शीत युद्ध का इतिहास,उत्पत्ति के कारण, और राजनीतिक प्रभाव (Cold War History in Hindi)
शीतयुद्ध किसे कहते है?
शीत युद्ध जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है कि यह अस्त्र-शस्त्रों का युद्ध न होकर धमकियों तक ही सीमित युद्ध है। इस युद्ध में कोई वास्तविक युद्ध नहीं लगा गया। शीत युद्ध एक प्रकार का वाक युद्ध था जो कागज के गोलों, पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो तथा प्रचार साधनों तक ही लड़ा गया। इस युद्ध में न तो कोई गोली चली और न कोई घायल हुआ। इसमें दोनों महाशक्तियों ने अपना सर्वस्व कायम रखने के लिए विश्व के अधिकांश हिस्सों में परोक्ष युद्ध लड़े। युद्ध को शस्त्रायुद्ध में बदलने से रोकने के सभी उपायों का भी प्रयोग किया गया, यह केवल कूटनीतिक उपयों द्वारा लगा जाने वाला युद्ध था जिसमें दोनों महाशक्तियां एक दूसरे को नीचा दिखाने के सभी उपायों का सहारा लेती रही। इस युद्ध का उद्देश्य अपने-अपने गुटों में मित्रा राष्ट्रों को शामिल करके अपनी स्थिति मजबूत बनाना था ताकि भविष्य में प्रत्येक अपने अपने विरोधी गुट की चालों को आसानी से काट सके। यह युद्ध द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के मध्य पैदा हुआ अविश्वास व शंका की अन्तिम परिणति था।
इन्हें भी पढे: प्रथम विश्व युद्ध के कारण,परिणाम और महत्वपूर्ण तथ्य
शीतयुद्ध की उत्पत्ति के कारण:
बर्लिन संकट (1961) के समय संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत रूस के टैंक आमने सामने शीतयुद्ध के लक्षण द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ही प्रकट होने लगे थे। दोनों महाशक्तियां अपने-अपने संकीर्ण स्वार्थों को ही ध्यान में रखकर युद्ध लड़ रही थी और परस्पर सहयोग की भावना का दिखावा कर रही थी। जो सहयोग की भावना युद्ध के दौरान दिखाई दे रही थी, वह युद्ध के बाद समाप्त होने लगी थी और शीतयुद्ध के लक्षण स्पष्ट तौर पर उभरने लग गए थे, दोनों गुटों में ही एक दूसरे की शिकायत करने की भावना बलवती हो गई थी। इन शिकायतों के कुछ सुदृढ़ आधार थे। ये पारस्परिक मतभेद ही शीत युद्ध के प्रमुख कारण थे,
शीतयुद्ध की उत्पत्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:-
- पूंजीवादी और साम्यवादी विचारधारा का प्रसार।
- सोवियत संघ द्वारा याल्टा समझौते का पालन न किया जाना।
- सोवियत संघ और अमेरिका के वैचारिक मतभेद।
- सोवियत संघ का एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरना।
- ईरान में सोवियत हस्तक्षेप।
- टर्की में सोवियत हस्तक्षेप।
- यूनान में साम्यवादी प्रसार।
- द्वितीय मोर्चे सम्बन्धी विवाद।
- तुष्टिकरण की नीति।
- सोवियत संघ द्वारा बाल्कान समझौते की उपेक्षा।
- अमेरिका का परमाणु कार्यक्रम।
- परस्पर विरोधी प्रचार।
- लैंड-लीज समझौते का समापन।
- फासीवादी ताकतों को अमेरिकी सहयोग।
- बर्लिन विवाद।
- सोवियत संघ द्वारा वीटो पावर का बार-बार प्रयोग किया जाना।
- संकीर्ण राष्ट्रवाद पर आधारित संकीर्ण राष्ट्रीय हित।
इन्हें भी पढे: दूसरे विश्व युद्ध के कारण,परिणाम और महत्वपूर्ण तथ्य
अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर शीत-युद्ध के प्रभाव:
शीतयुद्ध ने 1946 से 1989 तक विभिन्न चरणों से गुजरते हुए अलग-अलग रूप में विश्व राजनीति को प्रभावित किया। इसने अमेरिका तथा सोवियत संघ के मध्य तनाव पैदा करने के साथ-साथ अन्य प्रभाव भी डाले। इसके अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े-
- शीतयुद्ध से विश्व का दो गुटों – सोवियत गुट तथा अमेरिकन गुट, में विभाजन हो गया। विश्व की प्रत्येक समस्या को गुटीय स्वार्थों पर ही परखा जाने लगा।
- शीतयुद्ध से यूरोप का विभाजन हो गया।
- शीतयुद्ध ने विश्व में आतंक और भय में वृद्धि की। इससे अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों में तनाव, प्रतिस्पर्धा और अविश्वास की भावना का जन्म हुआ। गर्म युद्ध का वातावरण तैयार हो गया। शीतयुद्ध कभी भी वास्तविक युद्ध में बदल सकता था।
- शीतयुद्ध से आणविक युद्ध की सम्भावना में वृद्धि हुई और परमाणु शस्त्रों के विनाश के बारे में सोचा जाने लगा। इस सम्भावना ने विश्व में आणविक शस्त्रों की होड़ को बढ़ावा दिया।
- शीतयुद्ध से नाटो, सीटो, सेण्टो तथा वारसा पैक्ट जैसे सैनिक संगठनों का जन्म हुआ, जिससे निशस्त्रीकरण के प्रयासों को गहरा धक्का लगा और इससे निरंतर तनाव की स्थिति बनी रही।
- शीतयुद्ध ने संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका में कमी कर दी। अब अंतरराष्ट्रीय समस्याओं पर संयुक्त राष्ट्र संघ दोनों महाशक्तियों के निर्णयों पर ही निर्भर हो गया। संयुक्त राष्ट्र संघ समस्याओं के समाधान का मंच न होकर अंतरराष्ट्रीय संघर्षों का अखाड़ा बन गया जिसमें दोनो महाशक्तियां अपने-अपने दांव चलने लगी।
- शीतयुद्ध से शस्त्रीकरण को बढ़ावा मिला और विश्वशान्ति के लिए भयंकर खतरा उत्पन्न हो गया। दोनो महाशक्तियां अपनी-अपनी सैनिक शक्ति में वृद्धि करने के लिए पैसा पानी की तरह बहाने लगी जिससे वहां का आर्थिक विकास का मार्ग अवरुद्ध हो गया।
- शीतयुद्ध ने सुरक्षा परिषद को पंगु बना दिया। जिस सुरक्षा परिषद के ऊपर विश्व शान्ति का भार था, वह अब दो महाशक्तियों के संघर्ष का अखाड़ा बन गई। परस्पर विरोधी व्यवहार के कारण अपनी वीटो शक्ति का उन्होंने बार बार प्रयोग किया।
- शीत युद्ध से जनकल्याण की योजनाओं को गहरा आघात पहुंचा। दोनो महाशक्तियां शक्ति की राजनीति में विश्वास रखने के कारण तीसरी दुनिया के देशों में व्याप्त समस्याओं के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया अपनाती रही।
- शीत युद्ध ने शक्ति संतुलन के स्थान पर ‘आतंक के संतुलन’ को जन्म दिया।
- शीत युद्ध ने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को सबल आधार प्रदान किया।
- शीतयुद्ध के कारण विश्व में नव उपनिवेशवाद का जन्म हुआ।
- शीतयुद्ध के कारण विश्व राजनीति में परोक्ष युद्धों की भरमार हो गई।
- शीत युद्ध से राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलनों का विकास हुआ।
- अंतरराष्ट्रीय राजनीति में प्रचार तथा कूटनीति के महत्व को शीतयुद्ध के कारण समझा जाने लगा।
इस तरह कहा जा सकता है कि शीतयुद्ध ने अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों पर व्यापक प्रभाव डाले। इसने समस्त विश्व का दो गुटों में विभाजन करके विश्व में संघर्ष की प्रवृति को बढ़ावा दिया। इसने शक्ति संतुलन के स्थान पर आतंक का संतुलन कायम किया। लेकिन नकारात्मक प्रभावों के साथ-साथ इसके कुछ सकारात्मक प्रभाव भी पड़े। इससे तकनीकी और प्राविधिक विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ। इससे यथार्थवादी राजनीति का आविर्भाव हुआ और विश्व राजनीति में नए राज्यों की भूमिका को भी महत्वपूर्ण माना जाने लगा।
और जानिये : इतिहास में हुए शीत युद्ध की उत्पत्ति के कारण, भारत एवं विश्व पर राजनीतिक प्रभाव