धर्म के सबसे पुराने ग्रंथ हैं। हिंदू वेदों को अपौरुषेय मानते हैं, जिसका अर्थ है “मनुष्य का नहीं, अतिमानवीय” और “अवैयक्तिक, अधिकारहीन,” गहन साधना के बाद प्राचीन ऋषियों द्वारा सुनी गई पवित्र ध्वनियों और ग्रंथों के खुलासे।
उन्हें दुनिया के सबसे पुराने, धार्मिक कार्यों में नहीं, सबसे पुराना माना जाता है। उन्हें आमतौर पर “शास्त्र” के रूप में संदर्भित किया जाता है, जो सटीक है कि उन्हें दिव्य प्रकृति के विषय में पवित्र रिट के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। अन्य धर्मों के धर्मग्रंथों के विपरीत, हालांकि, वेदों के बारे में यह नहीं सोचा जाता है कि वे किसी विशिष्ट व्यक्ति या व्यक्ति के लिए एक विशिष्ट ऐतिहासिक क्षण में प्रकट हुए हैं; माना जाता है कि वे हमेशा अस्तित्व में थे।

वेद का अर्थ – Meaning of vedas

वेद धार्मिक ग्रंथ हैं जो हिंदू धर्म के धर्म (जिसे सनातन धर्म के रूप में भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है “अनन्त आदेश” या “अनन्त मार्ग”)। वेद शब्द का अर्थ “ज्ञान” है, जिसमें उन्हें अस्तित्व के अंतर्निहित कारण, कार्य और व्यक्तिगत प्रतिक्रिया से संबंधित मौलिक ज्ञान शामिल माना जाता है।

वेद की उत्पत्ति – Origin of vedas

हिन्दू धर्म में वेदों की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के द्वारा हुई क्योंकि वेदों का ज्ञान देवो के देव महादेव अर्थात शिव जी ने ब्रह्माजी को दिया था और ब्रह्माजी ने यह ज्ञान चार ऋषियों को दिया था जिनके द्वारा वेदों की रचना की गई थी। ये चार ऋषि ब्रह्माजी का ही अंश उनके पुत्र थे इनका नाम अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा था। इन चार ऋषियों ने तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रभिवित किया जिसके बाद ब्रह्मा जी ने उन्होने वेदों का ज्ञान प्राप्त किया था और इन चार ऋषियों का जिक्र शतपथ ब्राह्मण और मनुस्मृति में भी मिलता है। शतपथ ब्राह्मण और मनुस्मृति में बताया गया है कि अग्नि, वायु और आदित्य ने क्रमशः यजुर्वेद, सामवेद और ऋग्वेद ने किया जबकि अथर्ववेद का समबन्ध अंगिरा से है अथर्ववेद की रचना अंगिरा ने की।

कहा जाता हैं कि मनुशोक धरती पर आने से पहले इन वेदों की रचना हो चुकी थी लेकिन कुछ मतो का मानना है कि ये चारो वेद एक ही थे लेकिन वेदव्यास ने इसी एक वेद से से चारो वेदों की रचना की लेकिन ये बात सत्य नहीं है क्योकि मस्तस्य पुराण में बताया गया है कि ये चार वेद शुरुवात से ही अलग थे इन वेदों के साथ चारो ऋषियों का नाम भी जुड़ा हुआ है।

वैदिक काल – Vedic Period

वैदिक काल (सी. 1500 – सी. 500 बी.सी.ई.) वह युग है जिसमें वेद लेखन के लिए प्रतिबद्ध थे, लेकिन इसका अवधारणाओं या मौखिक परंपराओं की उम्र से कोई लेना-देना नहीं है। पदनाम “वैदिक काल” एक आधुनिक निर्माण है, जो एक इंडो-आर्यन प्रवासन के साक्ष्य पर निर्भर करता है, जिसे, जैसा कि उल्लेख किया गया है, सार्वभौमिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया है। फिर भी, यह सिद्धांत उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर ऐतिहासिक रूप से सबसे सटीक रूप से स्वीकृत सिद्धांत है।

उपवेद

हिन्दू धर्म के चार मुख्‍य माने गए वेदों (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद) से निकली हुयी शाखाओं रूपी वेद ज्ञान को उपवेद कहते हैं। उपवेदों के वर्गीकरण के बारे में विभिन्न इतिहासकारों तथा विद्वानों के विभिन्न मत हैं,किन्तु सर्वोपयुक्त निम्नवत है-

उपवेद भी चार हैं-

आयुर्वेद- ऋग्वेद से (परन्तु सुश्रुत इसे अथर्ववेद से व्युत्पन्न मानते हैं);
धनुर्वेद – यजुर्वेद से ;
गन्धर्ववेद – सामवेद से, तथा
शिल्पवेद – अथर्ववेद से ।

वेद के प्रकार- Types of Vedas

वेद चार प्रकार के हैं – ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। प्राचीन भारतीय इतिहास के सर्वश्रेष्ठ स्रोतों में से एक वैदिक साहित्य है। वेदों ने भारतीय शास्त्र का निर्माण किया है। वैदिक धर्म के विचारों और प्रथाओं को वेदों द्वारा संहिताबद्ध किया जाता है और वे शास्त्रीय हिंदू धर्म का आधार भी बनते हैं।

वेद का नाम वेद की प्रमुख विशेषताएं
ऋग्वेद यह वेद का प्राचीनतम रूप है
सामवेद गायन का सबसे पहला संदर्भ
यजुर्वेद इसे प्रार्थनाओं की पुस्तक भी कहा जाता है
अथर्ववेद जादू और आकर्षण की पुस्तक

वेद विस्तार से – 

वह सबसे पुराना वेद ऋग्वेद है। इसमें 1028 भजन हैं, जिन्हें ‘सूक्त’ कहा जाता है और 10 पुस्तकों का संग्रह है, जिन्हें ‘मंडल’ कहा जाता है। ऋग्वेद की विशेषताएं नीचे दी गई तालिका में दी गई हैं:

ऋग्वेद:

सबसे पुराना वेद ऋग्वेद है। इसमें 1028 भजन हैं, जिन्हें ‘सूक्त’ कहा जाता है और 10 पुस्तकों का संग्रह है, जिन्हें ‘मंडल’ कहा जाता है। ऋग्वेद की विशेषताएं नीचे दी गई तालिका में दी गई हैं:

ऋग्वेद की विशेषताएँ – 

  • यह वेद का सबसे पुराना रूप और सबसे पुराना ज्ञात वैदिक संस्कृत पाठ (1800 – 1100 ईसा पूर्व) है।
  • ‘ऋग्वेद’ शब्द का अर्थ स्तुति ज्ञान है
  • इसमें 10600 छंद हैं।
  • 10 किताबों या मंडलों में से, किताब नंबर 1 और 10 सबसे कम उम्र की हैं, क्योंकि उन्हें बाद में किताबों की तुलना में 2 से 9 लिखा गया था।
  • ऋग्वैदिक पुस्तकें 2-9 ब्रह्मांड विज्ञान और देवताओं से संबंधित हैं।
  • ऋग्वैदिक पुस्तकें 1 और 10 दार्शनिक सवालों से निपटती हैं और समाज में एक दान सहित विभिन्न गुणों के बारे में बात करती हैं।
  • ऋग्वैदिक पुस्तकें 2-7 सबसे पुरानी और सबसे छोटी हैं जिन्हें पारिवारिक पुस्तकें भी कहा जाता है।
  • ऋग्वैदिक पुस्तकें 1 और 10 सबसे छोटी और सबसे लंबी हैं।
  • 1028 भजन अग्नि, इंद्र सहित देवताओं से संबंधित हैं और एक ऋषि ऋषि को समर्पित और समर्पित हैं।
  • नौवीं ऋग्वैदिक पुस्तक / मंडला पूरी तरह से सोमा को समर्पित है।
  • भजनों को बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाले मीटर गायत्री, अनुशुभुत, त्रिशबत और जगती (त्रिशबत और गायत्री सबसे महत्वपूर्ण हैं)

सामवेद:

धुनों और मंत्रों के वेद के रूप में जाना जाता है, सामवेद 1200-800 ईसा पूर्व के लिए वापस आता है। यह वेद लोक पूजा से संबंधित है। सामवेद की प्रमुख विशेषताएं नीचे दी गई तालिका में दी गई हैं:

सामवेद की विशेषताएँ-

  • 1549 छंद हैं (75 छंदों को छोड़कर, सभी ऋग्वेद से लिए गए हैं)
  • सामवेद में दो उपनिषद सन्निहित हैं- चंडोग्य उपनिषद और केना (Kena) उपनिषद
  • सामवेद को भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य का मूल माना जाता है।
  • इसे मधुर मंत्रों का भंडार माना जाता है।
  • यद्यपि इसमें ऋग्वेद की तुलना में कम छंद हैं, हालांकि, इसके ग्रंथ बड़े हैं।
  • सामवेद के पाठ के तीन पाठ हैं – कौथुमा, रौयण्य और जमानिया।
  • सामवेद को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है – भाग- I में गण नामक धुनें शामिल हैं और भाग- II में आर्चिका नामक तीन छंदों वाली पुस्तक शामिल है।
  • सामवेद संहिता का अर्थ पाठ के रूप में पढ़ा जाना नहीं है, यह एक संगीत स्कोर शीट की तरह है जिसे अवश्य सुना जाना चाहिए।

यजुर्वेद:

यह अनुष्ठान-भेंट मंत्र / मंत्रों का संकलन करता है। ये मंत्र पुजारी द्वारा एक व्यक्ति के साथ पेश किया जाता था जो एक अनुष्ठान करता था (ज्यादातर मामलों में यज्ञ अग्नि।) यजुर्वेद की प्रमुख विशेषताएं नीचे दी गई हैं:

यजुर्वेद की विशेषताएँ-

  • इसके दो प्रकार हैं – कृष्ण (काला / काला) और शुक्ल (श्वेत / उज्ज्वल)
  • कृष्ण यजुर्वेद में छंदों का एक व्यवस्थित, अस्पष्ट, प्रेरक संग्रह है।
  • शुक्ल यजुर्वेद ने छंदों को व्यवस्थित और स्पष्ट किया है।
  • यजुर्वेद की सबसे पुरानी परत में 1875 श्लोक हैं जो अधिकतर ऋग्वेद से लिए गए हैं।
  • वेद की मध्य परत में शतपथ ब्राह्मण है जो शुक्ल यजुर्वेद का भाष्य है।
  • यजुर्वेद की सबसे छोटी परत में विभिन्न उपनिषद हैं – बृहदारण्यक उपनिषद, ईशा उपनिषद, तैत्तिरीय उपनिषद, कथा उपनिषद, श्वेताश्वतर उपनिषद और मैत्री उपनिषद
  • वाजसनेयी संहिता शुक्ल यजुर्वेद में संहिता है।
  • कृष्ण यजुर्वेद के चार जीवित शब्द हैं – तैत्तिरीय संहिता, मैत्रायणी संहिता, कौह संहिता, और कपिस्ताला संहिता।

अथर्ववेद:

अथर्व का एक तत्पुरुष यौगिक, प्राचीन ऋषि और ज्ञान (अथर्वण + ज्ञान) का अर्थ है, यह 1000-800 ईसा पूर्व का है। अथर्ववेद की प्रमुख विशेषताएं नीचे दी गई है।

अथर्ववेद की विशेषताएँ-

  • इस वेद में जीवन की दैनिक प्रक्रियाओं को बहुत अच्छी तरह से जाना जाता है।
  • इसमें 730 भजन / सूक्त, 6000 मंत्र और 20 पुस्तकें हैं।
  • पयप्पलदा और सौनकिया अथर्ववेद के दो जीवित पाठ हैं।
  • जादुई सूत्रों का एक वेद कहा जाता है, इसमें तीन प्राथमिक उपनिषद शामिल हैं – मुंडका उपनिषद, मंडूक उपनिषद, और प्राण उपनिषद
  • 20 पुस्तकों की व्यवस्था उनके भजन की लंबाई से होती है।
  • सामवेद के विपरीत जहां ऋग्वेद से भजन उधार लिए गए हैं, अथर्ववेद के भजन कुछ को छोड़कर अद्वितीय हैं।
  • इस वेद में कई भजन शामिल हैं, जिनमें आकर्षण और जादू के मंत्र थे, जिनका उच्चारण उस व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो कुछ लाभ चाहता है, या अधिक बार एक जादूगर द्वारा जो इसे अपनी ओर से कहता है।

वेदव्यास का वेदों में क्या योगदान था और आखिर कैसे उनका नाम कृष्णद्वैपायन व्यास से वेदव्यास पड़ा।

पौराणिक कथाओं में यह बताया गया है की एक समय के लिए सौ साल का अकाल आ गया था जिसमें बहुत से ग्रंथ असंगठित हो गए थे तब वेदव्यास ने दुबारा इन वेदों और पुराणों को एक साथ संगठित किया था जब वेदव्यास इन वेदों को संगठित कर रहे थे तो उन्होंने इनको आसान बनाने के लिए भागो में बांट दिया जैसे कविता संविता और मंडल में बांट दिया था वेदव्यास वेदों को संगठित करने वाले है ना कि इनकी रचना करने वाले वेदों कि रचना तो ब्रह्मा के चार पुत्रो द्वारा हुई थी।

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खेलो इंडिया कार्यक्रम –परिचय, संक्षिप्त विवरण, लेटेस्ट अपडेट, उद्देश्य

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खेलो इंडिया कार्यक्रम क्या है? – What is the Khelo India program?

भारत में खेल के विकास के लिए खेतो भारत कार्यक्रम एक राष्ट्रीय योजना / योजना है। इसे वर्ष 2018 में दिल्ली में तत्कालीन खेल मंत्री कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ द्वारा लॉन्च किया गया था। यह कार्यक्रम भारत में खेल संस्कृति को बेहतर बनाने के लिए शुरू किया गया है।
राष्ट्रीय विकास, आर्थिक विकास, सामुदायिक विकास और व्यक्तिगत विकास के लिए एक साधन के रूप में मुख्य धारा के खेलों का उद्देश्य, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राजीव गांधी खेल अभियान’(जिसे पहले युवा क्रीड़ा और खेल अभियान कहा जाता था) को जोड़कर शहरी खेल अवसंरचना योजना ‘और राष्ट्रीय खेल प्रतिभा खोज प्रणाली कार्यक्रम’ द्वारा ‘खेलो इंडिया’ कार्यक्रम को मंजूरी दी थी।

खेलो इंडिया कार्यक्रम का संक्षिप्त विवरण – Khelo India program overview

कार्यक्रम का नाम खेलो इंडिया
आरंभ किया गया युवा मामले और खेल मंत्रालय
लॉन्च का वर्ष 2018
कार्यक्रम का आयोजन प्रतिवर्ष
वित्तीय राशि 5 लाख – 8 लाख प्रति वर्ष
योजना की प्रयोज्यता प्रिसेंस अक्रॉस नेशन (PAN India)
खेलो इंडिया यूथ गेम्स (KIYG) 2020 वेन्यू गुवाहाटी
खेलो इंडिया यूथ गेम्स (KIYG) 2021  वेन्यू हरियाणा
खेलो इंडिया यूथ गेम्स (KIYG ) 2021 के अंतर्गत खेलों की कुल संख्या 21
पंजीकरण मोड ऑनलाइन / ऑफलाइन
ऑफिसियल वेबसाइट kheloindia.gov.in
टोल-फ्री नंबर 18002085155
लैंड्लाइन नंबर 011-40051166
ईमेल आईडी nsrs.kheloindia@gmail.com

खेलो इंडिया कार्यक्रम से जुड़े लेटेस्ट अपडेट – Latest updates related to Khelo India program

  • केंद्रीय बजट ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए खेलों के लिए आवंटन को 230.78 cr करोड़ कम कर दिया।
  • खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2021 2021 टोक्यो ओलंपिक (जो 23 जुलाई को शुरू होने वाला है) के बाद पंचकुला (हरियाणा) में होने वाला है। सरकार ने घोषणा की है कि हरियाणा केहलो इंडिया यूथ गेम्स के चौथे संस्करण की मेजबानी करेगा।
  • 26 मार्च 2021 को वित्त मंत्रालय को प्रस्तुत EFC ज्ञापन में नई खेलो इंडिया योजना (2021-22 से 2025-26) के वित्तीय आशय के रूप में 8750 करोड़ रुपये की राशि का अनुमान लगाया गया है. खेलो इंडिया योजना के तहत वर्ष 2021-22 के लिए बजट अनुमान (B.E.) में 657.71 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है.
  • 26 मार्च 2021 को खेल मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने खेलो इंडिया योजना को 2021-22 से 2025-26 तक बढ़ाने का फैसला किया है. मंत्रालय ने 2021-22 से 2025-26 तक खेलो इंडिया योजना के विस्तार / निरंतरता के लिए वित्त मंत्रालय को एक व्यय वित्त समिति (EFC) ज्ञापन प्रस्तुत किया है.

खेलो इंडिया कार्यक्रम की श्रेणियाँ: खेलो इंडिया कार्यक्रम के तहत आने वाली विभिन्न श्रेणियां नीचे दी गई हैं-

  • खेल के मैदान का विकास
  • राष्ट्रीय/क्षेत्रीय/राज्य/खेल शिक्षाविदों को सहायता
  • सामुदायिक कोचिंग का विकास
  • राज्य स्तरीय खेलो इंडिया सेंटर
  • स्कूली बच्चों की शारीरिक शिक्षा
  • महिलाओं के लिए खेल
  • वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिता
  • विकलांग लोगों के बीच खेल को बढ़ावा देना
  • प्रतिभा खोज और विकास
  • शांति और विकास के लिए खेल
  • उपयोग और निर्माण / खेल अवसंरचना का उन्नयन
  • ग्रामीण और देशी / आदिवासी खेलों को बढ़ावा देना

खेलो इंडिया कार्यक्रम के लिए पात्रता: – Eligibility for Khelo India Programme

खेलो इंडिया कार्यक्रम के लिए पात्रता मानदंड नीचे दिया गया है:-

  • 17 वर्ष से कम आयु के उम्मीदवार अंडर -17 वर्ग में भाग ले सकते हैं।
  • 21 वर्ष से कम आयु के उम्मीदवार अंडर -21 श्रेणी में भाग ले सकते हैं।
  • आवेदन करने वाले खिलाड़ियों की आयु 10 से 18 वर्ष के बीच में होनी अनिवार्य है।
  • आवेदन कर्ता भारत का नागरिक हो।
  • खेल में प्रदर्शन के आधार पर चयन किया जायेगा।
  • योजना से जुड़ने के बाद पढ़ाई सुचारु रूप से चलती रहेगी।

खेलो इंडिया कार्यक्रम कौन-कौन से खेल शामिल हैं?

इस कार्यक्रम में 21 खेलों को शामिल किया गया हैं। इनमें एथलेटिक्स, तीरंदाजी, मुक्केबाजी, साइकिलिंग, तलवारबाजी, फुटबॉल, जिम्नास्टिक, हॉकी, जूडो, कयाकिंग एवं कैनोइंग, कबड्डी, पैरा खेल, रोइंग, निशानेबाजी, ताइक्वांडो, टेबल टेनिस, वॉलीबॉल, भारोत्तोलन, कुश्ती और वुशु शामिल हैं। ई-पाठशाला में दिग्गज खिलाड़ी अपने तकनीकी कौशल का प्रदर्शन करेंगे ओर युवा खिलाड़ियों से बात करके उनकी तकनीकी और संपूर्ण खेल में सुधार करने में मदद करेंगे।

खेलो इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य – Objective of Khelo India program

  • यह एक केंद्रीय क्षेत्र योजना (केंद्र सरकार की मशीनरी द्वारा लागू की गई योजना और केंद्र सरकार द्वारा 100% वित्त पोषण) होगी।
  • यह एक पैन इंडिया स्पोर्ट्स स्कॉलरशिप स्कीम है, जिसमें हर साल खेल अनुशासन में 1000 सबसे योग्य और प्रतिभाशाली एथलीट शामिल हैं।
  • चयनित एथलीट लगातार आठ वर्षों तक पांच लाख रुपये की छात्रवृत्ति राशि के हकदार होंगे।
  • यह एक अभूतपूर्व योजना है, जो एथलीटों के लिए दीर्घकालिक विकास मार्ग बनाने के लिए लागू की जाने वाली पहली योजना है।
  • स्पोर्ट्समैन को पढ़ाई और खेल दोनों को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाने के लिए, इस कार्यक्रम का उद्देश्य देश में 20 विश्वविद्यालयों की पहचान करना और उन्हें बढ़ावा देना है।
  • खेल को बढ़ावा देने के लिए, नवीनतम उपयोगकर्ता के अनुकूल तकनीक का उपयोग किया जाएगा। पूर्व: खेल इन्फ्रास्ट्रक्चर, देशी खेलों के लिए एक उपयोगकर्ता के अनुकूल वेबसाइट, एक राष्ट्रीय खेल प्रतिभा खोज पोर्टल और मोबाइल ऐप के माध्यम से खेल प्रशिक्षण के लिए सूचना प्रसार के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS)।
  • आयोजित खेल प्रतियोगिताओं के लिए अधिकतम प्रविष्टियां सुनिश्चित करने के लिए, कार्यक्रम स्कूल और कॉलेजों को उच्च मानकों के कार्यक्रम आयोजित करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • एक स्वस्थ जीवन शैली के साथ एक सक्रिय आबादी का गठन भी इस कार्यक्रम का फोकस है। इस उद्देश्य के लिए, एक राष्ट्रीय शारीरिक स्वास्थ्य अभियान की योजना बनाई गई है जहाँ 10-18 वर्ष की आयु के बच्चों की शारीरिक दक्षता की जाँच की जाएगी। इसके अलावा, उनकी शारीरिक फिटनेस का समर्थन करने के लिए गतिविधियों की योजना बनाई जाएगी।
  • इसका उद्देश्य खेल अर्थव्यवस्था, प्रतियोगिता संरचना, प्रतिभा पहचान, कोचिंग और बुनियादी ढांचे को शामिल करते हुए पूरे खेल पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करना है।
  • कार्यक्रम से वंचित और अशांत क्षेत्रों में रहने वाले युवाओं को खेल गतिविधियों में शामिल करने की योजना है ताकि उन्हें राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया में मुख्यधारा में लाया जा सके और विघटनकारी गतिविधियों से दूर किया जा सके।

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इतिहास से संबंधित विभिन्न प्रकार के लेखों के बीच अंतर

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किसी भी दो अवधारणाओं, विषयों, लोगों के समूह, खंड आदि के बीच अंतर हमेशा कई जिज्ञासु मन के लिए जिज्ञासा का विषय रहा है। इस तरह के एक पहलू को ध्यान में रखते हुए, इस लेख ने इतिहास, राजनीति, भूगोल, विभिन्न सिविल सेवा पदों और कई अन्य विविध विषयों के बारे में विषयों पर आधारित लेखों के बीच अंतर की एक विस्तृत सूची तैयार की है।

भक्ति और सूफी आंदोलन अंतर – Bhakti and Sufi Movements Differences

मध्यकालीन भारत के भक्ति और सूफी आंदोलनों ने एक समग्र संस्कृति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसकी विरासत आज तक देखी जा सकती है। यह UPSC इतिहास खंड में सबसे अधिक पूछे जाने वाले प्रश्नों में से एक है।

भक्ति आंदोलन सूफी आंदोलन
भक्ति आंदोलन ने बड़े पैमाने पर हिंदुओं को प्रभावित किया इसके अनुयायी मुख्य रूप से मुस्लिम थे
भक्ति आंदोलन के संतों ने देवी और देवताओं की पूजा करने के लिए भजन गाया सूफी संतों ने कव्वालियों को गाया – धार्मिक भक्ति को प्रेरित करने के लिए संगीत का एक रूप
भक्ति आंदोलन की उत्पत्ति आठवीं शताब्दी के दक्षिण भारत में हुई है सूफीवाद की उत्पत्ति का पता सातवीं शताब्दी के अरब प्रायद्वीप में इस्लाम के शुरुआती दिनों से लगाया जा सकता है
भक्ति आंदोलन को विद्वानों ने हिंदू धर्म में एक प्रभावशाली सामाजिक पुनरुद्धार और सुधार आंदोलन के रूप में माना है इसे इस्लाम के एक अन्य संप्रदाय के रूप में गलत समझा गया है, लेकिन यह किसी भी इस्लामी संप्रदाय के लिए एक धार्मिक आदेश है
दक्षिण भारत में अपनी उत्पत्ति के बिंदु से, भक्ति आंदोलन 15 वीं शताब्दी से पूर्व और उत्तर भारत में बह गया यह कई महाद्वीपों और संस्कृतियों को फैलाता है।
भक्ति आंदोलन ने परमात्मा की प्रत्यक्ष भावनात्मक और बुद्धि को साझा किया। सूफीवाद ने सादगी और तपस्या पर जोर दिया, जो मध्ययुगीन साम्राज्यों और राज्यों की दुनिया के कारण कई अनुयायियों को मिला।
कबीर दास, चैतन्य महाप्रभु, नानक, मीराबाई, बसरा के हसन, अमीर खुसरू, मोइनुद्दीन चिश्ती

अक्ष शक्तियों और केंद्रीय शक्तियों के बीच अंतर – Difference Between Axis and Central Powers

एक्सिस और सेंट्रल पॉवर्स दो गुट थे, जिन्होंने मित्र देशों की शक्तियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। विश्व युद्ध 2 में मित्र राष्ट्रों के खिलाफ एक्सिस शक्तियों ने लड़ाई की और केंद्रीय शक्तियों ने उनके खिलाफ विश्व युद्ध 1 में लड़ाई लड़ी।

उनके बीच समानता यह थी कि वे दोनों अन्य देशों की कीमत पर विस्तारवादी एजेंडा रखते थे और दोनों के बीच मतभेदों में से एक यह है कि सेंट्रल पॉवर विश्व युद्ध 1 के दौरान मित्र राष्ट्रों के दुश्मन थे, जबकि एक्सिस शक्तियां विरोध में से एक थीं दूसरे विश्व युद्ध के गुट।

अक्ष शक्तियां केंद्रीय शक्तियां
अक्ष शक्तियां द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान सक्रिय थीं केंद्रीय शक्तियां प्रथम विश्व युद्ध की पूरी अवधि के दौरान सक्रिय थे। 1918 में अपनी हार पर यह भंग हो गया था
अक्ष शक्तियों में नाजी जर्मनी, फासीवादी इटली और इंपीरियल जापान शामिल थे। केंद्रीय शक्तियों में इंपीरियल जर्मनी, ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य, ओटोमन साम्राज्य और बुल्गारिया शामिल थे
अक्ष शिविर का नेतृत्व जर्मन फ़्यूहरर एडोल्फ हिटलर, इतालवी तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी और जापानी शोवा सम्राट हिरोहितो ने किया था (हालांकि सैन्य मामलों का नेतृत्व जनरल टोज़ो हिदेकी द्वारा किया गया था) सेंट्रल पॉवर्स का नेतृत्व जर्मनी के सम्राट विल्हेम, ऑस्ट्रो-हंगरी साम्राज्य के राजा फ्रांज-जोसेफ, ओटोमन साम्राज्य के सुल्तान मेहमेद वी और बुल्गारिया के ज़ार फर्डिनेंड वी द्वारा किया गया था।
अक्ष शक्तियां ज्यादातर सम्राट हिरोहितो के नेतृत्व वाले इंपीरियल जापान के अपवाद के साथ तानाशाही थीं केंद्रीय शक्तियां सभी साम्राज्यवादी एजेंडे को ध्यान में रखते हुए थे
अक्ष शक्तियां अपने पड़ोसियों की कीमत पर क्षेत्रीय विस्तार से प्रेरित थीं और यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनके प्रभाव क्षेत्र को साम्यवाद की उन्नति से संरक्षित किया गया था केंद्रीय शक्तियां अन्य यूरोपीय शक्तियों जैसे कि ब्रिटिश और फ्रांसीसी साम्राज्य के खिलाफ अपने हितों की रक्षा और विस्तार करते हुए अपने स्वयं के क्षेत्रीय आधिपत्य को संरक्षित करना चाहती थीं।
1941 में अक्ष की युद्धकालीन जीडीपी $ 911 बिलियन थी 1914 में केंद्रीय शक्तियों का Wartime GDP 383.9 बिलियन डॉलर था
1938 में धुरी की आबादी 258.9 मिलियन थी। I1914 में केंद्रीय शक्तियों की जनसंख्या 156.1 मिलियन थी
अक्ष शक्तियों ने द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारंभिक चरण (1939-1942) के दौरान दक्षिण-पूर्व एशिया के अधिकांश के साथ पश्चिमी और मध्य यूरोप के एक बड़े दलदल का प्रभुत्व किया। सेंट्रल पावर ने अधिकांश विश्व युद्ध 1 के लिए पहल की, लेकिन कोई महत्वपूर्ण लाभ नहीं हुआ। 1918 में संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश पर उनकी सफलताओं को उलट दिया गया
अक्ष शक्तियां मित्र राष्ट्रों द्वारा पराजित की जाएगी। इटली 8 सितंबर, 1943 को पहली बार आत्मसमर्पण करने वाला होगा।
7 मई, 1945 को जर्मनी ने आत्मसमर्पण कर दिया।
हिरोशिमा और नागासाकी के जुड़वां शहरों पर परमाणु बम गिराने के बाद, इम्पीरियल जापान ने औपचारिक रूप से 2 सितंबर, 1945 को मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
निम्नलिखित तारीखें हैं जिन पर प्रत्येक केंद्रीय शक्तियां राष्ट्र ने युद्धविराम पर हस्ताक्षर किए हैं:
बुल्गारिया – 29 सितंबर,
ओटोमन साम्राज्य – 30 अक्टूबर,
ऑस्ट्रिया-हंगरी – 4 नवंबर,
जर्मा साम्राज्य – 11 नवंबर,

प्रारंभिक वैदिक काल और बाद के वैदिक काल के बीच अंतर – Difference Between Early and Late Vedic Period

वैदिक युग प्राचीन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण युग था। इस प्रकार, इस विषय के प्रश्न हमेशा UPSC प्रीलिम्स के इतिहास खंड में चित्रित किए गए हैं।

वैदिक युग को ही प्रारंभिक वैदिक काल (c.1500 – 1200 BCE) और बाद में वैदिक काल (c.1100 – 500 BCE) में विभाजित किया गया है। इसका कारण यह है कि पहले वेदों के बाद के वैदिक धर्मग्रंथों के स्वरूप को लिखे जाने के समय से समाज में भारी बदलाव आया।

प्रारंभिक वैदिक काल बाद में वैदिक काल
जाति व्यवस्था लचीली थी और जन्म के बजाय पेशे पर आधारित थी जन्म के मुख्य मापदंड होने के साथ इस अवधि में जाति व्यवस्था अधिक कठोर हो गई
शूद्र या अछूत की कोई अवधारणा नहीं थी बाद के वैदिक काल में शूद्र एक मुख्य आधार बन गए। उनका एकमात्र कार्य सवर्णों की सेवा करना था
इस अवधि में महिलाओं को अधिक स्वतंत्रता की अनुमति दी गई थी। उन्हें उस समय की राजनीतिक प्रक्रिया में एक निश्चित सीमा तक भाग लेने की अनुमति थी महिलाओं को अधीनस्थ और शालीन भूमिकाओं में शामिल करके समाज में उनकी भागीदारी से प्रतिबंधित कर दिया गया था
किंग्सशिप तरल था क्योंकि राजाओं को एक निश्चित अवधि के लिए स्थानीय सभा द्वारा समिति के रूप में जाना जाता था चूंकि इस अवधि में समाज अधिक शहरीकृत हो गया, इसलिए स्थिर नेतृत्व की आवश्यकता महसूस की गई। इस प्रकार राजाओं का पूर्ण शासन अधिकाधिक प्रमुख होता गया
प्रारंभिक वैदिक समाज प्रकृति में देहाती और अर्ध-घुमंतू था समाज प्रकृति में अधिक व्यवस्थित हो गया। यह सामान्य रूप से कृषि के आसपास केंद्रित हो गया
प्रारंभिक वैदिक काल में, विनिमय प्रणाली का हिस्सा होने के कारण विनिमय प्रणाली कम मौद्रिक मूल्य के लेनदेन के साथ अधिक प्रचलित थी हालाँकि वस्तु विनिमय प्रणाली अभी भी चलन में थी, लेकिन इसे बड़े पैमाने पर सोने और चांदी के सिक्कों के बदले ले लिया गया, जिन्हें कृष्णल के नाम से जाना जाता है
ऋग्वेद इस पाठ को इस काल का सबसे पुराना पाठ कहा जाता है यजुर्वेद,  सामवेद, अथर्ववेद

बौद्ध धर्म और जैन धर्म के बीच अंतर और समानताएं – Difference and Similarities Between Hinduism and Jainism

बौद्ध और जैन धर्म प्राचीन धर्म हैं जो प्राचीन भारत के दिनों में विकसित हुए थे। बौद्ध धर्म गौतम बुद्ध की शिक्षाओं पर आधारित है, जबकि जैन धर्म महावीर की शिक्षाओं पर आधारित है

इसके अलावा, शब्दावली और नैतिक सिद्धांतों के आधार पर बौद्ध और जैन धर्म के बीच कई समानताएं हैं, लेकिन उन्हें लागू करने का तरीका अलग है।

बौद्ध और जैन धर्म के बीच अंतर-

बुद्ध धर्म जैन धर्म
पुनर्जन्म बौद्ध धर्म में प्रमुख मान्यताओं में से एक है। यह माना जाता है कि जन्म और पुनः जन्म का अंतहीन चक्र केवल निर्वाण (ज्ञान) प्राप्त करके ही तोड़ा जा सकता है जैन धर्म का मानना है कि मुक्ति प्राप्त होने तक अच्छे या बुरे कर्मों के कारण पुनर्जन्म और मृत्यु का चक्र जारी रहेगा
शास्त्रों में त्रिपिटक शामिल है, जो एक विशाल पाठ है जिसमें 3 खंड हैं: अनुशासन, प्रवचन और टीकाएँ। जैन धर्म ग्रंथों को आगम कहा जाता है
बौद्ध धर्म का प्रमुख उपदेश यह है कि जीवन दुख झेल रहा है और दुख (इच्छा का अंतिम कारण) से बचने के लिए किसी को चार महान सत्य को महसूस करके अज्ञान को दूर करना होगा और आठ पथ का अभ्यास करना होगा जैन धर्म सभी जीवित प्राणियों के सम्मान पर जोर देता है। पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति पाँच व्रतों को लेने और तीन ज्वेल्स के सिद्धांतों का पालन करने से प्राप्त होती है
बौद्ध धर्म में पाप एक अवधारणा नहीं है पाप को दूसरों के लिए नुकसान के रूप में परिभाषित किया गया है
गौतम बुद्ध की मृत्यु पर बौद्ध धर्म दो प्रमुख संप्रदायों में विभाजित है। वे महायान और थेरवाद हैं श्वेतांबर और दिगंबर जैन धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय हैं
बौद्ध धर्म के कुछ ग्रंथों के अनुसार, स्वर्ग में प्राणी हैं लेकिन वे “संसार” से बंधे हैं। वे कम बू वे पीड़ित हैं, वे अभी तक मोक्ष प्राप्त नहीं किया है जैन धर्म में देवताओं को “टिट्रांकेनस” के रूप में जाना जाता है। लेकिन वे पारंपरिक अर्थों में पूज्य नहीं हैं क्योंकि वे ऐसे विद्वान माने जाते हैं जिनकी शिक्षाओं का पालन किया जाना चाहिए
बौद्ध धर्म की स्थापना 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में राजकुमार सिद्धार्थ ने आधुनिक नेपाल में की थी धर्म के विद्वान आमतौर पर मानते हैं कि जैन धर्म की उत्पत्ति 7 वीं-पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में उत्तरी भारत में हुई थी। महावीर, जिन्हें वर्धमान के नाम से भी जाना जाता है, जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर (आध्यात्मिक शिक्षक) थे
बौद्ध धर्म के अनुयायी मुख्य रूप से थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, भारत, नेपाल, भूटान, तिब्बत, जापान, म्यांमार (बर्मा), लाओस, वियतनाम, चीन, मंगोलिया, कोरिया, सिंगापुर, हांगकांग और ताइवान में पाए जा सकते हैं। जैन धर्म के अनुयायी मुख्य रूप से भारत में, कम एशियाई उपमहाद्वीप और पूरे अमेरिका में पाए जाते हैं।

बौद्ध और जैन धर्म के बीच समानताएं – बौद्ध धर्म और जैन धर्म के बीच महत्वपूर्ण अंतर के बारे में जानने के बाद, अब हम दोनों धर्मों के बीच समानता की जांच करेंगे।

कारक व्याख्या
वेदों की अस्वीकृति बौद्ध धर्म और जैन धर्म ने वेदों और पुरोहित वर्ग के अधिकार के साथ भव्य अनुष्ठानों की धारणा को खारिज कर दिया
संस्थापक अपने समकालीन, गौतम बुद्ध की तरह, महावीर जैन एक शाही परिवार में पैदा हुए थे। दोनों ने आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए अपनी आरामदायक जीवन शैली को त्याग दिया
पशु अधिकार बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों ने जानवरों के खिलाफ अहिंसा के सिद्धांत पर भी जोर दिया और उन्हें भी उतना ही सम्मान दिया जाना चाहिए जितना कि एक इंसान को दिया जाता है
कर्म बौद्ध और जैन दोनों ही कर्म की अवधारणा में विश्वास करते हैं, जो किसी व्यक्ति के कार्यों, विश्वासों और आध्यात्मिक जुड़ावों के आधार पर आत्मा को सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियों का लगाव है। पुनर्जन्म इस बल को आगे बढ़ाता है और आत्मा को शुद्ध करने के लिए प्रयास की आवश्यकता होती है।
ईश्वर और शास्त्र न तो धर्म ईश्वर को सृष्टि का रचयिता मानता है। वे ब्रह्मांड की दिव्यता का हिस्सा होने के नाते सभी निर्माण को स्वीकार करते हैं। जैसे, उनके पवित्र ग्रंथों को भगवान या पवित्र कहानियों का शब्द नहीं माना जाता है।
पुनर्जन्म बौद्ध धर्म और जैन धर्म पुनर्जन्म की अवधारणा में विश्वास करते हैं, जो कि पिछले शरीर की मृत्यु के बाद एक नए शरीर में आत्मा का पुनर्जन्म है।

गवर्नर-जनरल और वाइसराय के बीच अंतर – Difference and Similarities Between Hinduism and Jainism

गवर्नर-जनरल और वायसराय ब्रिटिश भारत के मुख्य प्रशासनिक दल थे जिन्होंने यह देखा था कि ब्रिटिश साम्राज्य के “क्राउन में गहना”। आमतौर पर, प्रकृति और कार्य में समान रूप से भिन्न होने के बावजूद, दो शब्दों का परस्पर विनिमय किया जाता है।

गवर्नर-जनरल वायसराय
भारत के गवर्नर-जनरल का पद 1833 के चार्टर अधिनियम के पारित होने के बाद विलियम बेंटिक का पहला गवर्नर-जनरल बनने के साथ बनाया गया था 1857 के विद्रोह के बाद, भारत सरकार अधिनियम, 1858 पारित किया गया, जिसने भारत के गवर्नर-जनरल का नाम बदलकर विन्सॉय किया
भारत के गवर्नर-जनरल का पद मुख्य रूप से प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए था और ईस्ट इंडिया कंपनी के कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स को रिपोर्ट किया गया था 1858 के बाद, भारत के वायसराय और गवर्नर-जनरल की भूमिका वाइसराय की कूटनीतिक शक्तियों वाली एक हो गई और सीधे ब्रिटिश क्राउन को सूचना दी
भारत के गवर्नर-जनरल को कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स द्वारा चुना गया था जो प्रभारी थे वायसराय को संसद की सलाह के तहत ब्रिटिश सरकार के संप्रभु द्वारा नियुक्त किया गया था
समय अवधि: 1833 – 1858 समय अवधि: 1858 – 1948
विलियम बेंटिक पहले गवर्नर-जनरल थे लॉर्ड कैनिंग पहले वायसराय थे
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी अंतिम गवर्नर-जनरल थे लॉर्ड लुईस माउंटबेटन अंतिम वायसराय थे
ग्रेट ब्रिटेन की संसद के नाम पर आयोजित डोमिनियनों और उपनिवेशों को एक गवर्नो-जनरल द्वारा प्रशासित किया गया था ब्रिटिश क्राउन के नाम पर जो उपनिवेश थे, वे वायसराय द्वारा शासित थे

वेद और उपनिषद में अंतर – Difference between Vedas and Upanishads

वेद प्राचीन भारत में उत्पन्न धार्मिक ग्रंथों का एक बड़ा निकाय है। वैदिक संस्कृत में रचित, ग्रंथ संस्कृत साहित्य की सबसे पुरानी परत और हिंदू धर्म के सबसे पुराने ग्रंथ हैं।

उपनिषद धार्मिक शिक्षाओं और विचारों के दिवंगत वैदिक संस्कृत ग्रंथ हैं जो आज भी हिंदू धर्म में पूजनीय हैं। उपनिषदों ने प्राचीन भारत में आध्यात्मिक विचारों के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो वैदिक कर्मकांड से नए विचारों और संस्थानों में परिवर्तन का प्रतीक है।

वेद उपनिषद
वेदों की रचना एक समय अवधि में 1200 से 400 ई.पू. उपनिषदों को एक समय अवधि में 700 से 400 ईसा पूर्व तक लिखा गया था
वेदों ने अनुष्ठान संबंधी विवरणों, उपयोगों और परंपराओं पर ध्यान केंद्रित किया। उपनिषदों ने आध्यात्मिक ज्ञान पर ध्यान केंद्रित किया।
वेद का अर्थ है संस्कृत में ज्ञान। इसे “अपौरस” के रूप में जाना जाता है जिसका अर्थ है मनुष्य का नहीं। उपनिषद शब्द अपा (निकट) और शद (बैठने के लिए) से लिया गया है। यह शिक्षक के पैरों के पास बैठने की अवधारणा से लिया गया है।
4 अलग-अलग वेद हैं – ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद। 200 से अधिक उपनिषदों की खोज की गई है। प्रत्येक उपनिषद एक निश्चित वेद से जुड़ा हुआ है। 14 उपनिषद हैं जो सबसे अधिक प्रसिद्ध या सबसे महत्वपूर्ण हैं – कथा, केना, ईसा, मुंडका, प्रसन्ना, तैत्तिरीय, छांदोग्य, बृहदारण्यक, मांडूक्य, ऐतरेय, कौशीतकी, श्वेताश्वतर और मैत्रायणी।
सभी 4 वेद विभिन्न ग्रंथों की रचनाएं हैं। उपनिषद किसी भी वेद के अंतिम खंड में हैं। उपनिषद एक वेद के उपश्रेणी हैं।
वेदों को 4 प्रमुख पाठ प्रकारों में समाहित किया गया है – संहिता (मंत्र), अरण्यक (अनुष्ठानों, बलिदानों, समारोहों पर ग्रंथ), ब्राह्मण (यह पवित्र ज्ञान की व्याख्या देता है, यह वैदिक काल के वैज्ञानिक ज्ञान को भी उजागर करता है) और 4 प्रकार का पाठ है। उपनिषद। 3 प्रकार के ग्रंथ जीवन के अनुष्ठानिक पहलुओं से निपटते हैं। उपनिषद वेदों के 4 प्रमुख पाठ प्रकारों में से एक है। उपनिषद आध्यात्मिक ज्ञान और दर्शन पर आधारित ग्रंथ हैं। उपनिषदों की उत्पत्ति वेदों की प्रत्येक शाखा से हुई है। उपनिषद जीवन के दार्शनिक पहलुओं से संबंधित हैं

जनपद और महाजनपद के बीच अंतर – Difference Between Janapadas and Mahajanapadas

जनपद वैदिक काल के छोटे राज्य थे। उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में लोहे के विकास के साथ, जनपद अधिक शक्तिशाली बन गए और महाजनपदों में विकसित हो गए। महाजनपदों में परिवर्तन ने अर्द्ध-घुमंतू आजीविका से शहरीकरण और स्थायी समाधान के आधार पर एक संस्कृति की ओर प्रस्थान किया।

जनपद महाजनपद
1500 ईसा पूर्व से 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक 600 ईसा पूर्व – 345 ईसा पूर्व
संस्कृत शब्द “जनपद” यौगिक शब्द, दो शब्दों से बना है: जना और पद। जन का अर्थ है “लोग” या “विषय” शब्द पद का अर्थ है “पैर” महाजपद एक यौगिक शब्द है जिसका अर्थ है महान “महान”, और जनपद जिसका अर्थ है “एक लोक की तलहटी”
इस अवधि में जनपद प्राचीन भारत की सर्वोच्च राजनीतिक इकाई थी। वे आमतौर पर प्रकृति में राजतंत्रीय थे, हालांकि कुछ ने सरकार के एक गणतांत्रिक रूप का पालन किया। महाजनपदों ने अभी भी अपने राजतंत्रीय स्वरूप को बरकरार रखा है, जबकि कुछ गणतंत्र शक्तिशाली कुलीन वर्गों के नियंत्रण में आ गए।
कांस्य युग (3000 ईसा पूर्व – 1000 ईसा पूर्व) से लौह युग (1500-200 ईसा पूर्व) तक का संक्रमण जनपदों के समय हुआ था महाजनपदों के युग ने सिंधु घाटी सभ्यता के निधन के बाद भारत के पहले बड़े शहरों के उदय के साथ-साथ बौद्ध धर्म और जैन धर्म के उदय को देखा जिसने वैदिक काल के धार्मिक रूढ़िवाद को चुनौती दी थी।
वैदिक साहित्य के अनुसार, निम्नलिखित जनपदों में से कुछ का उल्लेख किया गया था:- अलीना, अनु, गांधारी, कलिंग, मत्स्य बौद्ध और जैन स्रोतों के अनुसार, महाजापादों में से कुछ निम्नलिखित हैं:- चेदि, गांधार, कोशल, मगध

प्लासी की लड़ाई और बक्सर की लड़ाई के बीच अंतर – Difference Between Battle of Plassey and Battle of Buxar

प्लासी और बक्सर की लड़ाई में उनके बीच एक समानता है: दोनों लड़ाइयों के परिणामों ने उपनिवेशवाद का युग शुरू किया जिसकी विरासत अभी भी भारतीय उपमहाद्वीप के वर्तमान अरब-मजबूत आबादी को प्रभावित करती है।

प्लासी की लड़ाई 23 जून 1757 को ईस्ट इंडिया कंपनी (31 दिसंबर, 1600 को गठित) की सेनाओं के बीच रॉबर्ट क्लाइव और मुगल बंगाल द्वारा नवाब सिराज उद-दौला के नेतृत्व में लड़ी गई थी। लड़ाई ईस्ट इंडिया कंपनी की निर्णायक जीत में समाप्त हुई जिसने उन्हें पूरे उपमहाद्वीप में अपना प्रभाव फैलाने का एक मजबूत गढ़ दिया।

22 अक्टूबर 1764 को मीर कासिम और ईस्ट इंडिया कंपनी की संयुक्त सेनाओं के बीच लड़ी गई बक्सर की लड़ाई कंपनी के लिए एक और निर्णायक जीत थी जिसने बंगाल और बिहार के प्रांतों को अपनी पूर्णता में देखा। इससे ईस्ट इंडिया कंपनी को आर्थिक लाभ मिला।

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प्लासी की लड़ाई (23 जून 1757) बक्सर की लड़ाई (22 अक्टूबर 1764)
प्लासी की लड़ाई का तत्काल कारण निम्नलिखित कारकों के लिए जिम्मेदार है:
ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बंगाल के नवाब को कर का भुगतान न करना
ईस्ट इंडिया कंपनी के कृष्ण दास जैसे प्रतिद्वंद्वियों के संरक्षण के माध्यम से नवाब के अधिकार को परिभाषित करना
कलकत्ता और अन्य क्षेत्रों में व्यापार उद्देश्यों के लिए पट्टे पर ईस्ट इंडिया कंपनी को पट्टे पर समेकन।
मीर कासिम, जिन्हें अपने ससुर मीर जाफर को जमा करने पर बंगाल का नवाब बनाया गया था, ने अपनी स्वतंत्रता को छीनते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी को चेतावनी दी कि वह उस पर युद्ध की घोषणा करे। कहा जाता है कि दोनों के बीच की लड़ाई बक्सर की लड़ाई का प्रमुख कारक है।
प्लासी की लड़ाई ईस्ट इंडिया कंपनी के रॉबर्ट क्लाइव और बंगाल के मुगल प्रशासक नवाब सिराज-उद-दौला द्वारा लड़ी गई थी। बक्सर का युद्ध एक गठबंधन द्वारा लड़ा गया था
मीर कासिम, बंगाल के नवाब
अवध के नवाब, शुजा-उद-दौला
मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय
ईस्ट इंडिया कंपनी के हेक्टर मुनरो के खिलाफ
ईस्ट इंडिया कंपनी ने प्लासी की लड़ाई में ब्रिटिश और देशी सैनिकों सहित 3100 सैनिकों को शामिल किया बंगाल की सेनाओं ने 7000 पैदल सेना और 5000 घुड़सवारों के साथ 15,000 घुड़सवार और 35,000 पैदल सेना के सैनिक शामिल थे। ऐतिहासिक अनुमानों ने ईस्ट इंडिया कंपनी फोर्सेज को 70 तोपों के साथ 30 तोपों के साथ बंगाल और बिहार की संबद्ध सेनाओं को 40,000 पर डाल दिया।
बंगाल की सेना के लिए लड़ाई अच्छी तरह से चल रही थी जब तक कि मीर जाफ़र ने रॉबर्ट क्लाइव द्वारा रिश्वत दी, अपनी पूरी सेना के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी से हार गए, अपने पक्ष में तराजू बाँध लिया और बंगाल की सेना को निर्णायक झटका दिया। हालाँकि, बिहार और बंगाल की संबद्ध सेना के बीच संख्यात्मक रूप से बेहतर संचार नहीं था, फिर भी हेक्टर मुनरो को एक समय में उन्हें हराने की अनुमति मिली।
प्लासी पर ब्रिटिश जीत ने न केवल उस समय के दौरान अन्य भारतीय राज्यों की शक्ति की जाँच की बल्कि उन अन्य यूरोपीय शक्तियों की भी जाँच की जिनके उपमहाद्वीप में औपनिवेशिक हित थे। इसने ईस्ट इंडियन कंपनी के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में अन्य कठपुतली सरकारों की स्थापना या तो बल या कूटनीतिक उपायों के माध्यम से की, जैसे कि “चूक का सिद्धांत” बक्सर की लड़ाई ने ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा उत्तरी भारत के गंगा-मैदानों पर सीधा नियंत्रण स्थापित किया। इससे कई राज्य सीधे कंपनी के प्रभाव और अंतिम नियंत्रण में आ गए। बक्सर की लड़ाई में अंग्रेजों के लिए विजय ने उनकी योजनाओं के लिए वादा किया था जो उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप पर अपनी शक्ति और अधिकार प्रदान करने में मदद करेगा।

प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास के बीच अंतर- Difference Between Ancient, Medieval and Modern History

इतिहास का वर्गीकरण यह आकलन करने पर आधारित है कि किस काल में विश्वसनीय रिकॉर्ड उपलब्ध थे।

इस प्रकार, इतिहास में समय अवधि को दुनिया के इतिहास में महत्वपूर्ण युगों को संक्षेप में निम्नलिखित तीन में विभाजित किया गया है:

  • प्राचीन इतिहास
  • मध्यकालीन इतिहास
  • आधुनिक इतिहास

प्राचीन इतिहास वह समय अवधि है जहां सबसे पहले ज्ञात मानव बस्तियां 6000 ईसा पूर्व के आसपास पाई गई हैं। यह प्रमुख साम्राज्यों जैसे रोमन साम्राज्य, चीन के हान साम्राज्य और 650 ईस्वी के आसपास गुप्त साम्राज्य के पतन के साथ समाप्त होता है।

मध्यकालीन इतिहास, जिसे पोस्ट-क्लासिकल इतिहास के रूप में भी जाना जाता है, के बारे में कहा जाता है कि इस समय के आसपास जो सांस्कृतिक और धार्मिक उथल-पुथल चल रही थी, वह 500 ईस्वी सन् के आसपास शुरू हुई थी।

द मॉडर्न पीरियड में आज तक यूरोपियों द्वारा अतिरिक्त महाद्वीपीय विस्तार (एशिया और उत्तरी अमेरिका के अन्वेषण और उपनिवेशण की तरह) को शामिल किया गया है।

प्राचीन इतिहास मध्यकालीन इतिहास आधुनिक इतिहास
6000 ईसा पूर्व – 650 ईस्वी 500 ईस्वी – 1500 ईस्वी 500 ईस्वी-वर्तमान दिवस
मानव इतिहास के इस युग में समग्र मानव समाजों के निर्माण के लिए कांस्य और लोहे के औजारों का व्यापक उपयोग हुआ जो अंततः बड़े साम्राज्यों में विकसित हुए। विज्ञान और अन्य तकनीकी विकासों में कई प्रगति हुई जैसे कि बारूद का आविष्कार और एशिया और यूरोप के बीच व्यापार में वृद्धि तकनीकी विकास सरकार के नए सिस्टम के साथ पुराने सिस्टम पर काबू पाने के नए युग की शुरूआत करेगा
शास्त्रीय पुरातनता शब्द अक्सर प्राचीन इतिहास के साथ भ्रमित होता है जब वास्तव में इसका उपयोग पश्चिमी इतिहास में समय अवधि का वर्णन करने के लिए किया जाता है जब प्राचीन भूमध्यसागरीय सभ्यताएं समृद्ध होती हैं यूरोप में, मध्यकालीन इतिहास को “डार्क एज” के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि रोमन साम्राज्य के पश्चिमी आधे हिस्से के पतन के बाद अराजकता के कारण कई रिकॉर्ड खो गए थे समकालीन इतिहास या तो देर से आधुनिक काल का सबसेट है, या यह प्रारंभिक आधुनिक काल और देर से आधुनिक काल के साथ-साथ आधुनिक इतिहास के तीन प्रमुख उपसमुच्चय में से एक है। समकालीन इतिहास शब्द का उपयोग कम से कम 19 वीं शताब्दी के प्रारंभ से हुआ है।
यह अनुमान है कि विश्व की जनसंख्या लगभग 1000 ईसा पूर्व में 72 मिलियन थी। 500 ई। तक यह 209 मिलियन के आसपास रहा विश्व की जनसंख्या 500 ईस्वी में 210 मिलियन से बढ़कर 1500 ईस्वी में 461 मिलियन हो गई विश्व की जनसंख्या ४५० मिलियन से १५०० ईस्वी में बढ़कर of२० ईस्वी तक of अरब हो गई
इस युग की महत्वपूर्ण घटनाओं में यूनानी राज्यों का उदय, सिंधु घाटी सभ्यता का उत्थान और पतन और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के नेटवर्क की स्थापना शामिल है। हालांकि डार्क एजेस ने 476 ईस्वी में पश्चिम में रोमन साम्राज्य के पतन के साथ शुरू करने के लिए कहा है, 534 ईस्वी में अपने पूर्वी आधे (बीजान्टिन साम्राज्य के रूप में जाना जाता है) द्वारा इटली पर आक्रमण एक अवधि की सही शुरुआत कहा जाता है अराजकता और अव्यवस्था द्वारा चिह्नित 15 वीं और 16 वीं शताब्दी के पुनर्जागरण ने आधुनिक काल की शुरुआत की शुरुआत की जैसा कि हम आज जानते हैं। इस अवधि को सीखने, चिकित्सा, प्रौद्योगिकी और अन्वेषण में उल्लेखनीय प्रगति द्वारा चिह्नित किया गया था।

नाजीवाद और फासीवाद के बीच अंतर – Difference Between Nazism and Fascism

नाजीवाद और फासीवाद अधिनायकवाद के एक ही सिक्के के दो चेहरे हैं। यद्यपि नाजीवाद और फासीवाद दोनों उदारवाद, लोकतंत्र और साम्यवाद की विचारधारा को खारिज करते हैं, लेकिन दोनों के बीच कुछ बुनियादी अंतर हैं।

20 वीं शताब्दी में नाज़ीवाद और फासीवाद की उत्पत्ति हुई है। फासीवाद और फासीवादी आमतौर पर इटली में मुसोलिनी के उदय के साथ जुड़े हुए हैं जबकि नाजी और नाज़ीवाद जर्मनी (वीमर गणराज्य) में हिटलर के साथ जुड़े हुए हैं।

दोनों विचारधाराओं ने द्वितीय विश्व युद्ध को प्रज्वलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसके कारण विनाश और अराजकता की एक अनकही मात्रा हुई। आज तक, नाजीवाद और फासीवाद दोनों को दुनिया की बहुसंख्य आबादी द्वारा प्रतिकूल रोशनी में देखा जाता है।

फासीवाद नाजीवाद
फासीवाद ‘ऑर्गेनिक स्टेट’ बनाने के लिए सभी तत्वों के निगमीकरण में विश्वास करता है। फासीवादियों के लिए राज्य उनकी मान्यताओं का महत्वहीन तत्व था नाजीवाद ने नस्लवाद पर जोर दिया। सिद्धांत एक विशेष जाति द्वारा शासित राज्य की श्रेष्ठता में विश्वास करता था, इस मामले में, आर्य जाति
फासीवाद वर्ग व्यवस्था में विश्वास करता था और इसे बेहतर सामाजिक व्यवस्था के लिए संरक्षित करने की मांग करता था नाजीवाद ने वर्ग-आधारित समाज को नस्लीय एकता के लिए एक बाधा माना और इसे खत्म करने की मांग की
फासीवाद राज्य को राष्ट्रवाद के लक्ष्य को आगे बढ़ाने का एक साधन मानता था नाजीवाद ने राज्य को मास्टर रेस के संरक्षण और उन्नति के लिए एक उपकरण माना।
फासीवाद ’शब्द इतालवी शब्द ‘फासिस्मो’ (fascismo) से आया है, जो कि ‘फैसिओ‘ (fascio) से लिया गया है जिसका अर्थ है “लाठी का एक बंडल”, अंततः लैटिन शब्द ‘फैसीज़ ’ ‘फैसिस’ (‘fasces’ ‘Fasces’) प्राचीन रोमन साम्राज्य में शक्ति का प्रतीक था। नाजीवाद राष्ट्रीय समाजवादी जर्मन वर्कर्स पार्टी के जर्मन भाषा के नाम से लिया गया है
बेनिटो मुसोलिनी और ओसवाल्ड मोस्ले फासीवाद की उल्लेखनीय व्यक्तित्व हैं एडॉल्फ हिटलर और जोसेफ मेंजेल प्रसिद्ध नाज़ी हैं

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टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा शतक लगाने वाले बल्लेबाज

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टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा शतक लगाने वाले खिलाडी: (List of top 10 batsmen to score most centuries in Test Cricket in Hindi)

टेस्ट क्रिकेट का इतिहास:

क्रिकेट का इतिहास बहुत पुराना है। अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत साल 1877 में हुई थी। पूरे विश्व में लोकप्रिय हो चुका यह खेल मूल रूप से इंग्लैंड में विकसित हुआ था, जो अब अधिकांश राष्ट्र मंडल देशों में खेला जाता है। टेस्ट क्रिकेट, क्रिकेट का सबसे लम्बा स्वरूप होता है। टेस्ट क्रिकेट का प्रारूप 5 दिन का होता है, जिसमें एक दिन में 90 ओवर फेंके जाते हैं। टेस्ट क्रिकेट में दोनों टीमों को दो-दो बार गेंदबाज़ी और बल्लेबाज़ी का मौक़ा मिलता है।

टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले देश:

क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) द्वारा विश्व के 12 देशों अब तक टेस्ट क्रिकेट खेलने का दर्जा प्राप्त है।आईसीसी ने टेस्ट क्रिकेट को बढ़ावा देने के लिए ने 07 नवम्बर 2017 को लंदन में आयोजित बैठक में आयरलैंड और अफगानिस्तान को 11वें और 12वें देश के रूप में टेस्ट मैच खेलने का दर्जा दिया था।

टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले देशों की सूची:

  • इंग्लैंड
  • आस्ट्रेलिया
  • दक्षिण अफ़्रीका
  • वेस्ट इंडीज़
  • न्युजीलैंड
  • भारत
  • पाकिस्तान
  • श्रीलंका
  • ज़िम्बाब्वे
  • बांग्लादेश
  • अफ़ग़ानिस्तान
  • आयरलैंड

टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा शतक बनाने वाले खिलाडी:

अगर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में जब भी सबसे ज्यादा रन और शतकों की बात होगी, तो मास्टर ब्लास्टर के नाम से मशहूर भारतीय खिलाडी सचिन तेंदुलकर का नाम अवश्य आएगा। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मे सबसे ज्यादा शतक लगाने के मामले भारत के पूर्व कप्तान सचिन तेंदुलकर पहले स्थान पर है। सचिन तेंदुलकर ही विश्व के एकमात्र ऐसे बल्लेबाज है, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के 100 शतक बनाए हैं। विश्व में टेस्ट मैंचो में सबसे ज्यादा शतक लगाने के मामले सचिन तेंदुलकर सबसे आगे है। उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में खेले गए अपने 200 मैंचो में 53.79 की औसत के साथ कुल 51 शतक लगाये है। उनके बाद दूसरा नंबर दक्षिण अफ्रीकी खिलाडी जैक्स कैलिस का आता है, उनके नाम टेस्ट क्रिकेट में 45 शतक है। ऑस्ट्रेलियाई खिलाडी रिकी पोंटिंग टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा शतक बनाने वाले खिलाडियों की सूची में तीसरे नंबर पर आते है, उनके नाम टेस्ट क्रिकेट में कुल 41 शतक है।

टेस्ट क्रिकेट के बारे में रोचक तथ्य: (Interesting Facts About Test Cricket in Hindi)

  • वेस्टइंडीज के बल्लेबाज ब्रायन लारा के नाम टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने का रिकॉर्ड है। उन्होंने साल 2004 में इंग्लैंड के विरुद्ध 400 नाबाद रन बनाये थे, जो टेस्ट क्रिकेट में सबसे बड़ा स्कोर है। यह टेस्ट क्रिकेट में एकमात्र चौगुना शतक भी है।
  • वेस्टइंडीज के बल्लेबाज ब्रायन लारा और क्रिस गेल, ऑस्ट्रेलिया के डॉन ब्रेडमैन और भारत के वीरेंद्र सहवाग एक बार से अधिक 300 रन बनाने वाले एकमात्र बल्लेबाज हैं।
  • ब्रायन लारा इकलौते बल्लेबाज है, जिन्होंने दो बार 350 रन का आंकड़ा पार किया है।
  • टेस्ट क्रिकेट में सबसे पहला तिहरा शतक साल 1930 में इंग्लैंड के बल्लेबाज एंडी सैंडहॅम ने वेस्टइंडीज़ के खिलाफ बनाया गया था।
  • टेस्ट क्रिकेट में 10000 रन बनाने वाले पहले बल्लेबाज सुनील गावस्कर थे।
  • टेस्ट में सबसे तेज शतक लगाने का रिकॉर्ड न्यूजीलैंड के कप्तान ब्रेंडन मैकुलम के नाम है। उन्होंने क्राइस्टचर्च में खेले गए अपने आखिरी टेस्ट मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मात्र 54 गेंदों में 16 चौकों और 4 छक्कों की मदद से टेस्ट इतिहास का सबसे तेज शतक लगाया था।
  • वीरेंद्र सहवाग टेस्ट क्रिकेट में तिहरा शतक लगाने वाले पहले भारतीय बल्लेबाज है, उन्होंने साल 2004 में पाकिस्तान के खिलाफ मुल्तान में 309 की पारी खेली थी।
  • बांग्लादेश और ज़िम्बाब्वे को छोड़कर बाकी 12 टेस्ट क्रिकेट खेलने वाली टीमों के किसी न किसी खिलाड़ी ने तिहरा शतक लगाया है।

इस सूची की सबसे खास बात यह है कि इसमें नंबर 1 और नंबर 5 पर दो भारतीय खिलाड़ियों का नाम है। आइये देखते है टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा शतक लगाने वाले टॉप 10 बल्लेबाजों में कौन-कौन शामिल है:-

टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक शतक लगाने वाले शीर्ष 10 बल्लेबाजों की सूची:

खिलाडी का नाम कुल शतक देश
सचिन तेंदुलकर 51 भारत
जैक्स कैलिस 45 दक्षिण अफ्रीका
रिकी पोंटिंग 41 ऑस्ट्रेलिया
कुमार संगकारा 38 श्रीलंका
राहुल द्रविड़ 36 इंडिया
महेला जयवर्धने 34 श्रीलंका
ब्रायन लारा 34 वेस्टइंडीज
यूनिस खान 34 पाकिस्तान
सुनील गावस्कर 34 भारत
एलिस्टेयर कुक 32 इंग्लैंड

टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा दोहरा शतक लगाने वाले बल्लेबाज:

टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा दोहरा शतक लगाने वाले कप्तान विराट कोहली हैं। उन्होंने ब्रायन लारा को पीछे छोड़ते हुए ये विश्व कीर्तिमान 2017 में स्थापित किया था। बता दें कि कोहली ने भारत के लिए ओवरऑल 86 टेस्ट मैच खेले हैं। जिसमें से उन्होंने 55 मैचों में टीम इंडिया की कप्तानी की है।

टेस्ट क्रिकेट में सबसे बड़ी साझेदारी:

टेस्ट क्रिकेट की सबसे बड़ी साझेदारी का रिकॉर्ड महेला जयवर्धने और कुमार संगकारा के नाम है, जिन्होंने 2006 में तीसरे विकेट के लिए 624 रनों की मैराथन साझेदारी निभाई थी।

इन्हें भी पढे: विश्व के प्रमुख खेलों के नाम और उनके परिसरों की सूची

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प्रथम विश्‍व युद्ध होने के कारण, परिणाम

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प्रथम विश्‍व युद्ध होने के कारण, परिणाम और सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्‍य: (First World War History in Hindi)

प्रथम विश्‍व युद्ध की सामान्य जानकारी:

विश्व के इतिहास में प्रथम विश्‍व युद्ध (28 जुलाई 1914 ई. से 11 नवंबर 1918 ई.) के मध्य संसार के तीन महाद्वीप यूरोप, एशिया और अफ्रीका के बीच जल, थल और आकाश में लड़ा गया। इसमें भाग लेने वाले देशों की संख्या, इसका क्षेत्र और इससे हुई क्षति के अभूतपूर्व आंकड़ों के कारण ही इसे विश्व युद्ध का नाम दिया गया। प्रथम विश्वयुद्ध 4 वर्ष (लगभग 52 महीने) तक चला था। करीब आधी दुनिया हिंसा की चपेट में चली गई और इस दौरान अनुमानतः एक करोड़ लोगों की जान गई और इससे दोगुने घायल हो गए।

इसके अलावा बीमारियों और कुपोषण जैसी घटनाओं से भी लाखों लोग मरे। विश्व युद्ध खत्म होते-होते चार बड़े साम्राज्य रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और उस्मानिया ढह गए। यूरोप की सीमाएं फिर से निर्धारित हुईं और अमेरिका निश्चित तौर पर एक ‘सुपर पावर’ बन कर उभरा।

प्रथम विश्व युद्ध क्यों हुआ था।

प्रथम विश्व युद्ध, जिसे महान युद्ध और प्रथम विश्व युद्ध के रूप में भी जाना जाता है, एक घातक वैश्विक संघर्ष था जिसकी उत्पत्ति यूरोप में हुई थी। 1914 से शुरू हुआ और 1918 तक चला, प्रथम विश्व युद्ध में अनुमानित नौ मिलियन लड़ाकू मौतें और 13 मिलियन नागरिक मौतें संघर्ष के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में हुईं।

19 वीं शताब्दी के अंत में, यूरोपीय राष्ट्रों के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता सभी बहुत स्पष्ट हो गई। जर्मनी, 1871 में अपने एकीकरण पर, एक औद्योगिक शक्ति बन रहा था और यूरोप के अन्य राष्ट्रों, विशेष रूप से फ्रांस और ब्रिटेन, को इससे खतरा महसूस हुआ।

इस समय के आसपास फ्रैक्चरिंग ओटोमन साम्राज्य ने बाल्कन क्षेत्र में नए देशों को जन्म दिया। उनमें से एक, सर्बिया, ऑस्ट्रिया-हंगरी के साम्राज्य की कीमत पर भूमि और शक्ति प्राप्त कर रहा था। इस खतरे का मुकाबला करने के लिए, भविष्य के किसी भी व्यक्ति के साथ, ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य ने एक दूसरे का बचाव करने के लिए जर्मनी और इटली के साथ गठबंधन किया।

जवाब में, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस ने इसी उद्देश्य के लिए ट्रिपल एंटेंट का गठन किया।

1900 के दौरान ब्रिटेन और जर्मनी दोनों ने अपने नौसैनिक शस्त्रागार में बड़े और बेहतर युद्धपोतों को जोड़ा। यूरोप के बाकी हिस्सों ने भी सूट किया। 1914 तक, अधिकांश यूरोपीय देशों ने अपनी सेनाओं को युद्ध के लिए तैयार कर लिया था। इसे प्रज्वलित करने के लिए सभी की आवश्यकता एक चिंगारी थी। यह चिंगारी तब सामने आई जब 28 जून, 1914 को बोस्निया के सार्जेवो में आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या कर दी गई।

प्रथम विश्‍व युद्ध के कारण:

युरोपीय शक्ति का संतुलन का बिगड़ना:

  • 1871 में जर्मनी के एकीकरण के पूर्व युरोपीय राजनीती में जर्मनी की महत्वपूर्ण भूमिका नहीं थी, परन्तु बिस्मार्क के नेतृत्व में एक शक्तिशाली जर्मन राष्ट्र का उदय हुआ। इससे युरोपीय शक्ति – संतुलन गड़बड़ा गया। इंग्लैंड और फ्रांस के लिए जर्मनी एक चुनौती बन गया। इससे युरोपीय राष्ट्रों में प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ी।

गुप्त संधियो का प्रचलन:

  • जर्मनी के एकीकरण के पश्चात वहां के चांसलर बिस्मार्क ने अपने देश को युरोपीय राजनीती में प्रभावशाली बनाने के लिए तथा फ्रांस को यूरोप की राजनीती में मित्रविहीन बनाए रखने के लिए गुप्त संधियों की नीतियाँ अपनायीं। उसने ऑस्ट्रिया- हंगरी (1879) के साथ द्वैत संधि (Dual Alliance) की. रूस (1881 और 1887) के साथ भी मैत्री संधि की गयी। इंग्लैंड के साथ भी बिस्मार्क ने मैत्रीवत सम्बन्ध बनाये। 1882 में उसने इटली और ऑस्ट्रिया के साथ मैत्री संधि की। फलस्वरूप , यूरोप में एक नए गुट का निर्माण हुआ जिसे त्रिगुट संधि (Triple Alliance) कहा जाता है। इसमें जर्मनी , ऑस्ट्रिया- हंगरी एवं इटली सम्मिलित थे. इंगलैंड और फ्रांस इस गुट से अलग रहे।

जर्मनी और फ्रांस का संघर्ष:

  • जर्मनी एवं फ्रांस के मध्य पुरानी दुश्मनी थी। जर्मनी के एकीकरण के दौरान बिस्मार्क ने फ्रांस के धनी प्रदेश अल्सेस- लौरेन पर अधिकार कर लिया था। मोरक्को में भी फ़्रांसिसी हितो को क्षति पहुचाई गयी थी। इसलीये फ्रांस का जनमत जर्मनी के विरुद्ध था। फ्रांस सदैव जर्मनी को नीचा दिखलाने के प्रयास में लगा रहता था। दूसरी ओर जर्मनी भी फ्रांस को शक्तिहीन बनाये रखना चाहता था। इसलिए जर्मनी ने फ्रांस को मित्रविहीन बनाये रखने के लिए त्रिगुट समझौते किया| बदले में फ्रांस ने भी जर्मनी के विरुद्ध अपने सहयोगी राष्ट्रों का गुट बना लिया। प्रथम विश्वयुद्ध के समय तक जर्मनी और फ्रांस की शत्रुता इतनी बढ़ गयी की इसने युद्ध को अवश्यम्भावी बना दिया।

साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा:

  • साम्राज्यवादी देशों का साम्राज्य विस्तार के लिए आपसी प्रतिद्वंदिता एवं हितों की टकराहट प्रथम विश्वयुद्ध का मूल कारण माना जा सकता है।
  • औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप कल-कारखानों को चलाने के लिए कच्चा माल एवं कारखानों में उत्पादित वस्तुओं की खपत के लिए बाजार की आवश्यकता पड़ी। फलस्वरुप साम्राज्यवादी शक्तियों इंग्लैंड फ्रांस और रूस ने एशिया और अफ्रीका में अपने-अपने उपनिवेश बनाकर उन पर अधिकार कर लिए थे।
  • जर्मनी और इटली जब बाद में उपनिवेशवादी दौड़ में सम्मिलित हुए तो उन के विस्तार के लिए बहुत कम संभावना थी। अतः इन देशों ने उपनिवेशवादी विस्तार की एक नई नीति अपनाई. यह नीति थी दूसरे राष्ट्रों के उपनिवेशों पर बलपूर्वक अधिकार कर अपनी स्थिति सुदृढ़ करने की।
  • प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ होने के पूर्व तक जर्मनी की आर्थिक एवं औद्योगिक स्थिति अत्यंत सुदृढ़ हो चुकी थी। अतः जर्मन सम्राट धरती पर और सूर्य के नीचे जर्मनी को समुचित स्थान दिलाने के लिए व्यग्र हो उठा। उसकी थल सेना तो मजबूत थी ही अब वह एक मजबूत जहाजी बेड़ा का निर्माण कर अपने साम्राज्य का विकास तथा इंग्लैंड के समुद्र पर स्वामित्व को चुनौती देने के प्रयास में लग गया।
  • 1911 में आंग्ल जर्मन नाविक प्रतिस्पर्धा के परिणाम स्वरुप अगादिर का संकट उत्पन्न हो गया. इसे सुलझाने का प्रयास किया गया परंतु यह विफल हो गया। 1912 में जर्मनी में एक विशाल जहाज इमपरेटर बनाया गया जो उस समय का सबसे बड़ा जहाज था। फलतः जर्मनी और इंग्लैंड में वैमनस्य एवं प्रतिस्पर्धा बढ़ गई।
  • इसी प्रकार मोरक्को तथा बोस्निया संकट ने इंग्लैंड और जर्मनी की प्रतिस्पर्धा को और बढ़ावा दिया।
  • अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने के लिए जब पतनशील तुर्की साम्राज्य की अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण स्थापित करने के उद्देश्य से जर्मनी ने वर्लीन बगदाद रेल मार्ग योजना बनाई तो इंग्लैंड फ्रांस और रूस ने इसका विरोध किया. इससे कटुता बढ़ी।

सेन्यवाद और शस्त्रीकरण पर जोर:

  • साम्राज्यवाद के समान सैन्यवाद ने भी प्रथम विश्वयुद्ध को निकट ला दिया। प्रत्येक राष्ट्र अपनी सुरक्षा एवं विस्तारवादी नीति को कार्यान्वित करने के लिए अस्त्र शस्त्रों के निर्माण एवं उनकी खरीद बिक्री में लग गया। अपने अपने उपनिवेशों की सुरक्षा के लिए भी सैनिक दृष्टिकोण से मजबूत होना आवश्यक हो गया। फलतः युद्ध के नए अस्त्र-शस्त्र बनाए गए। राष्ट्रीय आय का बहुत बड़ा भाग अस्त्र शस्त्रों के निर्माण एवं सैनिक संगठन पर खर्च किया जाने लगा। उदाहरण के लिए फ्रांस जर्मनी और अन्य प्रमुख राष्ट्र अपनी आय का 85% सैन्य व्यवस्था पर खर्च कर रहे थे। अनेक देशों में अनिवार्य सैनिक सेवा लागू की गई। सैनिकों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि की गई। सैनिक अधिकारियों का देश की राजनीति में वर्चस्व हो गया। इस प्रकार पूरा यूरोप का बारूद के ढेर पर बैठ गया। बस विस्फोट होने की देरी थी यह विस्फोट 1914 में हुआ।

उग्र राष्ट्रवाद:

  • उग्र अथवा विकृत राष्ट्रवाद भी प्रथम विश्वयुद्ध का एक मौलिक कारण बना।
  • यूरोप के सभी राष्ट्रों में इसका समान रूप से विकास हुआ. यह भावना तेजी से बढ़ती गई की समान जाति, धर्म, भाषा, और ऐतिहासिक परंपरा के व्यक्ति एक साथ मिल कर रहे और कार्य करें तो उनकी अलग पहचान बनेगी और उनकी प्रगति होगी।
  • पहले भी इस आधार पर जर्मनी और इटली का एकीकरण हो चुका था. बाल्कन क्षेत्र में यह भावना अधिक बलवती थी। बाल्कन प्रदेश तुर्की साम्राज्य के अंतर्गत था। तुर्की साम्राज्य के कमजोर पड़ने पर इस क्षेत्र में स्वतंत्रता की मांग जोर पकड़ने लगी। तुर्की साम्राज्य तथा ऑस्ट्रिया हंगरी के अनेक क्षेत्रों में स्लाव प्रजाति के लोगों का बाहुल्य था। वह अलग स्लाव राष्ट्र की मांग कर रहे थे।
  • रूस का यह मानना था कि ऑस्ट्रिया-हंगरी एवं तुर्की से स्वतंत्र होने के बाद स्लाव रूस के प्रभाव में आ जाएंगे. इसलिए रूस ने अखिल स्लाव अथवा सर्वस्लाववाद आंदोलन को बढ़ावा दिया. इससे रूस और ऑस्ट्रिया – हंगरी के संबंध कटु हुए।
  • इसी प्रकार सर्वजर्मन आंदोलन भी चला. सर्व, चेक तथा पोल प्रजाति के लोग भी स्वतंत्रता की मांग कर रहे थे. इससे यूरोपीय राष्ट्रों में कटुता की भावना बढ़ती गई।

सामाचार पत्र एव प्रचार सधनो द्वारा विसेली प्रचार:

  • प्रत्येक देश के राजनीतिज्ञ दार्शनिक और लेखक अपने लेखों में युद्ध की वकालत कर रहे थे। पूंजीपति वर्ग भी अपने स्वार्थ में युद्ध का समर्थक बन गया युद्धोन्मुखी जनमत तैयार करने में सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका समाचार पत्रों की थी। प्रत्येक देश का समाचार पत्र दूसरे राष्ट्र के विरोध में झूठा और भड़काऊ लेख प्रकाशित करता था. इससे विभिन्न राष्ट्रों एवं वहां की जनता में कटुता उत्पन्न हुई. समाचार पत्रों के झूठे प्रचार ने यूरोप का वातावरण विषाक्त कर युद्ध को अवश्यंभावी बना दिया।

तत्कालीन कारण:

  • प्रथम विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण बना ऑस्ट्रिया की युवराज आर्क ड्यूक फ्रांसिस फर्डिनेंड की बोस्निया की राजधानी सेराजेवो में हत्या। 28 जून 1914 को एक आतंकवादी संगठन काला हाथ से संबंध सर्व प्रजाति के एक बोस्नियाई युवक ने राजकुमार और उनकी पत्नी की गोली मारकर हत्या कर दी। इससे सारा यूरोप स्तब्ध हो गया। ऑस्ट्रिया ने इस घटना के लिए सर्विया को उत्तरदाई माना। ऑस्ट्रिया ने सर्बिया को धमकी दी कि वह 48 घंटे के अंदर इस संबंध में स्थिति स्पष्ट करें तथा आतंकवादियों का दमन करे। सर्बिया ने ऑस्ट्रिया की मांगों को ठुकरा दिया। परिणामस्वरूप 28 जुलाई 1914 को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इसके साथ ही अन्य राष्ट्र भी अपने अपने गुटों के समर्थन में युद्ध में सम्मिलित हो गए. इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध आरंभ हुआ।

पेरिस शांति सम्मेलन:

प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद पेरिस में विजयी देशों का जो सम्मेलन हुआ उसे पेरिस शांति सम्मेलन कहते हैं। इसमें पराजित देशों पर लागू की जाने वाली ‘शांति की शर्तों’ का निर्माण हुआ। यह सम्मेलन 1919 में पेरिस में हुआ था जिसमें विश्व के 32 देशों के राजनयिकों ने भाग लिया। इसमें लिये गये मुख्य निर्णय थे- लीग ऑफ नेशन्स का निर्माण तथा पराजित देशों के साथ पाँच शान्ति-संधियाँ।

वर्साय की सन्धि:

यह संधि मित्र राष्ट्रों एवं जर्मनी के बीच में हुई थी। जिनमें फ्रान्स, अमेरिका, रूस आदि देश सम्मिलित थे। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पराजित जर्मनी ने 28 जून 1919 के दिन वर्साय की सन्धि पर हस्ताक्षर किये। इसकी वजह से जर्मनी को अपनी भूमि के एक बड़े हिस्से से हाथ धोना पड़ा, दूसरे राज्यों पर कब्जा करने की पाबन्दी लगा दी गयी, उनकी सेना का आकार सीमित कर दिया गया और भारी क्षतिपूर्ति थोप दी गयी। वर्साय की सन्धि को जर्मनी पर जबरदस्ती थोपा गया था। इस कारण एडोल्फ हिटलर और अन्य जर्मन लोग इसे अपमानजनक मानते थे और इस तरह से यह सन्धि द्वितीय विश्वयुद्ध के कारणों में से एक थी।

सेंट-जर्मैन-एन-लाए की संधि:

सेंट-जर्मैन-एन-लाए की संधि 10 सितम्बर 1919 को हुई थी इसके साथ मांटिनिग्रो को मिलाकर युगों स्लोवाकिया का निर्माण किया गया. पोलैंड का पुनर्गठन हुआ. ऑस्ट्रिया का कुछ क्षेत्र इटली को भी दिया गया। जिसमें बोस्निया एवं हर्जेगोविना प्रदेश छीनकर सर्बिया को दिये गए। कुछ क्षेत्रों को अलग कर चेकोस्लोवाकिया राज्य की स्थापना की गई। आस्ट्रिया पर जर्मनी के साथ किसी भी प्रकार के राजनैतिक सम्बन्धों पर रोक लगाई गई।

निऊली की संधि:

27 नवम्बर 1919 को बुल्गारिया के कुछ क्षेत्र यूनान, युगोस्लाविया और रोमानिया को दे दिया।

ट्रियानान की संधि:

4 जून 1920 में स्लोवाकिया तथा रुथेनिया, चेकोस्लोवाकिया को दिया गया। युगोस्लाविया तथा रोमानिया को भी अनेक क्षेत्र दिए गए। इन संधियों के परिणामस्वरुप ऑस्ट्रिया हंगरी की राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति अत्यंत दुर्बल हो गई।

सेव्रेस की संधि:

प्रथम महायुद्ध में तुर्की जर्मनी की और से लड़ा था और पराजित होने के बाद उसे मित्र राष्ट्रों से संधि करनी पड़ी जिसे सेव्रेस की संधि कहा जाता है यह संधि 10 अगस्त 1920 को हुई थीमिस्त्र, सूडान, फिलिस्तीन, मोरक्को, अरब, सीरिया, इरान आदि क्षेत्र तुर्की से अलग किए गए। सीरिया पर फ्रांस एवं फिलिस्तीन एवं इरान जैसे क्षेत्र पर ब्रिटेन का नियंत्रण हुआ।

रपालो की संधि:

रपालो की संधि 16 अप्रैल 1922 को जर्मनी और रूसी सोवियत संघीय समाजवादी गणराज्य के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसके अंतरगत प्रथम विश्व युद्ध के शत्रु रूस और जर्मनी इटली के शहर रपालो में तय किया था कि वे उन क्षेत्रीय और वित्तीय दावों को छोड़ देंगे जो 1918 में ब्रेस्ट-लिटोव्सक के शांति समझौते (Peace Treaty of Brest-Litovsk) के अंतरगत उन्हें प्राप्त हुए थे।

लुसाने की संधि:

लुसाने की संधि (The Treaty of Lausanne) स्विट्जरलैण्ड के लुसाने नगर में 26 जुलाई 1923 को किया गया एक शान्ति समझौता था। इसके परिणामस्वरूप तुर्की, ब्रिटिश साम्राज्य, फ्रेंच गणराज्य, इटली राजतंत्र, जापान साम्राज्य, ग्रीस राजतंत्र, रोमानिया राजतंत्र तथा सर्व-क्रोट-स्लोवीन राज्य के बीच प्रथम विश्वयुद्ध के आरम्भ के समय से चला आ रहा युद्ध औपचारिक रूप से समाप्त हो गया। यह सेव्रेस की संधि के टूट जाने के बाद शान्ति की दिशा में किया गया दूसरा प्रयास था।

प्रथम विश्‍व युद्ध से जुड़े महवपूर्ण तथ्‍य इस प्रकार हैं:

  • प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआत 28 जुलाई 1914 ई. में हुई।
  • प्रथम विश्वयुद्ध 4 वर्ष तक चला।
  • प्रथम विश्‍वयुद्ध में 32 देशों ने भाग लिया था।
  • प्रथम विश्वयुद्ध का तात्का‍लिक कारण ऑस्ट्रिया के राजकुमार फर्डिंनेंड की हत्या थी।
  • ऑस्ट्रिया के राजकुमार की हत्या बोस्निया की राजधानी सेराजेवो में हुई.
  • प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान दुनिया मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र दो खेमों में बंट गई.
  • धुरी राष्ट्रों का नेतृत्व जर्मनी के अलावे ऑस्ट्रिया, हंगरी और इटली जैसे देशों ने भी किया।
  • मित्र राष्ट्रों में इंगलैंड, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस तथा फ्रांस थे।
  • गुप्त संधियों की प्रणाली का जनक बिस्मार्क था।
  • ऑस्ट्रिया, जर्मनी और इटली के बीच त्रिगुट का निर्माण 1882 ई. में हुआ।
  • सर्बिया की गुप्त क्रांतिकारी संस्था काला हाथ थी।
  • रूस-जापान युद्ध का अंत अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्टा से हुआ।
  • मोरक्को संकट 1906 ई. में सामने आया।
  • प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी ने रूस पर 1 अगस्त 1914 ई. में आक्रमण किया।
  • जर्मनी ने फ्रांस पर हमला 3 अगस्त 1914 ई. में किया।
  • इंग्‍लैंड प्रथम विश्व युद्ध में 8 अगस्त 1914 ई. को शामिल हुआ।
  • प्रथम विश्वथयुद्ध के समय अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन थे।
  • जर्मनी के यू बोट द्वारा इंगलैंड लूसीतानिया नामक जहाज को डुबोने के बाद अमेरिका प्रथम विश्ववयुद्ध में शामिल हुआ। क्योंकि लूसीतानिया जहाज पर मरने वाले 1153 लोगों में 128 व्यक्ति अमेरिकी थे।
  • इटली मित्र राष्ट्र की तरफ से प्रथम विश्वयुद्ध में 26 अप्रैल 1915 ई. में शामिल हुआ।
  • प्रथम विश्वयुद्ध 11 नवंबर 1918 ई. में खत्म हुआ।
  • पेरिस शांति सम्मेलन 18 जून 1919 ई. में हुआ।
  • पेरिस शांति सम्मेलन में 27 देशों ने भाग लिया।
  • यह युद्ध जमीन के अतिरिक्त आकाश और समुद्र में भी लड़ा गया।
  • वरसाय की संधि जर्मनी और मित्र राष्ट्रों के बीच (28 जून 1919 ई.) हुई.
  • युद्ध के हर्जाने के रूप में जर्मनी से 6 अरब 50 करोड़ की राशि की मांग की गई थी।
  • अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में प्रथम विश्वयुद्ध का सबसे बड़ा योगदान राष्ट्रसंघ की स्थापना था।
  • “विश्व युद्ध” शब्द का उपयोग पहली बार सितंबर 1914 में जर्मन जीवविज्ञानी और दार्शनिक अर्नस्ट हैकेल द्वारा किया गया था, जिन्होंने दावा किया था कि “इसमें कोई संदेह नहीं है कि भयभीत ‘यूरोपीय युद्ध’ का पाठ्यक्रम और चरित्र … प्रथम विश्व युद्ध बन जाएगा।

प्रथम विश्व युद्ध से पहले और उसके दौरान की घटनाएँ

वर्ष/माह प्रतिस्पर्धा
1878 सर्बिया ने ओटोमन साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त की
1881 जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और इटली युद्ध की स्थिति में एक दूसरे का बचाव करने के लिए ट्रिपल एलायंस बनाते हैं
1904 ब्रिटेन फ्रांस के साथ एंटेंटे कॉर्डिएल बनाता है
1907 ट्रिपल एंटेंट के निर्माण के लिए रूस ब्रिटेन के साथ जुड़ता है
1908 सर्बिया को नियंत्रण में लेने से रोकने के लिए ऑस्ट्रिया-हंगरी ने बोस्निया-हर्जेगोविना पर कब्जा कर लिया
1912-1913 बाल्कन युद्धों को बाल्कन लीग (सर्बिया, बुल्गारिया, ग्रीस और मोंटेनेग्रो) के बीच लड़ा जाता है। बाल्कन लीग विजयी है
1914 – 28 जून गवरिलो प्रिंसिपल ने साराजेवो में आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या कर दी
1914 – 28 जुलाई ऑस्ट्रिया ने सर्बिया पर युद्ध की घोषणा की। रूस ने ऑस्ट्रिया से सर्बिया का बचाव करने की तैयारी की
1914 – 1 अगस्त जर्मनी ने ऑस्ट्रिया की रक्षा के लिए रूस पर युद्ध की घोषणा की
1914 – 3 अगस्त जर्मनी ने फ्रांस, रूस के सहयोगी युद्ध की घोषणा की
1914 – 4 अगस्त जर्मन सेनाएं बेल्जियम से फ्रांस तक मार्च करती हैं। ब्रिटेन ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा की प्रथम विश्व युद्ध शुरू होता है
1914 – 26 अगस्त जर्मनी ने टेनबर्ग की लड़ाई में रूसी सेनाओं को हराया
1914 – सितंबर मार्ने की लड़ाई में मित्र राष्ट्रों ने पेरिस पर जर्मन अग्रिम रोक दिया। उसी महीने में जर्मन जीत पूर्वी प्रशिया में रूसी भागीदारी को समाप्त करती है।

प्रथम विश्व युद्ध से पहले और उसके दौरान की घटनाएँ

इन्हें भी पढे: भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध कब और किसके बीच हुए

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द्वितीय विश्‍व युद्ध के कारण, परिणाम

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द्वितीय विश्‍व युद्ध का इतिहास,कारण,परिणाम और महत्वपूर्ण तथ्‍य: (Second World War History in Hindi)

दूसरे विश्व युद्ध का इतिहास (second world war in hindi):

द्वितीय विश्व युद्ध 1 सितंबर 1939 से लेकर 2 सितंबर 1945 तक चला था। द्वितीय विश्व युद्ध में लगभग 70 देशों ने भाग लिया था। इस युद्ध में सेनाएँ दो हिस्सों में विभाजित थीं। एक तरफ मित्र राष्ट्र सेना और दूसरी और धुरी राष्ट्र सेना। इस महायुद्ध में विश्व के लगभग 10,000,0000 (दस करोड़) सैनिकों ने हिस्सा लिया था। इस भयंकर युद्ध में अंदाजन 5 से 7 करोड़ लोगों को जानें गईं थी। दूसरा विश्व युद्ध यूरोप, पेसिफिक, अटलांटिक, साउथ ईस्ट एशिया, चाइना, मिडल ईस्ट, और मेडिटेरियन नोर्थन अफ्रीका में लड़ा गया था।

द्वितीय विश्व युद्ध की सेनाओं के जनरल और कमांडर्स:

  • मित्र राष्ट्र सेना: जोसफ स्टेलिन, फ्रेंकलिन डि॰ रूज़ल्वेल्ट, विंस्टन चर्चिल, चियांग काई शेक, चार्ल्स डि गौले।
  • धुरी राष्ट्र सेना: एडोल्फ हिटलर, हिरोहिटों, बेनिटो मुसोलिन।

द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत के कारण:

दूसरा या द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत 01 सितम्बर 1939 में जानी जाती है, जब जर्मनी ने पोलैंड पर हमला बोला और उसके बाद जब फ्रांस ने जर्मनी पर युद्ध की घोषणा कर दी तथा इंग्लैंड और अन्य राष्ट्रमंडल देशों ने भी इसका अनुमोदन किया। जर्मनी ने 1939 में यूरोप में एक बड़ा साम्राज्य बनाने के उद्देश्य से पोलैंड पर हमला बोल दिया। लेकिन जैसे-जैसे यह युद्ध यूरोप से बाहर अफ्रीका, एशिया में फैला खासकर जापान और अमेरिका के इसमें शामिल होने से इसने विश्व युद्ध का आकार ले लिया। आइये जानते द्वितीय विश्व युद्ध जुड़े अन्य महत्वपूर्ण कारणों के बारे  में:-

वर्साय की संधि:

द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत वर्साय की संधि मे ही गई थी। मित्र राष्ट्रों ने जिस प्रकार का अपमानजनक व्यवहार जर्मनी के साथ किया उसे जर्मन जनमानस कभी भी भूल नहीं सका। जर्मनी को इस संधि पर हस्ताक्षर करने को मजबूर कर दिया गया। संधि की शर्तों के अनुसार जर्मन साम्राज्य का एक बड़ा भाग मित्र राष्ट्रों ने उस से छीन कर आपस में बांट लिया. उसे सैनिक और आर्थिक दृष्टि से अपंग बना दिया गया। जिसके कारण जर्मन लोग वर्साय की संधि को एक राष्ट्रीय कलंक मानते थे। मित्र राष्ट्रों के प्रति उनमें प्रबल प्रतिशोध की भावना जगने लगी। हिटलर ने इस मनोभावना को और अधिक उभारकर सत्ता अपने हाथों में ले ली। सत्ता में आते ही उसने वर्साय की संधि की धज्जियां उड़ा दी और घोर आक्रामक नीति अपना कर दूसरा विश्व युद्ध आरंभ कर दिया।

तानाशाही शक्तियों का उदय होना:

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में तानाशाही शक्तियों का उदय हुआ। इटली में मुसोलिनी और जर्मनी में हिटलर तानाशाह बन गए। प्रथम विश्वयुद्ध में इटली मित्र राष्ट्रों की ओर से लड़ा था परंतु पेरिस शांति सम्मेलन में हिस्सा ले रहा था जिसमें उसे कोई खास लाभ नहीं हुआ। इससे इटली में असंतोष की भावना जगी इसका लाभ उठा कर मुसोलिनी ने फासीवाद की स्थापना कर सारी शक्तियां अपने हाथों में केंद्रित कर ली। वह इटली का अधिनायक बन गया. यही स्थिति जर्मनी में भी थी। हिटलर ने नाजीवाद की स्थापना कर जर्मनी का तानाशाह गया। मुसोलिनी और हिटलर दोनों ने आक्रामक नीति अपनाई दोनों ने राष्ट्र संघ की सदस्यता त्याग कर अपनी शक्ति बढ़ाने लग गए. उनकी नीतियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध को अवश्यंभावी बना दिया।

साम्राज्यवादी प्रवृत्ति:

द्वितीय विश्वयुद्ध का एक सबसे बड़ा और प्रमुख कारण बना साम्राज्यवाद। प्रत्येक साम्राज्यवादी शक्ति अपने साम्राज्य का विस्तार कर अपनी शक्ति और धन में वृद्धि करना चाहता था. इससे साम्राज्यवादी राष्ट्र में प्रतिस्पर्धा आरंभ हुई. 1930 के दशक में इस मनोवृति में वृद्धि हुई. आक्रामक कार्यवाहियां बढ़ गई। सन 1931 में जापान ने चीन पर आक्रमण कर मंचूरिया पर अधिकार कर लिया. इसी प्रकार 1935 में इटली ने इथोपिया पर कब्जा जमा लिया। सन 1935 में जर्मनी ने राइनलैंड पर तथा सन 1938 में ऑस्ट्रिया पर विजय प्राप्त कर उसे जर्मन साम्राज्य में मिला लिया। स्पेन में गृहयुद्ध के दौरान हिटलर और मुसोलिनी ने जनरल फ्रैंको को सैनिक सहायता पहुंचाई। फ्रैंको ने स्पेन में सत्ता हथिया ली।

यूरोपीय संयोजन:

जर्मनी की बढती शक्ति से आशंकित होकर यूरोपीय राष्ट्र अपनी सुरक्षा के लिए गुटों का निर्माण करने लगे। इसकी पहल फ्रांस ने की। उसने जर्मनी के इर्द-गिर्द के राष्ट्रों का एक जर्मन विरोधी गुट बनाया। इसके प्रत्युत्तर में जर्मनी और इटली ने एक अलग गुट बनाया। जापान भी इस में सम्मिलित हो गया। इस प्रकार जर्मनी इटली और जापान का त्रिगुट बना। यह राष्ट्र धुरी राष्ट्र के नाम से विख्यात हुए। फ्रांस इंग्लैंड अमेरिका और सोवियत संघ का अलग ग्रुप बना जो मित्र राष्ट्र के नाम से जाना गया यूरोपीय राष्ट्रों की गुटबंदी ने एक दूसरे के विरुद्ध आशंका घृणा और विद्वेष की भावना जगा दी।

दूसरे विश्व युद्ध में भारत की स्थिति:

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान भी भारत अंग्रेजों का गुलाम था। इसलिए भारत ने भी नाज़ी जर्मनी के खिलाफ 1939 में युद्ध घोषणा कर दी थी। दूसरे विश्व युद्ध में भारती की और से 20 लाख से भी अधिक सैनिक भेजे गए थे। हमारे देश के सैनिक अंग्रेजों और उनके मित्र राष्ट्र सेना की तरफ से लड़े थे। इस विनाशक युद्ध में भारत के सिपाही दुनियाँ के कोने कोने में लड़ाई के लिए भेजे गए थे। पहले विश्व युद्ध की ही तरह दूसरे विश्व युद्ध में भी हमारी देसी रियासतों ने अंग्रेज़ सेना को बड़ी मात्रा में धन सहायता की थी।

1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बिटिश भारतीय सेना में मात्र 200,000 लोग शामिल थे। युद्ध के अंत तक यह इतिहास की सबसे बड़ी स्वयंसेवी सेना बन गई जिसमें कार्यरत लोगों की संख्या बढ़कर अगस्त 1945 तक 25 लाख से अधिक हो गई। पैदल सेना (इन्फैन्ट्री), बख्तरबंद और अनुभवहीन हवाई बल के डिवीजनों के रूप में अपनी सेवा प्रदान करते हुए उन्होंने अफ्रीका, यूरोप और एशिया के महाद्वीपों में युद्ध किया।

द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम:

  • अंतरराष्ट्रीय शांति बनाए रखने के प्रयास के लिए मित्र राष्ट्रों ने संयुक्त राष्ट्र का गठन किया। यह 24 अक्टूबर 1945 को अधिकारिक तौर पर अस्तित्व में आया।
  • यूरोप में, महाद्वीप अनिवार्य रूप से पश्चिमी और सोवियत क्षेत्रों के बीच तथाकथित लौह परदे, जो की अधीनस्थ आस्ट्रिया और मित्र राष्ट्रों के अधीनस्थ जर्मनी से होकर गुजरता था और उन्हें विभाजित करता था, के द्वारा विभाजित था।
  • एशिया में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान पर कब्जा किया और उसके पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र के पूर्व द्वीपों को व्यवस्थित किया।
  • सोवियत संघ ने सखालिन और कुरील द्वीपों पर अधिकार कर लिया।
  • जापानी शासित कोरियाको विभाजित कर दिया गया और दोनों शक्तियों के बीच अधिकृत कर दिया गया।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तनाव जल्दी ही अमेरिका-नेतृत्वनाटो और सोवियत नेतृत्व वाली वारसॉ संधि सैन्य गठबंधन के गठन में विकसित हुआ और उनके बीच में शीत युद्द का प्रारम्भ हुआ।
  • चीन के जनवादी गणराज्य को मुख्य भूमि पर स्थापित किया जबकि राष्ट्रवादी ताकतों ने ताईवान में अपनी सत्ता स्थापित कर ली।
  • ग्रीस में,साम्यवादी ताकतोंऔर एंग्लो अमेरिका समर्थित शाहीवादी ताकतों के बिच गृहयुद्ध छिड़ गया, जिसमे शाहीवादी ताकतों की विजय हुई।
  • कोरिया में दक्षिणी कोरिया, जिसको पश्चिमी शक्तियों का समर्थन था, तथा उत्तरी कोरिया, जिसको सोवियत संघ और चीन का समर्थन था, के बीच युद्द छिड़ गया।

द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत की स्थिति:

द्वितीय विश्वयुद्ध के समय भारत पर ब्रिटिश उपनिवेश था। इसलिए आधिकारिक रूप से भारत ने भी नाज़ी जर्मनी के विरुद्ध 1939 में युद्ध की घोषणा कर दी। ब्रिटिश राज ने 20 लाख से अधिक सैनिक युद्ध के लिए भेजा जिन्होने ब्रिटिश कमाण्ड के अधीन धुरी शक्तियों के विरुद्ध लड़ा। इसके अलावा सभी देसी रियासतों ने युद्ध के लिए बड़ी मात्रा में अंग्रेजों को धनराशि प्रदान की।

मुस्लिम लीग ने ब्रिटिश युद्ध के प्रयासों का साथ दिया, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को पहले स्वतन्त्र करने की मांग की, तब कांग्रेस ब्रिटेन की सहायता करेगी। ब्रिटेन ने कांग्रेस की मांग स्वीकार नहीं की, फिर भी कांग्रेस अघोषित रूप से ब्रिटेन के पक्ष में और जर्मनी आदि धूरी राष्ट्रों के विरुद्ध काम करती रही। बहुत बाद में अगस्त 1942 में कांग्रेस ने भारत छोड़ो आन्दोलन की घोषणा की, जो बिलकुल प्रभावी नहीं रहा। इस बीच, सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में, जापान ने भारतीय युद्धबन्दियों की एक सेना स्थापित की, जिसे आजाद हिन्द फौज नाम दिया गया था। नेताजी के नेतृत्व में इस सेना ने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी और भारत के कुछ भूभाग को अंग्रेजों से मुक्त भी कर दिया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ही 1943 में बंगाल में एक बड़े अकाल के कारण भुखमरी से लाखों लोगों की मौत हो गई।

द्वितीय विश्‍व युद्ध से जुड़े महत्‍वपूर्ण तथ्‍य इस प्रकार हैं:

  • द्वितीय विश्व युद्ध 6 सालों तक लड़ा गया।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत 1 सितंबर 1939 ई. में हुई।
  • इस युद्ध का अंत 2 सितंबर 1945 ई. में हुआ।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध में 61 देशों ने हिस्सा लिया।
  • युद्ध का तात्कालिक कारण जर्मनी का पोलैंड पर आक्रमण था।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मन जनरल रोम्मेले का का नाम डेजर्ट फॉक्स  रखा गया।
  • म्यूनिख पैक्ट सितंबर 1938 ई. में संपन्न  हुआ।
  • जर्मनी ने वर्साय की संधि का उल्लंघन किया था।
  • जर्मनी ने वर्साय की संधि 1935 ई. में तोड़ी।
  • स्पेन में गृहयुद्ध 1936 ई. में शुरू हुआ।
  • संयुक्त रूप से इटली और जर्मनी का पहला शिकार स्पेरन बना।
  • सोवियत संघ पर जर्मनी के आक्रमण करने की योजना को बारबोसा योजना कहा गया।
  • जर्मनी की ओर से द्वितीय विश्वयुद्ध में इटली ने 10 जून 1940 ई. को प्रवेश किया।
  • अमेरिका द्वितीय विश्वयुद्ध में 8 सितंबर 1941 ई. में शामिल हुआ।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अमेरिका का राष्ट्रपति फैंकलिन डी रुजवेल्टई था।
  • इस समय इंगलैंड का प्रधानमंत्री विंस्टरन चर्चिल था।
  • वर्साय संधि को आरोपित संधि के नाम से जाना जाता है।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी की पराजय का श्रेय रूस को जाता है।
  • अमेरिका ने जापान पर एटम बम का इस्तेेमाल 6 अगस्तर 1945 ई. में किया।
  • जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर एटम बम गिराया गया।
  • द्वितीय विश्व युद्ध में मित्रराष्ट्रों के द्वारा पराजित होने वाला अंतिम देश जापान था।
  • अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में द्वितीय विश्व युद्ध (2nd world war in hindi) का सबसे बड़ा योगदान संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्‍थापना है।

इन्हें भी पढे: प्रथम विश्‍व युद्ध के कारण,परिणाम और महत्वपूर्ण तथ्‍य

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प्रसिद्ध पुस्तकें एवं उनके लेखक की सूची

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यहाँ आपको वर्ष 2015, 2016, 2017, 2018 वर्ष की महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध पुस्तकों की सूची दी गई है यह वह पुस्तकें हैं जो वार्षिक तौर पर पब्लिश की गई और उस वर्ष लोगों ने उन्हें महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध पुस्तकों की सूची में स्थान दिलाया।

वर्ष 2021 की प्रसिद्ध पुस्तकें एवं उनके लेखक:(List of Important Books and Authors 2021 in Hindi)

फरवरी 2021 में प्रकाशित सभी महत्वपूर्ण पुस्तकों की सूची
लेखक का नाम पुस्तक का नाम
सेठ रोजन एल्बम
पावन सी. लल्ल यस मैन: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ राणा कपूर
दलाई लामा प्रोत्साहन की छोटी किताब
झुम्पा लाहिड़ी कहां
विनीत बाजपेयी 1857- द स्वॉर्ड ऑफ मस्तान
डॉ. के एन भंडारी राजस्थान में संसदीय दूत
हंटर बिडेन (अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन के पुत्र) सुंदर चीजें ‘एक संस्मरण
संगीत पॉल चौधरी प्लेटफार्म स्केल: एक पोस्ट-महामारी विश्व के लिए
पूर्व उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी कई हैप्पी एक्सीडेंट से: जीवन की यादें
मेघना पंत भयानक, भयानक, बहुत बुरी खबर
आरपी गुप्ता टर्न अराउंड इंडिया: 2020- सरप्राइजिंग पास्ट लिगेसी
प्रियंका चोपड़ा जोनास अधूरा
पीटर मुखर्जी स्टारस्ट्रक: एक टीवी कार्यकारी की स्वीकारोक्ति
दान मोरेन कमला का रास्ता: एक अमेरिकी जीवन
अश्विनी अय्यर तिवारी मैपिंग लव
अरुण कर्मकार ‘टिपने कश्मीरी (कश्मीर पर नोट्स), अनकही कहानियाँ
इरविन एलन सीली ASOCA: एक सूत्र
कविता केन सरस्वती का उपहार
एयर मार्शल सेवानिवृत्त भारत कुमार लोंगेवाला की महाकाव्य लड़ाई
अरुण कुमार भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी संकट: कोरोनवायरस और राओड अहेड का प्रभाव
रमेश कंडुला मावरिक मसीहा: एन टी रामाराव की राजनीतिक जीवनी
जस्टिस ए के राजन कृषि अधिनियम 2020
श्वेता तनेजा उन्होंने क्या पाया / उन्होंने क्या बनाया?
डॉ. डरली ओ कोशी रनवे से स्किल्ड इंडिया
श्रीकांत राम 22 गज की दूरी से नेतृत्व पाठ
राम माधव क्योंकि भारत पहले आता है
कबीर बेदी कहानियां मुझे बताना चाहिए: एक अभिनेता की यात्रा
ओल्गा टोकरियुक द लॉस्ट सोल
करण पुरी #मै भी
डॉ. अविनुओ कीर ग्लोरी डेज़ की आखिरी रोशनी: नागालैंड की कहानियां
स्निग्धा पूनम भारत: ए स्कैमस्टार बॉर्न एवरी मिनट
फरवरी 2021 में प्रकाशित सभी महत्वपूर्ण पुस्तकों की सूची
लेखक का नाम पुस्तक का नाम
के.एस. विजयनथ सबरीमाला विजयनाकोशम
अल्फ्रेडो कोवेली वाहना मास्टरक्लास
आर. गिरिधरन हमारे नाक के ठीक नीचे
आर. कौशिक भारत का 71 वर्ष का टेस्ट: ऑस्ट्रेलिया में जीत की यात्रा
लेफ्टिनेंट जनरल कोनसम हिमालय सिंह जनरल-ए हिमालयन इको बनाना
रोमिला थापर पूर्व की ओर टकटकी लगाना: चीन में बौद्ध भिक्षुओं और क्रांतिकारियों का 1957
एस. वाई. कुरैशी द पॉपुलेशन मिथक: इस्लाम, परिवार नियोजन और भारत में राजनीति
विधु विनोद चोपड़ा और अभिजात जोशी ‘ अप्रकाशित: जीवन और सिनेमा पर बातचीत
रामचंद्र गुहा राष्ट्रमंडल क्रिकेट
वामन सुभा प्रभु मनोहर पर्रिकर-ऑफ द रिकॉर्ड
डॉ. एपीजेएम नाज़िमा मरैय्यर और डॉ. वाई एस राजन अब्दुल कलाम- निनिवुगलुकु मरनमिलाई
मोहम्मद जीशान फ्लाइंग ब्लाइंड: ग्लोबल लीडरशिप के लिए भारत की खोज
गौतम चिकरमैन ‘भारत 2030: द राइज़ ऑफ़ अ राजसिक नेशन
डॉ. अभिषेक सिंघवी और प्रो. खगेश गौतम आपातकालीन शक्तियों का कानून: तुलनात्मक सामान्य कानून परिप्रेक्ष्य
अरुण सेनगुप्ता और पार्थ मुखर्जी सौमित्र चटर्जी: अ लाइफ इन सिनेमा थिएटर, पोएट्री एंड पेंटिंग
आंद्रे डी ग्रासे और रॉबर्ट बुद्ध रेस विथ मी!

वर्ष 2018 की प्रसिद्ध पुस्तकें एवं उनके लेखक:(List of Important Books and Authors 2018 in Hindi)

यहाँ पर वर्ष 2018 की महत्त्वपूर्ण एवं चर्चित किताबों और उनके लेखकों के नाम की सूची दी गयी है, जो जनवरी 2018 माह में काफी सुर्ख़ियों में रहीं और जिनके आधार पर प्रतियोगी परीक्षाओं में एक या दो प्रश्न अवश्य पूछे जाते है और आगे भी पूछे जायेंगे। यदि आप सरकारी नौकरियों के लिए विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाएँ जैसे: एसएससी, यूपीएससी, रेलवे, पीएसएस, बैंक, शिक्षक, टीईटी, कैट एवं अन्य किसी प्रकार की परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आप इन पुस्तकों के बारे में पता होना चाहिए।

वर्ष 2018 की प्रसिद्ध पुस्तकें एवं उनके लेखक की सूची:

पुस्तकों का नाम लेखकों का नाम
भारत की विरासत का घराना संगीत: ग्वालियर के पंडित मीता पंडित
परमवीर परवाने प्रभाकिरण जैन
पुस्तक स्ट्रेट टॉक अभिषेक मनु सिंघवी
बेंच के उस पार-भारतीय सैन्य न्यायिक प्रणाली में इनसाइट ज्ञान भूषण
कॉलिंग सेहमत हरिंदर एस. सिक्का
स्मार्ट सिटीज अनबंडली डॉ. समीर शर्मा
मेरी यात्रा मार्क्सवाद-लेनिनवाद से नेहरूवादी समाजवाद तक सी. एच. हनुमंथा राव
एक्जाम वारियर्स भारत के मंत्री नरेंद्र मोदी
ए सेंचुरी इज नॉट इनफ (आत्मकथा) सौरव गांगुली.
इम्परफेक्ट (आत्मकथा) संजय मांजरेकर
सिटीजन दिल्ली: माई टाइम्स, माई लाइफ (आत्मकथा) दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित
आई डू वॉट आई डू रघुराम राजन (आरबीआई के पूर्व गवर्नर)
अमर भारत अमीश त्रिपाठी
एक किंवदंती बनाना बिन्देशवर पाठक
ए हॉर्स वक्स इंटू ए बार डेविड ग्रॉसमैन (विजेता – मैन बुकर इंटरनेशनल प्राइज़ 2017)
भारत विश्व को कैसे देखता है श्याम सरन
हिट रिफ्रेश सत्या नडेला
अजेय: मेरा जीवन अब तक मारिया शारापोवा
कारगिल का शेरशाह दीपक सुराणा (कारगिल युद्ध के नायक की जीवनी – स्वर्गीय कप्तान विक्रम बत्रा)
कड़वे वचन तरुण सागर महाराज
मैं एचआईवी पॉजिटिव हूं, तो क्या? जयंत कलिता
शुरुआती के लिए क्रिप्टोकरेंसी अमित भारद्वाज
डलहौजी थ्रू माई आइज़ किरण चड्ढा
आग के साथ खेलना केटी प्राइज़
भारतीय विश्वविद्यालयों का भविष्य: तुलनात्मक और अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य सी. राज कुमार
बेहद खुशी का मंत्रालय अरुंधति रॉय
भीतर संकट गणेश देवी
इंदिरा गांधी-प्रकृति में एक जीवन जयराम रमेश
बेरेन और लुथेन जे.आर.आर. टोल्किन
युगपुरुष, भारत रत्न अटल जी रमेश पोखरियाल “निशंक”
मातोश्री लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन
बृहस्पति पर सोते हुए अनुराधा रॉय
न तो हॉक और न ही डोव खुर्शीद एम कसूरी
किरण बेदी: कैसे बनी टॉप कोप रीता पेशावरिया मेनन और अनु पेशावरिया
गुंटूर सिटी आंध्र प्रदेश का फ्लोरा पीआर.मोहना राव
शिवाजी कौन होता गोविंद पानसरे
व्योमकेश दरवेश विश्वनाथ त्रिपथ
मुसलमानों की शिक्षा: एक इस्लामी ज्ञान और शिक्षा के परिप्रेक्ष्य जे एस राजपूत
अग्नि की बाढ़ अमिताव घोष
सौरव गांगुली: क्रिकेट, कप्तानी और विवाद सप्तर्षि सर्कार
दोनों कैसे हों? अली स्मिथ
भारतीय संसद-एक महत्वपूर्ण मूल्यांकन सुधा पै और अविनाश कुमार
लाल साड़ी जेवियर मोरो
फ़रिश्ता (हिंदी उपन्यास) कपिल इसापुरी
पारिवारिक जीवन अखिल शर्मा
नेहरू और बोस- समानांतर जीवन रुद्रांशु मुखर्जी
लखनऊ बॉय विनोद मेहता
माउंटेन पर फिर से जन्मे अरुणिमा सिन्हा
न तो हॉक और न ही डोव पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद एम कसूरी
भारतीय संसदीय लोकतंत्र मीरा कुमार
37 पुल आमेर हुसैन
आरडी बर्मन- संगीत के राजकुमार खगेश देव बर्मन
कश्मीर वाजपेयी वर्ष श्री ए.एस. दौलत
दूसरा राजनीतिक गैर-बयान ‘भारत को भयानक बनाना’ चेतन भगत
श्रीमती फनीबोन्स अक्षय कुमार
1965, टर्निंग द टाइड: हाउ इंडिया द वोन द वॉर नितिन गोखले
वैश्वीकरण, लोकतंत्रीकरण और वितरण न्याय मूलचंद शर्मा
1965: द्वितीय भारत-पाक युद्ध की कहानियाँ बिष्ट रावत
द ड्यूल्स ऑफ द हिमालयन ईगल एयर मार्शल भारत कुमार
द ब्रिंक एंड बैक: इंडियाज 1991 स्टोरी जयराम रमेश
जस्ट ए वर्ल्ड का निर्माण: मुचकुंद दुबे के सम्मान में निबंध डॉ. कपिला वात्स्यायन
1965 के लोंडो-पाक युद्ध में कच्छ के रण में सरदार पोस्ट पर ग्राफिक बुकलेट केंद्रीय गृह मंत्री, राजनाथ सिंह
स्मिता पाटिल-ए ब्रीफ इन्कैंडेसेंस मैथिली राव
इंटरलिंकिंग ऑफ इंडिया रिवर राधा कान्त भारती
फिशिंग हेमलेट से लेकर लाल ग्रह तक पी वी मानरंजन राव (इसरो)
भारत के राष्ट्रपति और उच्च शिक्षा संस्थानों का शासन सी राज कुमार
रिबूटिंग इंडिया नंदन नीलेकणी और विराल शाह
क्या हुआ नेताजी को? अनुजधर
मुझे पता है कि कैसे जीना है, मुझे पता है कि कैसे मरना है मिस्टर नेविल हॉजकिंसन
दादी जानकी-ए सेंचुरी ऑफ सर्विस लिज़ हॉजकिन्सन
“MARU BHARAT SARU BHARAT” (मेरा भारत महान भारत) जैन आचार्य रत्नसुंदर सुरीश्वर महाराज
जवाहरलाल नेहरू और भारतीय राजनीति के परिप्रेक्ष्य में पी.जे.अलेक्जेंडर
ए किंगडम फॉर ए लव अमर चित्र कथा
ट्रान्सेंडेंस: मेरी आध्यात्मिक अनुभव प्रधान स्वामीजी के साथ अब्दुल कलाम
मोदी शीर्षक वाली पुस्तक – चीनी भाषा में एक सितारे का अविश्वसनीय उदय तरुण विजय
मुसलमानों की शिक्षा: एक इस्लामी परिप्रेक्ष्य ज्ञान और शिक्षा – भारतीय संदर्भ प्रोफेसर जेएस राजपूत
भारतीय संसदीय कूटनीति – वक्ता के परिप्रेक्ष्य पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार
गुजरात के राजकुमार: राजकुमार गोपालदास देसाई की असाधारण कहानी राजमोहन गांधी
2014: द इलेक्शन दैट चेंजेड इंडिया राजदीप सरदेसाई
अगला चीन-भारत युद्ध-विश्व का पहला जल युद्ध जनरल एस. पद्मनाभन
द ड्रामेटिक डिकेड: द इंदिरा गांधी ईयर्स प्रणब मुखर्जी
मेरा नाम अबू सलेम है एस हुसैन जैदी
यह मेरा रास्ता खेल रहा है सचिन तेंदुलकर और बोरिया मजूमदार
द नैरो रोड टू द डीप नॉर्थ रिचर्ड फ्लैनगन (द मैन बुकर प्राइज़ फ़िक्शन- 2014 के लिए)
फ़ाइनल टेस्ट: एक्ज़िट सचिन तेंदुलकर दिलीप डिसूजा
अनटोल्ड स्टोरी ऑफ इंडियन पब्लिक सेक्टर डॉ. यूडी चौबे
एंड देन वन डे (आत्मकथा) नसीरुद्दीन शाह
अंटार्कटिका का देवता यशवर्धन शुक्ला (13 साल का स्कूल का लड़का)
वन लाइफ इज़ नॉट इनफ कुंवर नटवर सिंह
द लाइव्स ऑफ अदर नील मुखर्जी
पदार्थ और छाया (दिलीप कुमार की जीवनी) उदय तारा नायर
ए बैड कैरेक्टर दीप्ति कपूर
भारतीय वृत्ति डॉ. मिनिया चटर्जी
एक घरेलू दिवा की डायरी शिल्पा शेट्टी
मालाबार हिल की विधवाएँ सुजाता मैसी
मिस्टर एम के गांधी की चंपारण डायरी अरविंद मोहन (बिहार के सीएम नीतीश कुमार द्वारा जारी)
एक सुरक्षित यात्रा केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री गडकरी ने इस पुस्तक का उद्घाटन किया।
मेरी यात्रा मार्क्सवाद-लेनिनवाद से नेहरूवादी समाजवाद पूर्व योजना आयोग और वित्त आयोग के सदस्य सी एच हनुमंत राव (पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा जारी)
बॉलीवुड: द फिल्म्स, द सोंग्स, द स्टार्स शुभारंभ अमिताभ बच्चन ने किया (एस.एम. औसजा, करण बाली, राजेश देवराज और तानुल ठाकुर द्वारा सह-लेखक)
गठबंधन के वर्षों प्रणव मुखर्जी (भारत के पूर्व राष्ट्रपति)
गोल्डन हाउस सलमान रुश्दी
भारत 2017 एल्बम राजीव मेहरिशी
भारत का विकास पुनरुत्थान: क्षेत्रीय मुद्दे और शासन जोखिम एरम राजू, एम सीताराम मूर्ति और सिंगला सुब्बय्या
गॉड्स बैंकर्स गेराल्ड पोज़नर
मोदी-एक सितारे का अविश्वसनीय उदय (चीनी भाषा) श्री तरुण विजय
रेड टेप से रेड कार्पेट… और फिर कुछ गिना रिनेहर्ट
ट्रान्सेंडेंस-माई स्पिरिचुअल एक्सपीरियंस विद प्रमख स्वामीजी डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम
भारत मध्य एशिया संबंध अमिया चंद्र
संदेह से परे (गाँधी के आश्वासन पर) तीस्ता सीतलवाड़

वर्ष 2017 की प्रसिद्ध भारतीय पुस्तकें एवं उनके लेखक: (List of Important Books and Authors 2017 in Hindi)

यहाँ पर वर्ष 2017 की महत्त्वपूर्ण एवं चर्चित किताबों और उनके लेखकों के नाम की सूची दी गयी है, जो जनवरी 2017 माह में काफी सुर्ख़ियों में रहीं और जिनके आधार पर प्रतियोगी परीक्षाओं में एक या दो प्रश्न अवश्य पूछे जाते है और आगे भी पूछे जायेंगे। यदि आप सरकारी नौकरियों के लिए विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाएँ जैसे: एसएससी, यूपीएससी, रेलवे, पीएसएस, बैंक, शिक्षक, टीईटी, कैट एवं अन्य किसी प्रकार की परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आप इन पुस्तकों के बारे में पता होना चाहिए।

वर्ष 2017 की 32 प्रसिद्ध भारतीय पुस्तकें एवं उनके लेखकों की सूची:

पुस्तकों का नाम लेखकों का नाम
‘1971: द फॉल ऑफ ढाका’ जी डी बख्शी [पूर्व सैनिक संगठन वेटरंस इंडिया के संरक्षक मेजर जनरल (सेवानिवृत्त)]
‘सोशल एक्सक्लूजन एण्ड जस्टिस इन इंडिया’ पी.एस.कृष्णन
‘अनस्टॉपेबल: माय लाइफ सो फार’ मारिया शारापोवा (रूस की टेनिस खिलाड़ी)
‘भारतीय कला में सलिल क्रीडाएं एवं सद्यस्नाता नायिका’ क्षेत्रपाल गंगवार और संजीब कुमार सिंह
‘टेस्टोस्टेरोन रेक्स: अनमेकिंग द मिथ्स ऑफ अवर जैनडर्ड माइंडस’ कॉर्डेलिया फाइन
‘आई डू वॉट आई डू: ऑन रिफॉर्म, रेटोरिक एंड रेसोल्व’ रघुराम राजन (आरबीआई के पूर्व गवर्नर)
‘खुशवंत सिंह-इन विजडम एंड इन जैस्ट’ विजय नारायण शंकर तथा ओंकार सिंह
‘प्रेसीडेंट प्रणब मुखर्जी-अ स्टेट्समैन’ प्रकाशन, स्टेटमैन समूह
‘द व्हील चेयर’ राजा बुंदेला
‘एम.एस. स्वामीनाथन: दी क्वेस्ट फॉर अ वर्ल्ड विदआउट हंगर’ डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन
‘चाइल्डहुड नोस्टेलजिया एंड ट्रिगरिंग टेल्स’ एपी माहेश्वरी
‘इंदिरा गांधी : ए लाइफ इन नेचर’ जयराम रमेश
‘स्वच्छ जंगल की कहानी – दादी की जुबानी” डॉ. मधु पंत
‘गांधी इन चंपारण’ दीनानाथ गोपाल तेंदुलकर
‘द अनटोल्ड वाजपेयी: पॉलिटीशियन एंड पैराडॉक्स’ उल्लेख एनपी
‘खुल्लम खुल्ला: ऋषि कपूर अनसेंसर्ड’ ऋषि कपूर एवं मीना नायर
‘जिन्नाह ऑफ्टन कैम टू ओउर हाउस’ किरण दोशी (हिंदू पुरस्कार 2016 विजेता)
‘द पीपुल्स राष्ट्रपति: डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम’ एस. एम. खान
‘द आदिवासी विल नॉट डांस’ हंसदा सौवेन्द्र शेखर
‘कलकत्ता’ कुणाल बसु
‘हाफ ऑफ़ व्हाट आई से’ अनिल मेनन
‘द आइलैंड ऑफ़ लोस्ट गर्ल्स’ मंजुला पद्मनाभन
‘वीरप्पन, चेजिंग द ब्रिगैंड’ विजय कुमार
‘पाकिस्तान: कोटिंग द अबिस’ तिलक देवेशर
‘डिटेरियोरेशन इन हायर एजुकेशन’ कन्हैया प्रसाद सिन्हा
‘इंडियन रेलवे- द वैविंग ऑफ ए नेशनल टैपेस्ट्री’ बिबेक देबरॉय, संजय चड्ढा और विद्याकृष्णमूर्ति ने संयुक्त रूप से लिखी है।
‘होम ऑफ़ द ब्रेव’ नितिन ए. गोखले तथा ब्रिगेडियर एस. के. चटर्जी ने संयुक्त रूप से लिखी है।
‘भारत की दुग्ध क्रान्ति के 50 वर्ष’ राधा मोहन सिंह (लोकार्पण किया है।)
‘रेखा– द अनटोल्ड स्टोरी’ यासीर उस्मान
‘हेमा मालिनी: बियोंड द ड्रीम गर्ल’ राम कमल मुखर्जी
‘वीरप्पन, चेज़िंग द ब्रिगंड’ विजय कुमार (गृह मंत्रालय में वरिष्ठ सुरक्षा सलाहकार)
‘मातोश्री’ सुमित्रा महाजन

प्रसिद्ध लेखक और उनकी चर्चित पुस्तकें वर्ष 2016: (List of Important Books and Authors 2016 in Hindi)

यहाँ पर वर्ष 2016 की 60 महत्त्वपूर्ण एवं चर्चित किताबों और उनके लेखकों के नाम की सूची दी गयी है, जो वर्ष 2016 में काफी सुर्ख़ियों में रहीं और जिनके आधार पर प्रतियोगी परीक्षाओं में एक या दो प्रश्न अवश्य पूछे जाते है और आगे भी पूछे जायेंगे। यदि आप सरकारी नौकरियों के लिए विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाएँ जैसे: एसएससी, यूपीएससी, रेलवे, पीएसएस, बैंक, शिक्षक, टीईटी, कैट एवं अन्य किसी प्रकार की परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आप इन पुस्तकों के बारे में पता होना चाहिए।

वर्ष 2016 की 60 प्रसिद्ध पुस्तकें एवं उनके लेखकों की सूची:

पुस्तकों का नाम लेखकों का नाम
कॉन्फ्लिक्ट्स ऑफ इंटरेस्टः माई जर्नी थ्रू इंडियाज ग्रीन मूव्मन्ट सुनीता नारायण
डेथ अंडर द देवदार्स रस्किन बॉन्ड
द स्लीपवॉकर्स ड्रीम ध्रुबज्योति बोराह
द मिनिस्ट्री ऑफ़ अटमोस्ट हैप्पीनेस अरुंधती रॉय
मोदीज मिडास टच इन फॉरेन पॉलिसी वेंकैया नायडू
सिटिजन एंड सोसायटी मोहम्मद हामिद अंसारी
पुस्तक द ओशियन ऑफ़ चर्न संजीव सान्याल
‘आर डी बर्मनिया: पंचमेमोयर्स चैतन्य पादुकोण
रवि वेल्लूर द्वारा लिखित इंडिया राइजिंग: फ्रेश होप, न्यू फीयर्स रवि वेल्लूर
द ग्रेट डीरेंजमेंट: क्लाइमेट चेंज एंड द अनथिंकेबल अमिताव घोष
हू मूव्ड माई इंटरेस्ट रेट? दुव्वुरी सुब्बाराव
करेज एंड कमिटमेंट (साहस एवं प्रतिबद्धता) मार्ग्रेट अल्वा
पुस्तक रिंगसाइड विद विजेंदर रूद्रनील सेनगुप्ता
ए लाइफ इन डिप्लोमेसी एम के रसगोत्रा
द अनसीन इंदिरा गांधी डॉ के पी माथुर
इंडिया वर्सेज पाकिस्तान:व्हाई कान्ट वी जस्ट बी फ्रेंड्स हुसैन हक्कानी
द ड्रान्ड डिटेक्टिव नील जॉर्डन
क्याओस एंड कैलिफेट: जिहादीज़ एंड वेस्ट इन द स्ट्रगल पैट्रिक कॉकबर्न
शशि कपूर, द हाउसहोल्डर, द स्टार असीम छाबड़ा
द मेकिंग ऑफ़ इंडिया: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ़ ब्रिटिश एंटरप्राइज करतार लालवानी
हैमिल्टन: रेवोल्युशन लिन मैनुअल मिरांडा, जेरेमी मैक्कार्टर
द रेनबो कम्स एंड गोज एंडरसन कपूर, वंडरबिल्ट
हंगरी गर्ल: क्लीन एंड हंगरी लिजा लिलिएन
फूल मी वन्स हार्लान कोबेन
द समर बिफोर द वार : अ नॉवेल हेलन सिमेर्सन
द ओबसेशन नोरा रोबर्ट्स
द वॉकिंग डेड वॉल्यूम 25: नो टर्निंग बैक रोबर्ट किर्कमैन, स्टेफैनो गाओडियानो, चार्ली एडलार्ड
द पार्टीशन ऑफ़ बंगाल: फ्रैजाइल बौर्ड्स एंड न्यू आइडेंटिटीज देबजानी सेनगुप्ता
द सियालकोट सागा अश्विन सांघी
कोमेथ द ऑवर जेफ्री आर्चर
एन इकोनॉमिस्ट इन द रियल वर्ल्ड: द आर्ट ऑफ़ पॉलिसी मेकिंग इन इंडिया कौशिक बसु
द थ्री बॉक्स सोल्युशन: अ स्ट्रेटेजी फॉर लीडिंग इनोवेशन विजय गोविंदराजन
गवर्नेंस इन पाकिस्तान सगीर अहमद खान
वेटलेस साराह बन्नान
इंडियास ब्रोकन ट्रिस्ट तवलीन सिंह
स्वच्छता संस्कार मृदुला सिन्हा (गोवा की राज्यपाल)
स्वच्छ भारत मृदुला सिन्हा एवं डॉ. आर.के. सिन्हा
एट दैट वेरी मोमेंट मृदुला सिन्हा
लाइफ मंत्राज सुब्रत राय (सहारा)
गिल्बर्ट: द लास्ट इयर्स ऑफ़ डब्ल्यू.जी. चार्ली कोनेली
एनीथिंग बट खामोश शत्रुघ्न सिन्हा (बायोग्राफी)
द साउथ अफ्रीकन गांधी: स्ट्रेचर- बीयरर ऑफ़ एम्पायर अश्विन देसाई एवं गुलाम वाहेद
मारू भारत सारु भारत (आत्मकथा) जैन आचार्य रत्नासुन्दरसुरीस्वारजी
जेड फैक्टर: माई जर्नी इज द रौंग मैन एट द राइट टाइम (आत्मकथा) सुभास चंद्रा
सपने जो सोने न दें डॉ. रमेश पोखरियाल “निर्शक”
एबोड अंडर द डोम टॉमस मैथ्यू (प्रणब मुखर्जी के लिए)
राईट ऑफ़ द लाइन: द प्रेसीडेंसी बॉडीगार्ड राष्ट्रपति भवन (पब्लिकेशन डिवीज़न)
माई गीता देवदत्त पटनायक
नॉन रेजीडेंट बिहारी शशिकांत मिश्रा
द लॉक ऑफ़ मेडिसिन सिद्धार्थ मुखर्जी
व्हाट हैपंड टू नेताजी? अनुज धर
ऑल द वर्ल्ड एज ए स्टेज टी.टी. श्रीनाथ
ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ सेवन किलिंग्स मार्लोन जेम्स
द इयर ऑफ़ द रनवेज संजीव सहोता
मिशन इंडिया: ए विजन ऑफ़ इंडियन यूथ अब्दुल कलाम विथ वाई.एस.राजन
एडवांटेज इंडिया: फ्रॉम चैलेंज टू अपौरच्युनिटी अब्दुल कलाम, सृजनपाल सिंह
एवेरेस्ट की बेटी अरुनिमा सिन्हा
द अदर साइड ऑफ़ द माउंटेन सलमान खुर्शीद
द मेकिंग ऑफ़ इंडियन डिप्लोमेसी दीप. के. दत्ता रे.
नाईदर ए हॉक नॉर ए डव खुर्शीद महमूद कसूरी
बिंग सलमान जसीम खान

प्रसिद्ध लेखक और उनकी चर्चित पुस्तकें वर्ष 2015: (List of Important Books and Authors 2015 in Hindi)

आये जाने प्रसिद्ध 34 किताबो के नाम और उनके लेखक जो वर्ष 2015 में काफी चर्चा में रहीं और जिनके आधार पर प्रतिस्प्रधा में प्रश्न भी पूछे गए और आगे भी पूछे जायेंगे। आप एसएससी, बैंक, शिक्षक, टीईटी, कैट, यूपीएससी, अन्य सरकारी नौकरियों के लिए तैयारी कर रहे हैं तो आप इन पुस्तकों के बारे में पता होना चाहिए।

वर्ष 2015 की 35 प्रसिद्ध पुस्तकें एवं उनके लेखकों की सूची:

पुस्तकों का नाम लेखकों का नाम
योगिकास्पर्श निवेदिता जोशी
फ्लड ऑफ़ फायर अमिताव घोष
मोदीज वर्ल्ड: एक्सपैंडिंग इंडियाज स्फेयर ऑफ़ इंफ्लुएन्स सी. राजा मोहन
रेड टेप टू रेड कार्पेट एंड देन सम जिन राइनहार्ट
योग और इस्लाम इमरान चौधरी एवं अभिजीत सिंह
मोदी-एक सितारे का अतुलनीय उद्गम तरुण विजय
स्टीव जॉब्स वॉल्टर आइजेक्सन
द कम्पलीट स्टोरी ऑफ़ इंडियन रिफॉर्म्स : 2G, पॉवर एंड प्राइवेट एंटरप्राइजेज प्रदीप बैजल
राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर यशवंत सिंह
चाइना: कन्फ्यूशियस इन द शैडोज पूनम सूरी
सौरव गांगुली: क्रिकेट, कैप्टेन्सी, एंड कॉन्ट्रोवर्सी सप्तर्षि सरकार
अनबिलिवेबल: देल्ही टू इस्लामाबाद प्रो. भीम सिंह
इंडियन पार्लियामेंट्री डिप्लोमेसी: स्पीकर्स पर्सपेक्टिव मीरा कुमार
द मोदी इफेक्ट: इनसाइड नरेन्द्र मोदीज कैम्पेन टू ट्रांसफॉर्म इंडिया लांस प्राइस
मदरिंग इंडिया सुष्मिता रॉय
द रेड सारी जावियर मेमो
टू ईयर्स एट मंथ्स एंड ट्वेंटीएट नाइट्स सलमान रश्दी
प्लेइंग इट माई वे सचिन तेंदुलकर
हाफ गर्लफ्रैंड चेतन भगत
नरेंद्र मोदी: ए पॉलिटिकल बायोग्राफी एंडी मैरिनो
आर्कटिक समर डैमन गलगुप्त
हार्ड च्वॉइस हिलेरी क्लिंटन
लखनऊ बॉय : ए मेमॉयर स्व. विनोद मेहता
एजुकेशन ऑफ़ मुस्लिम : इस्लामिक पर्सपेक्टिव ऑफ़ नॉलेज एंड एजुकेशन जे.एस राजपूत
फेमिली लाइफ अखिल शर्मा
गो सेट ए वॉचमैन हार्पर ली
गॉड्स बैंकर: ए हिस्ट्री ऑफ़ मनी एंड पॉवर एट द वैटिकन गेराल्ड पोस्नर
फ्रागिल फफ्रन्टियर्स: द सीक्रेट हिस्ट्री ऑफ़ मुंबई टेरर अटैक सरोज कुमार राठ
किरण बेदी: कैसे बनी टॉप कॉप किरण बेदी
फ़्लोरा ऑफ़ गुंटर सिटी आंध्र प्रदेश पी.एम मोहन राओ
सुपर एकनॉमिस राघव बहल
एडिटर अनप्लगॅड: मीडिया, मैग्नेट्स, नेता एंड मी विनोद मेहता
फेसिस एंड प्लेसिस प्रोफेसर दीपक नय्यर
नीदर ए हॉक नॉर ए डव खुर्शीद एम कसूरी

 

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सरस्वती सम्मान से सम्मानित व्यक्तियों की सूची (1991 से अब तक)

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सरस्वती सम्मान से सम्मानित व्यक्ति (1991 से अब तक) – List of Saraswati Samman Awardees in Hindi:

सरस्वती सम्मान क्या है?

सरस्वती सम्मान के. के. बिड़ला फ़ाउंडेशन द्वारा दिया जाने वाला साहित्य पुरस्कार है। यह सम्मान प्रतिवर्ष भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं के भारतीय लेखकों की पिछले 10 सालों में प्रकाशित साहित्यिक कृति को पुरस्कृत किया जाता है।

सरस्वती सम्मान का संछिप्त विवरण

पुरस्कार का वर्ग साहित्य
स्थापना वर्ष 1991
पुरस्कार राशि 15 लाख रुपये
प्रथम विजेता हरिवंश राय बच्चन
आखिरी विजेता डॉ. शरणकुमार लिंबाले (2020)

सरस्वती सम्मान

प्रसिद्ध मराठी लेखक डॉ. शरणकुमार लिंबाले (Dr Sharankumar Limbale) को उनकी पुस्तक सनातन (Sanatan) के लिए सरस्वती सम्मान, 2020 प्राप्त होगा. ​पुरस्कार में पंद्रह लाख रुपये, एक प्रशस्ति पत्र और एक पट्टिका है. केके बिड़ला फाउंडेशन द्वारा 1991 में स्थापित सरस्वती सम्मान को देश में सबसे प्रतिष्ठित और सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार के रूप में मान्यता प्राप्त है. डॉ. लिंबाले का सनातन 2018 में प्रकाशित किया गया है. सनातन, दलित संघर्ष का एक महत्वपूर्ण सामाजिक और ऐतिहासिक दस्तावेज है. ऑल इंडिया रेडियो से पहली बार बोलते हुए, डॉ. लिंबाले बहुत भावुक थे क्योंकि उन्होंने सार्वजनिक प्रसारक के साथ अपना करियर शुरू किया था.

सरस्वती सम्मान की विशेषताएं और महत्वपूर्ण तथ्य:

  • सरस्वती सम्मान में शाल, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिह्न और पंद्रह लाख रुपये की सम्मान राशि दी जाती है।
  • सरस्वती सम्मान का आरंभ 1991 में किया गया था।
  • पहला सरस्वती सम्मान हिंदी के साहित्यकार डॉ. हरिवंश राय बच्चन को उनकी चार खंडों की आत्मकथा के लिए दिया गया था।
  • डोगरी की साहित्यकार पद्मा सचदेव को वर्ष 2015 का प्रतिष्ठित सरस्वती सम्मान उनकी आत्मकथा चित्त-चेत के लिए दिया गया।
  • सरस्वती सम्मान वर्ष 2016 के लिए कोंकणी के जाने-माने साहित्यकार महाबलेश्वर सैल को चुना गया था। उनके उपन्यास ‘हाउटन’ के लिए उनको यह सम्मान दिया था।
  • 27 अप्रैल, 2018 को प्रसिद्ध गुजराती कवि सीतांशु यशसचंद्र को साल 2017 के 27वें सरस्वती सम्मान के लिए चुना गया था। सीतांशु यशसचंद्र को यह सम्मान उनके कविता संग्रह ‘वखार’ के लिए दिया जाएगा। वर्ष 2009 में इस पुस्तक का प्रकाशन हुआ था।
  • 10 अप्रैल, 2019 को प्रसिद्ध तेलुगू कवि डॉ.के. शिवा रेड्डी को वर्ष 2018 के 28वें सरस्वती सम्मान के लिए चुना गया है, उन्हें यह सम्मान उनके काव्य संग्रह ‘पक्की ओत्तिगिलिते’के लिए दिया जाएगा। जिसका प्रकाशन वर्ष 2016 में हुआ था।
  • 16 जनवरी 2020 में प्रसिद्ध सिंधी लेखक वासदेव मोही को 29वें सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया गया, उन्हें यह सम्मान उनकी प्रसिद्ध सिंधी भाषी कहानी “चेक बुक” के लिए दिया गया है।

वर्ष 1991 से अब तक सरस्वती सम्मान विजेताओं की सूची:

वर्ष साहित्यकार का नाम कृति/उपन्यास/काव्य
2020 डॉ. शरणकुमार लिंबाले सनातन
2019 वासदेव मोही चेक बुक (सिंधी भाषी कहानी)
2018 के शिव रेड्डी पक्की ओत्तिगिलिते (कविता संग्रह)
2017 शीतांशु यशचंद्र वाकहार (कविता संग्रह)
2016 महाबलेश्वर सैल हाउटन (उपन्यास)
2015 पद्मा सचदेव चित्त-चेत (आत्मकथा)
2014 वीरप्पा मोइली कन्नड़
2013 गोविन्द मिश्र हिन्दी
2012 सुगत (सुगथा) कुमारी मलयालम
2011 ए.ए. मानवालन तमिल
2010 एस.एल. भैरप्पा उपन्यास ‘मंद्र’ (कन्नड़)
2009 सुरजीत पातर लफ्जों दी दरगाह
2008 लक्ष्मी नंदन बोरा असमी
2007 नैयर मसूद उर्दू
2006 जगन्नाथ प्रसाद दास उड़िया
2005 प्रो. के अयप्पा पणिकर मलयालम
2004 सुनील गंगोपाध्याय बांग्ला
2003 प्रो. गोविन्द चंद्र पांडे संस्कृत
2002 महेश एलकुंचवार मराठी
2001 दलीप कौर तिवाना पंजाबी
2000 मनोज दास उड़िया
1999 इंदिरा पार्थसारथी तमिल
1998 प्रो. शंख घोष बांग्ला
1997 मनुभाई पंचोली ‘दर्शक’ गुजराती
1996 शम्सुर्रहमान फारूकी उर्दू
1995 बालमणि अम्मा मलयालम
1994 हरिभजन सिंह पंजाबी
1993 विजय तेंदुलकर मराठी
1992 रमाकांत रथ उड़िया
1991 हरिवंश राय बच्चन आत्मकथा (हिन्दी)

यह भी पढे: व्यास सम्मान से सम्मानित व्यक्तियों की सूची

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दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021

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दिल्ली एनसीटी (संशोधन) अधिनियम, 2021 की सरकार ने मार्च 2021 में राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त की। बिल हाल ही में संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया। यह अधिनियम दिल्ली की NCT की सरकार में कुछ बदलाव लाता है। इस लेख में, आप UPSC परीक्षा के लिए GNCT अधिनियम के महत्वपूर्ण प्रावधानों के बारे में पढ़ सकते हैं।

दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021

यह अधिनियम मूल रूप से दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के उपराज्यपाल (एलजी) को अधिक शक्ति देता है और चुनी हुई सरकार की शक्ति को कम कर देता है। यह अधिनियम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार, 1991 में कुछ विषयों पर स्पष्टता लाने का प्रयास करता है।

  • यह अधिनियम राष्ट्रीय सरकार के दिल्ली अधिनियम, 1991 में संशोधन करता है।
  • यह दिल्ली विधानसभा की जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए कुछ मामलों में एलजी को अधिक शक्ति प्रदान करता है।
  • अधिनियम की वस्तुओं और कारणों के अनुसार, यह स्पष्ट किया जाता है कि आदेश जारी होने से पहले एलजी(LG) को प्रस्तुत करने के लिए किन मामलों या प्रस्तावों को प्रस्तुत करने की आवश्यकता है, इस पर स्पष्टता की अनुपस्थिति को समाप्त करना।
  • इसका उद्देश्य “दिल्ली में निर्वाचित सरकार और उपराज्यपाल (LG) की जिम्मेदारियों को और अधिक परिभाषित करना” है।

मुद्दे की पृष्ठभूमि – Background to the issue

  • यह 1991 में था कि दिल्ली को एक संविधान संशोधन के माध्यम से पूरी तरह से निर्वाचित विधान सभा और एक जिम्मेदार सरकार दी गई थी।
  • 1991 के 69 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम ने दिल्ली के केंद्र शासित प्रदेश को एक विशेष दर्जा प्रदान किया, और इसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली ’के रूप में फिर से डिज़ाइन किया और अपने प्रशासक को उपराज्यपाल (एलजी) के रूप में नामित किया।
  • हालांकि, एक UT, दिल्ली को एक विशेष मामला माना जाता था और संसद द्वारा उसे विशेष संवैधानिक दर्जा दिया जाता था।
  • 1991 अधिनियम पूरी तरह से निर्वाचित विधानसभा और विधानसभा के लिए जिम्मेदार मंत्रियों की एक परिषद के लिए प्रदान किया गया।
  • इसने विधानसभा को राज्य सूची में सभी मामलों पर कानून बनाने की शक्ति के साथ-साथ भूमि, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था को छोड़कर समवर्ती सूची प्रदान की। हालाँकि, संसद के कानून दिल्ली विधानसभा द्वारा बनाए गए लोगों पर हावी हैं।
  • यह केंद्र शासित प्रदेश सरकार अधिनियम, 1963 से एक प्रावधान में भी लाया गया था, अर्थात् किसी भी मामले पर LG और मंत्रिपरिषद के बीच अंतर के मामले में, इसे राष्ट्रपति द्वारा एलजी के लिए भेजा जाएगा। निर्णय और इस तरह के निर्णय को लंबित करने पर, एलजी मामले पर कोई कार्रवाई कर सकता है, क्योंकि वह उचित समझे।
  • हालांकि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने माना है कि सरकार को अपने फैसलों पर LG,s की सहमति नहीं लेनी है और प्रतिनिधि सरकार और सहकारी संघवाद की संवैधानिक प्रधानता को ध्यान में रखते हुए, उनके बीच के किसी भी मतभेद को हल किया जाना चाहिए। महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार के साथ अलग होने के लिए एलजी की शक्ति से सरकार लगातार खतरे में है।
  • फैसले में कहा गया कि एलजी मंत्रियों की परिषद की सहायता और सलाह से बंधे थे।
  • इसने यह भी कहा कि परिषद के निर्णयों को एलजी (LG) को सूचित किया जाना चाहिए।
  • हालाँकि, SC ने कहा है कि LG किसी मामले को यंत्रवत् या नासमझी से संदर्भित नहीं कर सकता है और उसे कानून के ढांचे और व्यावसायिक नियमों के लेनदेन के भीतर के मतभेदों को हल करने के लिए सभी प्रयास करने होंगे।
  • इस फैसले से उत्साहित राज्य सरकार ने कार्यान्वयन से पहले एलजी को कार्यकारी मामलों की फाइलें भेजना बंद कर दिया था। यह एलजी को सभी प्रशासनिक घटनाक्रमों से अवगत कराता रहा, लेकिन किसी भी निर्णय को लागू करने या निष्पादित करने से पहले जरूरी नहीं था।

जीएनसीटी अधिनियम प्रावधान – GNCT Act Provisions

दिल्ली सरकार के एनसीटी (संशोधन) अधिनियम, 2021 के कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों पर नीचे चर्चा की गई है।

  • दिल्ली की विधान सभा द्वारा लागू किसी भी कानून में वर्णित ‘सरकार’ का अर्थ एलजी (LG) होगा। अधिनियम एलजी (LG) के रूप में ‘सरकार’ को परिभाषित करता है।
  • यह कानून उन मामलों में भी एलजी को विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान करता है जहाँ विधान सभा को कानून बनाने का अधिकार है।
  • 1991 के अधिनियम की धारा 44 में जोड़ा गया एक अतिरिक्त खंड सरकार के लिए किसी भी कार्यकारी कार्रवाई से पहले सभी मामलों पर एलजी की राय प्राप्त करना अनिवार्य बनाता है, जवाबदेही सुनिश्चित करता है। इसका अर्थ है कि राज्य सरकार या कैबिनेट को कोई भी निर्णय लेने से पहले एलजी की राय लेनी होगी।
  • संशोधन यह भी कहता है कि “विधान सभा राजधानी के दैनिक प्रशासन के मामलों पर विचार करने या प्रशासनिक निर्णयों के संबंध में पूछताछ करने के लिए खुद को सक्षम करने के लिए कोई नियम नहीं बनाएगी”।

दिल्ली सरकार की NCT (संशोधन) अधिनियम, 2021 की क्या आवश्यकता है? What is the need for the Government of NCT of Delhi (Amendment) Act, 2021?

उल्लेखित वस्तुओं और कारणों में, सरकार बताती है कि 1991 के अधिनियम की धारा 44 के प्रभावी समयबद्ध कार्यान्वयन के लिए कोई संरचनात्मक व्यवस्था नहीं है। इसके अतिरिक्त, इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि कार्यान्वयन से पहले एलजी को किन मामलों को प्रस्तुत करना आवश्यक है।

दिल्ली सरकार एनसीटी (संशोधन) अधिनियम, 2021 की कमियाँ – Government of NCT of Delhi (Amendment) Act, 2021 Concerns

दिल्ली में विपक्षी दलों और सत्ता में आई पार्टी आम आदमी पार्टी (आप) ने जीएनसीटी संशोधन अधिनियम को असंवैधानिक बताते हुए इसका जवाब दिया है। उनके अनुसार, संशोधन दिल्ली राज्य में लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार की शक्ति को कम करना चाहते हैं। वे यह भी कहते हैं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री की स्थिति को निरर्थक माना जाएगा और इससे देश की संघीय प्रकृति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

अधिनियम कहता है कि दिल्ली विधानसभा दिन या दिन के प्रशासन के मामलों पर विचार करने के लिए खुद को या अपनी समितियों को सक्षम करने के लिए नियम नहीं बनाएगी। यह आगे कहता है कि विधानसभा द्वारा प्रशासनिक निर्णयों के संबंध में पूछताछ करने के लिए कोई नियम नहीं बनाया जाएगा।

संशोधनों में से एक की आवश्यकता है कि राज्य सरकार किसी भी निर्णय को लागू करने से पहले एलजी की राय प्राप्त करे। यह सरकार के मामलों को दबाने के लिए त्वरित निर्णय लेने की शक्ति पर अंकुश लगा सकता है क्योंकि इसके लिए एलजी को अपनी राय देने तक इंतजार करना होगा। एलजी को अपनी राय देने के लिए कोई समय सीमा भी नहीं है।

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