
विजयदशमी (दशहरा) के बारे में जानकारी:
विजयदशमी जिसे दशहरा, या दशैन के नाम से भी जाना जाता है, जो हर साल नवरात्रि के अंत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्योहार है। यह अश्विन या कार्तिक के हिंदू कैलेंडर महीने में दसवें दिन मनाया जाता है, क्रमशः हिंदू लूनी-सौर कैलेंडर का छठा और सातवां महीना, जो आमतौर पर सितंबर और अक्टूबर के ग्रेगोरियन महीनों में आता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को ‘विजयादशमी’ के नाम से जाना जाता है। दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा।
विजयदशमी (दशहरा) का महत्व:
प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। क्योंकि इस दिन को जीत का प्रतीक माना जाता है इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।
विजयदशमी (दशहरा) एक विजय पर्व:
रामचरित्रमानस के अनुसार रावण ने सीता का अपहरण किया था। भगवान राम ने रावण से सीता को रिहा करने का अनुरोध किया था, परंतु रावण ने मना कर दिया जिसके कारण इस स्थिति ने एक विशाल युद्ध का रूप ले लिया। दस हजार वर्षों तक घोर तपस्या करने के बाद, रावण को भगवान ब्रह्मा से वरदान मिला था की रावण को देवताओं, राक्षसों या आत्माओं द्वारा नहीं मारा जा सकता था। उन्हें एक शक्तिशाली दानव राजा के रूप में चित्रित किया गया है जो ऋषियों की तपस्या को विचलित करता है। भगवान विष्णु के वरदान के वश में रहकर भगवान विष्णु ने उन्हें हारने और मारने के लिए मानव राम के रूप में अवतार लिया। राम और रावण के बीच एक घातक और भयंकर युद्ध हुआ जिसमें राम ने रावण को मार दिया और उसके बुरे शासन को समाप्त कर दिया। रावण के दस सिर थे। दस सिर वाले की हत्या को दशहरा कहा जाता है। रावण पर राम की विजय के कारण पृथ्वी पर फिर से धर्म स्थापित हो गया। इस प्रकार, हम बुराई पर बुराई की जीत को याद करते हुए, इस त्यौहार को मनाते हैं।
भारत के विभिन्न देशो में दशहरा पर्व:
- दशहरा पर्व हर्ष और उल्लास के साथ बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। देश के कोने-कोने में यह विभिन्न रूपों से मनाया जाता है, बल्कि यह उतने ही जोश और उल्लास से दूसरे देशों में भी मनाया जाता जहां भारतीय लोग प्रवासी के रूप में निवास करतें हैं।
- हिमाचल प्रदेश में कुल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है। अन्य अन्य स्थानों की तरह यहाँ भी दस दिन एवं एक सप्ताह पूर्व इस पर्व की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। स्त्रियाँ और पुरुष सभी सुंदर एवं नए वस्त्र पहनकर तुरही, बिगुल, ढोल, नगाड़े, बाँसुरी इत्यादि, जिसके पास जो वाद्य होता है, उसे लेकर बाहर निकलते हैं। पहाड़ी लोग अपने ग्रामीण देवता का धूम धाम से जुलूस निकाल कर उनकी पुजा करतें हैं। देवताओं की मूर्तियों को बहुत ही आकर्षक पालकी में सुंदर ढंग से सजाया जाता है। जिसके साथ ही वे अपने मुख्य देवता रघुनाथ जी की भी पूजा करते हैं। इस जुलूस यात्रा में प्रशिक्षित नर्तक नटी नृत्य करते हैं। इस प्रकार जुलूस बनाकर नगर के मुख्य भागों से होते हुए नगर परिक्रमा करते हैं और कुल्लू नगर में देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं।
- पंजाब में दशहरा नवरात्रि के नौ दिन का उपवास रखकर मनाते हैं। इस दौरान यहां आगंतुकों का स्वागत पारंपरिक मिठाई और उपहारों से किया जाता है। यहां भी रावण-दहन के आयोजन होते हैं, व मैदानों में मेले लगते हैं।
- मध्य भारत में छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले में दशहरे पर्व को लोग मां दंतेश्वरी की आराधना को समर्पित एक पर्व मानते हैं। दंतेश्वरी माता बस्तर अंचल के निवासियों की आराध्य देवी हैं, जो दुर्गा का ही रूप हैं। यहां यह पर्व पूरे 75 दिन चलता है। यहां दशहरा श्रावण मास की अमावस से आश्विन मास की शुक्ल त्रयोदशी तक चलता है। प्रथम दिन देवी से समारोह के आरंभ की अनुमति ली जाती है। देवी एक कांटों की सेज पर विरजमान होती हैं, जिसे काछिन गादि कहते हैं। बस्तर में यह समारोह लगभग 15वीं शताब्दी से शुरु हुआ था।
- बंगाल, ओडिशा और असम में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है। जिसके साथ ही यह पर्व बंगालियों,ओडिआ, और आसाम के लोगों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार बंगाल में पांच दिनों के लिए मनाया जाता है।ओडिशा और असम मे 4 दिन तक त्योहार चलता है। यहां प्रत्येक वर्ष दशहरा पर्व पर देवी दुर्गा को भव्य सुशोभित पंडालों विराजमान करते हैं। जिसके साथ ही प्रत्येक वर्ष दुर्गा की मूर्ति तैयार करवाई जाती हैं। अन्य स्थानों की भांति यहाँ भी इस दिन कई स्थानों पर मेले लगे होते हैं। यहां षष्ठी के दिन दुर्गा देवी का बोधन, आमंत्रण एवं प्राण प्रतिष्ठा आदि का आयोजन किया जाता है। जिसके बाद सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी के दिन सुबह और शाम को दुर्गा की पूजा में व्यतीत होते हैं। अष्टमी के दिन महापूजा होती है। दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। पुरुष आपस में आलिंगन करते हैं, जिसे कोलाकुली कहते हैं। स्त्रियां देवी के माथे पर सिंदूर चढ़ाती हैं, व देवी को अश्रुपूरित विदाई देती हैं। इसके साथ ही वे आपस में भी सिंदूर लगाती हैं, व सिंदूर से खेलते हैं। इस दिन यहां नीलकंठ पक्षी को देखना बहुत ही शुभ माना जाता है। जिसके बाद देवी प्रतिमाओं को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। विसर्जन की यह यात्रा भी बड़ी शोभनीय और दर्शनीय होती है।
- तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक में दशहरा नौ दिनों तक चलता है जिसमें तीन देवियां लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा करते हैं। पहले तीन दिन लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी का पूजन होता है। अगले तीन दिन सरस्वती कला और विद्या की देवी की अर्चना की जाती है और अंतिम दिन देवी दुर्गा शक्ति की देवी की पुजा की जाती है। पूजन स्थल को अच्छी तरह फूलों और दीपकों से सजाया जाता है। लोग एक दूसरे को मिठाइयां व कपड़े देते हैं। यहाँ दशहरा बच्चों के लिए शिक्षा या कला संबंधी नया कार्य सीखने के लिए प्रेरणादायक होता है।
- कर्नाटक में स्थित मैसूर का दशहरा भी पूरे भारत में प्रसिद्ध है। मैसूर में दशहरे के समय पूरे शहर की गलियों को रोशनी से सजाया जाता है और हाथियों का शृंगार कर पूरे शहर में एक भव्य पद यात्रा निकली जाती है। इस समय प्रसिद्ध मैसूर महल को दीपमालिकाओं से दुलहन की तरह सजाया जाता है। इसके साथ शहर में लोग टार्च लाइट के संग नृत्य और संगीत की शोभायात्रा का आनंद लेते हैं। इन द्रविड़ प्रदेशों में रावण-दहन का आयोजन नहीं किया जाता है।
- भारतीय राज्य गुजरात में मिट्टी से बने हुए रंगीन घड़े को देवी का प्रतीक माना जाता है और इसको अविवाहित लड़कियां अपने सिर पर रखकर एक लोकप्रिय नृत्य करती हैं जिसे गरबा कहा जाता है। गरबा नृत्य इस पर्व की शान है। पुरुष एवं स्त्रियां दो छोटे रंगीन डंडों को संगीत की लय पर आपस में बजाते हुए घूम घूम कर नृत्य करते हैं। इस अवसर पर भक्ति, फिल्म तथा पारंपरिक लोक-संगीत सभी का समायोजन होता है। पूजा और आरती के बाद डांडिया रास का आयोजन पूरी रात होता रहता है। नवरात्रि में सोने और गहनों की खरीद को शुभ माना जाता है।
- महाराष्ट्र में नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा को समर्पित रहते हैं, जबकि (दशहरे वाले दिन) दसवें दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की वंदना की जाती है। इस दिन विद्यालय जाने वाले बच्चे अपनी पढ़ाई में आशीर्वाद पाने के लिए मां सरस्वती के तांत्रिक चिह्नों की पूजा करते हैं। किसी भी चीज को प्रारंभ करने के लिए खासकर विद्या आरंभ करने के लिए यह दिन काफी शुभ माना जाता है। महाराष्ट्र के लोग इस दिन विवाह, गृह-प्रवेश एवं नये घर खरीदने का शुभ मुहूर्त समझते हैं।
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