
भारतीय उच्च न्यायालयों के नाम, स्थापना और स्थान: (High Courts of India in Hindi)
भारत के उच्च न्यायालय:
किसी भी देश की शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में वहां की न्यायपालिका का ही हाथ होता है। न्यायपालिका के संगठन से ही पता चलता है कि उस देश में जनता को कितनी अधिक स्वतंत्रता प्राप्त है। भारत एक प्रजातंत्रात्मक देश है और ऐसे में स्वतंत्र न्यायपालिका का होना अनिवार्य है। भारतीय उच्च न्यायालय भारत के उच्च न्यायालय हैं। भारत में कुल 24 उच्च न्यायालय है जिनका अधिकार क्षेत्र कोई राज्य विशेष या राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के एक समूह होता हैं। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय, पंजाब और हरियाणा राज्यों के साथ केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को भी अपने अधिकार क्षेत्र में रखता हैं।
आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014 के तहत आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दो अलग-अलग राज्य बने हैं। यह भारत का 25वां उच्च न्यायालय होगा। 02 जून, 2014 को आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लिए हैदराबाद में एक ही उच्च न्यायालय था, अब इस हैदराबाद के उच्च न्यायालय को तेलंगाना उच्च न्यायालय के नाम से जाना जायेगा। तो अब आपको पता चल गया होगा कि वर्तमान समय में भारत में कुल 25 उच्च न्यायालय हैं क्योंकि आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की सेवाएं 1 जनवरी 2019 से शुरू हो गई है।
उच्च न्यायालय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 214, अध्याय 5 भाग 6 के अंतर्गत स्थापित किए गए हैं। न्यायिक प्रणाली के भाग के रूप में, उच्च न्यायालय राज्य विधायिकाओं और अधिकारी के संस्था से स्वतंत्र हैं। चलिये जानते है भारत में मौजूद सभी उच्च न्यायालयों के बारे में:-
भारत के उच्च न्यायालयों की सूची:
न्यायालय का नाम | स्थापना |
इलाहाबाद उच्च न्यायालय (इलाहाबाद) | 11 जून 1866 |
आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय (हैदराबाद) | 05 जुलाई 1954 |
मुंबई उच्च न्यायालय (मुंबई) | 14 अगस्त 1862 |
कलकत्ता उच्च न्यायालय (कलकत्ता) | 02 जुलाई 1862 |
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (बिलासपुर) | 01 नवम्बर 2000 |
दिल्ली उच्च न्यायालय (नई दिल्ली) | 31 अक्टूबर 1966 |
गुवाहाटी उच्च न्यायालय (गुवाहाटी) | 01 मार्च 1948 |
गुजरात उच्च न्यायालय (अहमदाबाद) | 01 मई 1960 |
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय (शिमला) | 1971 |
जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय (श्रीनगर और जम्मू) | 28 अगस्त 1928 |
झारखण्ड उच्च न्यायालय (रांची) | 15 नवम्बर 2000 |
कर्नाटक उच्च न्यायालय (बंगलौर) | 1884 |
केरल उच्च न्यायालय (कोच्चि) | 1956 |
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (जबलपुर) | 02 जनवरी 1936 |
चेन्नई उच्च न्यायालय (चेन्नई) | 15 अगस्त 1862 |
उड़ीसा उच्च न्यायालय (कटक) | 03 अप्रैल 1948 |
पटना उच्च न्यायालय (पटना) | 02 सितम्बर 1916 |
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय (चंडीगढ़) | 15 अगस्त 1947 |
राजस्थान उच्च न्यायालय (जोधपुर) | 21 जून 1949 |
सिक्किम उच्च न्यायालय (गंगटोक) | 16 मई 1975 |
उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय (नैनीताल) | 09 नवंबर 2000 |
मणिपुर उच्च न्यायालय (इम्फाल) | 25 मार्च 2013 |
मेघालय उच्च न्यायालय (शिलांग) | 23 मार्च 2013 |
त्रिपुरा उच्च न्यायालय (इटानगर) | 26 मार्च 2013 |
आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय | 01 जनवरी 2019 |
उच्च न्यायालय का गठन कैसे होता है?
प्रत्येक उच्च न्यायालय का गठन एक मुख्य न्यायाधीश तथा ऐसे अन्य न्यायाधीशों को मिलाकर किया जाता है, जिन्हें राष्ट्रपति समय-समय पर नियुक्त करे। इस प्रकार भिन्न-भिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या भी भिन्न है।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यता:
अनुच्छेद 217 के अनुसार कोई व्यक्ति किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के योग्य तब होगा, जब वह–
- भारत का नागरिक हो और 62 वर्ष की आयु पूरी न की हो।
- कम से कम 10 वर्ष तक न्यायिक पद धारण कर चुका हो। न्यायिक पद धारण करने की अवधि की गणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी, जिसके दौरान कोई व्यक्ति पद धारण करने के पश्चात किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहा है या उसने किसी अधिकरण के सदस्य का पद धारण किया है या संघ अथवा राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया है, जिसके लिए विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है।
- किसी उच्च न्यायालय में एक या से अधिक उच्च न्यायालयों में लगातार 10 वर्ष तक अधिवक्ता रहा हो। किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहने की अवधि की गणना करते समय वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी, जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने अधिवक्ता होने के पश्चात न्यायिक पद धारण किया है या किसी अधिकरण के सदस्य का पद धारण किया है या संघ अथवा राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया है, जिसके लिए विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है।
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति कैसे होती है?
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश से, उस राज्य के राज्यपाल से तथा सम्बन्धित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करके की जाती है। इस सम्बन्ध में यह प्रक्रिया अपनाई जाती है कि उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश राज्य के राज्यपाल के पास प्रस्ताव भेजता है और राज्यपाल उस प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री से परामर्श करके उसे प्रधानमंत्री के माध्यम से राष्ट्रपति के पास भेजता है। राष्ट्रपति उस प्रस्ताव पर भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करके न्यायाधीश की नियुक्ति करता है।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शपथ कौन दिलाता है?
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उस राज्य, जिसमें उच्च न्यायालय स्थित है, का राज्यपाल उसके पद की शपथ दिलाता है।
भारतीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की पदावधि:
उच्च न्यायालय का न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु पूरी करने तक अपना पद धारण कर सकता है। परन्तु वह किसी समय राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे सकता है। यदि त्यागपत्र में उस तिथि का उल्लेख किया गया है, जिस तिथि से त्यागपत्र लागू होगा, तो न्यायाधीश किसी भी समय अपना त्यागपत्र वापस ले सकता है। उदाहरणार्थ–
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सतीश चन्द्र ने मई, 1977 में दिये अपने त्यागपत्र में लिखा था कि उनका त्यागपत्र 01 अगस्त, 1977 से लागू माना जाए, लेकिन वे 31 जुलाई, 1977 से पहले अपना त्यागपत्र वापस ले लिये थे। इसके विरुद्ध विवाद होने पर उच्चतम न्यायालय ने 4:1 के बहुमत से निर्णय दिया कि त्यागपत्र लागू होने के पूर्व वापस लिया जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त न्यायाधीश को साबित कदाचार तथा असमर्थता के आधार पर संसद द्वारा दो तिहाई बहुमत से पारित महाभियोग प्रस्ताव के द्वारा राष्ट्रपति द्वारा उसके पद से हटाया जा सकता है।
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