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रक्त की संरचना, अवयव, रक्त समूह के प्रकार एवं प्रमुख कार्यो की सूची

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रक्त की संरचना, अवयव, रक्त समूह के प्रकार एवं प्रमुख कार्य: (Blood Composition, Organs, Types of Blood and Major Functions in Hindi)

रक्त (खून) किसे कहते है?
मानव शरीर में संचरण करने वाला तरल पदार्थ जो शिराओं के द्वारा ह्दय में जमा होता है और धमनियों के द्वारा पुन: ह्दय से संपूर्ण शरीर में परिसंचरित होता है, रक्त कहलाता है। रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला रक्त प्राय: गाढ़ा, थोड़ा-सा चिपचिपा और लाल रंग का होता है। यह एक जीवित ऊतक है। रक्त, प्लाज्मा और रक्त कणों से मिल कर बना होता है। प्लाज्मा एक निर्जीव और तरत माध्यम है, जिसमें रक्त कण तैरते रहते हैं। प्लाज्मा के माध्यम से ही रक्त के कण सम्पूर्ण शरीर में पहुँचते रहते हैं। ‘रक्त परिसचंरण सस्थान’ मानव शरीर का वह परिवहन तन्त्र है, जिसके द्वारा आहार, ऑक्सीजन, पानी एवं अन्य सभी आवश्यक पदार्थ ऊतक कोशिकाओं तक पहुँचते हैं और वहाँ के व्यर्थ पदार्थ ले जाये जाते हैं। इसमें रक्त, हृदय एवं रुधिर-वाहिनियों का समावेश होता है।

मानव शरीर में रक्त (खून) की मात्रा कितनी होती है?

मानव शरीर में रक्त की मात्रा: मनुष्य के शरीर में रक्त की मात्रा शरीर के भार का लगभग 7 से 8% होती है। अतः एक स्वस्थ मनुष्य के शरीर में लगभग 5 से 6 लीटर रक्त होता हैं, जो उसके सम्पूर्ण शरीर के भार का लगभग 9/13वाँ भाग होता है। स्त्रियों के शरीर में रक्त की मात्रा लगभग 4 से 5 लीटर होती है।

रक्त (खून) की संरचना:

संरचना के आधार पर मनुष्य के रक्त को दो भागों में विभक्त किया गया है-

  1. प्लाज्मा: आयतन के आधार पर लगभग 55 से 60% भाग।
  2. रुधिर कणिकाएँ या रुधिराणु: लगभग 40 से 45% भाग।

रक्त के विभिन्न अवयव

  1. प्लाज्मा: यह हल्के पीले रंग का रक्त का तरल भाग होता है, जिसमें 90 फीसदी जल, 8 फीसदी प्रोटीन तथा 1 फीसदी लवण होता है।
  2. लाल रक्त कण: यह गोलाकार,केन्द्रक रहित और हीमोग्लोबिन से युक्त होता है। इसका मुख्य कार्य ऑक्सीजन एवं कार्बन डाईऑक्साइड का संवहन करना है। इसका जीवनकाल 120 दिनों का होता है।
  3. श्वेत रक्त कण: इसमें हीमोग्लोबिन का अभाव पाया जाता है। इसका मुख्य कार्य शरीर की रोगाणुओं से रक्षा के लिए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना होता है। इनका जीवनकाल 24 से 30 घंटे का होता है।
  4. प्लेट्लेट्स: ये रक्त कोशिकाएं केद्रक रहित एवं अनिश्चित आकार की होती हैं। इनका मुख्य कार्य रक्त को जमने में मदद देना होता है।

रक्त समूह (ब्‍लड ग्रुप) के प्रकार:

रक्त समूह की खोज लैंडस्टीनर ने की थी। सबसे पहले 1901 में ब्‍लड ग्रुप की जानकारी हुई, उसके बाद से इसे लेकर कई रोचक और दिलचस्‍प शोध भी होते रहे हैं। ब्लड-ग्रुप 8 तरह के होते हैं – ए, बी, एबी और ओ पॉजिटिव या निगेटिव। केवल समान ब्लड ग्रुप वाले व्यक्तियों के खून की अदला-बदली हो सकती है। ब्लड ग्रुप में अंतर खून में पाए जाने वाले अणुओं, जिन्हें एंटीजन और एंटीबॉडी कहते हैं, के कारण होती है। एंटीजन, खून में पाई जाने वाली लाल रक्त कणिकाओं की सतह पर पाए जो हैं और एंटीबॉडी ब्लड प्लाजमा में। आमतौर पर लोगों में पाया जाने वाला ब्लड ग्रुप आनुवांशिक होता है।

रक्त समूह आठ प्रकार के होते:- ए, बी, एबी और ओ पॉजिटिव या निगेटिव।

  1. ए पॉजिटिव A(+): जिन लोगों का ब्‍ल्‍ड ग्रुप ए पॉजिटिव होता है उनमें अच्‍छी नेतृत्‍व क्षमता देखी जाती है। ए पॉजिटिव रक्‍त समूह वाले लोग अच्‍छे तरीके से नेतृत्‍व कर सकते हैं। वे सबको साथ लेकर चलने और सबका व‍िश्‍वास हासिल करने में यकीन रखते हैं। अगर आपका रक्‍त समूह ए पॉजीटिव है तो आप ए पॉजीटिव, ए नेगेटिव, ओ पॉजीटिव और ओ नेगेटिव ब्‍लड ग्रुप का ब्‍लड ले सकते हैं।
  2. ए निगेटिव A(-): ए निगेटिव रक्‍त समूह वाले लोगों को मेहनती माना जाता है। ऐसे लोग मेहनत करने से पीछे नहीं हटते हैं। कठिन और लगातार काम करने में भी इनको कोई परहेज नहीं है। ये लोग मानते हैं कि मेहनत का कोई विकल्‍प नहीं होता। जिन लोगों का ब्‍लड ग्रुप ए नेगेटिव है उन्‍हें ए नेगेटिव और ओ नेगेटिव वाले लोगों का ब्‍लड ही चढ़ाया जा सकता है।
  3. एबी पॉजिटिव AB(+): इस रक्‍त समूह वाले लोग को आसानी से समझा नहीं जा सकता है। ऐसे लोगों को समझना बहुत मुश्किल होता है, किसी को नहीं पता कि वे कब क्‍या सोच सकते हैं। क्‍योंकि उनकी प्र‍कृति कभी भी एक जैसी नहीं होती है। एबी पॉजीटिव यूनिवर्सल रिसीवर होता है। यानी उसे एबी पॉजीटिव, एबी नेगेटिव, ओ पॉजीटिव, ओ नेगेटिव, ए पॉजीटिव, ए नेगेटिव तथा बी पॉजीटिव व बी नेगेटिव कोई भी रक्‍त चढ़ाया जा सकता है।
  4. एबी निगेटिव AB (-): एबी निगेटिव रक्‍त समूह वाले लोगों का दिमाग बहुत तेज चलता है, इन लोगों को बहुत बुद्धिमान माना जाता है। इस ब्‍लड ग्रुप के लोग आसानी से किसी बात को समझ लेते हैं। इनका दिमाग उन सब बातों को समझ लेता है, जिन्‍हें आमतौर पर लोग नजरअंदाज कर देते हैं। ऐसे लोगों को जरूरत पड़ने पर एबी नेगेटिव, ए नेगेटिव, बी नेगेटिव और ओ नेगेटिव ब्‍लड ग्रुप चढ़ाया जा सकता है।
  5. ओ पॉजिटिव O (+): ओ पॉजिटिव ब्‍लड ग्रुप के लोगों के लिए यह माना जाता है कि वे पैदा ही हुए हैं लोगों की मदद करने के लिए। ऐसे लोग दूसरों की मदद करने में पीछे नही हटते और अपना जीवन दूसरों की सहायता में भी बिता सकते हैं। ओ पॉजीटिव को यूं तो यूनिवर्सल डोनर कहा जाता है, लेकिन जब आप रक्‍त रिसीव करने की होती है, तो उन्‍हें केवल ओ नेगेटिव और ओ पॉजीटिव रक्‍त ही चढ़ाया जा सकता है।
  6. ओ निगेटिव 0(-): इस रक्‍त समूह के लोगों की सोच ही संकरी होती है। ओ निगेटिव ब्‍लड ग्रुप वाले लोग दूसरों के बारे में अधिक सोचते नहीं, क्‍योंकि इनके दिमाग में खुद के अलावा किसी दूसरे के लिए खयाल नहीं आता। ऐसे लोग संकीर्ण मानसिकता वाले होते हैं। ये लोग नये विचारों को आसानी से स्‍वीकार नहीं करते। ओ नेगेटिव वाले लोग केवल ओ नेगेटिव रक्‍त की रिसीव कर सकते हैं।
  7. बी पॉजिटिव B(+): ऐसे लोगों का दिल दूसरों के लिए दरिया की तरह होता है। इस रक्‍त समूह वाले लोग दूसरों की मदद करने में पीछे नहीं हटते और दूसरों के लिए बलिदान भी दे सकते हैं। इन लोगों के लिए रिश्‍ते बहुत मायने रखते हैं। ये हमेशा किसी के लिए कुछ न कुछ करना चाहते हैं। बी पॉजीटिव ब्‍लड ग्रुप वाले लोगों को बी पॉजीटिव, बी नेगेटिव, ओ पॉजीटिव और ओ नेगेटिव ब्‍लड ग्रपु का रक्‍त चढ़ाया जा सकता है।
  8. बी निगेटिव B(-): इस रक्‍त समूह वाले लोगों की प्रवृत्ति ठीक नहीं मानी जाती है। ऐसे लोग स्‍वार्थी होते हैं और दूसरों से ज्‍यादा खुद के बारे में सोचते हैं। ऐसे लोग किसी की सहायता करने में भी विश्‍वास नहीं रखते हैं। इन लोगों का दृष्टिकोण भी नकारात्‍मक होता है। बी नेगेटिव वाले लोगों को जरूरत पड़ने पर बी नेगेटिव और ओ नेगेटिव रक्‍त समूह का रक्‍त ही चढ़ाया जा सकता है।

रक्त (खून) के मुख्य कार्य:

मानव शरीर में रक्त के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:-

  • पोषक पदार्थों का परिवहन: रक्त आहारनाल में पचें हुए अवशोषित किए गए पोषक पदार्थों को शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाता है।
  • ऑक्सीजन का परिवहन: रक्त श्वसनांगों (फेफड़ों आदि) से ऑक्सीजन (O2) को लेकर शरीर की विभिन्न कोशिकाओं में पहुँचाता है।
  • कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन: कोशिकीय श्वसन क्रिया में उत्पन्न CO2 रक्त द्वारा श्वसनांगों में पहुँच जाती है, जहाँ से इसे बाहर निकाल दिया जाता है।
  • उत्सर्जी पदार्थों का परिवहन: रक्त शरीर में उत्पन्न अमोनिया, यूरिया, यूरिक अम्ल आदि हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगों वृक्कों) तक पहुँचाता है, जहाँ से इन्हें शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
  • अन्य पदार्थों का परिवहन: अंत:स्त्रावी ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित हॉर्मोंस, एंजाइम्स एवं एण्टीबॉडीज को रुधिर के विभिन्न भागों में स्थानांतरित किया जाता है।
  • रोगों से सुरक्षा: शरीर के किसी भी भाग पर हानिकारक जीवाणुओं, विषाणुओं व रोगाणुओं आदि का आक्रमण होते ही रुधिर के श्वेत रुधिराणु इनका भक्षण करके इन्हें नष्ट कर देते हैं। रुधिर में उपस्थित एण्टीबॉडीज एण्टीटॉक्सिन बनाकर विषैले और बाहरी असंगत पदार्थों को निष्क्रिय करके इनका विघटन कर देते हैं।
  • शरीर का ताप नियंत्रण: रक्त शरीर के विभिन्न भागों में तापमान को नियंत्रित करके एक-सा बनाए रखने का महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। जब शरीर के अधिक सक्रिय भागों में बहुत तीव्र उपापचय के फलस्वरुप ताप बढ़ने लगता है, तब रक्त त्वचा की रुधिर वाहिनियों में अधिक मात्रा में प्रवाहित होकर शरीर की सतह पर अपना और शरीर का शीतलन करता है।
  • शरीर की सफाई: रक्त की श्वेत रुधिराणु मृत एवं टूटी-फूटी कोशिकाओं के कचरे व अन्य निरर्थक वस्तुओं का भक्षण करके इन्हें नष्ट करते हैं। इस प्रकार रक्त शरीर की सफाई का कार्य करता है।
  • रुधिर का जमना या थक्का जमना: चोट लगने से रुधिर वाहिनियों के फटने पर रुधिर बहकर बाहर जाने से रोकने के लिए रक्त थक्का जमाने का कार्य करता है। इस क्रिया में रक्त की थ्रॉम्बोसाइट्स सहायक होती हैं।
  • घाव का भरना: रक्त आवश्यक पदार्थ पहुँचाकर शरीर के टूटे-फूटे अंगों की मरम्मत व आहत भागों में घावों को भरने में सहायता प्रदान करता है।
  • शरीर के अंत: वातावरण का समस्थैतिकता नियंत्रण: रक्त शरीर के विभिन्न भागों के बीच समंवयन स्थापित करके शरीर के अंत: वातावरण को उचित बनाए रखते हैं।
  • आनुवंशिक भूमिका: रक्त एण्टीजन के कारण आनुवंशिक स्तर पर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इन्हें भी पढ़े: मानव शरीर के अंग तंत्रो के नाम, कार्य एवं महत्‍वपूर्ण तथ्य

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