
ध्वनि क्या है? – What is sound?
ध्वनि एक प्रकार की ऊर्जा है, जिसकी उत्पत्ति किसी न किसी वस्तु के कम्पन करने से उत्पन्न होती है, इसे एक उदाहारण की सहायता से समझा जा सकता है जैसे जब हम किसी घण्टे पर चोट मारते हैं तो हमें ध्वनि सुनाई पड़ती है तथा घण्टे को हल्का सा छूने पर उसमें झनझनाहट का अनुभव होता है। जैसे ही घण्टे का कम्पन बंद हो जाता है, ध्वनि भी बंद हो जाती है। परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि हर कम्पन से ध्वनि उत्पन्न हो। ध्वनि तरंगें, जिनकी आवृत्ति 20 हटर्ज से 20,000 हटर्ज के बीच होती है, केवल उसी की अनुभूति मनुष्य को अपने कानों द्वारा होती है, ध्वनि तरंगे कहलाती है। ध्वनि तरंगे अनुदैर्ध्य यांत्रिक तरंगे होती हैं। जब किसी माध्यम से कपन होता है तो ध्वनि उत्पन्न होती है।
ध्वनि का संचरण (Transmission of sound):
ध्वनि के एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने में किसी न किसी पदार्थ माध्यम गैस, द्रव अथवा ठोस का होना आवश्यक है, ध्वनि निर्वात में होकर नहीं चल सकती निर्वात में ध्वनि तो उत्पन्न होती परंतु सुनाई नहीं पड़ती है। ध्वनि माध्यम की प्रत्यास्थता एवं घनत्व पर निर्भर करती है, जो पदार्शिक माध्यम प्रत्यास्थ नहीं होते, उसमें अधिक दूरी तक संचरण नहीं हो पाता। दैनिक जीवन में किसी ध्वनि स्रोत से उत्पन्न ध्वनि प्राय: वायु से होकर हमारे कान तक पहुंचती है परन्तु ध्वनि द्रव व ठोस से होकर भी चल सकती है। यही कारण है कि गोताखोर जल के भीतर होने पर भी ध्वनि को सुन लेता है। ध्वनि के वेग पर ताप का भी प्रभाव पड़ता है। तापक्रम में 1 डिग्री सैल्सियस की वृद्धि से ध्वनि वेग में 60 से.मी./सेकेण्ड की वृद्धि होती है। इसी प्रकार रेल की पटरी से कान लगाकर बहुत दूर से आती हुई रेलगाड़ी की ध्वनि सुनी जा सकती है। ध्वनि किसी भी माध्यम में अनुदैर्ध्य तरंगों के रूप में चलती है।
ध्वनि की अर्जन (Acquisition of sound):
साधारणत: हमें ध्वनि की अनुभूति अपने कानों के द्वारा होती है। जब किसी कम्पित वस्तु से चलने वाली ध्वनि-तरंगें हमारे कान के पर्दे से टकराती है तो पर्दे में उसी प्रकार के कम्पन होने लगते हैं। तो इससे हमें ध्वनि का अनुभव होता है।
ध्वनि की चाल (speed of sound):
वैज्ञानिक प्रयोगों से पता चलता है, कि ध्वनि की चाल के लिए वही वस्तु माध्यम का काम दे सकती है, जिसमें प्रत्यास्थता हो तथा जो अविच्छित रूप से ध्वनि स्रोत से कान तक फैली हो। जिन वस्तुओं में ये गुण नहीं होते, जैसे- लकड़ी का बुरादा, नमक इत्यादि, इनमें होकर ध्वनि नहीं चल सकती। विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल भिन्न-भिन्न होती है। द्रवों में ध्वनि की चाल गैसों की अपेक्षा अधिक तथा ठोसों में सबसे अधिक होती है।
जब ध्वनि एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है तो ध्वनि की चाल तथा तरंगदैर्ध्य बदल जाती है, जबकि आवृत्ति नहीं बदलती है। अत: किसी माध्यम से ध्वनि की चाल ध्वनि की आवृत्ति पर निर्भर नहीं करती।
ध्वनि के वेग पर विभिन्न कारकों का प्रभाव (Effect of various factors on the velocity of sound):
गैसों में ध्वनि का वेग:-
गैसों में ध्वनि के वेग का सूत्र यह है-
जहाँ
γ = समऐन्ट्रॉपिक प्रसार गुणांक (isentropic expansion factor) या रुद्धोष्म गुणांक,
R = सार्वत्रिक गैस नियतांक
T = तापमान (केल्विन में)
M = गैस का अणुभार है।
ठोसों में ध्वनि का वेग:-
जहाँ E ठोस का यंग मापांक और ρ ठोस का घनत्व है। इस सूत्र से इस्पात में ध्वनि का वेग निकाला जा सकता है जो लगभग 5148 m/s है।
द्रवों में ध्वनि का वेग:-
जल में ध्वनि के वेग का महत्व इसलिये है कि समुद्र-तल की गहराई का मानचित्र बनाने के लिये इसका उपयोग होता है। नमकीन जल में ध्वनि का वेग लगभग 1500 m / s होता है जबकि शुद्ध जल में 1435 m / s होता है। पानी में ध्वनि का वेग मुख्यतः दाब, ताप और लवणता पर आदि के साथ बदलता है।
द्रव में ध्वनि का वेग निम्नलिखित सूत्र से दिया जाता है-
जहाँ K‘ आयतन प्रत्यास्थता मापांक और ρ द्रव का घनत्व है। विभिन्न माध्यमों में ध्वनि का वेग : ठोस > द्रव > गैस
विद्युत-चुम्बकीय विकिरण (electromagnetic radiation):
यांत्रिक तरंगों से भिन्न प्रकार विद्युत-चुम्बकीय तरंगे होती हैं, जो निर्वात में भी चल सकती हैं, उनक संचरण के लिये कोई भौतिक माध्यम आवश्यक नहीं होता है। ये प्रकाश की चाल से चलती हैं, ये तरंगे अनुप्रस्थ प्रकाश की तरंगे है। विद्युत चुम्बकीय तरंगे, आवेशित मूल-कणों जैसे- इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन आदि के मुक्त अवस्था में दोलन करने से उत्पन्न होती हैं। प्रकाश, ऊष्मीय विकिरण, एक्स किरणे, रेडियो-तरंगे आदि इनके सुपरिचित रूप हैं। विद्युत चुम्बकीय तरंगों का सामान्य परिचय निम्नवत है-
- गामा-किरणे: गामा-किरणों को इनके अन्वेषक के नाम पर बैकुरल किरणे भी कहते हैं। इनका तरंगदैर्ध्य 10-14 मीटर से 10-10 मीटर तक होता है। इनकी आवृत्ति बहुत अधिक होने के कारण ये अपने साथ बहुत अधिक ऊर्जा ले जाती हैं। इनकी वेधन क्षमता इतनी अधिक है कि ये 30 सेमी. मोटी लोहे की चादर को भेद कर निकल जाती हैं।
- एक्स-किरणे: इन किरणों को उनके अन्वेषक के नाम पर रौंटज किरणें भी कहते हैं। ये तीव्रग्रामी इलेक्ट्रॉनों के किसी भारी लक्ष्य वस्तु पर टकराने से उत्पन्न होती हैं। चिकित्सा में इनका उपयोग टूटी हड्डी तथा फेफड़ों के रोगों का पता लगाने में किया जाता है।
- पराबैंगनी विकिरण: इस विकिरण का पता रिटर ने लगाया था। इनका तरंगदैर्ध्य 10-8 मीटर से 4 × 10-7 मीटर तक होता है। इनका संसूचन प्रकाश-विद्युत प्रभाव, प्रतिदीप्त पर्दा अथवा फोटोग्राफिक प्लेट द्वारा किया जाता है। इनका उपयोग सिंकाई करने, प्रकाश-विद्युत प्रभाव को उत्पन्न करने, हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करने आदि में किया जाता है।
- दृश्य प्रकाश: दृश्य प्रकाश का तरंगदैर्ध्य 4.0 x 10-7 मीटर से 7.8 × 10-7 मी. तक होता है। इनके स्रोत सूर्य तथा तारों के अतिरिक्त ज्वाला, विद्युत-बल्ब, आर्क लैम्प आदि ताप दीप्त वस्तुएं हैं। प्रकाश से ही हमें वस्तुएं दिखायी देती हैं।
- अवरक्त विकिरण: इन विकिरणों का पता हरशैल ने लगाया था। इनका तरंगदैर्ध्य 7.8 × 10-7 मीटर से 103 मीटर तक होता है। इनकी प्राप्ति तप्त वस्तुओं तथा सूर्य से होती है। ये जिस वस्तु पर पड़ती हैं, उसका ताप बढ़ जाता है।
- हर्त्सियन तरंग: इनका अन्वेषण वैज्ञानिक हेनरिक हर्त्स ने किया था। सामान्य भाषा में इन्हें बेतार-तरंग या रेडियो-तरंग भी कहते हैं। इनका तरंगदैर्ध्य 10-3 मीटर से 104 मीटर तक हो सकता है। इनकी उत्पत्ति किसी विद्युत चालक में उच्च आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा के प्रवाह से होती है।
इन तरंगों को लघु रेडियो-तरंगें भी कहते हैं। इनमें 10 -3 मीटर से 10-2 मीटर तरंगदैर्ध्य की तरंगों को सूक्ष्म तरंगें कहते हैं। इनका उपयोग टेलीविजन, टेलीफोन आदि के प्रसारण में किया जाता है तरंगदैर्ध्य 1 मीटर 104 मीटर तक की विद्युत-चुम्बकीय तरंगों को वायरलेस या दीर्घ रेडियो तरंगें कहते हैं।
ध्वनि की आवृत्ति रेंज (Frequency range of sound):
- श्रव्य तरंगें: वे तरंगें, जिनकी आवृत्ति 20 हर्ट्ज़ व अधिकतम आवृत्ति 20,000 हर्ट्ज़ हो एवं जिनको हम सुन सकते हैं, श्रव्य तरंगे कहलाती हैं। मनुष्य 20 हर्ट्ज़ से कम आवृत्ति की तरंगे नहीं सुन सकता है क्योंकि ये तरंगें कान के पर्दे को संवेदित नहीं कर पाती एवं 20,000 हर्ट्ज़ से अधिक आवृत्ति की तरंगों की आवृत्ति इतनी अधिक होती है कि कान के पर्दे का दोलन इतना अधिक नहीं हो पाता कि वह इन तरंगों को ग्रहण कर सके। चमगादड़ों की श्रवण सीमा बहुत ऊंची होती है। ये 100,000 हर्ट्ज़ की तरंगें उत्पन्न कर सकते हैं और सुन भी सकते हैं। कुत्ते 20,000 हर्ट्ज़ तक की तरंगों को आसानी से सुन सकते हैं।
- अवश्रव्य तरंगें: वे यांत्रिक तरंगें, जिनकी आवृत्ति 20 हर्ट्ज़ से कम होती है, अवश्रव्य तरंगें कहलाती हैं। ये तरंगें भूकंप के समय पृथ्वी के अंदर उत्पन्न होती हैं। हमारे हृदय के धड़कन की आवृत्ति अवश्रव्य तरंगों के समान होती है। ये तरंगें हमें सुनाई नहीं देती हैं।
- पराश्रव्य तरंगें: वे यांत्रिक तरंगें, जिनकी आवृत्ति 20000 हर्ट्ज़ या 20 किलोहर्ट्ज़ से अधिक होती है, पराश्रव्य तरंगें कहलाती हैं। इन तरंगों को सबसे पहले गाल्टन ने एक सीटी द्वारा उत्पन्न किया था। मनुष्य के कान इन तरंगों को नहीं सुन सकते, लेकिन कुछ जन्तु, जैसे-कुत्ता, बिल्ली, डालफिन, चिड़ियां आदि इनको सुन सकते हैं।
ध्वनि के लक्षण (Signs of sound):
ध्वनि में मुख्यत: तीन लक्षण होते हैं – तीव्रता, तारत्व एवं गुणता।
- तीव्रता: ध्वनि की तीव्रता, ध्वनि उत्पन्न करने वाली कम्पनशील वस्तु के कम्पन के आयाम पर निर्भर करती है। कम्पन का आयाम जितना अधिक होगा, ध्वनि की तीव्रता उतनी ही अधिक होगी। ध्वनि की तीव्रता डेसीबल में मापी जाती है। सोते हुए व्यक्ति को जगाने के लिए 50 डेसीबल की ध्वनि पर्याप्त होती है। 90 डेसीबल किसी शोर को बर्दाश्त करने की अधिकतम सीमा है। कम्पनशील वस्तु का आकार जितना अधिक बड़ा होगा, उतने ही बड़े आयाम के कम्पन्न उत्पन्न होंगे, जिसक कारण उत्पन्न ध्वनि की तीव्रता उतनी ही अधिक होगी व ध्वनि उतनी ही तेज सुनाई देगी।
- तारत्व: ध्वनि का वह लक्षण, जिसके कारण हम ध्वनि को मोटी या पतली कहते हैं, तारत्व कहलाता है। ध्वनि का तारत्व उसकी आवृत्ति पर निर्भर करता है। पुरुषों की ध्वनि का तारत्व, स्त्रियों की अपेक्षा कम होता है। शेर की दहाड़ तथा मच्छरों की भिनभिनाहट में, मच्छर की भिनभिनाहट का तारत्व अधिक होता है तथा शेर की दहाड़ का तारत्व कम होता है।
- गुणता: यह ध्वनि का वह लक्षण है, जिससे समान आवृत्ति या समान तीव्रता की ध्वनियों की संख्या, उनके सम तथा उनकी आपेक्षिक तीव्रता पर निर्भर करती है। ध्वनि की गुणता उसमें उपस्थित अधिस्वरकों की संख्या, उनके सम तथा उनकी आपेक्षिक तीव्रता पर निर्भर करती है। ध्वनि की गुणता के कारण ही हम अपने विभिन्न परिचितों को बगैर देखें उनकी आवाज सुनकर पहचान लेते हैं।
ध्वनि की प्रमुख विशेषताएँ ( Features of sound):
- ध्वनि एक यांत्रिक तरंग है न कि विद्युतचुम्बकीय तरंग। (प्रकाश विद्युतचुम्बकीय तरंग है।
- एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाने पर ध्वनि का परावर्तन एवं अपवर्तन होता है।
- माइक्रोफोन ध्वनि को विद्युत उर्जा में बदलता है; लाउडस्पीकर विद्युत उर्जा को ध्वनि उर्जा में बदलता है।
- ध्वनि के संचरण के लिये माध्यम (मिडिअम्) की जरूरत होती है। ठोस द्रव, गैस एवं प्लाज्मा में ध्वनि का संचरण सम्भव है। निर्वात में ध्वनि का संचरण नहीं हो सकता।
- प्रतिध्वनि- परावर्तित ध्वनि को प्रतिध्वनि कहते है। स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए परावर्तक सतह श्रोता से कम-से-कम 17 मीटर दूर होनी चाहिए, व समय 1 सेकेण्ड होना चाहिए।
- सामान्य ताप व दाब (NTP) पर वायु में ध्वनि का वेग लगभग 332 मीटर प्रति सेकेण्ड होता है। बहुत से वायुयान इससे भी तेज गति से चल सकते हैं उन्हें सुपरसॉनिक विमान कहा जाता है।
- समुद्र की गहराई ज्ञात करने, रडार और सागर में पनडुब्बी आदि की स्थिति ज्ञात करने के लिए प्रतिध्वनि का सिद्धान्त प्रयोग किया जाता है।
- मानव कान लगभग 20 हर्ट्स से लेकर 20,000 किलोहर्टस आवृत्ति की ध्वनि तरंगों को ही सुन सकता है। बहुत से अन्य जन्तु इससे बहुत अधिक आवृत्ति की तरंगों को भी सुन सकते हैं।
- द्रव, गैस एवं प्लाज्मा में ध्वनि केवल अनुदैर्घ्य तरंग (longitudenal wave) के रूप में चलती है जबकि ठोसों में यह अनुप्रस्थ तरंग (transverse wave) के रूप में भी संचरण कर सकती है।। जिस माध्यम में ध्वनि का संचरण होता है यदि उसके कण ध्वनि की गति की दिशा में ही कम्पन करते हैं तो उसे अनुदैर्घ्य तरंग कहते हैं; जब माध्यम के कणों का कम्पन ध्वनि की गति की दिशा के लम्बवत होता है तो उसे अनुप्रस्थ तरंग कहते है।
- अपवर्त्य प्रतिध्वनि: जब दो बड़ी चट्टानें या बड़ी इमारतें समान्तर व उचित दूरी पर स्थित होती हैं और उनके बीच में कोई ध्वनि पैदा की जाती है तो वह ध्वनि क्रमश: दोनों चट्टानों से बार-बार परावर्तित होगी। इस प्रकार की परावर्तित ध्वनि को अपवर्त्य प्रतिध्वनि कहते है। परावर्तकों से बार-बार परावर्तन होने से यह सब प्रतिध्वनियां मिलकर गड़गड़ाहट की आवाज पैदा करती है। बिजली की गड़गड़ाहट का कारण भी यही है, क्योंकि बादलों के तल, पहाड़ आदि परावर्तक तलों का काम करते हैं।
ध्वनि प्रदूषण (Noise pollution):
ध्वनि प्रदूषण या अत्यधिक शोर किसी भी प्रकार के अनुपयोगी ध्वनियों को कहते हैं, जिससे मानव और जीव जन्तुओं को परेशानी होती है। इसमें यातायात के दौरान उत्पन्न होने वाला शोर मुख्य कारण है। जनसंख्या और विकास के साथ ही यातायात और वाहनों की संख्या में भी वृद्धि होती जिसके कारण यातायात के दौरान होने वाला ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ने लगता है। अत्यधिक शोर से सुनने की शक्ति भी चले जाने का खतरा होता है।
ऐसा बहुत कम होता है कि ध्वनि प्रदूषण से कोई शारीरिक क्षति हो जाए। यह तभी होता है जब किसी व्यक्ति को लम्बे समय तक ऐसे अत्यन्त प्रबल स्तर के कोलाहल में रहना पड़े जो सामान्य जीवन को कोलाहल से बहुत की अधिक स्तर का हो। सामान्य मनुष्य को शायद ही कभी लम्बे समय तक इतने शोर में रहना पड़े कि उसकी सुनने की शक्ति को कोई स्थायी नुकसान हो सके। लेकिन लगभग 1000 हर्ट्ज़ की आवृत्ति को स्वरक का शरीर पर अस्थाई प्रभाव को सकता है, यदि उसकी तीव्रता का स्तर 100 डेसीबेल हो। हवाई सैनिकों का अस्थायी बहरापन इसका उदाहरण है।
रेडियो तथा टेलीविजन प्रसारण: रेडियो स्टेशन द्वारा भेजी गयी रेडियो-तरंगें आयनमण्डल द्वारा परावर्तित कर दी जाती हैं, अत: उन्हें पृथ्वी पर किसी भी स्थान पर ग्रहण किया जा सकता है। रात्रि के समय आयनमण्डल की पर्तों में स्थिरता आ जाती है, अतः रेडियो प्रसारण रात्रि में अधिक अच्छा होता है। उच्च आवृत्ति की टेलीविजन सिग्नल युक्त तरंगें, आयनमण्डल को पार करके बाहर चली जाती हैं। अत: इन्हें सीधे ही एक प्रेषित्र एण्टेना से दूसरे अभिग्राही एण्टेना पर भेजा जाता है। इसलिए प्रेषित्र एण्टेना की ऊंचाई अधिक-से-अधिक रखी जाती है। 500 मीटर ऊंचे एण्टेना से 80 किमी दूरी तक प्रसारण सम्भव है। आजकल भू-स्थिर उपग्रह का उपयोग करके टेलीविजन सिग्नल को भी पृथ्वी तल पर कई जगह पहुंचाया जा सकता है।
रडार: Radar, radio detection and ranging का संक्षिप्त रूप है। रडार में सूक्ष्म तरंगों का उपयोग करके दुश्मन के जलयानों व वायुयानों का पता लगाया जाता है। एक घूमते हुए एरियल द्वारा तरंगें प्रेषित की जाती हैं और वे वायुयान, जलयान आदि लक्ष्य से परावर्तित होकर रडार पर लौट आती हैं। प्रेषित और अभिग्रहीत तरंगों के समयान्तर को ज्ञात करके जलयान की दूरी ज्ञात की जा सकती है। तरंगें जितने क्षेत्र की स्कैनिंग करती हैं, उसका चित्र भी रडार के पर्दे पर आ जाता है।
ध्वनि का व्यतिकरण:
जब दो समान आवृत्ति व आयाम की दो ध्वनि तरंगें, एक साथ किसी बिन्दु पर पहुंची हैं, तो उस बिन्दु पर ध्वनि ऊर्जा का पुनर्वितरण हो जाता है। इसे ध्वनि का व्यतिकरण कहते हैं। यह व्यतिकरण संपोषी कहलाता है, जब दोनों तरंगें किसी बिन्दु पर एक ही कला में पहुंचती हैं। इस दशा में परिणामी आयाम दोनों तरंगों के अलग-अलग आयामों के योग के बराबर होता है तथा ध्वनि की तीव्रता अधिकतम होती है और यदि दोनों तरंगे विपरीत कला में मिलती हैं तो व्यतिकरण विनाशी कहलाती हैं। इस दिशा में ध्वनि की तीव्रता न्यूनतम होती है।
ध्वनि का विवर्तन:
जब हम अपने कमरे के भीतर होते हैं, तो बाहर से आ रहे शोरगुल या बातचीत को आसानी से सुन लेते हैं। अर्थात् हम बिना स्रोत को देखे हुए उससे उत्पन्न ध्वनि को सुन लेते हैं। इसका कारण है कि जब ध्वनि के मार्ग में कोई अवरोध आ जाता है, तो ये तरंगें उसे मुड़कर हमारे कान तक पहुंचती हैं। इसी को ध्वनि का विवर्तन कहते हैं। विवर्तन के लिये जरूरी है कि अवरोधों का आकार, ध्वनि की तरंगदैर्ध्य के तुलनीय होना चाहिये। चूंकि ध्वनि की तरंगदैर्ध्य लगभग एक मीटर होती है तथा इसी कोटि के हमारे घर के दरवाजे व खिड़कियाँ आदि होती हैं, जिससे ध्वनि का विवर्तन आसानी से हो जाता है व हमें बगैर देखे ही स्रोत से आने वाली ध्वनि का अहसास हो जाता है।
ध्वनि का परावर्तन:
प्रकाश की तरह ध्वनि भी एक माध्यम से चलकर दूसरे माध्यम के पृष्ठ से टकराने पर पहले माध्यम में वापस लौट आती हैं। इस प्रक्रिया को ध्वनि का परावर्तन कहते हैं। ध्वनि का परावर्तन भी प्रकाश के परावर्तन के नियम के अनुसार होता है किन्तु ध्वनि का तरंगदैर्ध्य अधिक होने के कारण परावर्तन बड़े आकार के पृष्ठों से होता है। इसीलिए ध्वनि का परावर्तन दीवारों, पहाड़ों तथा पृथ्वी तल सभी से हो जाता है।
ध्वनि का अपवर्तन:
ध्वनि तरंगें जब एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती हैं, तो उनका अपवर्तन हो जाता है अर्थात् वे अपने पथ से विचलित हो जाती हैं। ध्वनि तरंगों का अपवर्तन वायु की भिन्न-भिन्न पर्तों का ताप भिन्न-भिन्न होने के कारण होता है। चूंकि गर्म वायु में ध्वनि की चाल ठण्डी वायु की अपेक्षा अधिक होती है। इसीलिये ध्वनि तरंगें जब गर्म वायु से ठण्डी वायु में या ठण्डी वायु से गर्म वायु में संचरित होती हैं, तो अपने मार्ग से विचलित हो जाती हैं।
हर्ट्ज़:
हैनरिच रुडोल्फ हर्ट्ज का जन्म 22 फरवरी, 1857 को हैमबर्ग, जर्मनी में हुआ और उनकी शिक्षा बर्लिन विश्वविद्यालय में हुई। उन्होंने जे.सी. मैक्सवेल के विद्युतचुंबकीय सिद्धांत की प्रयोगों द्वारा पुष्टि की। उन्होंने रेडियो, टेलिफोन, टेलिग्राफ तथा टेलिविजन के भी भविष्य में विकास की नींव रखी। उन्होंने प्रकाश-विद्युत प्रभाव की भी खोज की जिसकी बाद में अल्बर्ट आइन्सटाइन ने व्याख्या की। आवृत्ति के SI मात्रक का नाम उनके सम्मान में रखा गया
इको साउंडिंग:
महासागर या समुद्र की गहराई मापने के लिए ध्वनि तरंग छोड़ी जाती है, जो महासागर के तल से टकराकर लौट आती है। प्रतिध्वनि के लौटने में जो समय लगता है, उसके आधार पर गहराई निर्धारित कर ली जाती है।
सोनार:
सोनार के द्वारा पानी में हुई वस्तुओं का पता लगाया जाता हैं। सोनार में पराश्रव्य तरंगें प्रयोक्त की जाती हैं सोनार का आविष्कार पॉललेंग्विन ने किया था। सोनार (Sonar) एक तकनीक है जो नौचालन, जल के अन्दर संचार करने तथा जल के अन्दर या सतह पर वस्तुओं का पता करने के लिये ध्वनि संचरण का उपयोग करती है। अंग्रेजी का ‘सोनार’ शब्द मूलतः SOund Navigation And Ranging का संक्षिप्त रूप है।
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