उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) क्या है?
नाटो एक सैन्य गठबंधन (Military alliance) है, जिसकी स्थापना 04 अप्रैल 1949 को उत्तर अटलांटिक संधि पर हस्ताक्षर के साथ हुई। नाटो का पूरा नाम नार्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (North Atlantic Treaty Organization- NATO) है। नाटो को ” द (नॉर्थ) अटलांटिक एलायंस” भी कहा जाता है, नाटो का मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में है। संगठन ने सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था बनाई है, जिसके तहत सदस्य राज्य बाहरी हमले की स्थिति में सहयोग करने के लिए सहमत होंगे। लॉर्ड इश्मे (Hastings Ismay, 1st Baron Ismay) नाटो के पहले महासचिव बने थे।
नाटो (NATO) का पूरा नाम | उत्तर अटलांटिक संधि संगठन – (North Atlantic Treaty Organization) |
नाटो की स्थापना | 4 अप्रैल 1949, वाशिंगटन, डी.सी., यूनाइटेड स्टेट्स |
नाटो में सदस्य देशों की कुल संख्या | 30 |
नाटो का मुख्यालय | बोलवर्ड लियोपोल्ड III ब्रुसेल्स, (बेल्जियम) |
नाटो के प्रथम महासचिव | जनरल हेस्टिंग्स इस्माय (यूनाइटेड किंगडम) |
नाटो के वर्तमान महासचिव | जेन्स स्टोलटेनबर्ग (नॉर्वे) – 1 अक्टूबर 2014 से पदस्थ |
नाटो में शामिल होने वाले अंतिम सदस्य | उत्तर मैसेडोनिया गणराज्य (27 मार्च 2020) |
अंतिम नाटो सम्मेलन | 3 दिसंबर 2019 से 4 दिसंबर 2019 तक (लंदन) |
उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के मुख्य उद्देश्य:
- यूरोप पर आक्रमण के समय अवरोधक की भूमिका निभाना।
- सोवियत संघ के पश्चिम यूरोप में तथाकथित विस्तार को रोकना तथा युद्ध की स्थिति में लोगों को मानसिक रूप से तैयार करना।
- सैन्य तथा आर्थिक विकास के लिए अपने कार्यक्रमों द्वारा यूरोपीय राष्ट्रों के लिए सुरक्षा छत्र प्रदान करना।
- पश्चिम यूरोप के देशों को एक सूत्र में संगठित करना।
- इस प्रकार नाटों का उद्देश्य “स्वतंत्र विश्व” की रक्षा के लिए साम्यवाद के प्रसार को रोकने के लिए और यदि संभव हो तो साम्यवाद को पराजित करने के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता माना गया।
उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का इतिहास:
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व रंगमंच पर अवतरित हुई दो महाशक्तियों सोवियत संघ और अमेरिका के बीच शीत युद्ध का प्रखर विकास हुआ। भाषण व टू्रमैन सिद्धांत के तहत जब साम्यवादी प्रसार को रोकने की बात कही गई तो उसके बदले में सोवियत संघ ने अंतर्राष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन कर 1948 में बर्लिन की नाकेबंदी कर दी। इसी क्रम में यह विचार किया जाने लगा कि एक ऐसा संगठन बनाया जाए जिसकी संयुक्त सेनाएँ अपने सदस्य देशों की रक्षा कर सके।
मार्च 1948 में ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैण्ड तथा लक्ज़मबर्ग ने ब्रुसेल्स की संधि पर हस्ताक्षर किए। इसका उद्देश्य सामूहिक सैनिक सहायता व सामाजिक-आर्थिक सहयोग था। साथ ही संधिकर्ताओं ने यह वचन दिया कि यूरोप में उनमें से किसी पर आक्रमण हुआ तो शेष सभी चारों देश हर संभव सहायता देगे।
इसी पृष्ठ भूमि में बर्लिन की घेराबंदी और बढ़ते सोवियत प्रभाव को ध्यान में रखकर अमेरिका ने स्थिति को स्वयं अपने हाथों में लिया और सैनिक गुटबंदी दिशा में पहला अति शक्तिशाली कदम उठाते हुए उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन अर्थात नाटो की स्थापना 4 अप्रैल, 1949 को वांशिगटन में की थी। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद 15 में क्षेत्रीय संगठनों के प्रावधानों के अधीन उत्तर अटलांटिक संधि पर 12 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। ये देश थे- फ्रांस, बेल्जियम, लक्ज़मबर्ग, ब्रिटेन, नीदरलैण्ड, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैंड, इटली, नॉर्वे, पुर्तगाल और संयुक्त राज्य अमेरिका। शीत युद्ध की समाप्ति से पूर्व यूनान, तुर्की, पश्चिम जर्मनी, स्पेन भी सदस्य बने और शीत युद्ध के बाद भी नाटों की सदस्य संख्या का विस्तार होता रहा।
उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सदस्य देश:
4 अप्रैल 1949 को, 12 देशों के विदेश मंत्रियों ने जिनमें बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैण्ड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के देशों के विदेशमंत्री शामिल थे। सभी ने वाशिंगटन, डी. सी. के भागीय सभागार में उत्तरी अटलांटिक संधि (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) पर हस्ताक्षर किए थे।
संधि पर हस्ताक्षर करने वाले कुछ विदेशी मंत्री अपने करियर में बाद के चरण में नाटो के काम में भारी रूप से शामिल थे नीचे नाटो के सभी सदस्य देशों के दिये गए हैं-
देश का नाम | सदस्यता वर्ष |
बेल्जियम | 1949 |
कनाडा | 1949 |
डेनमार्क | 1949 |
फ्रांस | 1949 |
आइसलैंड | 1949 |
इटली | 1949 |
लक्समबर्ग | 1949 |
नीदरलैंड | 1949 |
नॉर्वे | 1949 |
पुर्तगाल | 1949 |
यूनाइटेड किंगडम | 1949 |
संयुक्त राज्य अमेरिका | 1949 |
यूनान | 1952 |
तुर्की | 1952 |
जर्मनी | 1955 |
स्पेन | 1982 |
पोलैंड | 1999 |
हंगरी | 1999 |
चेक रिपब्लिक | 1999 |
बुल्गारिया | 2004 |
एस्टोनिया | 2004 |
लिथुआनिया | 2004 |
रोमानिया | 2004 |
स्लोवाकिया | 2004 |
स्लोवेनिया | 2004 |
लातविया | 2004 |
अल्बानिया | 2009 |
क्रोएशिया | 2009 |
मोंटेनेग्रो | 2017 |
उत्तर मैसेडोनिया | 2020 |
उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सभी महासचिव की सूची:
महासचिव का नाम | अवधि | संबंधित देश |
जनरल हेस्टिंग्स इस्माय | 24 मार्च 1952 से 16 मई 1957 तक | यूनाइटेड किंगडम |
पॉल-हेनरी स्पाक | 16 मई 1957 से 21 अप्रैल 1961 तक | बेल्जियम |
डिर्क स्टीक्कर | 21 अप्रैल 1961 से 1 अगस्त 1964 तक | नीदरलैंड |
मानलियो ब्रोसियो | 1 अगस्त 1964 से 1 अक्टूबर 1971 तक | इटली |
जोसेफ लुन | 1 अक्टूबर 1971 से 25 जून 1984 तक | नीदरलैंड |
पीटर कैरिंगटन | 1 जुलाई 1988 से 13 अगस्त 1994 तक | जर्मनी |
सर्जियो बालजानिनो | 13 अगस्त 1994 से 17 अक्टूबर 1994 तक | इटली (नाटो के उप महासचिव) |
विल्ली क्लेस | 17 अक्टूबर 1994 से 20 अक्टूबर 1995 तक | बेल्जियम |
सर्जियो बालजानिनो | 20 अक्टूबर 1995 से 5 दिसंबर 1995 तक | इटली (नाटो के उप महासचिव) |
जेवियर सोलाना | 5 दिसंबर 1995 से 14 अक्टूबर 1999 तक | स्पेन |
जॉर्ज रॉबर्टसन | 14 अक्टूबर 1999 से 17 दिसंबर 2003 तक | यूनाइटेड किंगडम |
एलेसेंड्रो मिनुतो-रिज़ो | 17 दिसंबर 2003 से 1 जनवरी 2004 तक | इटली (नाटो के उप महासचिव) |
जाप दे होप शेफ़र | 1 जनवरी 2004 से 1 अगस्त 2009 तक | नीदरलैंड |
एंडर्स फोग रसमुसेन | 1 अगस्त 2009 से 1 अक्टूबर 2014 तक | डेनमार्क |
जेन्स स्टोलटेनबर्ग | 1 अक्टूबर 2014 से पदस्थ | नॉर्वे |
नाटो की स्थापना के मुख्य कारण:
- द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप से अपनी सेनाएँ हटाने से इंकार कर दिया और वहाँ साम्यवादी शासन (communist regime) की स्थापना का प्रयास किया। अमेरिका ने इसका लाभ उठाकर साम्यवाद विरोधी नारा दिया। और यूरोपीय देशों को साम्यवादी खतरे से सावधान किया। फलतः यूरोपीय देश एक ऐसे संगठन के निर्माण हेतु तैयार हो गए जो उनकी सुरक्षा करे।
- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान पश्चिम यूरोपीय देशों ने अत्यधिक नुकसान उठाया था। अतः उनके आर्थिक पुननिर्माण के लिए अमेरिका एक बहुत बड़ी आशा थी ऐसे में अमेरिका द्वारा नाटों की स्थापना का उन्होंने समर्थन किया।
नाटो की संरचना के अंग:
नाटों का मुख्यालय ब्रसेल्स में हैं। इसकी संरचना 4 अंगों से मिलकर बनी है:-
- परिषद: यह नाटों का सर्वोच्च अंग है। इसका निर्माण राज्य के मंत्रियों से होता है। इसकी मंत्रिस्तरीय बैठक वर्ष में एक बार होती है। परिषद् का मुख्य उत्तरायित्व समझौते की धाराओं को लागू करना है।
- उप परिषद्: यह परिषद् नाटों के सदस्य देशों द्वारा नियुक्त कूटनीतिक प्रतिनिधियों की परिषद् है। ये नाटो के संगठन से सम्बद्ध सामान्य हितों वाले विषयों पर विचार करते हैं।
- प्रतिरक्षा समिति: इसमें नाटों के सदस्य देशों के प्रतिरक्षा मंत्री शामिल होते हैं। इसका मुख्य कार्य प्रतिरक्षा, रणनीति तथा नाटों और गैर नाटों देशों में सैन्य संबंधी विषयों पर विचार विमर्श करना है।
- सैनिक समिति: इसका मुख्य कार्य नाटों परिषद् एवं उसकी प्रतिरक्षा समिति को सलाह देना है। इसमें सदस्य देशों के सेनाध्यक्ष शामिल होते हैं।
नाटो के अन्य देशों पर प्रभाव:
- पश्चिमी यूरोप की सुरक्षा के तहत् बनाए गए नाटों संगठन ने पश्चिमी यूरोप के एकीकरण को बल प्रदान किया। इसने अपने सदस्यों के मध्य अत्यधिक सहयोग की स्थापना की।
- इतिहास में पहली बार पश्चिमी यूरोप की शक्तियों ने अपनी कुछ सेनाओं को स्थायी रूप से एक अंतर्राष्ट्रीय सैन्य संगठन की अधीनता में रखना स्वीकार किया।
- द्वितीय महायुद्ध से जीर्ण-शीर्ण यूरोपीय देशों को सैन्य सुरक्षा का आश्वासन देकर अमेरिका ने इसे दोनों देशों को ऐसा सुरक्षा क्षेत्र प्रदान किया जिसके नीचे वे निर्भय होकर अपने आर्थिक व सैन्य विकास कार्यक्रम पूरा कर सके।
- नाटो के गठन से अमेरिकी पृथकक्करण की नीति (segregation policy) की समाप्ति हुई और अब वह यूरोपीय मुद्दों से तटस्थ नहीं रह सकता था।
- नाटो के गठन ने शीतयुद्ध को बढ़ावा दिया। सोवियत संघ ने इसे साम्यवाद के विरोध में देखा और प्रत्युत्तर में वारसा पैक्ट (Warsaw Pact) नामक सैन्य संगठन कर पूर्वी यूरोपीय देशों में अपना प्रभाव जमाने की कोशिश की।
- नाटो ने अमेरिकी विदेश नीति (US foreign policy) को भी प्रभावित किया। उसकी वैदेशिक नीति (foreign policy) के खिलाफ किसी भी तरह के वाद-प्रतिवाद को सुनने के लिए तैयार नहीं रही और नाटो के माध्यम से अमेरिका का यूरोप में अत्यधिक हस्तक्षेप बढ़ा।
- यूरोप में अमेरिका के अत्यधिक हस्तक्षेप ने यूरोपीय देशों को यह सोचने के लिए बाध्य किया कि यूरोप की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का समाधान यूरोपीय दृष्टिकोण से हल किया जाना चाहिए। इस दृष्टिकोण ने “यूरोपीय समुदाय” के गठन का मार्ग प्रशस्त किया।
नाटो शिखर सम्मेलन की सूची
वर्ष | तिथी | स्थान | अध्यक्ष |
1957 | 16-19 दिसंबर | पेरिस, फ्रांस | राष्ट्रपति रेने कॉटी |
1974 | 26-जून | ब्रसेल्स, बेल्जियम | प्रधान मंत्री लियो टिंडमेंस |
1975 | 29–30 मई | ब्रसेल्स, बेल्जियम | प्रधान मंत्री लियो टिंडमेंस |
1977 | 10–11 मई | लंडन, यूनाइटेड किंगडम | प्रधान मंत्री जेम्स कैलाघन |
1978 | 30-31 मई | वाशिंगटन डी. सी., संयुक्त राज्य अमेरिका | राष्ट्रपति जिमी कार्टर |
1982 | 10-जून | बॉन, पश्चिम जर्मनी | चांसलर हेल्मुट श्मिट |
1985 | 21 नवम्बर | ब्रसेल्स, बेल्जियम | प्रधान मंत्री विलफ्रेड मार्टेंस |
1988 | 2-3 मार्च | ब्रसेल्स, बेल्जियम | प्रधान मंत्री विलफ्रेड मार्टेंस |
1989 | 29–30 मई | ब्रसेल्स, बेल्जियम | प्रधान मंत्री विलफ्रेड मार्टेंस |
1989 | 04-दिसंबर | ब्रसेल्स, बेल्जियम | प्रधान मंत्री विलफ्रेड मार्टेंस |
1990 | 5-6 जुलाई | लंडन, यूनाइटेड किंगडम | प्रधान मंत्री मार्गरेट थैचर |
1991 | 7-8 नवंबर | रोम, इटली | प्रधान मंत्री गिउलिओ आंद्रेओटी |
1994 | 10–11 जनवरी | ब्रसेल्स, बेल्जियम | प्रधान मंत्री जीन-ल्यूक डेहेने |
1997 | 27 मई | पेरिस, फ्रांस | राष्ट्रपति जैक्स चिरक |
1997 | 8-9 जुलाई | मैड्रिड, स्पेन | प्रधान मंत्री जोस मारिया अजारन |
1999 | 23-25 अप्रैल | वाशिंगटन डी. सी., संयुक्त राज्य अमेरिका | राष्ट्रपति बिल क्लिंटन |
2001 | 13-जून | ब्रसेल्स, बेल्जियम | महासचिव जॉर्ज रॉबर्टसन |
2002 | 28 मई | रोम, इटली | प्रधान मंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी |
2002 | 21–22 नवंबर | प्राहा, चेक रिपब्लिक | प्रधान मंत्री व्लादिमीर स्पीडला |
2004 | 28-29 जून | इस्तांबुल, तुर्की | प्रधानमंत्री रिसेप तईप एर्दोआन |
2005 | 22-फरवरी | ब्रसेल्स, बेल्जियम | प्रधान मंत्री गाइ वेरहोफस्टाट |
2006 | 28-29 नवंबर | रीगा, लातविया | प्रधान मंत्री ऐगर्स कल्वीटिस |
2008 | 2-4 अप्रैल | बुखारेस्ट, रोमानिया | राष्ट्रपति ट्रेयन ब्योसेकू |
2009 | 2–3 अप्रैल | स्ट्रासबर्ग, फ्रांस | राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी |
केहल, जर्मनी | चांसलर एंजेला मर्केल | ||
2010 | 19–20 नवंबर | लिस्बन, पुर्तगाल | प्रधान मंत्री जोस सोरक्रेट्स |
2012 | 20–21 मई | शिकागो, संयुक्त राज्य अमेरिका | राष्ट्रपति बराक ओबामा |
2014 | 4-5 सितंबर | न्यूपोर्ट और कार्डिफ़, यूनाइटेड किंगडम | प्रधान मंत्री डेविड कैमरन |
2016 | 8-9 जुलाई | वारसा, पोलैंड | राष्ट्रपति आंद्रेजेज डूडा |
2017 | 25 मई | ब्रसेल्स, बेल्जियम | प्रधान मंत्री चार्ल्स मिशेल |
2018 | 11–12 जुलाई | ब्रसेल्स, बेल्जियम | महासचिव जेन स्टोलटेनबर्ग |
2019 | 3–4 दिसंबर | वॉटफ़ोर्ड, यूनाइटेड किंगडम | प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन |
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